Ground Report
मेरठ: 19-30 अप्रैल, कोविड से मौतें 264, सरकार का दावा 36
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वह दावा बहुत चर्चा में है जिसमें उन्होंने कहा कि अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवा और बेड उपलब्ध हैं. अब उनके दावे को चुनौती देने वाली तस्वीरें उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से सामने आ रही हैं. न्यूज़लॉन्ड्री के रिपोर्टर्स इस वक्त मेरठ शहर में हैं, उन्होंने पाया कि सरकार कोरोना से हो रही मौतों का जो आंकड़ा बता रही है वह गलत है. सरकारी आंकड़ों और श्मशान घाटों/कब्रिस्तानों में कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हो रहे अंतिम संस्कार की संख्या सात गुना ज़्यादा है.
उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहर मेरठ के चीफ मेडिकल अफसर (सीएमओ) द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक 19 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच सिर्फ 36 लोगों की मौत कोरोना की वजह से हुई. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि अकेले सूरजकुंड श्मशान घट पर ही इस अवधि में 264 शवों का अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकल के तहत हुआ है.
मेरठ में इसके अलावा छोटे-बड़े कई श्मशान घाट हैं. इसके अलावा शहर में बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय की भी है. यहां के कब्रिस्तान में भी बड़ी संख्या में कोविड पीड़ितों का अंतिम संस्कार हो रहा है. आगे वहां के आंकड़ों का भी जिक्र करेंगे.
सूरजकुंड श्मशान पर जिसका भी अंतिम संस्कार होता है उसकी मौत का कारण रजिस्टर में दर्ज किया जाता है. न्यूज़लॉन्ड्री ने इस रजिस्टर में दर्ज नामों और मौत की वजह को हासिल किया. जिसके बाद यह हैरानी भरी जानकरी सामने आई कि सरकार मौत के आंकड़ें को बेहद घटाकर दिखा रही है.
शुक्रवार शाम चार बजे जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम सूरजकुंड श्मशान घाट पहुंची तब वहां एक साथ 13 शव जल रहे थे. दो शव के साथ लोग बाहर इंतजार कर रहे थे. पंडित की व्यस्तता के कारण शव के अंतिम संस्कार में देरी हो रही थी. श्मशान घाट की देख-रेख करनी वाली संस्थान गंगा मोटर कमेटी के मैनेजर विजेंद्र सिंह ने बताया, ‘‘कभी-कभी तो स्थिति ऐसी आ जाती है कि श्मशान घाट के अर्धनिर्माण क्षेत्र में भी लोगों का अंतिम संस्कार कराना पड़ता है.”
‘‘सामान्य दिनों में ज़्यादा से 10 से 15 शव जलने के लिए आते थे लेकिन अब किसी-किसी दिन 60 तो किसी दिन 70 शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है. आजकल तो देर रात तक शव जलते रहते हैं क्योंकि डीएम साहब का आदेश है. एम्बुलेंस से आए शव को हमें देर रात को भी जलाना होगा,’’ विजेंद्र सिंह आगे कहते हैं.
सात गुना कम दर्ज हो रहे मौत के आंकड़े
उत्तर प्रदेश सरकार मौत के वही आंकड़े जारी करती है जो जिले के सीएमओ द्वारा भेजे जाते हैं.
हमने सूरजकुंड श्मशान घाट के आंकड़ों के साथ-साथ 19 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच मेरठ के सीएमओ द्वारा जारी कोविड मृतकों की सूची का मिलान किया. हमने पाया कि दोनों आंकड़ों में सात गुना का अंतर हैं. एक बार फिर से आपको बताते चलें कि यह सिर्फ एक श्मशान घाट के आंकड़े हैं. मेरठ शहर में कई श्मशान और कब्रिस्तान हैं जहां लगातार लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा है.
19 अप्रैल को सीएमओ के आंकड़े के मुताबिक जिले में कोविड से एक भी मौत नहीं हुई थी. लेकिन सूरजकुंड में उस दिन 13 शवों का संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत किया गया, बाकी का सामान्य विधि से किया गया. ऐसे ही 23 अप्रैल को सूरजकुंड में 29 शवों का अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हुआ लेकिन सीएमओ द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक उस दिन मेरठ में किसी का भी कोरोना से निधन नहीं हुआ.
सूरजकुंड श्मशान घाट पर 20 अप्रैल को 17, 21 अप्रैल को 24, 22 अप्रैल को 15, 24 अप्रैल को 21, 25 अप्रैल को 25, 26 अप्रैल को 33, 27 अप्रैल को 18, 28 अप्रैल को 16, 29 अप्रैल को 34 और 30 अप्रैल को 19 लोगों का अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हुआ. लेकिन सीएमओ के आंकड़े के मुताबिक इस दौरान क्रमश 3, 2, 2, 3, 7, 2, 4, 3, 5 और 5 लोगों का कोरोना से निधन हुआ.
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 30 अप्रैल को 34,626 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए. वहीं 332 कोविड पीड़ित मरीजों की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश में आधिकारिक तौर पर कोरोना से मरने वालों की संख्या 12,570 हो गई है.
क्या आप लोग यह जानकारी सीएमओ या अन्य सरकारी अधिकारियों को नहीं भेजते? इस सवाल के जवाब में बिजेंद्र कहते हैं, ‘‘आजकल नगर निगम ने अपने एक कर्मचारी की श्मशान घाट में ड्यूटी लगाई है. वे रोज हमारा रजिस्टर देखते हैं और अपने विभाग को रिपोर्ट भेजते हैं. वैसे सीएमओ सीधे हमसे रिपोर्ट नहीं लेते हैं.’’
कोई कोरोना मरीज है या नहीं यह आप अपने रजिस्टर में कैसे लिखते हैं? इस सवाल के जवाब में बिजेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘परिजन हमें इसकी जानकारी देते हैं. कई बार अस्पताल से शव को पूरी तरह पैक करके भेजा जाता है. हमारे पंडितजी को बताया जाता है कि कोरोना का शव है. उस जानकारी को रजिस्टर में लिखा जाता है. कई लोग बीमारी नहीं भी बताते हैं. जो शव को अपने घर से लेकर आते हैं.’’
बिजेंद्र बताते हैं, ‘‘गर्मी के दिनों में यहां लगभग औसतन एक दिन में 15 शवों का अंतिम संस्कार होता है लेकिन पिछले सप्ताह के एक दिन में 80 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया. पिछले एक सप्ताह से यहां हर रोज लगभग 40 शव आ रहे हैं. कुछ के अंतिम संस्कार का साधन हम अपने यहां से देते हैं तो कुछ को अस्पताल द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है.’’
'कब्रिस्तान में भर गई है जगहें'
मेरठ शहर में एक बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय की भी है. मुस्लिम समुदाय में हो रही मौतों का आलम यह है कि मेरठ से समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर कब्रिस्तान में मिट्टी भरवाने के लिए कहा है.
30 अप्रैल को जिलाधिकारी को लिखे पत्र में रफीक लिखते हैं, ‘‘कोविड-19 के चलते पिछले 15 दिन में अत्यधिक मौतें हो गई हैं जिस कारण कब्रिस्तानों में मिटटी कम पड़ गई है. मय्यत दफनाने में बहुत परेशानी आ रही है. मेरे विधानसभा के कब्रिस्तानों में मेरी निधि से 25 लाख की मिट्टी डलवाने की कृपा करें.’’
रफीक ने अपने पत्र में पांच कब्रिस्तानों का जिक्र किया है.
रफीक अंसारी न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘पहले ज़्यादातर कब्रिस्तानों में एक से दो शव आते थे लेकिन अब तो हर रोज 50 से ज़्यादा आने लगे हैं. बीते एक सप्ताह में 500 से ज़्यादा नई कब्रें हो गई है. अब कब्रिस्तानों में बिलकुल भी जगह नहीं बची है. शव बाहर सड़ जाएंगे. ऐसे में हमने महसूस किया कि जो गड्ढे (पुरानी कब्र जो धंस गई हैं) हो रहे हैं उसमें मिट्टी डालकर नई कब्र के लिए जगह तैयार हो जाएगी.’’
मौतों में यह इजाफा कोविड के कारण है? इस सवाल के जवाब में रफीक अंसारी कहते हैं, ‘‘सब कोविड के ही मामले है. हर तीसरे घर में मरीज है. अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है. मरीज को घर में रखकर ऑक्सीजन के लिए लोग भटक रहे हैं. ऐसे मरीजों की घरों में ही मौत हो जा रही है. सिर्फ हजरत बाले मियां कब्रिस्तान में रोजाना 40 से 50 शव आ रहे है. जिसमें से ज़्यादातर कोरोना के ही मरीज होते हैं.’’
सूरजकुंड श्मशान रजिस्टर के मुताबिक 19 अप्रैल को जिन 13 लोगों का कोविड प्रोटोकॉल से अंतिम संस्कार किया गया था, उनमें से आठ मेरठ के, एक-एक हापुड़, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर और सहारनपुर के थे.
ऑक्सीजन होने का दावा लेकिन ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौत
मेरठ के सबसे बड़े अस्पताल लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड और आपातकालीन वार्ड की स्थिति बेहद खराब है. यहां लोग फर्श पर अपना चादर बिछाकर इलाज कराते नजर आए.
आपातकालीन वार्ड गेट पर एक बड़ा सा पोस्टर लगा है जिसपर लिखा है कि इस अस्पताल में बाहर से ऑक्सीजन लेकर न आएं. यानी अस्पताल प्रशासन का दावा है कि उसके पास ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन हमने पाया कि यहां ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौत हो जा रही है.
यहां भर्ती परिजनों के मुताबिक यहां भले लिखा हो कि ऑक्सीजन उपलब्ध है, लेकिन दो से तीन सिलिंडर आता है तो लोग उस पर टूट पड़ते हैं. जो मज़बूत होता है वो उठा लेता है. जिसे नहीं मिल पाता उससे अस्पताल के कर्मचारी पैसे लेकर ऑक्सीजन देते हैं.
मेरठ के माधोपुरम इलाके में रहने वाले कमल छाबड़ा अपनी भाभी को लेकर यहां पहुंचे थे. उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी. छाबड़ा न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए पैसे लिए जा रहे हैं. मैंने और भाभी के बेड के पास वाले मरीज के परिजनों ने एक-एक हज़ार रुपए देकर एक सिलिंडर लिया. दोनों को एक ही सिलेंडर से ऑक्सीजन दिया जा रहा है. यहां कोई इलाज नहीं हो रहा है.’’
हमसे बातचीत के थोड़ी देर बाद ही छाबड़ा की भाभी लता का निधन हो गया. उनकी शादी दो महीने पहले ही हुई थी.
सरकारी सिलेंडर को अस्पताल कर्मचारियों द्वारा ब्लैक में बचने का आरोप कई मरीजों के परिजन लगाते है.
48 वर्षीय रेखा वर्मा अपनी मां चमेली देवी को लेकर यहां पहुंची थीं. वो अपने साथ चारपाई, बिस्तर लेकर आई थी. चमेली देवी को ऑक्सीजन ज़रूरत थी लेकिन घंटों इंतज़ार करने के बाद जब ऑक्सीजन नहीं मिला तो वो अपनी मां को लेकर अस्पताल से चली गईं. उन्होंने हमें बताया, ‘‘यहां कोई इलाज नहीं मिल रहा है. घर लेकर जा रहे हैं. अगर ऑक्सीजन मिल गया तो ठीक नहीं तो योगीजी ने मरने के लिए छोड़ ही दिया है. वे ये नहीं कह रहे कि गरीबी हटाओ बल्कि गरीबों को ही हटाने की कोशिश कर रहे हैं.’’
आंकड़ों में इतने बड़े पैमाने पर अंतर को लेकर मेरठ के सीएमओ अखिलेश मोहन कहते हैं, "मेरठ के अस्पतालों में मरने वालों में कुछ लोग गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद और बुलंदशहर जैसे अन्य जिलों से आ रहे हैं. उनका कोरोना पॉजिटिव उस जिले में आया होगा. ऐसे में वे हमारे यहां मरे कोरोना मरीजों में नहीं गिने जाते."
हमने पाया कि अखिलेश मोहन का यह दावा पूरी तरह सच नहीं है. सूरजकुंड श्मशान घाट के रजिस्टर के मुताबिक 19 अप्रैल को जिन 13 लोगों का कोविड प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किया गया उसमें से आठ मेरठ के थे, एक हापुड़, एक बागपत, एक गाजियाबाद, एक बुलंदशहर और एक सहारनपुर के थे.
जब हमने इस ओर उनका ध्यान दिलाया तो उन्होंने कहा, "ऐसे भी मामले हैं जिनमें कोविड के लक्षण वाले लोगों की मौत हो जाती है लेकिन उनकी रिपोर्ट निगेटिव होती है. ऐसे में उनका भी अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत होता है. लेकिन वे कोरोना मरीज के रूप में दर्ज नहीं होते."
अखिलेश मोहन भी मानते हैं कि कोरोना लक्षण होने के कारण लोगों की मौत हो रही है लेकिन उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ रही है. ऐसा क्यों? इसपर वे कहते हैं, "यह काफी है."
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