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क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया का ट्वीट बना राहुल रजक की मौत का कारण?
कोविड-19 के भयानक संकट के दौरान, देश भर में लोग सोशल मीडिया का सहारा लेकर एक दूसरे की मदद करने में जुटे हैं. कहीं किसी को ऑक्सीजन की जरूरत है, तो कहीं किसी को अस्पताल में बिस्तर की, कहीं इंजेक्शन की ज़रूरत है तो कहीं दवाई की. ज़रूरतमंद चाहें दिल्ली, मुंबई, भोपाल, लखनऊ में हो या देश के किसी भी कोने में उनकी मदद के लिए उनके दोस्त, उनके दोस्तों के दोस्त यहां तक की अंजान लोग भी ट्वीट कर, फेसबुक पर लिखकर, मैसेज कर या फ़ोन कर उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. जहां आम लोग बिना किसी स्वार्थ के, अपना बखान किये बगैर सोशल मीडिया के ज़रिये लोगों की मदद कर रहे हैं, वहीं हमारे देश के बहुत से राजनेता ऐसे भी हैं जो इस वक्त ना सिर्फ अपने कामों का प्रचार करने में लगे हैं बल्कि सोशल मीडिया के ज़रिये वाहावाही बटोरने में भी लगें हैं. लेकिन शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं है कि उनकी कोरी तारीफ़ पाने की तमन्ना किसी की जान भी ले सकती है और ग्वालियर अपना इलाज कराने आए 30 साल के राहुल रजक ऐसे ही एक मामले में अपनी जान गंवा बैठे हैं.
छतरपुर के रहने वाले राहुल कोविड से संक्रमित थे और ग्वालियर इलाज करवाने आये थे. 23 अप्रैल के दिन उनकी हालत बिगड़ने लगी थी और उनका ऑक्सीजन लेवल गिरकर करीब 80 तक पहुंच गया. जब राहुल की इस हालत के बारे में मिथिलेश धर नाम के एक पत्रकार से उनके कुछ दोस्तों ने चर्चा कर अस्पताल में बिस्तर दिलाने में मदद करने के लिए कहा तो मिथलेश ने तकरीबन 3:38 मिनट पर एक ट्वीट कर लिखा था, "मध्य प्रदेश, ग्वालियर में एक 30 साल का युवा गंभीर अवस्था में है. ऑक्सीजन लेवल 80 पर पहुंच गया. तत्काल बेड चाहिए." इस ट्वीट में मिथिलेश ने राहुल के परिजनों का फ़ोन नंबर दिया था और साथ ही साथ ग्वालियर के सिंधिया परिवार से आने वाले कद्दावर भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, आरजेडी नेता शिव चंद्र राम चमार और लेखक अशोक पांडे को टैग कर मदद की अपील की थी.
इस ट्वीट के बाद पत्रकार अशोक पांडे ने ग्वालियर में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक को इस बारे में सूचित किया था. जिसके बात पाठक ने राहुल के पिता आनंद रजक को मदद करने हेतु फ़ोन किया.
न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान पाठक कहते हैं, "जब मुझे इस बात की सूचना मिली तो मैंने तुरंत मरीज़ के परिवार से संपर्क साधा था. मेरी उनके पिता से बातचीत हुयी थी. उन्होंने बताया कि उनके बेटे को केएम अस्पताल के आईसीयू वार्ड में जगह मिल गयी थी. जब मैंने उनसे यह पूछा कि उन्हें अन्य कोई और मदद चाहिए तो वो बता दें तो जवाब में उन्होंने कहा था कि फ़िलहाल मदद की जरूरत नहीं है. क्योंकि आईसीयू में इलाज शुरू हो चुका था. इसके बाद जिन लोगों ने ट्विटर पर मुझे टैग किया था उनको जवाब देते हुए मैंने ट्वीट किया था कि मेरी बात हो गयी है और मरीज़ आईसीयू में भर्ती है."
पाठक ने जब यह सूचना अशोक पांडे को दी थी तो उन्होंने तकरीबन 4:33 बजे पत्रकार मिथलेश धर, सिंधिया, तोमर आदि को टैग करते हुए ट्वीट किया था कि मरीज की मदद हो गयी है और वह आईसीयू में है. इस ट्वीट को सिंधिया ने भी लाइक किया था. तकरीबन 5:05 मिनट पर धर ने शुक्रिया लिख पांडे के ट्वीट का जवाब दे दिया था.
इन सब बातों से यह चीज़ साफ़ हो जाती है कि राहुल रजक को पांच बजे के पहले ही अस्पताल में बिस्तर मिल गया था और उनका आईसीयू में इलाज शुरू हो गया था. इस बात का सिंधिया को भी पता था क्योंकि अशोक पांडे के इस बात की जानकारी देने वाले ट्वीट को वह लाइक भी कर चुके थे. लेकिन बावजूद इसके शाम को 5:14 मिनट पर सिंधिया ने मिथिलेश धर के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए जवाब दिया, "संबंधितों को बोलकर व्यवस्था करवा दी है. उपचार में किसी और चीज़ की आवश्यकता हो तो बताएं". सिंधिया के इस ट्वीट के नीचे कई लोगों ने उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की, बावजूद इसके कि मरीज़ पहले से ही केएम अस्पताल में भर्ती था.
मिथिलेश धर, राकेश पाठक और अशोक पांडे शाम तक इस बात से खुश थे कि मरीज़ का इलाज अस्पताल में चल रहा है. लेकिन रात होने तक उनकी ख़ुशी काफूर हो चुकी थी क्योंकि रात को उन्हें पता चला कि मरीज की मौत हो चुकी है.
मिथिलेश कहते हैं, "रात के तकरीबन साढ़े नौ बजे के बाद मुझे रजक परिवार की जान-पहचान के एक व्यक्ति ने फ़ोन करके बताया कि कौशलेन्द्र विक्रम सिंह नाम के एक व्यक्ति का मरीज के पिता को फ़ोन आया था. उन्होंने मरीज के परिवार को केएम अस्पताल से डिस्चार्ज करवा कर बिड़ला अस्पताल में भर्ती कराने का आश्वासन दिया था. उस व्यक्ति ने परिवार के लोगों को बिड़ला अस्पताल में जाने के लिए कहा था और बिड़ला अस्पताल के डॉक्टर एसएल देसाई से संपर्क करने के लिए बोला था. इसके बाद राहुल को डिस्चार्ज करवा कर उनका परिवार बिड़ला अस्पताल चला गया था लेकिन जब उन्होंने वहां अस्पताल पहुंच कर डॉ. देसाई को कौशलेन्द्र विक्रम सिंह नाम के व्यक्ति का हवाला देते हुए उसे भर्ती करने के लिए कहा तो डॉक्टर ने भर्ती करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि ना ही उन्हें कोई फ़ोन आया है और ना ही वह उनके बेटे को अस्पताल में भर्ती कर सकेंगे."
गौरतलब है कि जिस कौशलेन्द्र विक्रम सिंह का रजक परिवार को फ़ोन आया वो असल में ग्वालियर के जिलाधिकारी हैं.
मिथिलेश आगे कहते हैं, "राहुल के पिताजी ने कई बार कौशलेन्द्र सिंह के नंबर पर फोन लगाया लेकिन बस घंटी बज-बज कर रह गयी. इसके बाद लगातार मुझे ग्वालियर से फ़ोन आ रहा था कि लड़के का ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा है. वह मुझसे कह रहे थे कि भैया बचा लीजिये और तकरीबन 12:10 बजे मुझे मैसेज आया कि राहुल की मौत हो गयी है. मुझे बहुत दुख हुआ और गुस्सा आया जिसके बाद मैंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कई ट्वीट किये क्योंकि उनके कहने पर ही कलेक्टर ने मरीज को केएम से बिड़ला अस्पताल भिजवाया था. कलेक्टर ने खुद तो अपने मन से ऐसा किया नहीं था."
वह कहते हैं, "मौजूदा माहौल में लोगों को मदद नहीं मिल पा रही है और जब किसी की मदद से उस लड़के को केएम अस्पताल में जगह मिल गयी थी तो उसे वहां से डिस्चार्ज कर दूसरे अस्पताल में भर्ती का आश्वासन देने की क्या ज़रुरत थी. सिंधिया को पता था कि मरीज पहले से एडमिट था. इस बात की जानकारी वाले कमेंट को उन्होंने लाइक भी किया, बावजूद इसके उन्होंने बोला कि परिजन से बात हो गयी है, मदद कर रहे हैं. जब मरीज का एक जगह इलाज हो रहा था तो ऐसे मुश्किल समय जब बेड नहीं मिल रहा तो उसे दूसरी जगह शिफ्ट कराने का क्या मतलब है? डिस्चार्ज तो करवा दिया लेकिन भर्ती नहीं करवाया और वो लड़का अस्पताल के बाहर तड़प तड़प कर मर गया."
मिथिलेश बताते हैं, "जब उस लड़के का ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा था और जब उसे अस्पताल में जगह नहीं मिल रही थी. तब भी मैने कई बार सिंधिया जी को टैग किया था. वो खुद की तारीफों वाली खबरें तो ट्वीट कर रहे थे लेकिन राहुल की बिगड़ती हालत के ट्वीट पर उनका कोई जवाब नहीं आया."
पाठक कहते हैं, "उस रात मुझे 11 बजे इस बात की सूचना मिली की राहुल को केएम से बिड़ला अस्पताल भेजा गया है. मैंने रात 11.40 पर आनन्द रजक से बात की. उन्होंने बताया कि किसी कौशलेंद्र सिंह के कहने से उनके बेटे को बिड़ला शिफ्ट किया गया है लेकिन वहां उसे भर्ती नहीं किया जा रहा. वो एम्बुलेंस में तड़प रहा है. उन्होंने कहा कि केएम में सही इलाज चल रहा था बेवज़ह किसी के कहने से प्रशासन ने बिड़ला अस्पताल भिजवा दिया. बात करते हुए वे बिलख-बिलख कर रो पड़े थे, उन्होंने कहा था, "अब कुछ नहीं हो सकता. हमारा बेटा जा रहा है."
वह आगे कहते हैं, "यह निश्चित तौर पर गंभीर घटना है. आश्चर्य का विषय है कि बिना किसी कारण, किसी के कहने से प्रशासन ने मरीज़ को गंभीर दशा में एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट किया और दूसरे अस्पताल में उसे भर्ती तक नहीं किया गया."
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने राहुल रजक के पिता आनंद रजक से बात की तो वह कहते हैं, "हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हो गया सर. हम तो नौगांव (छतरपुर) से अपने बच्चे का इलाज कराने आये थे. हमें बिड़ला अस्पताल यह कहकर पहुंचा दिया था कि हमारे बच्चे को वहां भर्ती करेंगे. हमें केएम से डिस्चार्ज करवा कर वहां भिजवा दिया था और फिर वहां पहुंचने पर मेरे बेटे को भर्ती नहीं किया गया. मैंने बिड़ला अस्पताल के डॉ. देसाई से लाख मिन्नतें की लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी. मैंने सबके सामने उनके आगे हाथ जोड़े लेकिन उन्होंने मेरे बेटे को भर्ती नहीं किया और गाड़ी में बैठकर चले गए. मैं क्या बताऊं सर मेरा बेटा मेरे सामने तड़प-तड़प कर मर गया था.
गौरतलब है कि आनंद रजक को जिस नंबर से फ़ोन आया था वह ग्वालियर के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह का था और उनके अलावा एक अन्य व्यक्ति डॉ. प्रतीक ने भी उनसे बात की थी जो कि कलेक्टर सिंह द्वारा बनायी गयी टीम का हिस्सा हैं. आंनद को आश्वासन दिलाया गया था कि उनके बेटे को बिड़ला अस्पताल में भर्ती कर दिया जाएगा. बिड़ला अस्पताल में जब उनके बेटे को भर्ती नहीं किया गया था तो उन्होंने कलेक्टर के नंबर पर कई बार फ़ोन किये थे लेकिन किसी ने फ़ोन नहीं उठाया.
कौशलेन्द्र सिंह कहते हैं ,"मेरे पास यह मामला आया था और मुझे बताया गया था कि मरीज़ की हालत ठीक नहीं है इसलिए उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती करना था. मैं अपनी मर्ज़ी से क्यों किसी व्यक्ति को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेजूंगा, इसमें मेरा क्या फायदा हो सकता. कहीं ट्वीट वगैरह हुआ था उसके बाद मेरे पास निर्देश आये थे. हमें किसी का फ़ोन आया था लेकिन मैं यह नहीं बता सकता कि किसका फ़ोन आया था. जैसे ही मरीज का नंबर हमारे पास आया तो हमने उनसे संपर्क किया.
जब हमने उनसे राहुल को बिड़ला अस्पताल में भर्ती नहीं किये जाने की बात पूछी तो सिंह के पास उसका कोई वाजिब जवाब नहीं दे पाए, वह कहते हैं, "हमारी टीम के डॉ. प्रतीक भी उनके संपर्क में थे. ऐसी बात नहीं है कि उन्हें भर्ती नहीं किया गया था उनकी तबीयत बहुत खराब थी, उनको बचाने की कोशिश की गई थी लेकिन बचा नही पाये."
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने राहुल के परिवार वालों का फ़ोन क्यों नहीं उठाया तो वह कहते हैं, "शायद उस वक़्त फोन व्यस्त हो इस वजह से बात नहीं हो पाई."
जब सिंधिया या उनके दफ्तर से कॉल आने के बारे में सिंह से हमने पूछा तो वह सीधा जवाब ना देते हुए कहते हैं, "हो सकता है कि कॉल उनके यहां से आया हो, या हो सकता है उनके परिवार ने उनसे संपर्क किया हो या किसी और ने संपर्क किया हो."
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में जब बिड़ला अस्पताल के डॉ. एसएल देसाई से मरीज को भर्ती नहीं किये जाने के सवाल किये तो वह कहते हैं, "हमने मरीज को दो बार सीपीआर दिया था." इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया और फिर दोबारा फ़ोन नहीं उठाया.
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में ज्योतिरादित्य सिंधिया से बात की तो वह कहते हैं, "हमें इस बात का बहुत खेद कि एक ज़िन्दगी चली गयी. मैंने ट्वीट भी किया था और उस मरीज़ की हालत के मद्देनज़र कलेक्टर से भी बोला था कि उन्हें उस अस्पताल में भर्ती कराये. लेकिन उन्हें किस वजह से भर्ती नहीं किया गया यह मुझे नहीं पता है. लेकिन कलेक्टर से बात कर इस मामले की जांच होगी और उन कारणों का पता लगाया जाएगा. मुझे खुद उस व्यक्ति कि मृत्यु का बहुत अफ़सोस है और इस बात का गिला रहेगा. हर ज़िन्दगी कीमती है."
सिंधिया आगे कहते हैं, "लेकिन आप सिर्फ इस मामले को ही मत देखिये मुझसे जितना बन पड़ रहा है मैं लोगों की मदद कर रहा हूं और करता रहूंगा. मैंने पिछले 15 दिनों में जो काम किया है आप उसको भी देखिये.
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