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एक्सक्लूसिव: भीमा-कोरेगांव मामले में सबूत प्लांट करने के और पुख्ता सबूत मिले

अमेरिका स्थित एक डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जनवरी, 2018 में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव कस्बे की हिंसा के कुछ दिनों बाद सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर में उन्हें "फंसाने वाली" 22 फाइलें प्लांट की गई थीं.

15 नवंबर, 2018 से इन फाइलों को प्रमुख साक्ष्य मानकर पुणे पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा इनका हवाला दिया जा रहा है. विल्सन और 15 अन्य लोगों, जिनमें वकील, शैक्षणिक जगत और कला जगत के लोग शामिल हैं, पर भारत सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप लगाकर जेलों में डाल दिया गया है (सिवाय वरवरा राव के जो फिलहाल जमानत पर हैं). फिलहाल ये लोग बिना मुकदमे की सुनवाई के ही दो सालों से अधिक समय से जेल में हैं.

आर्सेनल कंसल्टेंट की एक नयी रिपोर्ट बताती है कि विल्सन का कंप्यूटर चलाने वाले किसी भी शख़्स द्वारा इन फाइलों को न तो क्रिएट किया गया है, न खोला गया न ही इस्तेमाल किया गया है. बल्कि किसी हैकर द्वारा इन फाइलों को उनके कंप्यूटर में प्लांट करने के लिए एक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया है. नवंबर, 2019 में कोर्ट के आदेश के बाद कंप्यूटर की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी विल्सन के वकीलों को पुलिस ने दी. उन्हीं वकीलों के आग्रह पर आर्सेनल ने इसकी समीक्षा की थी.

आर्सेनल की नई रिपोर्ट फरवरी, 2021 में पहली बार सामने आई रिपोर्ट का विस्तार है. वह रिपोर्ट बताती है कि कंप्यूटर में किसी गलत सॉफ्टवेयर के जरिए 10 फाइलें प्लांट की गई थीं. उसमें ज्यादातर "फंसाने" वाले पत्र थे, और उनकी लगातार इलेक्ट्रॉनिक जासूसी हो रही थी.

दूसरी रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है लेकिन हमारी सहयोगी आर्टिकल 14 ने उसकी समीक्षा की है. "विल्सन के कंप्यूटर में मौजूद अतिरिक्त फाइलों के साथ कोई पुख्ता संबंध के साक्ष्य नहीं मिले हैं. इसके अलावा 24 में से 22 फाइलें पहली रिपोर्ट में चिन्हित किये जा चुके अटैकर से जुड़ी हैं.”

अतिरिक्त 24 फाइलों में ज्यादातर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्यों के बीच फंड ट्रांसफर, संगठन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बेहतर करने, पार्टी के सदस्यों को आपसी संवाद स्थापित करने में आ रही परेशानियों, भारतीय राष्ट्र राज्य के इन लोगों पर धावा बोलने आदि को लेकर आपसी संवाद और कुछ माओवादी गुरिल्लाओं की तस्वीरें हैं.

इन आशंकाओं के मद्देनज़र हमने एनआईए की प्रवक्ता और पुलिस अधीक्षक जया रॉय को एक ईमेल के जरिए विस्तृत प्रश्नावली भेजी गयी है. जिसमें आर्सेनल की रिपोर्ट में आए परिणामों और सरकारी फॉरेंसिक लैब्स की दाखिल रिपोर्ट्स से जुड़े सवाल पूछे गए हैं.

जया रॉय द्वारा अब तक इस ईमेल का जवाब नहीं दिया गया है. लेकिन हमसे फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा, "हम निजी लैब्स की रिपोर्ट्स का संज्ञान नही लेते."

"फॉरेंसिक जांंचों के लिए हमारी आधिकारिक लैब्स हैं. जैसे-आरएफएसएल (रीजनल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) और सीएफएसएल (सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी)."

इन 16 व्यक्तियों का केस अदालत में अभी सालों तक चलेगा लिहाजा इनके वकील फिलहाल अपना ध्यान इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को जमानत दिलाने पर लगा रखा है. उदाहरण के लिए विल्सन के वकील आर्सेनल की दूसरी रिपोर्ट को अपनी दलीलों को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. उनका तर्क है कि प्राथमिक तौर पर इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से छेड़छाड़ की गयी है ऐसे में इससे प्राप्त सभी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य बेकार हो चुके हैं.

16 आरोपितों को नत्थी करने वाला इलेक्ट्रॉनिक सबूत

सभी 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ चल रहे मामलों के तार 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के उत्तर-पूर्व में स्थित करीब 9,000 की आबादी वाले भीमा-कोरेगांव कस्बे में हुए एल्गार परिषद के आयोजन से जुड़े हुए हैं. इस आयोजन का लक्ष्य दलितों की बहुलता वाली ब्रिटिश फौज द्वारा महाराष्ट्र के पेशवा की सवर्ण सैनिकों को धूल चटाने वाली घटना की 200वीं सालगिरह का जश्न मनाना था. दलितों के इस वीरतापूर्ण अतीत के जश्न के आयोजन से हिन्दू दक्षिणपंथी भड़क गए. लिहाजा पुणे के आसपास ब्राह्मण-मराठों और दलितों के बीच टकराव हो गया. इसके बाद हिंसा और गोलीबारी भी हुई.

जल्द ही इस पूरे मामले की जांच को पुणे पुलिस ने भटका कर एक नया रूप दे दिया. पुलिस ने इसे एक माओवादी षड्यंत्र का नाम दे दिया. इसका सारा जोर "अर्बन नक्सल" पर था. ये शब्द "अर्बन नक्सल" ठीक उसी वक़्त दक्षिणपंथी समर्थकों और नेताओं द्वारा शहरी बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का माखौल उड़ाने के लिए प्रचारित किया जाने लगा.

पुलिस द्वारा कार्यकर्ताओं और कार्यक्रम के आयोजकों के यहां छापे मारे गए और लैपटॉप, हार्ड-डिस्क और दूसरे डिवाइसेस ज़ब्त कर लिए गए. चार्जशीट के अनुसार भीमा-कोरेगांव के मुख्य आयोजकों में से एक सुधीर धावले से रोना विल्सन और वकील सुरेंद्र गडलिंग के कथित संपर्क के कारण उनके ठिकानों पर भी छापे मारे गए.

विल्सन के कंप्यूटर से मिली फाइलें उन्हीं साक्ष्यों में से हैं जो वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, कवि वरवरा राव और दूसरे आरोपितों के खिलाफ पेश की गयी हैं.

जांच की जिम्मेदारी महाराष्ट्र पुलिस से एनआईए को सौंप दी गई. यह काम जैसे ही राज्य की सत्ता में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार गई और महाविकास अघाड़ी के गठबंधन वाली वर्तमान सरकार सत्ता में आयी, कर दिया गया. एनआईए ने मामले में एक अतिरिक्त चार्जशीट दायर की. इस चार्जशीट में जेसुइट पादरी स्टेन स्वामी, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के भाषा विज्ञान के प्रोफेसर हैनी बाबू तराईल, गोवा प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े और पत्रकार गौतम नवलखा के नाम जोड़े गए हैं.

इन लोगों पर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित माओवादी समूह के साथ मिलकर भारत सरकार के खिलाफ साजिश करने के आरोप हैं. इस आतंकवाद निरोधी कानून के तहत खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी पूरी तरह आरोपितों पर होती है.

हैकर की कारजुगरियों का खुलासा

दूसरी रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक गतिविधियों की एक श्रृंखला का पता लगाया गया है- जिसके लिए "प्रोसेस ट्री" का इस्तेाल किया गया है. इसके तहत 'फंसाने वाले' 10 दस्तावेजों को प्लांट करने के लिए जो तरीका हैकर ने इस्तेमाल किया था उसके डिजिटल फुटप्रिंट्स का पीछा किया गया.

आर्सेनल को ऐसे उदाहरण भी मिले हैं जहां हैकर ने फाइलों का नाम बदल दिया और एक मामले में तो यहां तक हुआ ​​कि उसने एक गलती की और उसे बाद में ठीक भी कर दिया.

आर्सेनल के अध्यक्ष मार्क स्पेंसर ने हमसे अपनी नई रिपोर्ट के महत्व को समझाते हुए कहा, 'प्रॉसेस ट्री' जिसमें "मोहिला मीटिंग जन.पीडीएफ" भी शामिल है, दूसरी रिपोर्ट की सबसे अहम खोज है. पहली और दूसरी रिपोर्ट में अटैकर की गतिविधियों से संबंधित कई पुख्ता सबूत हैं, यह "प्रॉसेस ट्री" उनमें सबसे महत्वपूर्ण है.

जिस मोहिला मीटिंग का उल्लेख स्पेंसर कर रहे हैं उसमें कथित तौर पर 2 जनवरी, 2018 को मोहिला (महिला) मीटिंग की जानकारियां हैं. इसी फाइल में अन्य सह-आरोपियों, सामाजिक कार्यकर्ता- भारद्वाज, शोमा सेन और अन्य को एमओस या जन संगठनों के सदस्यों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

प्रॉसेस ट्री का उल्लेख करते हुए स्पेंसर ने बताया कि यह हमें इस बात की जानकारी देता है कि कैसे और कब अटैकर ने हैकिंग की और पीड़ित के कंप्यूटर में फाइलें प्लांट की. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 22 फाइलों को नेटवायर के एक गड़बड़ सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके प्लांट किया गया था जो हैकर्स के लिए उनका लैपटॉप खोल देता है.

इसके बाद हैकर ने दूर से ही कंटेट को बदला, जोड़ा या हटाया और कंप्यूटर की गतिविधियों पर नजर रखी. दूसरी रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कैसे इस रिमोट-एक्सेस इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के जरिए विल्सन के लैपटॉप में पहली रिपोर्ट में उल्लेखित फाइलों के साथ कई अन्य फाइलों को डाला गया. इनका इस्तेमाल बाद में जांचकर्ताओं द्वारा विल्सन और अन्य लोगों को फंसाने के लिए किया गया था.

ट्रोजन हॉर्स के भीतर

"मोहिला मीटिंग डॉक्यूमेंट" वाले प्रॉसेस ट्री में नेटवायर को 11 जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव हिंसा के 11 दिन बाद शाम 5 बजकर 4 मिनट पर लॉग इन करने के बाद स्वत: लॉन्च होते हुए दिखाया गया.

अटैकर ने एक कमांड प्रॉम्प्ट खोला और 5:10 और 5:12 बजे के बीच तीन फाइलें उसमें डाल दीं- जिनमें से एक "मोहिला मीटिंग जन. पीडीएफ" भी शामिल थी. इसके बाद इन फाइलों को अस्थायी तौर पर रखे गए UnRAR का प्रयोग कर एक छिपे हुए फ़ोल्डर में डाल दिया गया. इसमें WinZip फाइल आर्काइवर भी था जिसका नाम बाद में बदलकर Adobe.exe कर दिया गया.

रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि कैसे अटैकर ने फाइल को प्लांट करने की कमांड लिखते हुए गलतियां की और फिर उन्हें ठीक भी किया.

"किसी अटैकर को गलतियां करते हुए देखना दुर्लभ है, इसलिए हमारे लिए कोई भी गलती पकड़ना बेहद अहम है," स्पेंसर ने कहा.

आर्सेनल ने हमारे सामने कई सबूत पेश किए जो इस बात के अकाट्य साक्ष्य हैं कि रोना विल्सन का कंप्यूटर नेटवायर के जरिए संचालित किया जा रहा था. उनमें यह स्क्रीनग्रैब भी शामिल है:

"यह अटैकर के कमांड-एंड-कंट्रोल सर्वर के साथ नेटवयर के संपर्क को दिखाता है जिसे हमने रोना विल्सन के कंप्यूटर विंडोज हाइबरनेशन से बरामद किया है," स्पेंसर ने कहा. "हाइबरनेशन 14 जनवरी, 2018 को हुआ. उस आईपी एड्रेस के होस्ट का नाम हमने पहली रिपोर्ट में जारी कर दिया है. लेकिन अब लोग बतौर उदाहरण यह देख सकते हैं कि हमारे पास कितनी जानकारियां हैं."

लैपटॉप के अलावा, हार्ड-डिस्क और पैन ड्राइव की फाइलें भी विल्सन और अन्य लोगों पर शिकंजा कसने में इस्तेमाल हुईं. अटैकर ने यह सुनिश्चित किया कि हुक होने पर फाइलें विल्सन के कंप्यूटर से बाहरी हार्ड-ड्राइव पर खुद-ब-खुद ट्रांसफर हो जाएं.

"आपको हमारी बात पर आंख मूंद कर भरोसा करने की जरूरत नहीं है. पहली और दूसरी रिपोर्ट में जो जानकारियां साझा की गई हैं वह कोई भी पेशेवर डिजिटल फॉरेंसिक विशेषज्ञ इन्हीं इलेक्ट्रॉनिक सबूतों का इस्तेमाल करके निकाल सकता है," स्पेंसर ने कहा.

स्पेंसर ने बताया, "प्रॉसेस ट्री ने अटैकर को रंगे हाथों पकड़ा है. यह बहुत स्पष्ट रूप से बताता है कि अटैकर ने कैसे रोना विल्सन के कंप्यूटर में उन्हें "फंसाने वाली" फाइलों को डाला.”

स्पेंसर ने कहा, "यह उस तरह की खोज है जो तकनीकी दुनिया से जुड़े लोगों के लिए चमत्कार जैसी है." स्पेंसर ने 2013 के बोस्टन मैराथन में हुई बमबारी और तुर्की के एक पत्रकार के खिलाफ 2014 में लगे आतंकवाद के झूठे आरोपों की जांच की थी.

एनआईए: हमारे पास इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के अलावा भी साक्ष्य हैं

एक विशेष अदालत में आर्सेनल द्वारा जारी की गयी पहली रिपोर्ट के आधार पर आनंद तेलतुंबड़े के वकीलों ने जब जमानत की अर्जी लगाई तब एनआईए ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इन निष्कर्षों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह "प्रमाणिक” नहीं हैं. राज्य की पुलिस और एनआईए द्वारा दायर सैकड़ों पन्नों के आरोप पत्र विल्सन और अन्यों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बरामद किए गए सबूतों पर ही आधारित हैं, जिनकी विश्वसनीयता अब एक स्वतंत्र फोरेंसिक संस्था सवाल उठा रही है.

10 फरवरी को दिये गए एक बयान में एनआईए ने अप्रत्यक्ष तौर पर आर्सेनल की पहली रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

“न्यायालय में दायर आरोप पत्र में जिस फोरेंसिक रिपोर्ट्स का हवाला दिया गया है वो एक मान्यता प्राप्त लैब से है जो कि भारतीय अदालतों द्वारा स्वीकृत है. इस मामले में यह काम पुणे में रीजनल फॉरेंसिक साइंस लैब द्वारा किया गया था. उनकी रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कोई मैलवेयर नहीं पाया गया था,” एनआईए की प्रवक्ता रॉय ने कहा. "बाकी सब तथ्यों की तोड़मरोड़ है."

हमने अदालत में अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की समीक्षा की. वे दिखाते हैं कि मामले के जांच अधिकारी ने 13 अक्टूबर, 2018 को फॉरेंसिक लैब को यह बताने के लिए कहा कि आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. सरकारी लैब ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. इसके बाद अभियोजन पक्ष ने कहा कि अभी कुछ और फॉरेंसिक रिपोर्ट्स का इंतजार किया जा रहा है. चार्जशीट में शामिल एनआईए की रिपोर्ट में भी यह उल्लेख किया गया है, "कुछ खास एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) रिपोर्ट्स अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं."

हमने इस विषय पर एनआईए के प्रवक्ता रॉय से प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने कहा, “एनआईए ने पहले ही मामले में आरोप पत्र दायर कर दिया है और मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है. मैं अदालत के किसी भी मामले पर टिप्पणी नहीं करूंगी.”

हमारा सवाल खास उसी बिंदु पर केंद्रित था जिसके मुताबिक आरएफएसएल ने रिकॉर्ड पर साक्ष्यों के छेड़छाड़ से संबंधित कोई जवाब नहीं दिया था.

शुरुआत में पुलिस और बाद में एनआईए ने, अपने द्वारा दायर दस्तावेजों में दावा किया कि उनके पास आरोपियों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के अलावा भी अन्य सबूत हैं. तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अपनी विचारधारा के खिलाफ होने के कारण इन कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए सबूत गढ़े हैं.

विल्सन के वकील मिहिर देसाई जो कि एक वरिष्ठ वकील हैं, ने कहा, "मानवाधिकार रक्षकों को इस तरह से निशाना बनाने और फंसाने के लिए 2014 से एक कार्यप्रणाली तैयार की गयी थी ताकि ये लोग लंबे समय तक कानूनी चक्करों में उलझे रहें."

"स्ट्रैटेजी एंड टैक्टिक्स ऑफ इंडियन रेवोल्यूशन' नाम का एक दस्तावेज जिसे अधिकरियों ने एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज के तौर पर पेश किया था वो कोई गुप्त दस्तावेज नहीं है. यह सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है”, उन्होंने कहा. और वाकई में सिर्फ एक गूगल सर्च करने पर ये दस्तावेज हमारे सामने आ गए.

‘भड़काऊ गीत, भ्रामक इतिहास’: अन्य साक्ष्य

इन 16 व्यक्तियों के खिलाफ अपने केस को मजबूत बनाने के लिए लिए पुणे पुलिस ने इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स और चश्मदीद गवाहों के अलावा एल्गार परिषद में "पिछड़े समुदाय" के बीच प्रचलित "उत्तेजक" गीतों, "भ्रामक इतिहास" के प्रसार और "माओवादी विचारधारा को फैलाने" के प्रयासों का हवाला दिया है. चार्जशीट में ये कथित 'सबूत' एनआईए द्वारा अदालत में सभी 16 आरोपितों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

इन सभी गतिविधियों को राजद्रोह और भारत को अस्थिर करने के प्रयासों के बराबर माना गया है.

इस आयोजन में प्रतिरोध के जो गीत गाए गए थे और चार्जशीट में जिनका हवाला साजिश के सबूतों के तौर पर दिया गया है उनके बारे में सवाल करने पर देसाई ने उल्टा हमसे ही पूछ लिया, “ये गीत किसके प्रति भड़काने वाले थे?"

“विरोध और जाति-विरोधी गीत महाराष्ट्र में एक परंपरा है. अन्नाभाऊ साठे, शाहिर अमर शेख, डीएन गवनकर और विलास घोगरे और संभाजी भगत जैसे गाथागीत कहने वाले राज्य के सांस्कृतिक परिवेश का हिस्सा हैं," महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारकों और क्रांतिकारी कवियों के जरिए उन्होंने हमें समझाया.

16 आरोपितों के खिलाफ चल रहे मामले में कबीर कला मंच (एल्गार परिषद का एक सांस्कृतिक संगठन) की प्रस्तुतियां भी लोगों के मन में "सरकार के खिलाफ नफरत पैदा करने" के प्रयासों के रूप में सूचीबद्ध हैं.

चार्जशीट में कथित तौर पर समूह द्वारा प्रस्तुत किये गए गाने के बोल भी सूचीबद्ध हैं, जैसे कि-

"जब जुल्म हो तो बगावत होनी चाहिए शहर में, अगर बगावत ना हो तो, बेहतर है के, ये रात ढलने से पहले शहर जल कर राख हो जाए"

चार्जशीट के अनुसार दस्तावेजों में यह दिखता है कि विल्सन सहित 16 अन्य आरोपी ये मान चुके थे कि दलित, बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ हो चुके हैं क्योंकि वो उन्हें ब्राह्मण हितैषी मानते हैं. इस सबसे चार्जशीट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि 16 आरोपित दलितों की इस भावना का इस्तेमाल बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ करके अराजकता पैदा करना चाहते थे. इतना ही नहीं, इस तथाकथित सबूत के जरिए जांच संस्थाओं ने यह निष्कर्ष भी दिया है कि ये सभी बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और कवि भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ काम कर रहे थे.

पुलिस की चार्जशीट के एक खास पैराग्राफ कहता है, "जब्त किए गए पत्राचार में यह कहा गया है कि पिछड़े समुदाय की सोच ब्राह्मण हितैषी बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ हो चुकी है. आरोपितों का सोचना था कि इस तरह की अशांति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया जा सकता है और लोगों को बड़े पैमाने पर सरकार के खिलाफ संगठित कर बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाई जाए.

(श्रीगिरीश जालीहल रिपोर्टर्स कलेक्टिव के एक सदस्य हैं. यह स्टोरी आर्टिकल 14 द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित की जा चुकी है.)

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