Opinion
निर्वासन में पत्रकारिता का उत्कर्ष: मिज्जिमा, सो मिंट और थिन थिन आंग
म्यांमार में पत्रकार थिन थिन आंग को गिरफ्तार हुए आज पूरे दस दिन हो चुके हैं. जो लोग थिन थिन आंग को नहीं जानते उनका कोई कुसूर नहीं, लेकिन म्यांमार की तानाशाह सरकार द्वारा उन्हें उठाए जाने पर दिल्ली के पत्रकार संगठनों में पसरी चुप्पी चौंकाने वाली है जहां प्रवास में एक दशक रहकर आंग और उनके पति सो मिंट ने म्यांमार की लोकतंत्र की लड़ाई अपनी कलम से लड़ी है.
थिन थिन आंग की गिरफ्तारी का महत्व इस बात से पता चलता है कि नोबेल विमेन्स इनीशिएटिव से लेकर कोलीशन फॉर विमेन इन जर्नलिज्म ने आंग की राजकीय गिरफ्तारी पर चिंताजनक बयान जारी किए हैं. इधर भारत में केवल ऑल मणिपुर श्रमजीवी पत्रकार यूनियन ने म्यांमार के उन तीन पत्रकारों पर बयान जारी किया है जो अपना देश छोड़कर मोरेह में आकर शरण लिए हुए हैं. ये तीनों पत्रकार सो मिंट और थिन थिन आंग के समाचार प्रतिष्ठान मिज्जिमा न्यूज़ के लिए काम करते हैं. यूनियन ने हालांकि अपने बयान में आंग की गिरफ्तारी पर कुछ नहीं कहा है.
मिज्जिमा न्यूज़ का महत्व इस बात से भी है कि भारत के सरकारी प्रसारक प्रसार भारती के साथ कंटेंट शेयरिंग का उसका अनुबंध बीते तीन साल से चला आ रहा था. प्रसार भारती द्वारा किसी भी निजी समाचार संस्थान से किया गया यह पहला अनुबंध था. फरवरी 2021 में म्यांमार में हुए तख्तापलट के बाद वहां की तानाशाही सैन्य सरकार ने मिज्जिमा का लाइसेंस ही रद्द कर दिया, उसके कई पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया और यांगोन में उसके दफ्तर पर छापा मारा और बैंक खाते सील कर दिए.
इसके बावजूद मिज्जिमा के पत्रकार अपनी जान जोखिम में डाल कर पत्रकारिता कर रहे थे. इसी बीच 8 अप्रैल को थिन थिन आंग की गुमशुदगी की खबर सामने आती है. शुरुआत में उनके साथियों को लगा कि आंग भूमिगत हो गयी हैं लेकिन कुछ घंटे बाद ही पता चला कि उन्हें बाकायदे गिरफ्तार कर के ये की ईंग इंटेरोगेशन सेंटर में रखा गया है. अगले दिन पुलिस ने आंग के घर पर छापा मारकर तमाम सामान जब्त कर लिए और बीते 15 साल के उनके पत्रकारीय काम को नष्ट कर डाला.
2003 की एक भावुक शाम
यह बात 2003 की है. जगह थी दिल्ली का इंडिया हैबिटेट सेंटर जहां वरिष्ठ मानवाधिकार अधिवक्ता नंदिता हक्सर म्यांमार के कुछ युवाओं के साथ एक कार्यक्रम करने आयी थीं. वहीं सो मिंट और थिन थिन आंग सहित तमाम दूसरे पत्रकारों से दिल्ली के पत्रकारों का पहला परिचय हुआ था. उस शाम मंच पर बोलते हुए सो मिंट फूट-फूट कर रो पड़े थे. इस घटना का मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं.
मिंट फांसी के फंदे से बचकर लौटे थे. नंदिता हक्सर ने उनका मुकदमा लड़ा था और फांसी के तख्ते से बचाकर, मुकदमे से बरी करवाकर कलकत्ता से दिल्ली लेकर आयी थीं. मिंट के ऊपर मुकदमा था प्लेन हाइजैक करने का, ताकि म्यांमार में सैन्य सरकार द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा जा सके. प्लेन हाइजैक करने के लिए मिंट और उनके दोस्तों ने केवल एक साबुन और कुछ तारों का इस्तेमाल किया था.
घटना 10 नवंबर, 1990 की है. प्लेन थाई एयरवेज़ का था जो कलकत्ता जा रहा था. अपने साथी क्वा ऊ के साथ सो मिंट ने प्लेन को फर्जी बम का डर दिखाकर हाइजैक कर लिया. कलकत्ता में इन्होंने प्लेन को लैंड करवाया और वहां पुलिस को अपनी गिरफ्तारी दी. भारत के 30 से ज्यादा सांसदों के द्वारा दस्तखत किए गए पत्र के बाद इनकी ज़मानत हुई. इनके लिए समर्थन जुटाने में जॉर्ज फर्नांडीज़ और जया जेटली की भूमिका अहम थी. इनकी वकील थीं नंदिता हक्सर, जो लंबे समय से प्रवासी म्यांमारियों के लिए काम कर रही थीं.
ज़मानत के बाद थिन थिन आंग बीबीसी की बर्मा सेवा के लिए काम करने लगीं. दिल्ली में रहने के लिए इन्हें शुरुआत में जगह दी थी पुराने समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज ने. उनके सरकारी आवास के पीछे वाले हिस्से से मिंट और आंग ने मिज्जिमा न्यूज़ नाम का एक नेटवर्क 1998 में शुरू किया था जिसका काम म्यांमार की प्रामाणिक खबरें भारत और दक्षिण एशिया तक पहुंचाना था, ताकि वहां हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों और प्रेस की आजादी पर हमले की खबरें बाहर आ सकें.
मिज्जिमा का शाब्दिक अर्थ होता है मध्यमार्ग. सैन्य तानाशाही की ओर दुनिया की ध्यान खींचने के लिए हवाई जहाज हाइजैक करने जैसी अतिवादी घटना को अंजाम देने वाले सो मिंट अब डायरेक्ट ऐक्शन से नहीं, पत्रकारिता के माध्यम से अपने देश में लोकतंत्र बहाली के लिए लड़ रहे थे. उनकी पत्नी इस लड़ाई में बराबर की साझीदार थीं और मिज्जिमा की निदेशक थीं. जैसे-जैसे मिज्जिमा की प्रसिद्धि बढ़ती गयी, म्यांमार के सैन्य शासन को उससे दिक्कत होने लगी. म्यांमार की सरकार ने भारत सरकार पर सो मिंट के मुकदमे को तेज करने का दबाव डाला. मिंट, आंग और उनके साथी गिरफ्तारी के डर से अपनी वकील नंदिता हक्सर के यहां आकर रहने लगे. वहीं से मिज्जिमा का दफ्तर चलने लगा.
10 अप्रैल 2002 को बंगाल पुलिस ने मिंट और उनके साथी क्या ऊ को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया, हालांकि उनकी ज़मानत जल्द ही हो गयी. इसी के बाद नंदिता हक्सर और मिंट ने मिलका मिज्जिमा की रिपोर्टों का संकलन कर के एक किताब तैयार की, प्रकाशित की और दिल्ली में इसका लोकार्पण हुआ. इस पुस्तक की भूमिका तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज ने लिखी थी. इसी कार्यक्रम में मिंट मंच से रो पड़े थे.
मिज्जिमा का सफ़र: 2003 से 2012
जुलाई 2003 में केस से बरी होने के बाद मिंट और आंग दोनों ने मिलकर मिज्जिमा को खूब आगे बढ़ाया. समय के साथ म्यांमार में सैन्य तानाशाही की पकड़ ढीली होती गयी. इस बीच अगले कोई दस साल तक मिंट और आंग म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों का पहला संपर्क बने रहे. यहां तक कि 2007 के भिक्षु विद्रोह में अकेले मिंट और आंग थे जिन्होंने भारतीय पत्रकारों के लिए इकलौते संपर्क सूत्र का काम किया.
इसी विद्रोह के दौरान मिंट और आंग से 2003 के उस प्रोग्राम के बाद मेरा परिचय विस्तार से हुआ. भारत में रह रहे बर्मा की सरकार के प्रवासी मंत्रियों से इन्होंने मिलने में मदद की, जिनमें प्रमुख थे आंग सान सू की के समर्थक और निर्वासित सरकार के सांसद डॉ. टिंट स्वे, जिनसे अकसर फोन पर लंबी बात होती थी. उस दौरान बर्मा की राजनीतिक स्थिति पर समकालीन तीसरी दुनिया से लेकर समयांतर आदि पत्रिकाओं में एकाधिक कहानियां मैंने स्वे, आंग और मिंट की मदद से लिखीं. एक पत्रिका निकलती थी समकाल, जिसके संपादक हिंदी के मशहूर लेखक उदय प्रकाश थे. उसमें बर्मा के भिक्षु विद्रोह पर एक आवरण कथा भी इनकी मदद से लिखी.
ये सब कुछ इसलिए संभव हुआ था क्योंकि बर्मा से खबरें आसानी से निकल कर बाहर आ पा रही थीं. समकालीन तीसरी दुनिया के लिए मेरी लिखी एक रिपोर्ट में मिज्जिमा न्यूज़ के चीफ एडिटर सो मिंट ने तब कहा था: 1988 या उससे पहले के आंदोलनों से अब भारी अंतर यह आया है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया बहुत सक्रिय है. पहले तो बर्मा से खबरें ही नहीं निकल पाती थीं और हम लोग अपने स्रोतों के आधार पर खबरें बनाते थे. लेकिन अब सैन्य शासन जो भी जुल्म कर रहा है, उसकी रिपोर्ट हमें पांच से दस मिनट के भीतर मिल जा रही है.
उसी रिपोर्ट में सो मिंट की पत्नी, वुमेन्स लीग ऑफ बर्मा की सदस्य और मिज्जिमा की समाचार निदेशक थिन थिन आंग बताती हैं: बर्मा में आजीविका के हालात इतने खराब हैं जिसका फायदा सेना और सशस्त्र समूह उठाते हैं. वे महिलाओं से बलात्कार को औजार के रूप में इस्तेमाल करते हैं. इस देश में भले ही महिलाओं ने भिक्षु विद्रोह में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई थी और देश के लोकतांत्रिक आंदोलन की सबसे बड़ी नेता आंग सान सू की खुद महिला हैं, उसके बावजूद भारत, चीन, बांग्लादेश और थाईलैंड में यहां से महिलाओं का अवैध व्यापार बहुत आम बात है. यह सब गरीबी की वजह से ही है.
मिंट, थिन थिन आंग और उनके साथियों के अथक परिश्रम का परिणाम रहा कि संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर म्यांमार के सैन्य शासन की बर्बरताओं की रिपोर्ट पहुंच सकी और अंतत: वहां चुनाव हुए और लोकतंत्र की बहाली हो सकी. यह अकेले लोकतंत्र और बर्मा के लोगों की जीत नहीं थी, यह सो मिंट, थिन थिन आंग, भारत में रह रहे निर्वासित सरकार के लोगों और आम म्यांमारियों की जीत थी. इस जीत के बाद आंग और मिंट अपने माता-पिता के साथ 2012 में म्यांमार लौट गए. लोकतांत्रिक म्यांमार में 2017 में मिज्जिमा को फ्री टु एयर चैनल चलाने का लाइसेंस मिला.
पुरस्कार और दंड
बमुश्किल छह साल भी नहीं हुआ था मिज्जिमा को बर्मा से चलाते हुए कि 2018 की 24 अगस्त को प्रसार भारती ने मिज्जिमा के साथ समाचार साझा करने का एक अनुबंध किया. आंग और मिंट की जिंदगी में इससे बड़ा कोई क्षण नहीं हो सकता था. जिस देश में निर्वासित रह कर उन्होंने बरसाती से एक समाचार संस्था शुरू की, पीसीओ और फैक्स से खबरें मंगवाकर उसे पाला पोसा, मुकदमा झेला, जेल रहे, उसी देश की सरकार उनके साथ करार कर रही थी. इससे बड़ा पुरस्कार और क्या हो सकता था, लेकिन अभी और पुरस्कार बाकी थे.
यह पुरस्कार था पत्रकारिता के माध्यम से लोकतंत्र के लिए की गयी निर्वासित लड़ाई का दंड भुगतना. फरवरी 2021 यानी कुल तीन दशक के बाद समय का पहिया उलटा घूम गया. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हो गया. सू की को गिरफ्तार कर लिया गया. मिज्जिमा पर छापा पड़ा और थिन थिन आंग को गिरफ्तार कर लिया गया.
मिंट ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को एक अपील जारी की है, जिसे नीचे पढ़ा जा सकता है:हम मिज्जिमा के लिए अपने देश के भीतर और बाहर रिपोर्टिंग और प्रसारण जारी रखने को कृतसंकल्प हैं ताकि बता सकें कि बर्मा में/इर्द-गिर्द क्या चल रहा है. कृपया आप सब मिलकर फ्रेंड्स ऑफ मिज्जिमा नाम का एक नेटवर्क खड़ा करें जो मिज्जिमा को तकनीकी और आर्थिक सहयोग दे सके और मिज्जिमा टीम के सदस्यों को कायम रख सके, भले ही मेरी हत्या हो जाए या मुझे गिरफ्तार कर लिया जाए.
नंदिता हक्सर ने 20 मार्च, 2021 को स्क्रोल पर लिखे अपने लेख में इस अपील का जिक्र किया था. 8 अप्रैल को मिंट की पत्नी और मिज्जिमा की समाचार निदेशक थिन थिन आंग गिरफ्तार हो गयीं. उसके बाद से सो मिंट की कोई ख़बर नहीं है, लेकिन उनकी आवाज़ दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच चुकी है. फिलहाल, आंग के समर्थन में कुछ अहम आवाजें उठी हैं. यह मिज्जिमा के बीते 23 साल में किए काम का ही नतीजा है. कुछ और आवाजों के उठने की अपेक्षा अब भी है.
जैसा कि नंदिता हक्सर मिंट को उद्धृत करते हुए लिखती हैं: मिंट कहते हैं कि उन्हें अहसास हुआ है कि लिखना ज़रूरी है लेकिन सुनना उससे ज्यादा जरूरी है. लोगों ने यदि उनका कहा नहीं सुना होता तो उन्हें वह एकजुटता और सहयोग नहीं मिल पाता जो भारत में निर्वासन के दौरान हासिल हुआ.
(साभार: जनपथ)
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