Ground Report

मध्य प्रदेश में कोविड से मरने वालों की संख्या में भारी गड़बड़ी

पूरे देश में कोविड-19 महामारी का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. नए मरीजों की संख्या में हर दिन, पिछले साल से भी कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है. 18 अप्रैल को पूरे देश में 2,75,196 के नए मरीज पाए गए और 1,620 लोगों की कोविड से मृत्यु हो गई.

लेकिन पिछले कई दिनों से मरने वालों की आधिकारिक संख्या पर अलग-अलग राज्यों में सवाल उठाए जा रहे हैं. मीडिया में पिछले कुछ दिनों से यह खबर आ रही है कि कई राज्य सरकारें कोविड मृतकों की सही संख्या नहीं बता रहे.

मध्य प्रदेश भी उन राज्य में से एक है जहां पर कोविड से मरने वालों की अधिकारिक संख्या पर प्रश्न उठ रहे हैं. श्मशान में जलती हुई चिताओं की तस्वीरों ने सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़ा कर दिया है. न्यूजलॉन्ड्री ने इसके पीछे की सच्चाई जानने के लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले चार दिनों के आंकड़ों की पड़ताल शहर के दो मुख्य श्मशान घाट और एक मुख्य कब्रिस्तान का जायज़ा लेकर की.

श्मशान घाट और कब्रिस्तान की व्यवस्था और वहां से मिलने वाले आंकड़े चौंकाने वाले हैं.

आंकड़ों की गड़बड़ी

भदभदा विश्राम घाट भोपाल का सबसे बड़ा श्मशान घाट है. श्मशान घाट को चलाने वाली समिति के अध्यक्ष 60 वर्षीय अरुण चौधरी हैं. अरुण ने हमें बताया कि उनके यहां 15 अप्रैल को कुल 88 शव आए थे जिनमें से 72 कोविड के मरीजों के थे और 16 अन्य कारणों से मरने वालों के. 14 अप्रैल को यहां जलाए गए कुल शवों की संख्या 69 थी जिसमें से 55 कोविड से मरने वालों के शव थे और 14 अन्य कारणों से. 13 अप्रैल को उनके यहां कुल 58 शव आए और 12 अप्रैल को 54. उन्हें 13 व 12 अप्रैल के शवों में कोविड-19 मरीजों की सही संख्या उस समय याद नहीं थी और जब हमने पूछा कि क्या हम उनके रिकॉर्ड से यह स्पष्ट कर सकते हैं तो अपने रिकॉर्ड दिखाने से उन्होंने मना कर दिया.

अरुण ने हमें बताते हैं, “पिछले साल लॉकडाउन के दौरान इन्हीं दिनों में एक दिन में औसतन 10 शव आते थे. कोविड-19 आने से पहले आमतौर पर महीने में 250 शवों का औसत था.” हमने उनसे पूछा कि यह आंकड़े सरकारी आंकड़ों से अलग दिखाई देते हैं तो उन्होंने कहा, "सरकार के आंकड़ों से हमारा कोई लेना देना नहीं है. हमसे सीआईडी और क्राइम ब्रांच के लोग भी रोज रिकॉर्ड लेकर जाते हैं."

भदभदा विश्राम घाट से निकल कर हम भोपाल के सुभाष नगर स्थित श्मशान घाट पहुंचे. सुभाष नगर विश्राम घाट के प्रबंधक 55 वर्षीय सोमराज सुखवानी है. वह बताते हैं कि भोपाल में ऐसी परिस्थितियां उन्होंने 1984 के गैस कांड के अलावा कभी नहीं देखीं. 15 अप्रैल को हमारी मुलाकात के वक्त तक 35 शव सुभाष नगर विश्राम घाट आ चुके थे जिनमें से करीब 17 या 18 कोविड के थे और बाकी अन्य कारणों से मरने वालों के. क्योंकि उस समय अंतिम संस्कार जारी थे इसलिए उस दिन आने वाले मृतकों की अंतिम संख्या वह नहीं बता पाए.

सोमराज ने हमें जो जानकारी दी उसके मुताबिक 14 अप्रैल को वहां पर 45 शव आए जिनमें से 26 कोविड से और 19 अन्य कारणों से मरने वालों के थे. 13 अप्रैल को वहां 40 शव आए जिनमें से 28 कोविड के थे और 12 अन्य कारणों के. 12 अप्रैल को सुभाष नगर विश्राम घाट में 35 शव आए जिनमें से 14 कोविड से मरने वालों के थे.

अंतिम संस्कार के लिए आने वाले शवों में कोविड के मरीजों की संख्या को लेकर सोमराज कहते हैं, "मैंने 8 तारीख से 7 दिनों का हिसाब निकाला, आपको कल की तारीख तक का बता रहा हूं. कुल करीब 248 अंतिम संस्कार हुए जिनमें से 122 कोविड के मामले थे और 126 अंतिम संस्कार अन्य कारणों से मरने वालों के."

नीला पेन से कुल लाशों को लिखा गया हैं और लाल पेन से कोविड से हुई मौतें.

सोमराज आगे बताते हैं, "पिछले साल इसी समय कोविड के शवों का औसत 10 से नीचे था. कभी-कभी किसी दुर्घटना में ऐसा होता था कि आने वाले शवों की संख्या 20 तक चली जाए, लेकिन अगर हम अभी देखें तो यह औसत दोगुना हो गया है."

कोविड से अलग, मरने वालों की बढ़ती संख्या के बारे में सोमराज कहते हैं, "इसका सही कारण तो अस्पताल वाले बता पाएंगे. लेकिन हां, मौतें हो रही हैं. पिछले साल लॉकडाउन था तो मृत्यु दर बहुत कम हो गई थी क्योंकि एक्सीडेंट था नहीं, प्रदूषण था नहीं, आदमी घरों में था. अभी भी वही स्थिति है, लॉकडाउन अगर हुआ है तो घर बैठने के लिए हुआ है. लेकिन अभी मृत्यु दर क्यों ज्यादा बढ़ी है, यह समझने का विषय है. हो सकता है मीडिया को इसके बारे में ज्यादा जानकारी हो."

सुभाष नगर से निकल कर हम झदा, जहांगीराबाद पहुंचे. यह भोपाल का सबसे बड़ा मुस्लिम कब्रिस्तान है. 53 वर्षीय रेहान अहमद उर्फ गोल्डेन इसका प्रबंधन करने वाली वर्कर्स कमेटी के अध्यक्ष हैं. लेकिन यहां के आंकड़े बताने से पहले एक जरूरी बात ये कि इस कब्रिस्तान को जाने वाले सभी रास्तों को पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी है. वहां तैनात सिपाही ने हमें बताया, "कोरोना कर्फ्यू" की वजह से रास्ते सील किए गए हैं.” पुलिस बैरिकेडिंग होने की वजह से हम गाड़ी अंदर नहीं ले जा पाएं. मजबूरन हमने रेहान से फोन पर बात की.

पुलिस बैरिकेडिंग

15 अप्रैल की शाम जब हमारी रेहान से बात हुई, तब तक वहां 15 शव आ चुके थे जिनमें से 9 कोविड से मरने वालों के थे, 6 अन्य कारणों से मरे थे. 14 अप्रैल को यहां 12 शव आए, जिनमें से 7 कोविड और 5 अन्य कारणों से मरने वालों के थे. 13 अप्रैल को 10 शव आए जिनमें से 6 मृतक कोविड से और 4 अन्य थे. 12 अप्रैल को 11 शव आये जिनमें से 6 कोविड व 5 अन्य कारणों की वजह से गुज़रे थे.

रेहान कहते हैं, “औसतन 10 से 12 शव रोज आ रहे हैं. कोविड से पहले की परिस्थिति में आम दिनों में यहां महीने में 40 से 50 लाशें ही आती थीं. अब यह कई गुना बढ़ चुका है.”

यह संख्या भोपाल के केवल 3 अंतिम संस्कार स्थलों की है. भोपाल में करीब 10 श्मशान घाट और कम से कम 12 छोटे बड़े कब्रिस्तान हैं, जो सभी किसी न किसी स्तर पर चल रहे हैं.

इन 4 दिनों के मध्य प्रदेश सरकार के आंकड़े क्या कहते हैं?

इन तीन श्मशान और कब्रिस्तान का मुआयना करने के बाद हमने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जारी आंकड़ों से इनका मिलान किया. रोज़ शाम को जारी होने वाले कोविड-19 मीडिया बुलेटिन के अनुसार इन्हीं चार दिनों के आंकड़ों को देखा. 12 अप्रैल को भोपाल में कोविड से 3 लोगों के मरने की जानकारी दी गई, पूरे राज्य में कोविड से मरने वालों की संख्या 37 बताई गई. 13 अप्रैल को भोपाल में कोविड से मरने वालों की संख्या 5 थी, वहीं पूरे राज्य में मरने वालों की कुल संख्या 40 थी. 14 अप्रैल को भोपाल में कोविड मृतकों की संख्या 4 जबकि पूरे राज्य में इस दिन बुलेटिन के हिसाब से 51 लोग मरे. 15 अप्रैल को भोपाल में मरने वालों की संख्या 8 थी वहीं पूरे मध्य प्रदेश में इस दिन कोविड से मरने वालों की संख्या 53 थी.

राज्य सरकार की बुलेटिन

जाहिर है हमने जिन तीन श्मशान और कब्रिस्तान का दौरा किया वहां के आंकड़े मध्य प्रदेश सरकार के आंकड़ों कतई मेल नहीं खाते, बल्कि कई गुना ज्यादा भी हैं. यही हालत पूरे राज्य में कोविड से मरने वालों के आंकड़े की भी है.

अंतिम संस्कार की जगहों के हालात

प्रशासन की जिम्मेदारी केवल आंकड़ों को सही गिनने और बताने तक सीमित नहीं. इन श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों ऊपर बढ़ते हुए बोझ, और यहां काम करने वालों की परेशानियां मरने वालों की इस तेज़ी से बढ़ती संख्या में बहुत बढ़ गई हैं.

भदभदा विश्राम घाट के अध्यक्ष अरुण चौधरी ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "कोविड-19 में लकड़ी ज्यादा लगती है. उसे खुला जलाना पड़ता है जिसमें लकड़ी ज्यादा खर्च होती है. प्रशासन से हमें 850 रुपए प्रति क्विंटल लकड़ी मिल रही है और एक कोविड के शव में 5 से 6 क्विंटल लकड़ी लग जाती है. यानी श्मशान का खर्च एक शव पर 4,500 रुपए हो रहा है लेकिन आज के दिन तक हम 3000 की ही रसीद काट रहे हैं."

अपने कर्मचारियों की सुरक्षा और एहतियात के बारे में अरुण बताते हैं, "हमारे कर्मचारी काफी परेशान हैं, रोज तीन-तीन सौ क्विंटल लकड़ी उठाकर उनके हाथ घायल हो गए हैं. कोरोना से संक्रमित होने का खतरा लगातार बढ़ रहा है. हम ने प्रशासन से अपील की थी. आज पचास प्रतिशत कर्मचारियों को वैक्सीन लगी है, बाकी 45 से कम उम्र के हैं तो उन्होंने कहा कि इन्हें अभी नहीं लगेगा. जब सरकार की पॉलिसी बदलेगी तब लगेगा. मुझे तो खुद और पूरे परिवार को भी कोविड हो चुका है."

कायदे से श्मशान और कब्रिस्तान में काम कर रहे ये कर्मचारी फ्रंटलाइन वारियर हैं लेकिन इन्हें वैक्सीन से वंचित रखा जा रहा है. घाट पर काम करने वाले 49 वर्ष के लाड सिंह बताते हैं, "साहब सुबह 6:00 बजे से फोन आने लगते हैं. कोई अस्थियां लेने आ रहा है, किसी को प्रमाण पत्र चाहिए. कोई कहता है हम छिंदवाड़ा से, सागर से, बेतुल से हैं. 500 किलोमीटर दूर से हैं तो दोबारा नहीं आ सकते. रोज सौ पचास प्रमाण पत्र बनाने हैं उनका हिसाब रखना और एंट्री करने में यहां रात को 11:00 से 12:00 बज जाते हैं. जिंदगी तो अब ऊपर वाले के हाथ में है."

सुभाष नगर विश्राम घाट के संचालक सोमराज बताते हैं कि हालांकि उन्हें लकड़ियों के लिए इतनी परेशानी नहीं झेलनी पड़ रही, क्योंकि वह अपने यहां के तीनों श्मशान घाटों, सुभाष नगर, छोला और चांदबाड़ा के लिए पूरे साल की लकड़ी पहले से खरीद कर रखते हैं. जब उन्हें जरूरत पड़ी तो उन्होंने प्रशासन से 2 गाड़ियां मांगी, जो उन्हें मुहैया हो गई थीं.

लेकिन अपने कर्मचारियों को लेकर सोमराज भी चिंतित हैं. वो कहते हैं, "कर्मचारी जितना कर सकते हैं उतना कर रहे हैं. सुबह 8:00 बजे से लेकर रात के 11:00-11:30, जब तक शव आते हैं तब तक काम करते हैं. इन्हें धन्यवाद है कि ऐसी परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, जब परिवार वाले भी अपने लोगों का शव को छूने से घबराते हैं. लोग हमें बोलते हैं कि अपने कर्मचारियों से कहकर उनके घर के जो भी व्यक्ति गुजर गए हैं, उनके शरीर को यह लोग ही उतार लें और यही संस्कार कर दें. हमारे काम करने वाले जो सहयोगी हैं वह उनकी इसमें मदद करते हैं. इनको शासन की तरफ से कहा गया था कि इनके परिवार के लिए 50 लाख का बीमा किया जाएगा. पिछले साल यह बात हुई थी और अब एक साल से भी एक महीना ज्यादा हो गया, लेकिन वो अभी कागज पर ही है.”

वो आगे बताते हैं, “अगर बीमा होना होता तो इनका नाम, आधार कार्ड या और दस्तावेज़ लगते. वे दस्तावेज़ अभी तक लिए नहीं हैं इसका मतलब अभी तक कुछ नहीं हुआ है. काम का बोझ बढ़ा है और अगर लोगों की संख्या में वृद्धि हो सके तो होनी चाहिए लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरूरत है चिता स्थल की. आज के समय में लगभग 100 आदमी रोज भोपाल में मर रहा है. आमतौर पर परंपरा के अनुसार चिता रात को नहीं जलाई जाती. लेकिन शरीर को न अस्पताल वाले लेते हैं न परिवार वाले घर ले जाना चाहते हैं. मुर्दाघर में इतने सारे शरीर रखे नहीं जा सकते. तो अब रात में भी अंतिम संस्कार हो रहे हैं. यहां पर 36 चिता स्थल हैं और 45-48 संस्कार हो रहे हैं. 36 चिंताएं जलने के बाद जो लाशें बच जाती हैं उन्हें नीचे ही जलाना पड़ता है.”

काम के बोझ की शिकायत जहांगीराबाद कब्रिस्तान बोर्ड के अध्यक्ष रेहान भी करते हैं. वे बताते हैं कि उनकी तबियत इस वजह से बिगड़ गई है. एक रात पहले उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा था. कमजोरी में कोरोना ज्यादा खतरनाक हमला करता है इसलिए ध्यान रख रहे थे. उनका कहना है कि कब्रिस्तान का काम इतना बड़ा है कि उसकी बहुत टेंशन है, इसलिए उन्होंने अस्पताल से छुट्टी ले ली.

रेहान बताते हैं, "काम का हद से ज्यादा बोझ है. पिछले साल ही जगह कम पड़ने पर हम ने कलेक्टर को चिट्ठी लिखी थी कि मिट्टी डलवा दीजिए. लेकिन कुछ हुआ नहीं. अभी दस दिन पहले जब शवों की संख्या बढ़ने लगी तो मैंने फिर से चिट्ठी लिखी की कब्रिस्तान के अंदर मिट्टी डलवा दी जाए. उधर से कोई जवाब नहीं आया. हमारे यहां लड़कों के हाथों में छाले पड़ गए हैं. आज मैंने एक और खत लिखा है जिसमें मैंने लिख दिया है कि शासन अगर यहां डेड बॉडी पहुंचा रहा है तो मिट्टी भी साथ पहुंचाए."

कब्रिस्तान कमेटी द्वारा लिखा गया पत्र

हमने भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया से कोविड के आंकड़ों में गड़बड़ी और रेहान की शिकायत के बारे में पूछताछ करने की कोशिश की लेकिन उनका फ़ोन नहीं उठा. हमने उन्हें कुछ सवालों की सूची भेजी है. उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया आने पर रिपोर्ट में जोड़ दी जाएगी.

दूरगामी परिणाम

आंकड़ों की इस गड़बड़ी से जनता के सामने सही जानकारी नहीं आ पा रही है. यह संकेत साफ मिल रहे हैं कि जितनी बड़ी संख्या में कोविड से लोग मर रहे हैं, उस पर सरकार पर्दादारी कर रही है. इस गड़बड़ी के दूरगामी परिणाम भी हैं.

देशभर में प्रशासन के द्वारा जारी किए गए आंकड़े केवल जनता को सूचना देने के लिए ही नहीं बल्कि उनका इस्तेमाल वैज्ञानिकों के भी काम आता है. उदाहरण के तौर पर 14 अप्रैल को सरकारी आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में कोविड से मरने वालों की संख्या 51 और कोविड से मृत्यु दर 1.39% आंकी गई थी. लेकिन अगर भोपाल शहर के एक श्मशान के आंकड़े ही पूरे प्रदेश में मरने वालों के आंकड़ों से ज्यादा है, तो क्या तब भी यह मृत्यु दर इतनी ही रहेगी? क्या आंकड़ों की यह गड़बड़, कोरोना वायरस पर होने वाले शोध और इस महामारी से लड़ाई को नुकसान नहीं पहुंचा रही.

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी खुद एक एमबीबीएस डॉक्टर हैं और उन पर अपने पद का गलत फायदा उठाते हुए अपनी पत्नी डॉ नीरा चौधरी का ओहदा बढ़ाने का आरोप लग चुका है. उनकी पत्नी भोपाल की जिला स्वास्थ्य अधिकारी थीं लेकिन जनवरी के महीने में उन्हें संयुक्त संचालक बना दिया गया था. आरोप लगे थे कि बाकी डॉक्टरों की वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ कर ये तरक्की दी गई थी.

कोविड जैसी महामारी के प्रति चौधरी के गैरज़िम्मेदार रवैय्ये का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब प्रदेश में कोविड के चलते मरने वालो की फेहरिस्त लंबी होती जा रही थी और स्वास्थ्य विभाग झूठे आंकड़े जारी कर रहा था तब चौधरी दमोह उपचुनाव में चुनावी सभाएं कर रहे थे.

हमने प्रभुराम चौधरी से इस बाबत बात करने की कोशिश की, परंतु उनसे बात नहीं हो पाई. हमने उन्हें अपने प्रश्न भेज दिए हैं और उनकी तरफ से कोई भी जवाब आने पर रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

हमने प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग से भी पूछा कि आधिकारिक और श्मशान के आंकड़ों में इतना फर्क कैसे है? उन्होंने कहा: “देखिये, कोविड प्रोटोकॉल के हिसाब से, कोविड संदिग्ध व्यक्ति का भी कोविड के मृतक की तरह ही संस्कार होता है, इसलिए आपको अंतर दिख रहा है. हम न छुपा रहे हैं न छुपाने की कोई मंशा है.”

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