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कालिंदी कुंज रोहिंग्या कैंप: बिना कारण बताये लोगों को हिरासत में लिए जाने से पसरा भय
35 वर्षीय मोहम्मद बशीर अहमद एक फाइल के बंडल में कागज तलाशते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे पास सारे कागज है. फिर भी मेरे मां, बाप और दो छोटे भाइयों को उठा ले गए.’’
अहमद फाइल में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) द्वारा दिए गए रिफ्यूजी कार्ड को बेताबी से तलाशते नजर आते हैं. पास में ही उनकी मौसी रोते हुए अपनी भाषा में कुछ कहती हैं. वो क्या कह रही हैं पूछने पर बशीर की पत्नी शनवारा बताती हैं कि इन्होंने सुबह से ये कुछ नहीं खाया है. मेरी सास इनकी छोटी बहन हैं. ये उन्हें याद कर कह रही हैं कि उससे एक बार मिला दो. पूछ रही हैं कि वो कब वापस आएगी? मैं अभी थाने से लौटी हूं. पुलिस वालों ने बताया कि डिटेंशन सेंटर भेज दिया है. जब से इनको बताया है तब से रो-रोकर इनका बुरा हाल है.
बुधवार सुबह आठ बजे कंचन कुंज में बने रोहिंग्या कैंप से कालिंदी कुंज थाने की पुलिस 80 वर्षीय सुल्तान अहमद, पत्नी 70 वर्षीय हलीला बेगम, इनके दो बेटों नूर मोहम्मद और उस्मान को पूछताछ के लिए ले गई. सुल्तान अहमद अपने पूरे परिवार के साथ साल 2010 में म्यांमार से बांग्लादेश के रास्ते भारत आए थे. तब वहां रोहिंग्या मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा था. अहमद के परिवार में चार लड़के और दो बेटियां हैं. उनके दो बेटों और दो बेटियों की शादी हो चुकी है. सुल्तान के साथ पुलिस जिन दो लड़कों को लेकर गई है उन दोनों की अभी शादी भी नहीं हुई है.
पुलिस पूछताछ के लिए ले गई है तो छोड़ देगी? इस सवाल के जवाब में बशीर कहते हैं, ‘‘वो सामने झुग्गी दिख रही है. उसमें रहने वाले छह लोगों को पुलिस बीते सप्ताह पूछताछ के लिए ही उठाकर ले गई थी. अब तक नहीं लौटे हैं. पता चला कि उन्हें इंद्रलोक में बने डिटेंशन सेंटर में रखा गया है.’’
बातचीत के दौरान बशीर कागज तलाशते रहते हैं. अचानक से चहकते हुए कहते हैं, ‘‘ये देखिए मेरी मां और दोनों भाइयों का रिफ्यूजी कार्ड मिल गया है. अभी 31 मई तक इसकी मान्यता है. खत्म होने से एक दो दिन पहले हम यूएनएचसीआर के ऑफिस में जाकर इसकी डेट बढ़वा लेंगे. मेरे अब्बा का भी कार्ड है वो मिल नहीं रहा है.’’
इतना कहने के बाद वो सिसक-सिसक कर रोने लगते हैं. खाने के बर्तन की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘दो बज गए लेकिन किसी के मुंह में पानी तक नहीं गया. जैसे दूसरे लोग लौटकर नहीं आए वैसे मेरे बुजुर्ग मां-बाप भी शायद…’’
यहां इससे पहले 24 मार्च को मोहम्मद शरीफ को उनकी पत्नी लैला बेगम और तीन बेटों और एक बहू को पुलिस पूछताछ के लिए ले गई थी, लेकिन वे अभी तक वापस लौटकर नहीं आए हैं. उनके कमरे में ताला लटका नजर आता है.
मोहम्मद शरीफ के ममेरे भाई अनवर शाह कहते हैं, ‘‘पुलिस वाले एक रात पहले आए थे और शरीफ के बेटे मुरुल अमीन से पूछताछ की. कहां काम करते हो, क्या काम करते हो. उसने सब बताया. अगली सुबह वो काम पर गया तो पुलिस उसे वहां से उठाकर थाने ले गई. परिवार वाले थाने जाने के बारे में सोच ही रहे थे तभी पुलिस की गाड़ी आई और पूरे परिवार वालों को पूछताछ के लिए लेकर चली गई. जब हम पूछने गए तो उन्होंने बताया कि एफआरआरओ (विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी) वाले पूछताछ के लिए ले गए हैं. उनका फोन आया तो पता चला कि डिटेंशन सेंटर भेज दिया है.’’
कालिंदी कुंज के रोहिंग्या कैंप में म्यांमार से आए 55 परिवार रहते हैं. जिनकी कुल आबादी 269 है. यहां लोगों ने आपस में कुछ जिम्मेदार लोगों का चुनाव किया है. अनवर शाह इन्हीं जिम्मेदार लोगों में से एक हैं. शाह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘कुछ दिन पहले शाहीनबाग़ के श्रम विहार कैंप से आठ लोगों को पुलिस पूछताछ के लिए उठाकर ले गई थी. वे भी नहीं लौटे.’’
न्यूजलॉन्ड्री की टीम कालिंदी कुंज थाने के एसएचओ सुखदेव एस मान से मिलने पहुंची लेकिन उनसे मिलने नहीं दिया गया. वहां मौजूद पुलिस कर्मचारियों ने बताया कि वो अभी मीटिंग में हैं. लोगों को पूछताछ के लिए उठाए जाने को लेकर जब हमने सवाल किया तो वहां मौजूद पुलिस अधिकारी विवेकानंद चौबे ने बताया, ‘‘उनके उठाए जाने से थाने का कोई संबंध नहीं है. एफआरआरओ (विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी) वाले हमें नाम बताते हैं. यह कैंप हमारे इलाके में है इसलिए हमारे लोग जाकर उन्हें लाते हैं. एफआारआरओ वालों की गाड़ी खड़ी होती है. उसमें बैठाकर उन्हें भेज दिया जाता है. आगे की कार्रवाई एफआरआरओ वाले ही करते हैं. अभी-अभी मैंने हाईकोर्ट के एक वकील को यही जवाब दिया है. हमें इतना ही पता है.’’
नोटिस की कॉपी मांगने पर वहां मौजूद एक पुलिस अधिकारी हंसते हुए कहते हैं, ‘‘आप मीडिया वाले क्यों परेशान हैं. सुबह से कई लोग आ गए पूछताछ करने के लिए. उनको ले जा रहे हैं तो ख़ुशी की ही बात है. आप खुश नहीं हैं? हमारे लोगों का हक़ मारते हैं.’’
इस गिरफ्तारी को लेकर न्यूज़ वेबसाइड क्विंट को दिए जवाब में दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त आरपी मीणा ने कहा, ‘‘उनके पास दस्तावेज नहीं थे, इसलिए उन्हें एफआरआरओ के पास भेजा गया.’’
न्यूजलॉन्ड्री की टीम नई दिल्ली के सफदरजंग में बने एफआरआरओ के ऑफिस भी पहुंची. बात करने पर यहां एफआरआरओ के सहयोगी ने कहा कि आप ईमेल कीजिए. आपके सवालों का जवाब दिया जाएगा. हमने उन्हें सवालों की लिस्ट भेजी दी है, लेकिन जवाब नहीं आया. अगर उनका जवाब आता है तो इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
एक तरफ डीसीपी कह रहे हैं कि उनके पास डॉक्यूमेंट नहीं था, लेकिन बुधवार को जिन चार लोगों को पुलिस उठाकर ले गई उनमें से तीन का रिफ्यूजी कार्ड 31 मई 2021 तक मान्य है.
कंचन कुंज रोहिंग्या कैंप के जिम्मेदार लोगों में से एक 32 वर्षीय मोहम्मद सलीम कहते हैं, ‘‘मैं बाहर रह रहे लोगों पर कुछ नहीं कह सकता, लेकिन यहां जितने लोग हैं उनके पास यूएनएचसीआर का रिफ्यूजी कार्ड है. 2014 से 2018 तक सरकार ने हमें लॉन्ग टर्म वीजा भी दिया लेकिन बाद में यह बंद हो गया. अब रिफ्यूजी कार्ड ही हमारे पास सबसे बड़ा सबूत है.’’
सलीम बताते हैं, ‘‘रिफ्यूजी कार्ड हमें आसानी से नहीं मिलता है. जब हम बर्मा से भागे तो इधर-उधर रहने के बजाय यूएनएचसीआर के ऑफिस में पहुंच गए. वहां हमारी गहरी पूछताछ हुई. पांच महीने तक करीब 15 से 16 बार हमारा उन्होंने इंटरव्यू लिया. वे हमसे हमारे गांव, वहां के खान-पान, रहन-सहन, पहनावा सब कुछ पूछते हैं. यह भी पूछते हैं कि आपके गांव जाने का रास्ता क्या है. जब उन्हें भरोसा हो जाता है कि हम बर्मा से ही हैं तब ही वे हमें रिफ्यूजी कार्ड देते हैं.’’
जब लोगों के पास यूएनएचसीआर का रिफ्यूजी कार्ड है ही फिर क्यों पुलिस पकड़कर ले जा रही है. इस सवाल के जवाब में सलीम कहते हैं, ‘‘उनसे पूछने पर वे कुछ बताते भी तो नहीं हैं. बस कहते हैं कि पूछताछ के बाद छोड़ देंगे लेकिन डिटेंशन सेंटर में लेकर रख देते हैं. डिटेंशन सेंटर से मुझे एक लड़की का फोन आया. वे मेरी जानने वाली हैं. उसे भी पकड़कर वहीं रखा गया है. उसने बताया कि दिल्ली में जिसको भी पकड़ा जा रहा है उसे इंद्रलोक के डिटेंशन सेंटर में रखा जा रहा है. वहां करीब 150 रोहिंग्या अभी बंद हैं. हमारे यहां से जिन लोगों को ले गए हैं उन्हें भी वहीं रखा है.’’
न्यूजलॉन्ड्री ने इस मुद्दे पर कई जानकारों से बात की. उनका भी कहना है कि अगर किसी के पास यूएनएचसीआर का रिफ्यूजी कार्ड है तो वह आज़ादी के साथ रहने का हकदार है.
डर के साये में पूरा कैंप
एक सप्ताह के भीतर दस लोगों को हिरासत में लिए जाने से कालिंदी कुंज के रोहिंग्या कैंप में मातम पसरा हुआ है. लोग डर से काम पर नहीं जा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की जमीन पर बसे रोहिंग्या कैंप में हमारी मुलाकात 38 वर्षीय नूर कासिम से हुई. साल 2012 में म्यांमार से नदी के रास्ते भारत आने वाले कासिम अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ झुग्गी में बैठे हुए थे. डर की वजह से आज वे काम पर नहीं गए हैं.
कासिम कहते हैं, ‘‘हमारे पास तो सब कागज हैं लेकिन जिन्हें उठाकर ले जा रहे हैं उनके पास भी तो कागज हैं. ऐसे में डर बना हुआ है. पुलिस वाले कह रहे हैं कि सबको ऐसे ही उठाकर ले जाएंगे. नौ साल से यहां रह रहे हैं. पहले ऐसा नहीं हुआ. बीते एक महीने से कभी पुलिस वाले तो कभी कोई अजनबी आकर कहता है कि यहां से हट जाओ नहीं तो जल्दी ही खाली कराया जाएगा.’’
साल 2018 में रोहिंग्या कैंप में आग लग गई थी जिसमें 55 झुग्गियां जलकर खाक हो गईं. इसमें से एक घर नूर कासिम का भी था. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कासिम कहते हैं, ‘‘तब सुबह के 3 बजे किसी ने झुग्गी में आग लगा दी. हम सब सो रहे थे. सब कुछ जल गया. हम सिर्फ अपने बच्चों और कागजों को ही बचा पाए. सालों से हम यही कर रहे हैं. अपने परिजनों की जिंदगी और कागज बचाते भाग रहे हैं. म्यांमार की सरकार हमें अपना नहीं मानती है. भागकर यहां आए हैं ताकि जिंदगी बच जाए. अब यहां भी हमारे साथ गलत होने लगा. मेरे भाई बहन सब बांग्लादेश में हैं. उनसे साल में एक दो बार बात हो जाती है. यहां भले बिरयानी खाते हैं लेकिन बर्मा में शांति हो जाए तो वहां मिट्टी भी खाकर रह लेंगे.’’
दोपहर के करीब एक बजे कालिंदी कुंज के एक पुलिसकर्मी रोहिंग्या कैंप पहुंचे. उन्हें देखते ही लोगों की भीड़ जमा हो गई. कैंप के एक जिम्मेदार मोहम्मद सलीम से बात करके पुलिस वाला लौट गया. उस भीड़ में 35 वर्षीय तसलीमा भी थीं. वहां से लौटते हुए तसलीमा न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहती हैं, ‘‘पुलिस वालों को इधर देखकर डर लग रहा है. वे कह रहे हैं कि धीरे-धीरे सबको उठाकर ले जाएंगे. रात में नींद नहीं आती है. मेरे पति प्लंबर का काम करते हैं. दो दिनों से वे डर के कारण काम पर नहीं गए. छोटे-छोटे बच्चे हैं. ऐसे में अगर हमें उठाकर ले गए तो बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाएगा.’’
बीते दिनों जम्मू में 168 रोहिंग्या मुसलमानों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये लोग आधिकारिक दस्तावेज के बिना शहर में रह रहे विदेशियों की पहचान करने के लिए यह अभियान चलाया गया था. नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट में पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि 168 अवैध प्रवासी रोहिंग्याओं को हीरानगर जेल भेजा गया है. ये फर्जी कागजात बनाकर रह रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जम्मू में पकड़े गए रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
जम्मू के अलावा भी देश के अलग-अलग हिस्सों में रोहिंग्या मुसलमानों की बढ़ती गिरफ्तारी के मामलों से यहां रहने वाले पहले से ही परेशान थे, लेकिन अब इनके आसपास गिरफ्तारी हो रही तो इनकी परेशानी और बढ़ गई है.
अनवर शाह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हम अपने वतन से जिंदगी बचाकर भागे थे. यहां कब्जा करने नहीं आए हैं. लेकिन भारत की मीडिया हमें गलत तरह से पेश करती है. हम में से कोई गलत करेगा तो हम उसे बचाने नहीं आएंगे लेकिन जो लोग नियम से रह रहे हैं उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है. रोज-रोज परेशान करने से बेहतर हैं सरकार सभी रोहिंग्या लोगों को एक जगह इकठ्ठा करके उन्हें मार दे या समुद्र में डाल दे. रोज डर-डर के रहने से बेहतर हम एक बार में मर जाएंगे.’’
कानूनी सहयोग के सवाल पर बुधवार को गिरफ्तार हुए सुल्तान अहमद की बहू शनवारा कहती हैं, ‘‘हम लोग तो गरीब हैं. खाने तक के पैसे नहीं होते हैं. आप हमारा घर देखिए. ऐसे में हम क़ानूनी सहयोग कैसे ले सकते हैं. हम यहां यूएनएचसीआर के भरोसे हैं. वे लोग ही कुछ कर सकते हैं.’’
न्यूजलॉन्ड्री ने इस सिलसिले में यूएनएचसीआर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन हमारी बात नहीं हो पाई. उन्हें भी हमने सवाल भेज दिए हैं. जवाब आने पर उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
बता दें कि इस समय म्यांमार में तख्तापलट के बाद सेना ने सत्ता पर कब्जा किया हुआ है. वहां से हर रोज लोगों की हत्या की खबरें आ रही हैं. पत्रकारों को हिरासत में लिया जा रहा है. ऐसे में रोहिंग्या मुसलामनों को वापस भेजने के सवाल पर रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिसिएटिव से जुड़े साबिर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हम लोगों का बर्मा में जेनोसाइट हुआ. जिसकी जानकारी पूरी दुनिया को है. ऐसे में आपको हमें शेल्टर होम देना चाहिए. ऐसा न करके वापस भेजने के नाम पर लोगों को डराया जा रहा है. वापस भेजन के लिए ज़रूरी है बर्मा में शांति होना. आपको बर्मा में नागरिकों की सरकार आए इसके लिए काम करना पड़ेगा. वहां दोबारा लोगों की हत्या हो रही है. जिसकी आलोचना दुनिया भर में हो रही है. मिलिट्री वाले तानाशाही दिखा रहे हैं. भारत सरकार मिलिट्री के साथ है या नागरिकों के साथ यह भी स्पष्ट नहीं है.’’
लोगों को हिरासत में लिए जाने के सवाल पर साबिर कहते हैं, ‘‘हमें बस परेशान किया जा रहा है. क्या जिन लोगों को गिरफ्तार किया वे बिना यूएनएचसीआर के रिफ्यूजी कार्ड के यहां रह रहे थे? अगर ऐसा था तो पुलिस क्या कर रही थी. सबके पास रिफ्यूजी कार्ड है. कोरोना के समय में यूएनएचसीआर का ऑफिस बंद रहा तो कुछ लोग रिन्यू नहीं करा पाए. ऐसे में उन्हें उठाकर ले जाना परेशान करता है. अभी कुछ लोग कार्ड रिन्यू कराने दिल्ली आ रहे हैं तो उन्हें स्टेशन से ही उठा लिया जा रहा है. आप हमें मारना नहीं चाह रहे बल्कि डराकर मारना चाह रहे हैं.’’
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