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बंगाली हिंदुत्व: "पश्चिम बंगाल पूर्वी बांग्लादेश नहीं बन सकता अब हिन्दू प्रतिरोध का समय आ गया"

देबतनु भट्टाचार्य संघ और उसके घटकों के मुखर आलोचक रहे हैं. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और उसकी मूल संस्था को बेहद नरम स्वभाव का और कमजोर बताया है यहां तक कि उन पर मुलिस्म तुष्टिकरण का आरोप भी लगाया है. देबतनु चरम-दक्षिणपंथी दल, हिन्दू संहति, या हिन्दू एकता, के अध्यक्ष हैं. यह दल पश्चिम बंगाल में बंगाली हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार करता हैं. इसके लिए आरएसएस सदैव एक 'सेंट्रिस्ट' विचार रहा है.

हालांकि इन चुनावों में संघ की तमाम 'विफलताओं' को नज़रअंदाज़ करके देबतनु भाजपा के टिकट पर हावड़ा जिले की आम्ता विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

"हम एक बड़े हिन्दू परिवार का हिस्सा हैं और मतभेद हिन्दू परंपरा का हिस्सा है," उन्होंने आम्ता के जोयपुर शहर में भाजपा और हिन्दू संहति के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा. यह बैठक केनरा बैंक की एक छोटी सी शाखा के ऊपर हो रही थी. भगवा अंगवस्त्र पहने आते-जाते हुए पुरुष और महिलाएं एक दूसरे का 'जय श्री राम' के उद्घोष के साथ अभिवादन कर रहे थे. हांलांकि हिन्दू संहति का नारा 'जय मां काली' है, जो हिंदी पट्टी के संघी घटकों के अलग उसकी एक बंगाली पहचान सुदृढ़ करता है.

देबतनु वहां इकठ्ठा भीड़ से कहते हैं की पश्चिम बंगाल पूर्वी बांग्लादेश नहीं बन सकता और अब हिन्दू प्रतिरोध का समय आ गया है. "बांग्लादेश में बैठे मास्टरमाइंड और बंगाल में बैठे उनके साथियों द्वारा समर्थित जिहादी हस्तक्षेप हर हाल में रुकना चाहिए," वह कहते हैं.

लेकिन यदि देबतनु और हिन्दू संहति के इतिहास पर नज़र डालें तो यह वक्तव्य भी शालीन लगेगा.

पूर्व आरएसएस कार्यकर्ताओं और सीपीएम-कांग्रेस छोड़ चुके काडरों का ठिकाना

हिन्दू संहति अपने संस्थापक तपन घोष की तरह संघ का साथ छोड़ चुके प्रचारकों का स्वाभाविक आश्रय है. घोष का पिछले वर्ष कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद देहांत हो गया. आरएसएस को उन्होंने जिन उपाधियों से नवाज़ा उनमें 'कांग्रेस के ही सामान एक रीढ़विहीन राजनैतिक दल' सर्वोपरि है.

संस्था के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हाल ही में दंगों में शामिल होने और भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था. साल 2013 में इस दल के 13 पुरुषों को एक आदिवासी महिला के बलात्कार का दोषी पाया गया था. इन 13 बलात्कारियों ने उस महिला को एक मुस्लिम पुरुष से प्रेम करने का 'दंड' दिया था. घोष ने इसे एक साज़िश बताया था और संस्था ने दोषियों के परिवारों को सहायता भी प्रदान की थी.

देबतनु हिन्दू संहति से 2013 में जुड़े. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में उन्होंने बताया कि वह 1992 से उत्तरपूर्व (असम और त्रिपुरा) में प्रचारक थे. वह समझते थे कि आरएसएस का काम 'रचनात्मक' है किन्तु बहुत धीमी और स्थिर गति से चलता है. "वह प्राथमिक विद्यालय खड़े करते हैं, लोगों को प्रशिक्षण देते हैं, लेकिन मुझे लगा कि हमें एक ऐसी संस्था की ज़रूरत है जो सीधा प्रतिरोध करे". उनके फेसबुक परिचय में वह खुद के लिए कहते हैं कि वह 'समझौता न करने वाले हिंदू सेनानी हैं, जो मातृभूमि के इस्लामीकरण का विरोध करने का मूल्य चुकाने को तैयार है'.

अपने पिछले साक्षात्कारों में उन्होंने कहा है कि जब सीधी कार्रवाई का समय आता है तो आरएसएस पीछे हट जाता है. 'सीधी कार्रवाई' से देबतनु का मतलब हो सकता है उनकी वह अपील जिसमें वह वह हिन्दुओं से 'आत्मरक्षा' के लिए घर में हथियार रखने का आग्रह करते हैं. या फिर उनकी 'एंटी लव जिहाद' मुहिम जिसके तहत वह लगभग 300 मुस्लिम लड़कियों की हिन्दू लड़को से शादियां कराने का दावा करते हैं.

जोयपुर सम्मलेन में मौजूद एक हिन्दू संहति कार्यकर्ता मुकुंद कोले कहते हैं कि बंगाल में मुख्य लड़ाई मुस्लिमों द्वारा किए जाने वाले दमन के विरुद्ध है.

वह भी 'सीधी लड़ाई' पर जोर देते हैं. "बंगाल के हिन्दुओं की सबसे बड़ी ज़रूरत है बंगाल को जिहादियों की भूमि बनने से रोकना. आरएसएस का काम करने का अपना ढंग है. लेकिन हम उग्र हैं. आरएसएस धीमा हो सकता है लेकिन हमें तेज़ चलना है क्योंकि समय हाथ से निकला जा रहा है."

पूर्व प्रचारकों के साथ-साथ अब यह संस्था उन्हें भी आकर्षित करने लगी है जो पहले मुख्यधारा के राजनैतिक दलों से जुड़े थे.

मिसाल के तौर पर 34-वर्षीय बंटी खान को लीजिए, जो कहते हैं कि वह 'कांग्रेस कल्चर' में पले-बढ़े हैं और साल 2016 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हिस्सा थे. "मैंने तपन घोष की हिन्दू संहति के सम्मलेन में उपस्थित हुआ और मुझे वह बहुत पसंद आया. मेरी आंखें खुल गयीं कि कैसे मुस्लिमों ने हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा है और कैसे कांग्रेस ने इतिहास तोड़-मरोड़ कर पेश किया. मैं संहति से जुड़ गया और अब भाजपा के साथ काम करता हूं."

बंटी खान

बंटी चिर-परिचित दक्षिणपंथी षड़यंत्र-सिद्धांतों और शिकायतों का ब्यौरा देने लगते हैं. 'लव जिहाद' (कैसे मुस्लिम युवक हिन्दू महिलाओं को फंसाकर गर्भवती कर देते हैं), कैसे आतंकवादी संगठनों के साथ काम करने वाले मुस्लिमों का वर्चस्व बढ़ रहा है, मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का मसला और किस प्रकार हिन्दू घरों और संपत्ति पर मुस्लिम कब्ज़ा कर रहे हैं.

वह किसी घटना विशेष का उल्लेख नहीं कर पाते और अपनी बात को सहारा देने के लिए एक सामान्य सा 'मुस्लिम एकता' बनाम उनके अनुसार 'विभाजित हिन्दू समाज' का उदाहरण देते हैं. "यदि एक मुस्लिम किसी को मदद के लिए बुलाता है तो 14 लोग आते हैं. लेकिन हिन्दू के बुलाने पर कोई नहीं आता. यह विशेषकर ऊंची जाति के हिन्दुओं के साथ होता है जो लड़ना नहीं चाहते. अनुसूचित जातियां इस मामले में बेहतर हैं. उनमे अधिक एकता है." यह कहते हुए वह अपने मित्र 27 वर्षीय शुभांकर बाउरी की ओर इशारा करते हैं. शुभांकर भी भाजपा कार्यकर्ता हैं. वह और उनके परिवार के लोग परिवार 2016 तक सीपीएम के कार्यकर्ता थे.

उन्होंने बताया कि उनके परिवार पर तृणमूल के 'गुंडों' के हमलों की वजह से वह भाजपा से जुड़े. "लेफ्ट दल समाप्त हो चुका है और हमारी सुरक्षा नहीं कर सकता. इसलिए हम टीएमसी के गुंडों से बचने के लिए भाजपा में आगए." शुभांकर की राह बंगाल में जानी-पहचानी है. जहां सत्ताधारी तृणमूल पर यह आरोप लगता है कि उन्होंने भय का साम्राज्य यहां तक बढ़ाया कि 2018 के पंचायत चुनावों में लगभग 30 प्रतिशत सीटों पर तृणमूल उम्मीदवारों के अलावा और किसीने नामांकन ही नहीं भरा. 2019 के लोक सभा चुनावों में पारंपरिक लेफ्ट मतदाताओं का लगभग 2/5वां हिस्सा भाजपा की ओर चला गया.

शुभांकर

शुभांकर कहते हैं कि वह भाजपा को 'ब्राह्मण-बनिया' पार्टी की तरह नहीं देखते. "मोदी जी की योजनाएं सबके लिए हैं, वह भेदभाव नहीं करतीं."

देबतनु के साथ हर समय भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष गौतम हज़रा रहते हैं. वह बताते हैं कि कैसे उन्होंने आवास और रसोईगैस को लेकर सरकार की योजनाओं के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया है. "सबसे बड़ी विडंबना है कि जो लोग लेफ्ट-दलित एकता पर लड़ते हैं उन्हें कोई दलित वोट नहीं मिलता. सारा दलित वोट भाजपा को आता है," देबतनु कहते हैं.

हिंदू समहति अभियान के सदस्य

हिंदुत्व का आसरा

पिछले महीने तक देबतनु कहते थे कि वह चुनाव लड़ने के लिए खुद की पार्टी बनाएंगे और बंगाली हिन्दुओं की रक्षा करने में असमर्थ भाजपा से समर्थन न लेंगे न देंगे.

आम्ता से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के उनके निर्णय ने जिले में काडर-विहीन भगवा ब्रिगेड में नई जान फूंक दी है. हावड़ा जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं में टिकट बंटवारे को लेकर दो-फाड़ है. वहीं दूसरी ओर हिन्दू संहति के पास हज़ारो ज़मीनी कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बंगाल को हिंदू भूमि बनाने की शपथ ले रखी है. और उनके सामाजिक कार्यों जैसे लॉकडाउन के समय साबुन और सैनिटाइज़र बांटने की वजह से लोग उन्हें जानने लगे हैं.

यह जोयपुर में कुछ लोगों से हमारी बातचीत में भी परिलक्षित होता है. राजू मिधा (30) बताते हैं कि वह बेरोज़गार हैं और आम्ता के अगले विधायक से चाहते हैं कि वह ग्रामीण युवाओं के लिए रोज़गार सुनिश्चित करें. "कई युवा गांव छोड़कर बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में बस रहे हैं" उन्होंने बताया और कहा कि वह इस बार भाजपा को वोट देकर देखना चाहते हैं.

"मुझे भाजपा के उम्मीदवार को वोट देने में कोई समस्या नहीं है. मैंने आपदा के समय उन्हें लोगों तक राहत पहुंचाते देखा है. लॉकडाउन के समय जब हम घरों में कैद थे, उनके लोगों ने हम तक खाना और दूसरी राहत सामग्री पहुंचाई. पहली बार मैंने यहां किसी सामाजिक संस्था को काम करते देखा. देबतनु भट्टाचार्य मुझे विश्वास करने योग्य लगते हैं," मिधा ने कहा.

ज़मीन पर काम करने के साथ ही हिन्दू संहति ने दंगा पीड़ित इलाकों में खुद को हिन्दुओं के 'रक्षक' के रूप में स्थापित कर लिया है, विशेषकर वहां जहां पुलिस-प्रशासन हिंसा रोकने में नाकाम रहा.

26-वर्षीय गृहणी रिंकू पांजा कहती हैं, "विकास के दूसरे मुद्दे बाद में देखे जा सकते हैं लेकिन इस समय सबसे ज़रूरी मुद्दा है सामाजिक सुरक्षा. हम नहीं चाहते कि हमारे दुर्गा और काली पूजा पंडालों पर और हमले हों."

"2015 से 2020 तक ऐसी 10 घटनाएं चंदरपुर, मोईनान, भतोरा और नोरित में हो चुकी हैं. जो लड़के धार्मिक सभाओं और वाज़ महफ़िलों में जाते हैं वही इन छोटे-बड़े हमलों में शामिल थे. हमारी मदद के लिए सिर्फ हिन्दू संहति के कार्यकर्ता आए. महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए हम तो उन्हें ही वोट देंगे," पांजा ने कहा.

हांलांकि एक अन्य गृहणी, 30 वर्षीय रंजना मांझी, ने दूसरी समस्याएं गिनाईं, "हमारी प्राथमिक मांगे हैं साफ़ पेयजल, सड़कें, बच्चों के लिए शिक्षा और रोज़गार. मेरे जैसी गृहणी और क्या मांग सकती है? यह सब ज़रूरते अधूरी हैं. हम ऐसा पानी पीते हैं जो पीने लायक नहीं है. यहां कोई मुकम्मल सड़क नहीं है, बाढ़ की रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी है और कोई रोज़गार नहीं है."

दुकानदारों और स्थानीय व्यापारियों ने हमसे बातचीत के दौरान अपने प्राथमिकताएं ना बताना ही उचित समझा. लेकिन उनमें से कई ने कहा कि उन्हें साफ़ छवि का उम्मीदवार चाहिए जो उनके व्यापर के लिए उपयुक्त वातावरण बना सके.

"हम बस अनावश्यक परेशानियों से छुटकारा चाहते हैं. चुनाव का समय संवेदनशील होता है इसलिए हम अपनी पसंद बताना नहीं चाहते. बस यह चाहते हैं कि ऐसा उम्मीदवार हो जो 'तोलबाज़ी' (धन उगाही) रोक सके," स्थानीय व्यापारी जयदीप कर ने कहा.

चाय विक्रेता खोकन दास ने कहा कि कोई राजनैतिक पार्टी उनकी प्राथमिकता नहीं है. वह ऐसा उम्मीदवार चाहते हैं जो गरीबों के लिए काम करे.

"हम हाशिए पर पड़े लोग हैं. एक ही जैसे चरित्र वाले नेता हर बार चुनावों के पहले कई वादे करते हैं और चुनाव के बाद हमें भूल जाते हैं. लोग हमें मोदी और उनकी योजनाओं के बारे में बहुत कुछ बताते हैं. कुछ लोग हमसे दीदी (ममता बनर्जी) की भी बात करते हैं. लेकिन मोदी बेहतर लगते हैं. मेरा भाजपा से कोई ख़ास लगाव नहीं है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे मोदी पसंद हैं," दास ने कहा.

आम्ता के वर्तमान विधायक, कांग्रेस के असित मित्रा एक बार फिर मैदान में हैं.

हिन्दू संहति के कार्यकर्ताओं का ध्येय है मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' का प्रचार. लेकिन यदि यह उसी संगठन द्वारा कहा जाए जो एक 'हिन्दू बंगाल' स्थापित करना चाहता हो तो क्या यह स्वीकार कर पाना मुमकिन है?

"हमें अशफ़ाक़उल्ला खान जैसे मुस्लिमों से कोई समस्या नहीं जो भारत की आज़ादी के लिए लड़े. हमारी समस्या उनसे है जो भारत को तोड़ना चाहते हैं," बंटी ने कहा.

यह पूछने पर कि क्या उनके कोई मुस्लिम मित्र हैं, बंटी कहते हैं, "मैं उनसे बात करता हूं लेकिन उनसे दोस्ती करना असंभव है. वह दोस्त नहीं हो सकते."

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