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एनएल चर्चा 159: दिल्ली सरकार की शक्तियां खत्म करने वाला बिल, बंगाल चुनाव और सचिन वाझे
एनएल चर्चा के 159वें एपिसोड में केंद्र सरकार द्वारा लाया गया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक-2021, मुंबई पुलिस के अधिकारी सचिन वाझे की गिरफ्तारी, मुंबई पुलिस कमिश्नर का ट्रांसफर, बीजेपी सांसद की संदिग्ध हालात में मौत, बढ़ते कोरोना वायरस के मामले, क्वाड सदस्यों की पहली बैठक आदि जैसे विषयों का जिक्र हुआ.
इस बार चर्चा में अमर उजाला के राजनीतिक संपादक शरद गुप्ता और न्यूज़लॉन्ड्री के सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. बंगाल चुनाव को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस ने कोलकाता से चुनावी हालात की जानकारी दी. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती को लेकर लाए गए बिल से किया. वह कहते हैं केंद्र सरकार 1991 के इस कानून में संशोधन कर रही है. दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई को लेकर हम देख चुके हैं कि दिल्ली सरकार के मंत्री एलजी के घर के बाहर धरना प्रदर्शन दे चुके हैं. वहीं 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने साफ कर दिया था कि रोजाना कामकाज में एलजी की कोई भूमिका नहीं है. दिल्ली सरकार स्वतंत्र हैं, हालांकि वह अपने कार्यों की जानकारी एलजी को जरूर दे.
अतुल ने पूछा, “लेकिन अब जो यह बिल लाया गया है उसमें दिल्ली में सरकार का अर्थ एलजी को परिभाषित किया जा रहा है. इससे भारत का जो संघीय ढांचा है उस पर गहरी चोट पहुंचेगी. इस स्थिति को शरदजी आप कैसे देखते है, क्या यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक है?”
इस सवाल पर शरद गुप्ता कहते हैं, “अतुल पहले हमें यह समझना होगा की दिल्ली अर्ध राज्य है. पूर्ण राज्य नहीं है. यहां विधानसभा, विधायक, मुख्यमंत्री सब हैं लेकिन एलजी को ज्यादा अधिकार हैं क्योंकि यह राष्ट्रीय राजधानी है. केंद्र सरकार का इस बिल के पीछे तर्क है कि वह जब कोई विदेशी मेहमान आते हैं तब अगर दिल्ली में कोई अप्रिय घटना घटित होती है (जैसा ट्रंप के दौरे के वक्त हुआ) तो उसके लिए राज्य को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. उस समय में केंद्र पर भी इस घटना को लेकर जिम्मेदारी होती है, ऐसे में केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर एलजी जिम्मेदार होंगे उसी के तहत उन्हें ज्यादा जिम्मेदारी देने का तर्क दिया जा रहा है.”
शरद आगे कहते हैं, “राज्य और केंद्र सरकार के बीच 2014 के बाद से खींचतान चल रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वह खत्म हुआ. अब एक बार फिर से नई सरकार के एक साल होते ही फिर से यह टकराव की स्थिति बन गई है. बीजेपी जो 2013, 15 और 2019 में केजरीवाल से चुनाव हार गई अब वह इस कानून के जरिए पीछे की दरवाजे से दिल्ली की सत्ता में घुसने की कोशिश कर रही है. हालांकि ऐसा नहीं है कि दिल्ली की जनता ने बीजेपी को समर्थन नहीं दिया, उन्होंने बीजेपी को लोकसभा और एमसीडी के चुनावों में समर्थन दिया. कुल मिलाकर कहें तो केजरीवाल सरकार ने एक मॉडल पेश किया है, यह राज्य आर्थिक तौर पर संपन्न हैं और अब केंद्र सरकार नहीं चाहती कि यह राज्य अपने पैर पर खड़ा रहे.”
चर्चा में शार्दूल को शामिल करते हुए अतुल पूछते हैं, “केंद्र सरकार पहले भी केजरीवाल सरकार को घेरने के लिए उनके 28 विधायकों को डिस्क्वालिफाई करने की कोशिश कर चुकी हैं लेकिन वह सफल नहीं हुई. अब लोकसभा में बिल लाकर एक बार फिर से आप सरकार को बेदम करने की कोशिश की जा रही है. सवाल है कि संवैधानिक लोकतंत्र में केंद्र की सरकार की सीारेखा क्या होनी चाहिए, विपक्ष के खिलाफ किस हद तक आप जा सकते हैं?
शार्दूल कहते हैं, “भले ही दोनों नेताओं में (मोदी और केजरीवाल) समानताएं हो भले ही नीतियों का समर्थन करते हो या नहीं, लेकिन दोनों को अपना अस्तित्व बनाए रखने की आजादी है. अगर आप चुनाव नहीं जीत नहीं पा रहे है तो आप वह सब कर सकते है जो नियम के तहत हो. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि जनता ने अपने प्रतिनिधि चुनकर भेजे है तो हर बात में एलजी से सहमति नहीं ली जा सकती क्योंकि वो चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं.”
इस विषय के अलावा अन्य विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.
शरद गुप्ता
डॉ एस ए दाभोलकर की किताब - प्लेनटी फॉर ऑल
मेघनाद एस
हावड़ा जिले की राजनीति को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट
शार्दूल कात्यायन
सचिन वाझे को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित रिपोर्ट
नदियों की स्थिति को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट
अतुल चौरसिया
इंडियन एक्सप्रेस पर प्रताप भानु मेहता और अशोका यूनिवर्सिटी को लेकर लिखा गया संपादकीय
पांच राज्यों के चुनावों से जुड़ा एनएल सेना प्रोजेक्ट
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प्रोड्यूसर- लिपि वत्स
रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.
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