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चांदनी चौक: हाईकोर्ट के आदेश पर हटाए गए मंदिर को दोबारा किसने बनाया?
3 जनवरी को चांदनी चौक पर टाउन हॉल और फाउंटेन चौक के बीच स्थित हनुमान मंदिर को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर गिरा दिया गया. यह आदेश 2007 में पुरानी दिल्ली की इस खास जगह के पुनर्विकास और भीड़-भाड़ कम करने के लिए दाखिल हुए एक मामले में दिया गया.
19 फरवरी को उसी जगह के पास, स्टील का बना हुआ एक नया मंदिर चमत्कार की तरह वहां आ गया. प्रशासन ने कभी इस बात पर आपत्ति नहीं जताई कि हटाया गया मंदिर अवैध रूप से कब्जाई हुई भूमि पर बना था, ने इस नए मंदिर का एक दशक में आये अदालत के निर्णय को नजरअंदाज करते हुए स्वागत किया.
यह पूछे जाने पर कि अवैध रूप से मंदिर कैसे वहां पर आ गया, नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन या एनडीएमसी के प्रमुख जिन्हें अदालत ने पुराने ढांचे को गिराने का आदेश दिया था, ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि किसी इजाज़त की आवश्यकता नहीं है क्योंकि "यह भगवान की इच्छा है."
चांदनी चौक से आम आदमी पार्टी के विधायक प्रहलाद सिंह साहनी को भी इस नए मंदिर से कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने कहा, "मंदिर चांदनी चौक के लोगों के द्वारा बनाया गया. हमें इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं है. यह भगवान का घर है, हमें उससे आपत्ति क्यों होने लगी?"
'आप' के विधायक का यह बयान अदालत में दिल्ली के लोक निर्माण विभाग के द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से अलग है, जिसका नियंत्रण भी आप के पास ही है. अदालत में उन्होंने दिल्ली नगर निगम से लगातार इस ढांचे को हटाने की मांग अदालत के आदेश अनुसार की थी.
मंदिर
चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन से बाजार की तरफ जाने वाले मुख्य मार्ग पर करीब एक किलोमीटर आगे रखे स्टील के बक्से को आप अनदेखा नहीं कर सकते. स्टील के इस बड़े से बक्से ने अदालत में किए गए दावे के अनुसार 47 साल पुराना मंदिर, जो अब ध्वस्त हो चुका है, की जगह ले ली है. 26 फरवरी को मंदिर के आगे एक लाल रंग का कालीन बिछाया गया था. अब रिक्शा चलाने वाले उसके पास से गुजरते हुए धीमे होकर अपनी सवारियों को यह बताना नहीं भूलते कि कैसे मंदिर "चमत्कार" की तरह वहां प्रकट हो गया.
आसपास के दुकानदारों का एक समूह मंदिर के पास ही फुटपाथ पर खड़ा होकर बातें कर रहा था. उन्होंने कहा कि मंदिर को गिराया जाना उनके लिए बहुत ही दर्दनाक था.
24 वर्षीय अतुल कुमार पांडे कहते हैं, "इस मंदिर की हमारे मन में एक खास जगह थी. हम दुकानदारों के लिए दिन का पहला काम मंदिर में प्रणाम करना होता था. जब उसे ध्वस्त कर दिया गया तो मेरा दिल ही टूट गया. यह सब देर रात, दोनों तरफ बड़े-बड़े बैरिकेड और बड़ी संख्या में पुलिस की मौजूदगी में किया गया. मुझे याद है कि उस रात काफी ठंड थी और थोड़ी बारिश भी हुई थी. अगले दिन हमें अपने मंदिर की जगह बस मलबा मिला. लेकिन हमने तब भी वहां पर अपना माथा टेक कर आशीर्वाद लेना जारी रखा. जब हमने नए मंदिर को देखा तो हम बड़े खुश हुए. वहां पर भजन और कीर्तन हो रहे थे, जैसा कि दिवाली हो. हम में से कोई नहीं जानता कि मंदिर किसने बनाया लेकिन हम उनके आभारी हैं. शायद पुजारी जानता हो लेकिन हम नहीं जानते."
मंदिर के पुजारी अशोक कुमार शर्मा सफेद कुर्ता पहने मंदिर के बगल में बैठे थे और अंदर होने वाली गतिविधि पर आंख गड़ाए हुए थे. वे दावा करते हैं, “वह इस मंदिर के पुजारी 1974 से हैं जब से यह मंदिर बना था. जब मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश आया तो उन्होंने इसे किसी दूसरे स्थान पर ले जाने की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
"क्या फर्क पड़ता है किसने बनाया"
पुजारी ने एक सिगरेट जलाई और मुस्कुरते हुए कहा, "इससे क्या फर्क पड़ता है कि किसने बनाया? जैसे कि भगवान राम अयोध्या वापस आए थे, वैसे ही उनके भक्त हनुमान चांदनी चौक वापस आ गए हैं. वह वापस आना चाहते थे और अब वह यहां आ गए हैं, बस बात खत्म. यह लोगों की इच्छा है जो उन्हें वापस लाई है. मैं इस मंदिर को गिराए जाने को लेकर बिल्कुल भी भयभीत नहीं हूं. भाजपा हमारी तरफ है और लोग भी. भाजपा नगर निगम को नियंत्रित करती है और उसने इस नए मंदिर का विरोध नहीं किया है.”
कई स्थानीय दुकानदार दिनभर मंदिर आते रहते हैं और वहां पर सेवा दान करते हैं, जैसे कि वह पुजारी की कही बात को ही सत्य ठहराना चाह रहे हों.
56 वर्षीय वीके कपूर ने मंदिर में बिजली लगवाने के पैसे देने की पेशकश की, कपूर रितु डिजाइन के नाम से दुल्हन के कपड़ों की दुकान चलाते हैं. उन्होंने कहा, "मैं यह इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मेरे मन में मंदिर के लिए प्रेम है. मुझे इसके बदले में कुछ नहीं चाहिए. अगर हनुमान मुझे इस बारे में आपसे बात करते हुए सुन लें, तो नाराज़ हो जाएंगे. मुझे कोई श्रेय नहीं चाहिए."
मंदिर में केवल दुकानदार ही नहीं आ रहे, आते-जाते लोग भी वहां रुक रहे हैं. पुजारी ने बताया, "मंदिर का समय सुबह 5:00 से दोपहर 12:00 और शाम 5:00 बजे से रात 9:00 बजे तक है. जब से मंदिर वापस आया है तब से और ज्यादा लोग यहां आ रहे हैं और अपनी प्रार्थनाएं कर रहे हैं. यह एक अच्छी अनुभूति है."
मंदिर के पुजारी और कुछ दुकानदार बड़े उत्साह से अप्रैल में हनुमान जयंती पर एक बड़ा उत्सव करने की योजना पर बात कर रहे हैं. वे मंदिर के ढांचे को और बढ़ाने और सुंदर बनाने पर भी चर्चा कर रहे हैं. ऐसा लगता है इस बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मंदिर को अवैध रूप से बनाया गया है.
मंदिर पर आने वाले श्रद्धालुओं में से एक 20 वर्षीय धीरज कुमार भी थे. वह अपने आप को नवयुवक बजरंगी सेवक संगठन का सदस्य बताते हैं जो उनके अनुसार 2012 में हिंदू मंदिरों की रक्षा और हिंदू धर्म के प्रचार के लिए बनाया गया था. यह पूछे जाने पर कि मंदिर को दोबारा बनाने की जिम्मेदारी किसकी है, वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, "मैं आपको नहीं बता सकता. वह तो चांदनी चौक के लोगों का सामूहिक प्रयास था."
अपनी बात में एक प्रश्न भी जोड़ते हैं, "भगवान कैसे अवैध और अनाधिकृत हो सकता है?"
दिल्ली के नगर निगम चुनावों से साल भर पहले यह मंदिर राजनैतिक नूरा कुश्ती का एक अखाड़ा सा बन गया है. आप और भाजपा दोनों ही पार्टियां परिस्थिति का फायदा उठाने में जुटी हैं. जहां भाजपा ने नगर निगम उनके नियंत्रण में होते हुए भी आप पार्टी को मंदिर गिराए जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया, वहीं आप ने भी नए मंदिर के वहां होने का स्वागत किया.
अदालत का मामला
यह मामला 2007 में रिक्शे वालों के पंजीकरण से शुरू होकर एक दशक में पूरे चांदनी चौक के पुनर्विकास के मामले में बदल गया.
प्रारंभ में चांदनी चौक के पुनर्विकास की योजना शाहजहांनबाद पुनर्विकास कॉरपोरेशन की देखरेख में होना था जिसकी स्थापना तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 2008 में की थी.
साल 2013 में यह प्रोजेक्ट लोक निर्माण विभाग को "मौजूदा एजेंसी के योजना में असंतोषजनक प्रदर्शन" की वजह से दे दिया गया.
उसी साल 21 मार्च को पहली बार अदालत में इस मंदिर संबंधित कोई बात हुई थी.
मामले में एक याचिकाकर्ता चांदनी चौक व्यापार मंडल ने जन कल्याण विभाग में अपने दिए गए तर्कों को अदालत में दाखिल किया. इन तरीकों में से एक कहता है कि "धार्मिक संस्थानों के द्वारा मुख्य मार्गों और फुहारों पर अवैध कब्जा और फुटपाथ पर लगी अड़चनों को हटाना चाहिए." जन कल्याण विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ने अदालत में दाखिल किया कि पुनर्विकास का काम 15 जनवरी 2014 से चालू हो जाएगा.
अप्रैल 2015 में अदालत ने यह इंगित किया कि पैदल चलने वालों की जगह पर 5 अवैध धार्मिक ढांचे को हटाने की कार्यवाही नहीं की गई थी.
अदालत ने यह भी कहा, "अदालत में पेश होने वाली एक भी संस्था ने इनके अवैध होने पर कोई आपत्ति नहीं जताई है. यह देखते हुए जमीन के मालिकाना हक वाली संस्था दिल्ली नगर निगम को मई 2015 के अंत तक इन अवैध कब्जों को हटाने का निर्देश दिया जाता है. दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस इसमें उनका पूरी तरह से सहयोग करेंगी."
4 महीने बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम फिर अदालत के पास यह कहते हुए गया कि सड़क का मालिकाना हक राज्य सरकार के पास है और वह इसलिए इन बातों को नहीं तोड़ सकता. हालांकि अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि निगम उसके आदेश का पालन करे.
उसी साल दिसंबर में एमसीडी ने एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जो कहती थी कि फुटपाथ पर अड़चनों और अवैध कब्जों को हटाने के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं. लेकिन यह कदम 5 में से केवल 3 ढांचों तक ही सीमित थे, दिगंबर लाल जैन मंदिर, गौरी शंकर मंदिर और गुरुद्वारा शीशगंज साहिब. हनुमान मंदिर और भाई मति दास स्मारक को छुआ भी नहीं गया था.
अदालत ने स्पष्ट किया कि, "इस पर कोई विवाद नहीं है कि यह सभी सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जा हैं, और इसलिए यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि इनके हटाए जाने से किसी के पंथ या संप्रदाय या पूजा करने के अधिकार का हनन हो रहा है."
2016 में, जब मंदिर को निर्विवाद रूप से एक अवैध ढांचा माने हुए 3 साल हो चुके थे, एमसीडी के वकील ने अदालत में विश्वास दिलाया की अगली सुनवाई तक अवैध कब्जों को हटा दिया जाएगा.
लेकिन यह नहीं हुआ क्योंकि एमसीडी में दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाया कि उन्होंने यह ढांचा गिराने में एमसीडी को पर्याप्त सहायता नहीं दी थी. पुलिस ने इससे इनकार किया. अदालत ने दोनों संस्थाओं को एक दूसरे से सामंजस्य बिठाने और अदालत के आदेश का पालन करने को कहा और इस काम के लिए नई समय सीमा तय करने को कहा.
सितंबर 2019 में अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल, जो अवैध निर्माण हटाने की कमेटी के प्रमुख हैं, को इस मामले से संबंधित सभी लोगों के साथ एक मीटिंग करने को कहा. लेकिन अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि कमेटी के आदेश चालू काम को नहीं रोकेंगे.
कमेटी ने 2 महीने बाद नवंबर में अपनी पेशकश दी. इसमें कहा गया कि, "दो सांप्रदायिक ढांचे हनुमान मंदिर और शिव मंदिर को पुनर्विकास योजना का अभिन्न अंग बनाना चाहिए. यह निर्णय लिया गया कि मंदिरों के आसपास बने चबूतरे को तोड़कर उन्हें मौजूदा जगह पर बने देना रहना चाहिए."
इसके जवाब में प्रदीप सचदेवा डिजाइन एसोसिएट्स के मालिक प्रदीप सचदेवा ने कहा, "हमने प्रोजेक्ट सलाहकार के नाते मंदिर के ढांचे को नई योजना में बिठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन ऐसा लोगों को प्रभावित किए बिना या चांदनी चौक की बेहतरी के लिए बनने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर को प्रभावित किए बिना नहीं हो पा रहा. यह विकल्प रखना ठीक नहीं है क्योंकि इससे मंदिर जिस जगह पर बना है उससे पैदा होने वाले मूल प्रश्न, जनता की आवाजाही के अधिकार, का कोई समाधान नहीं निकलता."
प्रदीप की बात से सहमति रखते हुए अदालत ने कमेटी के निर्णय पर आश्चर्य जताया और उनकी प्रस्तुति को खारिज कर दिया.
अदालत ने मंदिर हटाए जाने पर कानून व्यवस्था बिगड़ने की चिंताओं का तभी संज्ञान लिया, "कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्था का यह कहना कि वह कानून व्यवस्था बनाए रखने में असमर्थ है, और इसलिए वह संस्था, इस अदालत या उच्चतम न्यायालय के आदेशों का क्रियान्वयन नहीं कर सकती, को अगर मान लिया गया, तो वह अदालत के आदेशों की इज्जत और कानून के राज की वैधता पर गहरा खतरा होगा."
अदालत ने दिल्ली सरकार और खास तौर पर मुख्य सचिव सत्यगोपाल को उनके संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने का निर्देश दिया और अपने आदेशों के पालन को सुनिश्चित करने को कहा.
अवमानना का मामला?
यह मामला काफी कुछ इसी क्षेत्र के एक दूसरे मामले जैसा है. 2016 में शीशगंज गुरुद्वारे के बाहर बना एक प्याऊ जिसे अदालत के आदेश के बाद ध्वस्त कर दिया गया था, रात भर में दोबारा बन गया. अदालत ने उस पर अपनी तीक्ष्ण प्रतिक्रिया दी थी.
अदालत ने कहा था, "यह एक स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य परिस्थिति है जब अदालत के आदेश का बिना किसी डर के जानबूझकर उल्लंघन कर अदालत को खुली चुनौती दी गई है. पुलिस भी ऐसी परिस्थिति में अपने असहाय होने का तर्क नहीं दे सकती जब कानून के राज की वैधता इस बात पर निर्भर हो कि, प्रशासन अदालत के आदेशों का सख्ती से पालन के लिए अपना पूरा सहयोग देगा."
अदालत ने यह भी कहा कि अधिकारी जिन पर अदालत के आदेशों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी है, उन्हें आगे होने वाले जानबूझकर किए गए उल्लंघनों के लिए उत्तरदाई ठहराया जाएगा. अदालत ने दिल्ली सिख गुरद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के चेयरमैन और जनरल सेक्रेटरी को भी "अदालत के आदेशों को न मानने" पर अदालत की अवमानना के नोटिस जारी किए.
इसके बावजूद कि हनुमान मंदिर को निर्विवादित रूप से पैदल यात्री पथ पर अवैध निर्माण माना गया था और एक दशक तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद ध्वस्त किया गया, वह मंदिर कुछ ही मीटर दूर दोबारा बन गया है. लेकिन इसकी वजह से कोई परिणाम भुगतना तो दूर, इस निर्माण का स्वागत हुआ है.
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