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पॉडकास्ट: ‘यहां गरीबों को सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए बड़ी संख्या में मरना पड़ता है’

उत्तराखंड के चमोली में आई आपदा को एक महीना बीत गया है. इस हादसे में 60 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी है. जबकि बहुत सारे लोग अभी भी लापता हैं. उत्तरखंड का यह इलाका लगातार इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है. हालांकि यह एक सवाल भी है कि क्या यह प्राकृतिक आपदा है या फिर कोई मानवजनित समस्या? इससे पहले यहां 2013 में केदारनाथ की भीषण आपदा हो चुकी है, जिसमें आधिकारिक तौर पर दस हजार के करीब लोग या तो मारे गए या लापता हुए. इस पूरी घटना और इसके पर्यावरणीय पहलू पर पत्रकार हृदयेश जोशी लगातार काम करते रहे हैं. हृदयेश ने चमोली की आपदा को न्यूज़लॉन्ड्री के लिए ग्राउंड ज़ीरो से कवर किया. इनकी चार हिस्सों की रिपोर्ट श्रृंखला न्यूज़लॉन्ड्री की वेबसाइट पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है. हृदयेश के ग्राउंड ज़ीरों के अनुभव को साझा करने के लिए हमने यह विशेष पॉडकास्ट बनाया है.

इस पॉडकास्ट के जरिए हमने उत्तराखंड में पर्यारण के साथ जारी मानवीय खिलवाड़ और हिमालय की नाजुक पारिस्थितकी तंत्र का भी एक विश्लेषण किया है. चमोली आपदा के साथ-साथ उत्तराखंड में लगातार आने वाली आपदाओं के बारे में भी हृदयेश ने विस्तार से बताया है. इस पॉडकास्ट का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

त्रासदी से जुड़े एक सवाल के जवाब में हृदयेश कहते हैं, "यह सबसे बड़ी त्रासदी है कि गरीबों को हमेशा खबर में आने के लिए और सरकार से अपनी कुछ देखभाल करवाने के लिए बड़ी संख्या में मरना पड़ता है."

अतुल वहां की मौजूदा स्थिति के बारे में पूछते हैं जसके जवाब में वह बताते हैं, "वहां लापता हुए आधे से ज्यादा लोगों का कुछ पता नहीं है. 20 फीसदी मिले लोगों में उनका पूरा शरीर नहीं मिला है, वह मानव अंगों के रूप में मिले हैं.”

इस पूरे पॉडकास्ट में दोनों पत्रकारों ने इस तरह की कई ज्ञात-अज्ञात जानकारियों और घटनाओं पर बातचीत की. पूरी बातचीत के लिए यह हमारा विशेष पॉडकास्ट सुनें-

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उत्तराखंड के चमोली में आई आपदा को एक महीना बीत गया है. इस हादसे में 60 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी है. जबकि बहुत सारे लोग अभी भी लापता हैं. उत्तरखंड का यह इलाका लगातार इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है. हालांकि यह एक सवाल भी है कि क्या यह प्राकृतिक आपदा है या फिर कोई मानवजनित समस्या? इससे पहले यहां 2013 में केदारनाथ की भीषण आपदा हो चुकी है, जिसमें आधिकारिक तौर पर दस हजार के करीब लोग या तो मारे गए या लापता हुए. इस पूरी घटना और इसके पर्यावरणीय पहलू पर पत्रकार हृदयेश जोशी लगातार काम करते रहे हैं. हृदयेश ने चमोली की आपदा को न्यूज़लॉन्ड्री के लिए ग्राउंड ज़ीरो से कवर किया. इनकी चार हिस्सों की रिपोर्ट श्रृंखला न्यूज़लॉन्ड्री की वेबसाइट पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है. हृदयेश के ग्राउंड ज़ीरों के अनुभव को साझा करने के लिए हमने यह विशेष पॉडकास्ट बनाया है.

इस पॉडकास्ट के जरिए हमने उत्तराखंड में पर्यारण के साथ जारी मानवीय खिलवाड़ और हिमालय की नाजुक पारिस्थितकी तंत्र का भी एक विश्लेषण किया है. चमोली आपदा के साथ-साथ उत्तराखंड में लगातार आने वाली आपदाओं के बारे में भी हृदयेश ने विस्तार से बताया है. इस पॉडकास्ट का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

त्रासदी से जुड़े एक सवाल के जवाब में हृदयेश कहते हैं, "यह सबसे बड़ी त्रासदी है कि गरीबों को हमेशा खबर में आने के लिए और सरकार से अपनी कुछ देखभाल करवाने के लिए बड़ी संख्या में मरना पड़ता है."

अतुल वहां की मौजूदा स्थिति के बारे में पूछते हैं जसके जवाब में वह बताते हैं, "वहां लापता हुए आधे से ज्यादा लोगों का कुछ पता नहीं है. 20 फीसदी मिले लोगों में उनका पूरा शरीर नहीं मिला है, वह मानव अंगों के रूप में मिले हैं.”

इस पूरे पॉडकास्ट में दोनों पत्रकारों ने इस तरह की कई ज्ञात-अज्ञात जानकारियों और घटनाओं पर बातचीत की. पूरी बातचीत के लिए यह हमारा विशेष पॉडकास्ट सुनें-

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