Newslaundry Hindi
कम मानदेय ज्यादा काम, UP रोडवेज़ के 35000 संविदा कर्मियों का खतरे में रोजगार
मेरे पति नीरज परिवहन निगम में ड्राइवर के तौर कार्य करते थे. बस जब दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस समय 53 लोग सवार थे. अगर यात्रियों की चिंता छोड़ वह बस से कूद गये होते तो अधिक से अधिक हाथ-पैर टूटता, उन्होंने ऐसा नहीं किया. बीमा राशि के लिए मैंने परिवहन निगम के अधिकारियों से मुलाकात की तो उन्होंने नीरज के लाइसेंस को ही फर्जी बता दिया. सरकारी होने के इंतजार में उन्होंने 15 वर्षों तक परिवहन निगम की बस चलायी, फर्जी लाइसेंस से? यह कहना है मंशा देवी का जिनके पति की मौत 11 अगस्त 2020 को एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी.
वह आगे कहती हैं, “दुर्घटना के बाद से अभी तक उनका लाइसेंस नहीं मिला कि मैं यह पता लगा सकूं, वह फर्जी था या नहीं. मुझे अभी तक केवल ईपीएफ की सुविधा मिली है. परिवहन निगम की बसों का संचालन पूरी तरह से संविदाकर्मियों पर निर्भर है, लेकिन उनके बाद परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं.”
उत्तर प्रदेश के देवरिया डिपो में कार्यरत चालक नीरज दुबे की बस दिल्ली मार्ग पर सीतापुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. नीरज के वेतन से प्रति वर्ष 344 रुपये बीमा किश्त के तौर पर कटते थे. नीरज दुबे ने देवरिया, गोरखपुर और फिर देवरिया डिपो पर लगातार 15 वर्षों तक काम किया है. यदि उनका लाइसेंस फर्जी था तो 15 वर्षों तक उन्होंने नौकरी कैसे कर ली? क्या जिम्मेदारों ने नियुक्ति के समय लाइसेंस की जांच नहीं की थी?
परिवार को बीमा राशि का भुगतान तो नहीं हुआ लेकिन यात्री राहत कोष से परिवार को आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद है, हालांकि क्षेत्रीय प्रबंधक पीके तिवारी ने नीरज के लाइसेंस को फर्जी बताने के आरोप को खारिज करते हुए कहा, “मैंने ऐसा नहीं कहा था, बीमा रकम के बारे में कंपनी अपने स्तर पर कार्रवाई करेगी.”
संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह कहते हैं, “स्वर्गीय नीरज की पत्नी के साथ मैं भी मौजूद था. मैंने पूछा यदि नीरज का लाइसेंस फर्जी था तो उसकी नियुक्ति कैसे हो गई? यह सुनते ही क्षेत्रीय प्रबंधक भड़क गये. बीमा सुविधा के तहत परिवार को 5 लाख रुपये मिलना चाहिए. फर्जी लाइसेंस का बहाना बनाकर नीरज के परिवार को बीमा राशि से वंचित किया जा रहा है.“
संविदाकर्मियों का आरोप- क्षेत्रीय प्रबंधक रखते हैं द्वेष की भावना
कम मानदेय, अधिकारियों के उदासीन रवैये और शिकायतों पर सुनावाई ना होने से संविदाकर्मियों में पहले से ही असंतोष व्याप्त था. 5 अक्टूबर 2020 को संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति ने क्षेत्रीय प्रबंधक को कार्यालय पर धरना प्रदर्शन का नोटिस दिया. समिति के पदाधिकारियों का आरोप है कि संविदाकर्मियों के प्रति द्वेष की भावना रखने वाले क्षेत्रीय प्रबंधक ने परिसर के गेट पर ही ताला लगवा दिया.
5 अक्टूबर 2020 को देवरिया बस स्टेशन पर सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक ने पूर्व चालक अवधेश तिवारी से विवाद के बाद घटना में संलिप्तता का आरोप लगाकर संगठन के क्षेत्रीय मंत्री अवनीश त्रिपाठी और अध्यक्ष सुरेन्द्र यादव के खिलाफ कोतवाली थाना देवरिया में एफआइआर दर्ज करवा दी. जमानत मिलने के चार महीने बाद दोनों कर्मियों को पडरौना भेज दिया गया है.
अवनीश का कहना है कि “संविदाकर्मियों के मुद्दों पर हम लोग सक्रिय रहते हैं, जो अधिकारियों को पसंद नहीं आता. हमें दबाने के लिए केस दर्ज करवाया गया है.”
संविदाकर्मियों का आरोप है कि द्वेष भावना के कारण ही गोरखपुर डिपो परिसर के एक कमरे से 16 जनवरी 2021 की रात 9 बजे से कर्मियों को सामान सहित बाहर निकाल दिया गया. संविदाकर्मियों ने बताया कि 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक ने उन्हें यह कमरा आवंटित किया था. गोरखपुर डिपो के मंत्री सतीश चंद्र चौबे का कहना है, “डिपो का कैश काउंटर रात में 10 बजे बंद हो जाता है. इसके बाद डिपो पर आने वाले परिचालकों को रात भर नकदी अपने पास रखना होता है, कोई सुरक्षित कमरा नहीं होने के कारण परिचालक बसों में ही सोने को मजबूर होते हैं.“
संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति ने 18 जनवरी 2021 को गोरखपुर में बैठक कर सात सूत्रीय मांगों की सूची तैयार की. निर्णय लिया गया कि 3 फरवरी 2021 तक यदि मांगें नहीं मानी गईं तो 4 व 5 फरवरी को संविदाकर्मी देवरिया डिपो पर प्रदर्शन करेंगे. फिर भी कार्रवाई नहीं हुई तो 6 फरवरी 2021 को गोरखपुर डिपो पर प्रदर्शन करेंगे. इन प्रदर्शनों के बाद भी संविदाकर्मियों की मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई है.
कम यात्री का बहाना, नहीं दे रहे प्रोत्साहन राशि
संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति के प्रदेश सचिव मोहम्मद जमाल के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के अंतर्गत कार्य करने वाले संविदाकर्मियों की संख्या करीब 35,000 है. सबसे अधिक 17,500 परिचालक, 11,500 चालक और शेष 6,500 वर्कशॉप या अन्य पदों पर काम करने वाले कर्मचारी हैं. परिवहन निगम के मातहत अनुबंधित बसें भी चलती हैं जिनके चालक बस मालिक रखते हैं और परिचालक निगम के ही होते हैं. यही कारण है कि चालकों की तुलना में परिचालकों की संख्या अधिक है.
संविदा चालक व परिचालकों को भी तीन अलग-अलग श्रेणियों उत्कृष्ट, उत्तम और सामान्य के तहत नियुक्त किया गया है. उत्कृष्ट चालक और परिचालकों को 10,000 रुपये और लगातार 22 दिनों तक काम करने पर 7,000 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है. उत्तम श्रेणी के कर्मियों को 10,000 रुपये और 4,000 प्रोत्साहन राशि दी जाती है. वहीं सामान्य श्रेणी के कर्मियों को प्रति किलोमीटर 1.5 रुपये की दर से भुगतान किया जाता है और 22 दिन काम करने और 5,000 किमी तक चलने पर 3,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है.
जमाल कहते हैं, "लॉकडाउन लागू होने के बाद यात्रियों की संख्या कम हो गई तो कम आय के नाम पर हमें प्रोत्साहन राशि नहीं दी जा रही है. कम यात्री होने पर हमे प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है लेकिन अधिक यात्री मिलने पर संविदाकर्मियों को इसका कोई लाभ नहीं होता है."
स्थायी कर्मियों के वेतन पर निगम के आय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. प्रोत्साहन राशि का भुगतान नहीं होने पर संविदाकर्मियों को प्रति माह 8,800 रुपये मिलते हैं.
परिवहन निगम के निजीकरण होने की सूचनाओं से भी निगम के कर्मी चिंतित हैं. सरकारें लगातार विनिवेश के जरिये सार्वजनिक संस्थाओं को निजी हाथों में सौंप रही हैं. ऐसे में स्थायी रोजगार की संभावनाएं लगातार कम हो रही हैं. संविदा या आउटसोर्सिंग के जरिये जिन्हें रोजगार मिल भी रहा है, उन्हें पैसे भी कम मिलते हैं और सिर पर हर समय बेरोजगार होने का खतरा मंडराता है.
जमाल बताते हैं, “15-16 वर्षों से सेवा देने के बाद भी हमारा रोजगार सुरक्षित नहीं है. मामूली बातों पर भी अधिकारी कर्मियों की संविदा समाप्त कर देते हैं और कहीं भी सुनवाई नहीं होती है.”
निजीकरण के खिलाफ एकजुट हो रहे कर्मचारी
परिवहन निगम के निजीकरण की ओर सरकार के बढ़ते कदम से भी निगम के कर्मचारी चिंतित हैं. निजीकरण की प्रक्रिया के संगठित विरोध के लिए निगम के कर्मचारियों और अधिकारियों ने कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा का गठन किया है. मोर्चा स्थायी, संविदा व आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है और परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने के सख्त खिलाफ है.
निजीकरण को परिवहन निगम और कर्मचारियों के हितों के लिए गंभीर खतरा बताते हुए कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के महासचिव और रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के मंत्री गिरीश चन्द्र मिश्र कहते हैं, "सरकारें परिवहन निगम को सीधे निजी हाथों में सौंपने के बजाय टुकड़ों में ऐसा कर रही हैं. पिछली सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार बहुत तेजी से निजीकरण की दिशा में फैसले लेकर निगम के हितों को नजरअंदाज कर रही है."
उत्तर प्रदेश में लगभग 2.5 लाख किलोमीटर सड़क मार्ग पक्के व मोटरयान चलाने योग्य हैं जिसमें राष्ट्रीयकृत मार्गों की लंबाई मात्र 17,729 किमी ही है, जो कि कुल पक्की सड़कों का लगभग 7 प्रतिशत है. गत कई दशकों से प्रदेश में नवनिर्मित मार्गों की लंबाई में वृद्धि होने के उपरांत भी राष्ट्रीयकृत मार्गों की लंबाई में वृद्धि नहीं हुई है. प्रदेश की शेष लगभग 2.32 लाख किमी (प्रदेश में कुल पक्की सड़कों का करीब 93 प्रतिशत) निजी संचालन हेतु पहले से ही उपलब्ध है.
गिरीश जोर देकर कहते हैं, "परिवहन निगम के कर्मी खुद की मेहनत की कमाई से वेतन ले रहे हैं, सरकार मदद नहीं करती. पिछले 6 वर्षों से निगम लगातार शुद्ध लाभ में है और विभिन्न कोषों के माध्यम से सरकार को 800 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में अदा कर रही है. फिर भी निगम को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं. प्रदेश के 7 प्रतिशत राष्ट्रीय राजमार्गों पर निजी बसों के संचालन की सरकार ने अनुमति देने के फैसले से निगम की आय में तेजी से गिरावट तो होगी ही साथ ही यात्रियों को भी कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा."
मांगें-
- मृतक नीरज दूबे की पत्नी को देय बीमा धनराशि दी जाये.
- संविदा पर तैनात परिचालक विजय तिवारी को उसी प्रतिभूति पर ड्यूटी पर वापस लिया जाये.
- संगठन का कमरा जिसमें प्रबंधन ने ताला बंद कर दिया है खुलवाया जाये.
- समस्त चालकों व परिचालकों की देय डीडीआर और देय रेस्ट दिलाना सुनिश्चित किया जाये.
- बस स्टेशन से दिल्ली मार्ग के सवारियों को जबरन एजेंसी के कर्मचारियों द्वारा कम किराया का झांसा देकर स्टेशन से ले जाने की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जाये.
- तकनीकी कर्मचारियों के अभाव में बसों का मेंटेनेंस सही ढंग से नहीं हो पा रहा है. इनकी कमी को दूर करने के लिए कर्मचारियों की भर्ती की जाए और कार्यरत आउटसोर्सिंग कर्मियों के भुगतान की तारीख तय की जाये.
(साभार- जनपथ)
मेरे पति नीरज परिवहन निगम में ड्राइवर के तौर कार्य करते थे. बस जब दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस समय 53 लोग सवार थे. अगर यात्रियों की चिंता छोड़ वह बस से कूद गये होते तो अधिक से अधिक हाथ-पैर टूटता, उन्होंने ऐसा नहीं किया. बीमा राशि के लिए मैंने परिवहन निगम के अधिकारियों से मुलाकात की तो उन्होंने नीरज के लाइसेंस को ही फर्जी बता दिया. सरकारी होने के इंतजार में उन्होंने 15 वर्षों तक परिवहन निगम की बस चलायी, फर्जी लाइसेंस से? यह कहना है मंशा देवी का जिनके पति की मौत 11 अगस्त 2020 को एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी.
वह आगे कहती हैं, “दुर्घटना के बाद से अभी तक उनका लाइसेंस नहीं मिला कि मैं यह पता लगा सकूं, वह फर्जी था या नहीं. मुझे अभी तक केवल ईपीएफ की सुविधा मिली है. परिवहन निगम की बसों का संचालन पूरी तरह से संविदाकर्मियों पर निर्भर है, लेकिन उनके बाद परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं.”
उत्तर प्रदेश के देवरिया डिपो में कार्यरत चालक नीरज दुबे की बस दिल्ली मार्ग पर सीतापुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. नीरज के वेतन से प्रति वर्ष 344 रुपये बीमा किश्त के तौर पर कटते थे. नीरज दुबे ने देवरिया, गोरखपुर और फिर देवरिया डिपो पर लगातार 15 वर्षों तक काम किया है. यदि उनका लाइसेंस फर्जी था तो 15 वर्षों तक उन्होंने नौकरी कैसे कर ली? क्या जिम्मेदारों ने नियुक्ति के समय लाइसेंस की जांच नहीं की थी?
परिवार को बीमा राशि का भुगतान तो नहीं हुआ लेकिन यात्री राहत कोष से परिवार को आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद है, हालांकि क्षेत्रीय प्रबंधक पीके तिवारी ने नीरज के लाइसेंस को फर्जी बताने के आरोप को खारिज करते हुए कहा, “मैंने ऐसा नहीं कहा था, बीमा रकम के बारे में कंपनी अपने स्तर पर कार्रवाई करेगी.”
संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह कहते हैं, “स्वर्गीय नीरज की पत्नी के साथ मैं भी मौजूद था. मैंने पूछा यदि नीरज का लाइसेंस फर्जी था तो उसकी नियुक्ति कैसे हो गई? यह सुनते ही क्षेत्रीय प्रबंधक भड़क गये. बीमा सुविधा के तहत परिवार को 5 लाख रुपये मिलना चाहिए. फर्जी लाइसेंस का बहाना बनाकर नीरज के परिवार को बीमा राशि से वंचित किया जा रहा है.“
संविदाकर्मियों का आरोप- क्षेत्रीय प्रबंधक रखते हैं द्वेष की भावना
कम मानदेय, अधिकारियों के उदासीन रवैये और शिकायतों पर सुनावाई ना होने से संविदाकर्मियों में पहले से ही असंतोष व्याप्त था. 5 अक्टूबर 2020 को संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति ने क्षेत्रीय प्रबंधक को कार्यालय पर धरना प्रदर्शन का नोटिस दिया. समिति के पदाधिकारियों का आरोप है कि संविदाकर्मियों के प्रति द्वेष की भावना रखने वाले क्षेत्रीय प्रबंधक ने परिसर के गेट पर ही ताला लगवा दिया.
5 अक्टूबर 2020 को देवरिया बस स्टेशन पर सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक ने पूर्व चालक अवधेश तिवारी से विवाद के बाद घटना में संलिप्तता का आरोप लगाकर संगठन के क्षेत्रीय मंत्री अवनीश त्रिपाठी और अध्यक्ष सुरेन्द्र यादव के खिलाफ कोतवाली थाना देवरिया में एफआइआर दर्ज करवा दी. जमानत मिलने के चार महीने बाद दोनों कर्मियों को पडरौना भेज दिया गया है.
अवनीश का कहना है कि “संविदाकर्मियों के मुद्दों पर हम लोग सक्रिय रहते हैं, जो अधिकारियों को पसंद नहीं आता. हमें दबाने के लिए केस दर्ज करवाया गया है.”
संविदाकर्मियों का आरोप है कि द्वेष भावना के कारण ही गोरखपुर डिपो परिसर के एक कमरे से 16 जनवरी 2021 की रात 9 बजे से कर्मियों को सामान सहित बाहर निकाल दिया गया. संविदाकर्मियों ने बताया कि 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक ने उन्हें यह कमरा आवंटित किया था. गोरखपुर डिपो के मंत्री सतीश चंद्र चौबे का कहना है, “डिपो का कैश काउंटर रात में 10 बजे बंद हो जाता है. इसके बाद डिपो पर आने वाले परिचालकों को रात भर नकदी अपने पास रखना होता है, कोई सुरक्षित कमरा नहीं होने के कारण परिचालक बसों में ही सोने को मजबूर होते हैं.“
संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति ने 18 जनवरी 2021 को गोरखपुर में बैठक कर सात सूत्रीय मांगों की सूची तैयार की. निर्णय लिया गया कि 3 फरवरी 2021 तक यदि मांगें नहीं मानी गईं तो 4 व 5 फरवरी को संविदाकर्मी देवरिया डिपो पर प्रदर्शन करेंगे. फिर भी कार्रवाई नहीं हुई तो 6 फरवरी 2021 को गोरखपुर डिपो पर प्रदर्शन करेंगे. इन प्रदर्शनों के बाद भी संविदाकर्मियों की मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई है.
कम यात्री का बहाना, नहीं दे रहे प्रोत्साहन राशि
संविदा चालक/परिचालक संघर्ष समिति के प्रदेश सचिव मोहम्मद जमाल के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के अंतर्गत कार्य करने वाले संविदाकर्मियों की संख्या करीब 35,000 है. सबसे अधिक 17,500 परिचालक, 11,500 चालक और शेष 6,500 वर्कशॉप या अन्य पदों पर काम करने वाले कर्मचारी हैं. परिवहन निगम के मातहत अनुबंधित बसें भी चलती हैं जिनके चालक बस मालिक रखते हैं और परिचालक निगम के ही होते हैं. यही कारण है कि चालकों की तुलना में परिचालकों की संख्या अधिक है.
संविदा चालक व परिचालकों को भी तीन अलग-अलग श्रेणियों उत्कृष्ट, उत्तम और सामान्य के तहत नियुक्त किया गया है. उत्कृष्ट चालक और परिचालकों को 10,000 रुपये और लगातार 22 दिनों तक काम करने पर 7,000 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है. उत्तम श्रेणी के कर्मियों को 10,000 रुपये और 4,000 प्रोत्साहन राशि दी जाती है. वहीं सामान्य श्रेणी के कर्मियों को प्रति किलोमीटर 1.5 रुपये की दर से भुगतान किया जाता है और 22 दिन काम करने और 5,000 किमी तक चलने पर 3,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है.
जमाल कहते हैं, "लॉकडाउन लागू होने के बाद यात्रियों की संख्या कम हो गई तो कम आय के नाम पर हमें प्रोत्साहन राशि नहीं दी जा रही है. कम यात्री होने पर हमे प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है लेकिन अधिक यात्री मिलने पर संविदाकर्मियों को इसका कोई लाभ नहीं होता है."
स्थायी कर्मियों के वेतन पर निगम के आय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. प्रोत्साहन राशि का भुगतान नहीं होने पर संविदाकर्मियों को प्रति माह 8,800 रुपये मिलते हैं.
परिवहन निगम के निजीकरण होने की सूचनाओं से भी निगम के कर्मी चिंतित हैं. सरकारें लगातार विनिवेश के जरिये सार्वजनिक संस्थाओं को निजी हाथों में सौंप रही हैं. ऐसे में स्थायी रोजगार की संभावनाएं लगातार कम हो रही हैं. संविदा या आउटसोर्सिंग के जरिये जिन्हें रोजगार मिल भी रहा है, उन्हें पैसे भी कम मिलते हैं और सिर पर हर समय बेरोजगार होने का खतरा मंडराता है.
जमाल बताते हैं, “15-16 वर्षों से सेवा देने के बाद भी हमारा रोजगार सुरक्षित नहीं है. मामूली बातों पर भी अधिकारी कर्मियों की संविदा समाप्त कर देते हैं और कहीं भी सुनवाई नहीं होती है.”
निजीकरण के खिलाफ एकजुट हो रहे कर्मचारी
परिवहन निगम के निजीकरण की ओर सरकार के बढ़ते कदम से भी निगम के कर्मचारी चिंतित हैं. निजीकरण की प्रक्रिया के संगठित विरोध के लिए निगम के कर्मचारियों और अधिकारियों ने कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा का गठन किया है. मोर्चा स्थायी, संविदा व आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है और परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने के सख्त खिलाफ है.
निजीकरण को परिवहन निगम और कर्मचारियों के हितों के लिए गंभीर खतरा बताते हुए कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के महासचिव और रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के मंत्री गिरीश चन्द्र मिश्र कहते हैं, "सरकारें परिवहन निगम को सीधे निजी हाथों में सौंपने के बजाय टुकड़ों में ऐसा कर रही हैं. पिछली सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार बहुत तेजी से निजीकरण की दिशा में फैसले लेकर निगम के हितों को नजरअंदाज कर रही है."
उत्तर प्रदेश में लगभग 2.5 लाख किलोमीटर सड़क मार्ग पक्के व मोटरयान चलाने योग्य हैं जिसमें राष्ट्रीयकृत मार्गों की लंबाई मात्र 17,729 किमी ही है, जो कि कुल पक्की सड़कों का लगभग 7 प्रतिशत है. गत कई दशकों से प्रदेश में नवनिर्मित मार्गों की लंबाई में वृद्धि होने के उपरांत भी राष्ट्रीयकृत मार्गों की लंबाई में वृद्धि नहीं हुई है. प्रदेश की शेष लगभग 2.32 लाख किमी (प्रदेश में कुल पक्की सड़कों का करीब 93 प्रतिशत) निजी संचालन हेतु पहले से ही उपलब्ध है.
गिरीश जोर देकर कहते हैं, "परिवहन निगम के कर्मी खुद की मेहनत की कमाई से वेतन ले रहे हैं, सरकार मदद नहीं करती. पिछले 6 वर्षों से निगम लगातार शुद्ध लाभ में है और विभिन्न कोषों के माध्यम से सरकार को 800 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में अदा कर रही है. फिर भी निगम को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं. प्रदेश के 7 प्रतिशत राष्ट्रीय राजमार्गों पर निजी बसों के संचालन की सरकार ने अनुमति देने के फैसले से निगम की आय में तेजी से गिरावट तो होगी ही साथ ही यात्रियों को भी कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा."
मांगें-
- मृतक नीरज दूबे की पत्नी को देय बीमा धनराशि दी जाये.
- संविदा पर तैनात परिचालक विजय तिवारी को उसी प्रतिभूति पर ड्यूटी पर वापस लिया जाये.
- संगठन का कमरा जिसमें प्रबंधन ने ताला बंद कर दिया है खुलवाया जाये.
- समस्त चालकों व परिचालकों की देय डीडीआर और देय रेस्ट दिलाना सुनिश्चित किया जाये.
- बस स्टेशन से दिल्ली मार्ग के सवारियों को जबरन एजेंसी के कर्मचारियों द्वारा कम किराया का झांसा देकर स्टेशन से ले जाने की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जाये.
- तकनीकी कर्मचारियों के अभाव में बसों का मेंटेनेंस सही ढंग से नहीं हो पा रहा है. इनकी कमी को दूर करने के लिए कर्मचारियों की भर्ती की जाए और कार्यरत आउटसोर्सिंग कर्मियों के भुगतान की तारीख तय की जाये.
(साभार- जनपथ)
Also Read
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Why one of India’s biggest electoral bond donors is a touchy topic in Bhiwandi
-
‘Govt can’t do anything about court case’: Jindal on graft charges, his embrace of BJP and Hindutva
-
Reporter’s diary: Assam is better off than 2014, but can’t say the same for its citizens
-
‘INDIA coalition set to come to power’: RJD’s Tejashwi Yadav on polls, campaign and ECI