Newslaundry Hindi
एसओई 2021: कहीं डेढ़ गुना तो कहीं दोगुना बढ़ा औद्योगिक प्रदूषण
भारत में औद्योगिक प्रदूषण का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी और एसपीसीबी) द्वारा प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों के रूप में पहचाने गए 88 इंडस्ट्रियल क्लस्टर (औद्योगिक क्षेत्रों) के मूल्यांकन से ये तथ्य सामने आए हैं कि देश में हवा, जल और भूमि प्रदूषण की स्थिति और भयावह हुई है. यह रिपोर्ट सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के सहयोग से डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वारा प्रकाशित वार्षिक प्रकाशन “स्टेट ऑफ इंडिया'ज एनवायरमेंट” शीर्षक से प्रकाशित हुई है.
स्टेट ऑफ इंडिया'ज एनवायरमेंट के मुताबिक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2009 में कंप्रीहेंसिव एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन इंडेक्स (सीईपीआई) बनाया था, जो किसी स्थान की पर्यावरण गुणवत्ता और गंभीर रूप से प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान करता है. सीईपीआई आंकड़ों के अनुसार, 2009 और 2018 के बीच 88 औद्योगिक क्षेत्रों (इंडस्ट्रियल क्लस्टर) में से 33 में वायु प्रदूषण की हालत चिंताजनक थी.
दिल्ली के नजफगढ़ ड्रेन बेसिन में, सीईपीआई वायु गुणवत्ता (एयर क्वालिटी) स्कोर 2009 के 52 से बढ़कर 2018 में 85 हो गया. मथुरा (उत्तर प्रदेश) का स्कोर 2009 में 48 था, जो 2018 में 86 तक पहुंच गया. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर-खुर्जा क्षेत्र में ये लेवल दोगुना हो गया, यानी 2008 के 42 से बढ़कर 2018 में 79 हो गया. गजरौला (उत्तर प्रदेश) और सिलतारा (छत्तीसगढ़) के लिए ये स्कोर 2018 में 70 से अधिक का था.
इसी अवधि में 88 क्लस्टरों में से 45 में पानी की गुणवत्ता खराब हो गई. 2018 में, सांगानेर (राजस्थान) और गुरुग्राम (हरियाणा) का सीईपीआई जल गुणवत्ता (वाटर क्वालिटी) स्कोर 70 से अधिक था. तारापुर (महाराष्ट्र), कानपुर (उत्तर प्रदेश) और वाराणसी-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का भी स्कोर 80 या 80 से अधिक था.
सीईपीआई 2009 और 2018 के आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि 88 इंडस्ट्रियल क्लस्टर में से 17 में भूमि प्रदूषण बढ़ा है. यहां सबसे खराब प्रदर्शन मनाली का रहा है, जिसका सीईपीआई स्कोर 2009 के 58 से बढ़कर 2018 में 71 हो गया.
समग्र सीईपीआई स्कोर की बात करें, तो 35 इंडस्ट्रियल क्लस्टर ने पर्यावरणीय क्षरण में वृद्धि का संकेत दिया है. तारापुर (महाराष्ट्र में) की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है, जहां एसओई के मुताबिक 2018 में इसका ओवरऑल सीईपीआई स्कोर 96 से अधिक था और ये उच्चतम स्कोर है.
सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई (इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन यूनिट) के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव कहते हैं, "ये निष्कर्ष अपने आप में पूरी कहानी को साफ कर देते हैं. सीईपीआई डेटा स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उन क्षेत्रों में भी प्रदूषण को नियंत्रित करने और कम करने के लिए वर्षों से कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिनकी पहचान पहले से ही गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र के रूप में की जा चुकी थी.”
(साभार- डाउन टू अर्थ)
भारत में औद्योगिक प्रदूषण का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी और एसपीसीबी) द्वारा प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों के रूप में पहचाने गए 88 इंडस्ट्रियल क्लस्टर (औद्योगिक क्षेत्रों) के मूल्यांकन से ये तथ्य सामने आए हैं कि देश में हवा, जल और भूमि प्रदूषण की स्थिति और भयावह हुई है. यह रिपोर्ट सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के सहयोग से डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वारा प्रकाशित वार्षिक प्रकाशन “स्टेट ऑफ इंडिया'ज एनवायरमेंट” शीर्षक से प्रकाशित हुई है.
स्टेट ऑफ इंडिया'ज एनवायरमेंट के मुताबिक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2009 में कंप्रीहेंसिव एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन इंडेक्स (सीईपीआई) बनाया था, जो किसी स्थान की पर्यावरण गुणवत्ता और गंभीर रूप से प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान करता है. सीईपीआई आंकड़ों के अनुसार, 2009 और 2018 के बीच 88 औद्योगिक क्षेत्रों (इंडस्ट्रियल क्लस्टर) में से 33 में वायु प्रदूषण की हालत चिंताजनक थी.
दिल्ली के नजफगढ़ ड्रेन बेसिन में, सीईपीआई वायु गुणवत्ता (एयर क्वालिटी) स्कोर 2009 के 52 से बढ़कर 2018 में 85 हो गया. मथुरा (उत्तर प्रदेश) का स्कोर 2009 में 48 था, जो 2018 में 86 तक पहुंच गया. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर-खुर्जा क्षेत्र में ये लेवल दोगुना हो गया, यानी 2008 के 42 से बढ़कर 2018 में 79 हो गया. गजरौला (उत्तर प्रदेश) और सिलतारा (छत्तीसगढ़) के लिए ये स्कोर 2018 में 70 से अधिक का था.
इसी अवधि में 88 क्लस्टरों में से 45 में पानी की गुणवत्ता खराब हो गई. 2018 में, सांगानेर (राजस्थान) और गुरुग्राम (हरियाणा) का सीईपीआई जल गुणवत्ता (वाटर क्वालिटी) स्कोर 70 से अधिक था. तारापुर (महाराष्ट्र), कानपुर (उत्तर प्रदेश) और वाराणसी-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का भी स्कोर 80 या 80 से अधिक था.
सीईपीआई 2009 और 2018 के आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि 88 इंडस्ट्रियल क्लस्टर में से 17 में भूमि प्रदूषण बढ़ा है. यहां सबसे खराब प्रदर्शन मनाली का रहा है, जिसका सीईपीआई स्कोर 2009 के 58 से बढ़कर 2018 में 71 हो गया.
समग्र सीईपीआई स्कोर की बात करें, तो 35 इंडस्ट्रियल क्लस्टर ने पर्यावरणीय क्षरण में वृद्धि का संकेत दिया है. तारापुर (महाराष्ट्र में) की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है, जहां एसओई के मुताबिक 2018 में इसका ओवरऑल सीईपीआई स्कोर 96 से अधिक था और ये उच्चतम स्कोर है.
सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई (इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन यूनिट) के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव कहते हैं, "ये निष्कर्ष अपने आप में पूरी कहानी को साफ कर देते हैं. सीईपीआई डेटा स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उन क्षेत्रों में भी प्रदूषण को नियंत्रित करने और कम करने के लिए वर्षों से कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिनकी पहचान पहले से ही गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र के रूप में की जा चुकी थी.”
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read
-
A conversation that never took off: When Nikhil Kamath’s nervous schoolboy energy met Elon Musk
-
Indigo: Why India is held hostage by one airline
-
2 UP towns, 1 script: A ‘land jihad’ conspiracy theory to target Muslims buying homes?
-
‘River will suffer’: Inside Keonjhar’s farm resistance against ESSAR’s iron ore project
-
Who moved my Hiren bhai?