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112वें महिला दिवस पर जानिए क्या है हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति

आठ मार्च यानी आज के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. हर साल विमेंस डे का एक खास थीम होता है इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम "महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना" रखा गया है. यह थीम कोरोना वायरस महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों आदि के रूप में विश्व भर में महिलाओं के योगदान को रेखांकित करती है.

हम समानता की बात करते हैं और इस समानता को लेकर ही हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मानते हैं लेकिन अभी भी इस समानता को प्राप्त करने के लिए महिलाओं को कई सीढ़िया चढ़नी हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत एक आंदोलन के रूप में हुई थी. आज से लगभग 112 साल पहले 1909 में इसकी शुरुआत हुई थी, जब अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में करीब 15 हजार महिलाओं ने मार्च निकालकर नौकरी में कम घंटों, बेहतर सैलरी और वोटिंग के अधिकार की मांग की थी. यूएन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1977 से महिला दिवस मनाना शुरू किया.

आज के समय में भी महिलाओं की बात की जाए तो कुछ बदला नहीं है, पहले से सुधार है पर स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं है. यूएन वीमेन की रिपोर्ट के अनुसार कोविड के समय में जो महिला फ्रंट लाइन वर्कर्स के तौर पर काम कर रही हैं, उन्हें पुरुषों की तुलना में 11% कम वेतन मिल रहा हैं. यहां तक कि पूरे विश्व में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के अनुसार फ्रंट लाइन वर्कर्स में महिलाओं का योगदान 70% का है, पर स्वास्थ्य क्षेत्र में ग्लोबली केवल 27.7% महिला ही हैं जो इस क्षेत्र का नेतृत्व संभाले हुए हैं. यूएन वीमेन की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना की वजह से 47 मिलियन महिला हैं जिन्हें गरीबी की ओर धकेला गया.

ऐसा केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में ही नहीं है. अगर बात की जाए राजनीति की तो उसमें भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास सुधरी नहीं है. पूरे विश्व में सिर्फ 24.9% महिलाएं हैं जो राष्ट्रीय सांसद के पद पर है. वहीं यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 119 ऐसे देश हैं जहां एक भी महिला नेता नहीं हैं.

वहीं मनोरंजन जगत की बात की जाए तो 11 देशों के सिनेमा जगत में 23% ही ऐसी फिल्में हैं जिनमें महिलाओं को बतौर नायक के रूप में दर्शाया गया है. मीडिया की बात की जाए तो विश्व में मीडिया जगत में उच्च स्तरीय पद पर केवल 27% ही महिलाएं हैं.

ये सब तो विश्व स्तरीय बात रही अब बात करते हैं अपने देश की तो भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 17% का है वहीं ग्लोबली ये आंकड़ा 37% है. महिला श्रम शक्ति की बात की जाए तो 2005 से श्रम शक्ति लगातार घटते जा रहा हैं. इकनोमिक सर्वे के अनुसार 2011-2012 में महिला श्रम शक्ति भागीदारी जो 33.1% हुआ करता था वो 2017-2018 में घटकर 25.3% हो गया. बात कृषि विभाग की करें तो ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 33% महिला कृषि क्षेत्र में श्रमिक की तरह वहीं 48% महिला किसान हैं. जिनमें से केवल 12.8% महिलाएं ऐसी है जिनके पास खुद की ज़मीन हैं.

बात अगर विज्ञान की करें तो मणिपुर विश्विद्यालय के एक सर्वे के अनुसार पूरे देश में 14% महिला ही वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं. आईटी सेक्टर की बात करें तो यहां हालात बाकि जगह से सुधरी है इस क्षेत्र में 34% महिला श्रमिक हैं जो अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देती हैं. राजनीति की बात की जाए तो भारत में 2018 के लोकसभा के चुनाव में 542 में से मात्र 78 सीट महिलाओं के नाम रहीं.

भारत में मीडिया का बोल बाला है ऐसे में इसको कैसे भूल सकते है, यूएन के एक सर्वे के अनुसार भारत में 5% से भी कम मीडिया क्षेत्र में महिलाओं ने लीडरशिप संभाली हैं. वहीं मैगज़ीन की बात की जाए तो 13.6% , टीवी में 20.9% और डिजिटल में 26.3% महिला उच्च पदों पर हैं.

शर्ली चिशोल्म अमेरिका की पहली श्याम कांग्रेस महिला नेता उन्होंने कहा था कि "इफ दे डोंट गिव यू अ सीट एट टेबल ब्रिंग अ फोल्डिंग चेयर" अभी के समय में महिलाओं के लिए ये बात एकदम सटीक बैठती है. अब ऐसा दौर है जब महिलाएं अपना अवसर खुद बनाती हैं. उसके बाद भी आंकड़े पूरे विश्व में महिलाओं की स्थिति को बखूबी बयान कर रहे हैं.

आठ मार्च यानी आज के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. हर साल विमेंस डे का एक खास थीम होता है इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम "महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना" रखा गया है. यह थीम कोरोना वायरस महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों आदि के रूप में विश्व भर में महिलाओं के योगदान को रेखांकित करती है.

हम समानता की बात करते हैं और इस समानता को लेकर ही हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मानते हैं लेकिन अभी भी इस समानता को प्राप्त करने के लिए महिलाओं को कई सीढ़िया चढ़नी हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत एक आंदोलन के रूप में हुई थी. आज से लगभग 112 साल पहले 1909 में इसकी शुरुआत हुई थी, जब अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में करीब 15 हजार महिलाओं ने मार्च निकालकर नौकरी में कम घंटों, बेहतर सैलरी और वोटिंग के अधिकार की मांग की थी. यूएन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1977 से महिला दिवस मनाना शुरू किया.

आज के समय में भी महिलाओं की बात की जाए तो कुछ बदला नहीं है, पहले से सुधार है पर स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं है. यूएन वीमेन की रिपोर्ट के अनुसार कोविड के समय में जो महिला फ्रंट लाइन वर्कर्स के तौर पर काम कर रही हैं, उन्हें पुरुषों की तुलना में 11% कम वेतन मिल रहा हैं. यहां तक कि पूरे विश्व में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के अनुसार फ्रंट लाइन वर्कर्स में महिलाओं का योगदान 70% का है, पर स्वास्थ्य क्षेत्र में ग्लोबली केवल 27.7% महिला ही हैं जो इस क्षेत्र का नेतृत्व संभाले हुए हैं. यूएन वीमेन की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना की वजह से 47 मिलियन महिला हैं जिन्हें गरीबी की ओर धकेला गया.

ऐसा केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में ही नहीं है. अगर बात की जाए राजनीति की तो उसमें भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास सुधरी नहीं है. पूरे विश्व में सिर्फ 24.9% महिलाएं हैं जो राष्ट्रीय सांसद के पद पर है. वहीं यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 119 ऐसे देश हैं जहां एक भी महिला नेता नहीं हैं.

वहीं मनोरंजन जगत की बात की जाए तो 11 देशों के सिनेमा जगत में 23% ही ऐसी फिल्में हैं जिनमें महिलाओं को बतौर नायक के रूप में दर्शाया गया है. मीडिया की बात की जाए तो विश्व में मीडिया जगत में उच्च स्तरीय पद पर केवल 27% ही महिलाएं हैं.

ये सब तो विश्व स्तरीय बात रही अब बात करते हैं अपने देश की तो भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 17% का है वहीं ग्लोबली ये आंकड़ा 37% है. महिला श्रम शक्ति की बात की जाए तो 2005 से श्रम शक्ति लगातार घटते जा रहा हैं. इकनोमिक सर्वे के अनुसार 2011-2012 में महिला श्रम शक्ति भागीदारी जो 33.1% हुआ करता था वो 2017-2018 में घटकर 25.3% हो गया. बात कृषि विभाग की करें तो ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 33% महिला कृषि क्षेत्र में श्रमिक की तरह वहीं 48% महिला किसान हैं. जिनमें से केवल 12.8% महिलाएं ऐसी है जिनके पास खुद की ज़मीन हैं.

बात अगर विज्ञान की करें तो मणिपुर विश्विद्यालय के एक सर्वे के अनुसार पूरे देश में 14% महिला ही वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं. आईटी सेक्टर की बात करें तो यहां हालात बाकि जगह से सुधरी है इस क्षेत्र में 34% महिला श्रमिक हैं जो अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देती हैं. राजनीति की बात की जाए तो भारत में 2018 के लोकसभा के चुनाव में 542 में से मात्र 78 सीट महिलाओं के नाम रहीं.

भारत में मीडिया का बोल बाला है ऐसे में इसको कैसे भूल सकते है, यूएन के एक सर्वे के अनुसार भारत में 5% से भी कम मीडिया क्षेत्र में महिलाओं ने लीडरशिप संभाली हैं. वहीं मैगज़ीन की बात की जाए तो 13.6% , टीवी में 20.9% और डिजिटल में 26.3% महिला उच्च पदों पर हैं.

शर्ली चिशोल्म अमेरिका की पहली श्याम कांग्रेस महिला नेता उन्होंने कहा था कि "इफ दे डोंट गिव यू अ सीट एट टेबल ब्रिंग अ फोल्डिंग चेयर" अभी के समय में महिलाओं के लिए ये बात एकदम सटीक बैठती है. अब ऐसा दौर है जब महिलाएं अपना अवसर खुद बनाती हैं. उसके बाद भी आंकड़े पूरे विश्व में महिलाओं की स्थिति को बखूबी बयान कर रहे हैं.