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पत्रकारों ने ग्रुप ऑफ मिनिस्टर की रिपोर्ट और बैठक से पल्ला झाड़ा

जून 2020 में मोदी सरकार ने सरकार के "10 बड़े कथानकों" को अच्छे से बता पाने की नीतियां जानने के लिए "मीडिया क्षेत्र के वरिष्ठ लोगों से संपर्क किया." यह पहल, जिसका नेतृत्व केंद्रीय मंत्रियों का प्रधानमंत्री से "प्रेरित" दल कर रहा था, ने उसी साल केंद्रीय सचिवालय में दाखिल हुई एक रिपोर्ट में अपने सुझावों को पेश किया.

यह रिपोर्ट, जिसके कुछ अंशों की समीक्षा न्यूज़लॉन्ड्री ने भी की है, दावा करती है कि केंद्र ने कुछ पत्रकारों और संपादकों से उपरोक्त विषय में "परामर्श" लिया. इन पत्रकारों और संपादकों में डेक्कन हेराल्ड के राजनैतिक संपादक शेखर अय्यर, Earshot.in के प्रधान संपादक अभिजीत मजूमदार, स्ट्रैटेजिक न्यूज़ ग्लोबल के प्रधान संपादक नितिन गोखले और दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय भी थे.

रिपोर्ट में कई पूर्व पत्रकारों जैसे कंचन गुप्ता, अशोक मलिक, स्वपन दासगुप्ता, सूर्य प्रकाश, सुनील रमन और अशोक टंडन के द्वारा की गई "विवेचना* और "टिप्पणियां" भी हैं.

सरकार की इस रिपोर्ट में प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वैंपति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक बताए जाने वाले एस गुरुमूर्ति और हिंदू राष्ट्रवाद की बात करने वाली वेबसाइट ऑप इंडिया की संपादक नूपुर शर्मा, के मतों को भी रखा गया था.

रिपोर्ट के मीडिया कर्मियों से जुड़े हुए कई हिस्से 3 बैठकों में इकट्ठा किए गए. इनमें से पहली बैठक राज्य मंत्री किरण रिजिजू के घर पर थी जिसमें अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी भी मौजूद थे. बाकी दोनों बैठक वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुईं, जिनको होस्ट कपड़ा व महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने किया था और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी उसका हिस्सा थे.

दिसंबर 2020 में हिंदुस्तान टाइम्स ने पहली बार इस दस्तावेज पर रिपोर्ट की और कई उन कथानकों की जानकारी दी जो केंद्र सरकार की निगाह में अच्छे से गढ़े जाने के लिए थे, जैसे कि आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्वच्छ भारत. अखबार ने बताया कि उन्होंने रिपोर्ट की एक प्रति की अच्छे से समीक्षा की और दो सरकारी अफसरों, जिन्होंने अपनी पहचान गुप्त रखी, के हवाले से रिपोर्ट में कई बातों की पुष्टि की थी.

रिपोर्ट पर किसी भी मंत्री के हस्ताक्षर और कोई भी आधिकारिक सील या स्टैंप न होने के बाद भी, अभी तक सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल नहीं उठाए गए हैं. गुरुवार को मुख्तार अब्बास नकवी ने हिंदू अखबार को बताया कि उनको ऐसी किसी रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

4 मार्च को कारवां पत्रिका में रिपोर्ट के हवाले से कई पत्रकारों, संपादकों और प्रसिद्ध व्यक्तियों के वक्तव्य पर एक विस्तृत लेख छपा.

न्यूजलॉन्ड्री ने रिपोर्ट में नामजद कई लोगों से उनकी तथाकथित टिप्पणियों पर बात की. जहां मंत्रियों किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी वाली बैठक में शामिल लोगों ने अपने लिए कही गई बातों को खारिज कर दिया, वहीं स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर वाले वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए लोगों ने ऐसा संकेत दिया कि रिपोर्ट की भाषा को तोड़ मरोड़ और बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है.

'हम तो वहां गलवान के लिए थे'

रिपोर्ट दावा करती है कि किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी की मेजबानी वाली बैठक में 12 पत्रकार थे. रिपोर्ट के अनुसार आलोक मेहता, जयंत घोषाल, शिशिर गुप्ता, प्रफुल्ल केतकर, महुआ चटर्जी, निस्तुला हैबार, अमिताभ सिन्हा, आशुतोष, रामनारायण, रवीश तिवारी, हिमांशु मिश्रा और रविंद्र ने इस बैठक में हिस्सा लिया था.

रिपोर्ट इस समूह की और से 12 "विचार/सुझाव" प्रस्तुत करती है जिनमें से कुछ साधारण और कुछ हैरान करने वाली हैं.

जैसे कि, "करीब 75% मीडिया के लोग नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हैं और विचारधारा के स्तर पर पार्टी के साथ हैं."

या, "सरकार और मीडिया के बीच में मतभेद बढ़ गए हैं और इससे निपटना चाहिए."

कथित तौर पर पत्रकारों ने यह सुझाव दिया कि "विदेशी मीडिया से संवाद रुकना चाहिए क्योंकि उसके परिणाम आशा के विपरीत आ रहे हैं."

इस खंड में जिन दो पत्रकारों का गुप्त रूप से हवाला दिया गया है, उनका मीडिया संस्थान उन्हें आधिकारिक टिप्पणी देने से प्रतिबंधित करता है. इसीलिए उन्होंने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर ही बात की.

एक पत्रकार जिसने इस बैठक में हिस्सा लिया था ने कहां कि मंत्री रिजिजू के घर पर कॉन्फ्रेंस रूम में 12 से अधिक पत्रकार थे.

भारत और चीनी सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हुई झड़प की बात कहते हुए यह पत्रकार बताते हैं, "हमें एक दिन पहले किरण रिजिजू के घर पर जाने के लिए कहा गया क्योंकि वह गलवान के एकदम बाद ही का समय था. हमें वहां जयशंकर से मिलना था जो हमें झड़प से जुड़ी जानकारियां देते. मैंने अपनी ब्यूरो को भी इस बारे में खबर कर दी थी लेकिन वह आए ही नहीं."

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मंत्रियों के इस दल का हिस्सा हैं जिन्हें कथानक गढने की जिम्मेदारी दी गई है. इस दल में उनके साथ कानून एवं सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ-साथ राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो, हरदीप सिंह पुरी और अनुराग ठाकुर भी थे.

यह पत्रकार कहते हैं कि उनके दल को सरकार के संवाद पर हुए विमर्श के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे रिपोर्ट में दिए गए निष्कर्षों की सत्यता पर शंका जताते हैं. वे विदेशी पत्रकारों वाली बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, "मुझे याद नहीं है कि किसी ने भी यह बातें कही हों. ऐसी बातचीत में सरकार मीडिया का नहीं बल्कि इससे उल्टा मीडिया सरकार का इंटरव्यू लेता है."

एक दूसरे पत्रकार ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि जयशंकर के मौजूद न होने के चलते, किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी ने सरकार की मीडिया नीति को लेकर चाय पर सभी से गहन बातचीत की.

यह पत्रकार कहते हैं, "हमने उन्हें बताया कि मीडिया संस्थानों को अपने लेख हटाने के लिए कहने का कोई अर्थ नहीं जब सरकार भेजे गए सवालों का जवाब ही नहीं देती." वे यह भी बताते हैं कि किसी भी पत्रकार ने "75 प्रतिशत मीडिया" प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी का समर्थन करता है, ऐसा नहीं कहा.

कारवां पत्रिका की रिपोर्ट पर जनता की प्रतिक्रिया पर पत्रकार ने कहा, "मैंने आज तक किसी बैठक में जाने की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाई जैसे इसकी चुकाई है. ऐसा कतई नहीं होना चाहिए."

उस समय पर इंडिया टीवी के राजनैतिक संपादक जयंत घोषाल ने भी यही कहा कि उन्होंने सीमावर्ती झड़पों के बारे में जानकारी देने वाली एक बैठक में हिस्सा लेना स्वीकार किया था. घोषाल कहते हैं, "मैं नहीं जानता कि दो मंत्रियों के साथ गलवान पर हुई बातचीत मंत्रियों के एक समूह में कैसे बदल गई. उस बैठक में मीडिया कवरेज पर हुई कोई भी बातचीत, भारत चीन संबंधों में तनाव के संदर्भ में ही हुई थी."

घोषाल भी इस बात पर कायम थे कि न तो उन्होंने न किसी और पत्रकार ने यह सुझाव दिया कि सरकार को विदेशी पत्रकारों से बात नहीं करनी चाहिए, या 75 प्रतिशत पत्रकार भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं.

हिंदू पब्लिशिंग ग्रुप के निदेशक एन राम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि रिपोर्ट यह नहीं दिखाती की रिपोर्ट में नामित सभी पत्रकार "इस प्रकार के दुष्प्रचार की योजना में किसी तरह से लिप्त थे." दस्तावेज के अनुसार हिंदु की राजनैतिक संपादक निस्तुला हैबार मंत्री रिजिजू के घर पर मौजूद थीं.

एन राम आगे कहते हैं, "यह योजना उनके पीठ पीछे बनाई गई.‌ हो सकता है कि इनमें से कुछ पत्रकार इसके बारे में जानते हों, कुछ इसके साथ हों और कुछ उसमें पूरी तरह से लिप्त हों, लेकिन ऐसे भी होंगे जो इस सब में नहीं थे.”

राम का कहना है कि आदर्श तौर पर पत्रकारों को इस रिपोर्ट पर आधिकारिक रूप से जवाब देना चाहिए, "उससे सरकार पर जवाब देने के लिए दबाव बनेगा. लेकिन वह उन पर निर्भर करता है कि वह अपने पेशे से जुड़े दायित्व को किस तरह से देखते हैं"

रिपोर्ट हिंदुस्तान टाइम्स के एग्जीक्यूटिव एडिटर सुशील गुप्ता और टाइम्स ऑफ इंडिया की एक पत्रकार महुआ चटर्जी को भी नामित करती है. हिंदुस्तान टाइम्स के प्रधान संपादक सुकुमार रंगनाथन ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा कि उनके प्रकाशन की तरफ से इस मामले पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं है. टाइम्स ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव एडिटर दिवाकर अस्थाना ने भी कहा कि अखबार इस पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता.

इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रवीश तिवारी का भी रिपोर्ट में नाम है. शुक्रवार को मंत्री दल से जुड़े दस्तावेज पर एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में रवीश तिवारी ने घोषाल वाली बात ही दोहराई, कि तय बैठक सीमा पर हुई झड़प की "पृष्ठभूमि की जानकारी" देने के लिए जयशंकर के साथ थी.

तिवारी कहते हैं, "किसी ने भी किसी मंत्री दल के बारे में बात नहीं की. जब मैं वहां पहुंचा तो हमें बताया गया कि विदेश मंत्री कहीं फस गए हैं और नहीं पहुंच पाएंगे." उन्होंने यह भी कहा कि "वह आश्चर्यचकित हैं कि एलएसी पर होने वाली एक ऑफ रिकॉर्ड ब्रीफिंग को किस प्रकार एक मंत्री दल की बैठक बनाकर पेश किया गया."

'भगवान ही जाने की यह रिपोर्ट किसने बनाई और यह किस बारे में है'

मंत्रियों रिजिजू और नकवी वाली बैठक से विपरीत, स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर के द्वारा रखी गई वीडियो कॉन्फ्रेंस को लेकर रिपोर्ट कई "जानी-मानी हस्तियों" के हवाले से कई टिप्पणियां उल्लेखित करती है. यह टिप्पणियां सरकार को मीडिया को संभालने, अपनी उपलब्धियों को कैसे प्रचारित करने और आलोचनाओं को नियंत्रित करने की सलाह देती हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, 30 जून 2020 को प्रकाश जावड़ेकर से हुई बातचीत में स्वपन दासगुप्ता, एस गुरुमूर्ति, नितिन गोखले, शेखर अय्यर, सूर्य प्रकाश, अशोक टंडन, अशोक मलिक और शशि शेखर वैंपति थे. इसके अगले दिन स्मृति ईरानी ने नूपुर शर्मा, अभिजीत मजूमदार, अनंत विजय, बीबीसी के पूर्व पत्रकार सुनील रमन और वैज्ञानिक और टीवी पैनलिस्ट आनंद रंगनाथन से बात की.

अशोक मलिक और अभिजीत मजूमदार ने रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से मना कर दिया.

रिपोर्ट में उल्लेखित एक पत्रकार का कहना है कि जावड़ेकर के साथ हुई बैठक के पीछे की मूल वजह गलवान घाटी में हुई झड़प से जुड़ी जानकारी की विश्वसनीयता पर मीडिया की शंका थी, न कि केंद्र की संवाद रणनीति बनाना.

हमने कंचन गुप्ता से भी संपर्क किया और रिपोर्ट कितनी सही है यह जानने के लिए रिपोर्ट में उल्लेखित उनके कुछ सुझाव, उन्हीं को पढ़कर सुनाए. उनमें से एक सुझाव है, "डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन मीडिया से काफी सर गर्मी पैदा होती है जो आमतौर पर मुख्यधारा की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी पहुंच जाती है. मीडिया अब नई तकनीक को भी समझने लगा है. राजीव गांधी फाउंडेशन को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से मिले अनुदान को भी एक कहानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है."

कंचन ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, "मैंने जो भी सरकार को बताया वह विशेषाधिकार प्राप्त संवाद है. आप जिस पर मुझे टिप्पणी करने को कह रहे हैं मैं उस पर टिप्पणी नहीं करूंगा."

वायर के द्वारा की गई एक रिपोर्ट बताती है कि कंचन गुप्ता का राजीव गांधी फाउंडेशन से जुड़ा सुझाव ऑपइंडिया के द्वारा की गई एक रिपोर्ट के रूप में चरितार्थ हुआ, जिसे बाद में और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में जगह मिली.

एक व्यक्ति जिनका नाम प्रकाश जावड़ेकर और स्मृति ईरानी के साथ हुई बैठकों में शामिल बताया गया है, वे अपने नाम के साथ जुड़े हुए सुझावों को सुनकर हंसने लगे. उन्होंने कहा, "भगवान ही जानता है कि यह रिपोर्ट किसने बनाई है और यह किस बारे में है. इसका तो कोई मतलब ही नहीं निकलता."

एक दूसरे व्यक्ति ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इस मंत्री दल की रिपोर्ट में उनके नाम पर जो सुझाव लिखे गए हैं वह वाहियात और, "उन्हें कोई अंदाजा नहीं है कि सरकार में यह सब लिख कौन रहा है." इसके साथ ही यह भी कहते हैं, "या तो आपने स्पष्ट रूप से खुलकर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया हो, वरना आप किसी और को अपने आप पर कोई दृष्टिकोण थोपने से कैसे रोक सकते हैं?"

दस्तावेज में नामित एक तीसरे व्यक्ति ने कहा कि इन बातों को बैठक के शब्दशः लेखे जोखे की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, "मीटिंग के दौरान कोई नोट्स बना रहा था और उन्होंने अपनी कल्पना का इस्तेमाल कर चीजों को मिर्च मसाला लगाकर लिखा है."

न्यूजलॉन्ड्री ने जिन तीन व्यक्तियों से बात की उनमें से एक ने भी यह नहीं कहा कि प्रकाश जावड़ेकर और स्मृति ईरानी के साथ बैठकर नहीं हुईं. परंतु अपनी पहचान छुपाकर मंत्रीदल पर संदेह करना, सरकार की हरकत पर प्रश्न उठाने का भी एक तरीका है. रिपोर्ट में उल्लेखित चीजों की गंभीरता और उससे उनकी पेशेवर विश्वसनीयता पर उठने वाले प्रश्नों को देखकर मीडिया कर्मियों से उम्मीद थी कि वह ऑन रिकॉर्ड इन बातों को खंडित करते.

रिपोर्ट यह दावा करती है की एनडीटीवी के पूर्व सुरक्षा मामलों के संपादक नितिन गोखले ने सरकार को कहा, "पत्रकारों को रंगों की श्रेणी में रखा जा सकता है, हरा- हाशिए पर बैठने वाले, काला- विरोधी और सफेद- जो समर्थक हैं. हमें अनुकूल बात करने वाले पत्रकारों का समर्थन और प्रचार करना चाहिए."

यह बात बृहस्पतिवार की कार्यवाही की रिपोर्ट में भी बताई गई थी.

गोखले ने कहा पत्रिका ने उनके हवाले से जो भाषा बताई वह उसका खंडन करते हैं, "कारवां पत्रिका की रिपोर्ट झूठी है. उन्होंने मुझसे मेरी टिप्पणी तक के लिए संपर्क नहीं किया. मैंने यह रिपोर्ट नहीं देखी है लेकिन मैं अपना उत्तर कारवां की रिपोर्ट में जो मेरे लिए कहा गया है उसके बिना पर दे रहा हूं."

कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक और सरकार की इस रिपोर्ट पर उस में छपे लेख के लेखक हरतोष सिंह बल ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि अगर केंद्र की रिपोर्ट झूठी है तो फिर कारवां पत्रिका की भी रिपोर्ट झूठी है.

उन्होंने कहा, "हमने केवल नितिन गोखले के हवाले से जो रिपोर्ट में कहा गया है उसी को लिखा है और अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ा है जो दस्तावेजों में नहीं है."

कारवां पत्रिका ने किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी वाली बैठक से जुड़े वक्तव्य को लेकर जयंत घोषाल को उनकी टिप्पणी के लिए संपर्क किया, तो फिर उन्होंने नितिन गोखले से बात क्यों नहीं की?

हरतोष उत्तर देते हैं, "घोषाल वाली बैठक में बहुत सारे सुझाव एक साथ कई लोगों के समूह के हवाले से दिए गए थे, जिनमें से किसी को भी विशेष रूप से नामित नहीं किया गया था और हम जानना चाहते थे कि क्या यह सही में उनके नामों से जुड़ा हुआ है. गोखले के मामले में ऐसा कोई सामूहिक संदेह है ही नहीं. रिपोर्ट में यह सुझाव स्पष्ट रूप से उनके द्वारा दिया गया बताया है."

न्यूजलॉन्ड्री ने अपने प्रश्न मंत्रियों स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर, मुख्तार अब्बास नकवी और किरण रिजिजू के कार्यालयों पर भी भेजे हैं. उनकी तरफ से जवाब आने पर रिपोर्ट में उन्हें जोड़ दिया जाएगा.

जून 2020 में मोदी सरकार ने सरकार के "10 बड़े कथानकों" को अच्छे से बता पाने की नीतियां जानने के लिए "मीडिया क्षेत्र के वरिष्ठ लोगों से संपर्क किया." यह पहल, जिसका नेतृत्व केंद्रीय मंत्रियों का प्रधानमंत्री से "प्रेरित" दल कर रहा था, ने उसी साल केंद्रीय सचिवालय में दाखिल हुई एक रिपोर्ट में अपने सुझावों को पेश किया.

यह रिपोर्ट, जिसके कुछ अंशों की समीक्षा न्यूज़लॉन्ड्री ने भी की है, दावा करती है कि केंद्र ने कुछ पत्रकारों और संपादकों से उपरोक्त विषय में "परामर्श" लिया. इन पत्रकारों और संपादकों में डेक्कन हेराल्ड के राजनैतिक संपादक शेखर अय्यर, Earshot.in के प्रधान संपादक अभिजीत मजूमदार, स्ट्रैटेजिक न्यूज़ ग्लोबल के प्रधान संपादक नितिन गोखले और दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय भी थे.

रिपोर्ट में कई पूर्व पत्रकारों जैसे कंचन गुप्ता, अशोक मलिक, स्वपन दासगुप्ता, सूर्य प्रकाश, सुनील रमन और अशोक टंडन के द्वारा की गई "विवेचना* और "टिप्पणियां" भी हैं.

सरकार की इस रिपोर्ट में प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वैंपति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक बताए जाने वाले एस गुरुमूर्ति और हिंदू राष्ट्रवाद की बात करने वाली वेबसाइट ऑप इंडिया की संपादक नूपुर शर्मा, के मतों को भी रखा गया था.

रिपोर्ट के मीडिया कर्मियों से जुड़े हुए कई हिस्से 3 बैठकों में इकट्ठा किए गए. इनमें से पहली बैठक राज्य मंत्री किरण रिजिजू के घर पर थी जिसमें अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी भी मौजूद थे. बाकी दोनों बैठक वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुईं, जिनको होस्ट कपड़ा व महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने किया था और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी उसका हिस्सा थे.

दिसंबर 2020 में हिंदुस्तान टाइम्स ने पहली बार इस दस्तावेज पर रिपोर्ट की और कई उन कथानकों की जानकारी दी जो केंद्र सरकार की निगाह में अच्छे से गढ़े जाने के लिए थे, जैसे कि आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्वच्छ भारत. अखबार ने बताया कि उन्होंने रिपोर्ट की एक प्रति की अच्छे से समीक्षा की और दो सरकारी अफसरों, जिन्होंने अपनी पहचान गुप्त रखी, के हवाले से रिपोर्ट में कई बातों की पुष्टि की थी.

रिपोर्ट पर किसी भी मंत्री के हस्ताक्षर और कोई भी आधिकारिक सील या स्टैंप न होने के बाद भी, अभी तक सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल नहीं उठाए गए हैं. गुरुवार को मुख्तार अब्बास नकवी ने हिंदू अखबार को बताया कि उनको ऐसी किसी रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

4 मार्च को कारवां पत्रिका में रिपोर्ट के हवाले से कई पत्रकारों, संपादकों और प्रसिद्ध व्यक्तियों के वक्तव्य पर एक विस्तृत लेख छपा.

न्यूजलॉन्ड्री ने रिपोर्ट में नामजद कई लोगों से उनकी तथाकथित टिप्पणियों पर बात की. जहां मंत्रियों किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी वाली बैठक में शामिल लोगों ने अपने लिए कही गई बातों को खारिज कर दिया, वहीं स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर वाले वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए लोगों ने ऐसा संकेत दिया कि रिपोर्ट की भाषा को तोड़ मरोड़ और बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है.

'हम तो वहां गलवान के लिए थे'

रिपोर्ट दावा करती है कि किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी की मेजबानी वाली बैठक में 12 पत्रकार थे. रिपोर्ट के अनुसार आलोक मेहता, जयंत घोषाल, शिशिर गुप्ता, प्रफुल्ल केतकर, महुआ चटर्जी, निस्तुला हैबार, अमिताभ सिन्हा, आशुतोष, रामनारायण, रवीश तिवारी, हिमांशु मिश्रा और रविंद्र ने इस बैठक में हिस्सा लिया था.

रिपोर्ट इस समूह की और से 12 "विचार/सुझाव" प्रस्तुत करती है जिनमें से कुछ साधारण और कुछ हैरान करने वाली हैं.

जैसे कि, "करीब 75% मीडिया के लोग नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हैं और विचारधारा के स्तर पर पार्टी के साथ हैं."

या, "सरकार और मीडिया के बीच में मतभेद बढ़ गए हैं और इससे निपटना चाहिए."

कथित तौर पर पत्रकारों ने यह सुझाव दिया कि "विदेशी मीडिया से संवाद रुकना चाहिए क्योंकि उसके परिणाम आशा के विपरीत आ रहे हैं."

इस खंड में जिन दो पत्रकारों का गुप्त रूप से हवाला दिया गया है, उनका मीडिया संस्थान उन्हें आधिकारिक टिप्पणी देने से प्रतिबंधित करता है. इसीलिए उन्होंने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर ही बात की.

एक पत्रकार जिसने इस बैठक में हिस्सा लिया था ने कहां कि मंत्री रिजिजू के घर पर कॉन्फ्रेंस रूम में 12 से अधिक पत्रकार थे.

भारत और चीनी सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हुई झड़प की बात कहते हुए यह पत्रकार बताते हैं, "हमें एक दिन पहले किरण रिजिजू के घर पर जाने के लिए कहा गया क्योंकि वह गलवान के एकदम बाद ही का समय था. हमें वहां जयशंकर से मिलना था जो हमें झड़प से जुड़ी जानकारियां देते. मैंने अपनी ब्यूरो को भी इस बारे में खबर कर दी थी लेकिन वह आए ही नहीं."

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मंत्रियों के इस दल का हिस्सा हैं जिन्हें कथानक गढने की जिम्मेदारी दी गई है. इस दल में उनके साथ कानून एवं सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ-साथ राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो, हरदीप सिंह पुरी और अनुराग ठाकुर भी थे.

यह पत्रकार कहते हैं कि उनके दल को सरकार के संवाद पर हुए विमर्श के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे रिपोर्ट में दिए गए निष्कर्षों की सत्यता पर शंका जताते हैं. वे विदेशी पत्रकारों वाली बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, "मुझे याद नहीं है कि किसी ने भी यह बातें कही हों. ऐसी बातचीत में सरकार मीडिया का नहीं बल्कि इससे उल्टा मीडिया सरकार का इंटरव्यू लेता है."

एक दूसरे पत्रकार ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि जयशंकर के मौजूद न होने के चलते, किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी ने सरकार की मीडिया नीति को लेकर चाय पर सभी से गहन बातचीत की.

यह पत्रकार कहते हैं, "हमने उन्हें बताया कि मीडिया संस्थानों को अपने लेख हटाने के लिए कहने का कोई अर्थ नहीं जब सरकार भेजे गए सवालों का जवाब ही नहीं देती." वे यह भी बताते हैं कि किसी भी पत्रकार ने "75 प्रतिशत मीडिया" प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी का समर्थन करता है, ऐसा नहीं कहा.

कारवां पत्रिका की रिपोर्ट पर जनता की प्रतिक्रिया पर पत्रकार ने कहा, "मैंने आज तक किसी बैठक में जाने की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाई जैसे इसकी चुकाई है. ऐसा कतई नहीं होना चाहिए."

उस समय पर इंडिया टीवी के राजनैतिक संपादक जयंत घोषाल ने भी यही कहा कि उन्होंने सीमावर्ती झड़पों के बारे में जानकारी देने वाली एक बैठक में हिस्सा लेना स्वीकार किया था. घोषाल कहते हैं, "मैं नहीं जानता कि दो मंत्रियों के साथ गलवान पर हुई बातचीत मंत्रियों के एक समूह में कैसे बदल गई. उस बैठक में मीडिया कवरेज पर हुई कोई भी बातचीत, भारत चीन संबंधों में तनाव के संदर्भ में ही हुई थी."

घोषाल भी इस बात पर कायम थे कि न तो उन्होंने न किसी और पत्रकार ने यह सुझाव दिया कि सरकार को विदेशी पत्रकारों से बात नहीं करनी चाहिए, या 75 प्रतिशत पत्रकार भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं.

हिंदू पब्लिशिंग ग्रुप के निदेशक एन राम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि रिपोर्ट यह नहीं दिखाती की रिपोर्ट में नामित सभी पत्रकार "इस प्रकार के दुष्प्रचार की योजना में किसी तरह से लिप्त थे." दस्तावेज के अनुसार हिंदु की राजनैतिक संपादक निस्तुला हैबार मंत्री रिजिजू के घर पर मौजूद थीं.

एन राम आगे कहते हैं, "यह योजना उनके पीठ पीछे बनाई गई.‌ हो सकता है कि इनमें से कुछ पत्रकार इसके बारे में जानते हों, कुछ इसके साथ हों और कुछ उसमें पूरी तरह से लिप्त हों, लेकिन ऐसे भी होंगे जो इस सब में नहीं थे.”

राम का कहना है कि आदर्श तौर पर पत्रकारों को इस रिपोर्ट पर आधिकारिक रूप से जवाब देना चाहिए, "उससे सरकार पर जवाब देने के लिए दबाव बनेगा. लेकिन वह उन पर निर्भर करता है कि वह अपने पेशे से जुड़े दायित्व को किस तरह से देखते हैं"

रिपोर्ट हिंदुस्तान टाइम्स के एग्जीक्यूटिव एडिटर सुशील गुप्ता और टाइम्स ऑफ इंडिया की एक पत्रकार महुआ चटर्जी को भी नामित करती है. हिंदुस्तान टाइम्स के प्रधान संपादक सुकुमार रंगनाथन ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा कि उनके प्रकाशन की तरफ से इस मामले पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं है. टाइम्स ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव एडिटर दिवाकर अस्थाना ने भी कहा कि अखबार इस पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता.

इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रवीश तिवारी का भी रिपोर्ट में नाम है. शुक्रवार को मंत्री दल से जुड़े दस्तावेज पर एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में रवीश तिवारी ने घोषाल वाली बात ही दोहराई, कि तय बैठक सीमा पर हुई झड़प की "पृष्ठभूमि की जानकारी" देने के लिए जयशंकर के साथ थी.

तिवारी कहते हैं, "किसी ने भी किसी मंत्री दल के बारे में बात नहीं की. जब मैं वहां पहुंचा तो हमें बताया गया कि विदेश मंत्री कहीं फस गए हैं और नहीं पहुंच पाएंगे." उन्होंने यह भी कहा कि "वह आश्चर्यचकित हैं कि एलएसी पर होने वाली एक ऑफ रिकॉर्ड ब्रीफिंग को किस प्रकार एक मंत्री दल की बैठक बनाकर पेश किया गया."

'भगवान ही जाने की यह रिपोर्ट किसने बनाई और यह किस बारे में है'

मंत्रियों रिजिजू और नकवी वाली बैठक से विपरीत, स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर के द्वारा रखी गई वीडियो कॉन्फ्रेंस को लेकर रिपोर्ट कई "जानी-मानी हस्तियों" के हवाले से कई टिप्पणियां उल्लेखित करती है. यह टिप्पणियां सरकार को मीडिया को संभालने, अपनी उपलब्धियों को कैसे प्रचारित करने और आलोचनाओं को नियंत्रित करने की सलाह देती हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, 30 जून 2020 को प्रकाश जावड़ेकर से हुई बातचीत में स्वपन दासगुप्ता, एस गुरुमूर्ति, नितिन गोखले, शेखर अय्यर, सूर्य प्रकाश, अशोक टंडन, अशोक मलिक और शशि शेखर वैंपति थे. इसके अगले दिन स्मृति ईरानी ने नूपुर शर्मा, अभिजीत मजूमदार, अनंत विजय, बीबीसी के पूर्व पत्रकार सुनील रमन और वैज्ञानिक और टीवी पैनलिस्ट आनंद रंगनाथन से बात की.

अशोक मलिक और अभिजीत मजूमदार ने रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से मना कर दिया.

रिपोर्ट में उल्लेखित एक पत्रकार का कहना है कि जावड़ेकर के साथ हुई बैठक के पीछे की मूल वजह गलवान घाटी में हुई झड़प से जुड़ी जानकारी की विश्वसनीयता पर मीडिया की शंका थी, न कि केंद्र की संवाद रणनीति बनाना.

हमने कंचन गुप्ता से भी संपर्क किया और रिपोर्ट कितनी सही है यह जानने के लिए रिपोर्ट में उल्लेखित उनके कुछ सुझाव, उन्हीं को पढ़कर सुनाए. उनमें से एक सुझाव है, "डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन मीडिया से काफी सर गर्मी पैदा होती है जो आमतौर पर मुख्यधारा की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी पहुंच जाती है. मीडिया अब नई तकनीक को भी समझने लगा है. राजीव गांधी फाउंडेशन को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से मिले अनुदान को भी एक कहानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है."

कंचन ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, "मैंने जो भी सरकार को बताया वह विशेषाधिकार प्राप्त संवाद है. आप जिस पर मुझे टिप्पणी करने को कह रहे हैं मैं उस पर टिप्पणी नहीं करूंगा."

वायर के द्वारा की गई एक रिपोर्ट बताती है कि कंचन गुप्ता का राजीव गांधी फाउंडेशन से जुड़ा सुझाव ऑपइंडिया के द्वारा की गई एक रिपोर्ट के रूप में चरितार्थ हुआ, जिसे बाद में और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में जगह मिली.

एक व्यक्ति जिनका नाम प्रकाश जावड़ेकर और स्मृति ईरानी के साथ हुई बैठकों में शामिल बताया गया है, वे अपने नाम के साथ जुड़े हुए सुझावों को सुनकर हंसने लगे. उन्होंने कहा, "भगवान ही जानता है कि यह रिपोर्ट किसने बनाई है और यह किस बारे में है. इसका तो कोई मतलब ही नहीं निकलता."

एक दूसरे व्यक्ति ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इस मंत्री दल की रिपोर्ट में उनके नाम पर जो सुझाव लिखे गए हैं वह वाहियात और, "उन्हें कोई अंदाजा नहीं है कि सरकार में यह सब लिख कौन रहा है." इसके साथ ही यह भी कहते हैं, "या तो आपने स्पष्ट रूप से खुलकर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया हो, वरना आप किसी और को अपने आप पर कोई दृष्टिकोण थोपने से कैसे रोक सकते हैं?"

दस्तावेज में नामित एक तीसरे व्यक्ति ने कहा कि इन बातों को बैठक के शब्दशः लेखे जोखे की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, "मीटिंग के दौरान कोई नोट्स बना रहा था और उन्होंने अपनी कल्पना का इस्तेमाल कर चीजों को मिर्च मसाला लगाकर लिखा है."

न्यूजलॉन्ड्री ने जिन तीन व्यक्तियों से बात की उनमें से एक ने भी यह नहीं कहा कि प्रकाश जावड़ेकर और स्मृति ईरानी के साथ बैठकर नहीं हुईं. परंतु अपनी पहचान छुपाकर मंत्रीदल पर संदेह करना, सरकार की हरकत पर प्रश्न उठाने का भी एक तरीका है. रिपोर्ट में उल्लेखित चीजों की गंभीरता और उससे उनकी पेशेवर विश्वसनीयता पर उठने वाले प्रश्नों को देखकर मीडिया कर्मियों से उम्मीद थी कि वह ऑन रिकॉर्ड इन बातों को खंडित करते.

रिपोर्ट यह दावा करती है की एनडीटीवी के पूर्व सुरक्षा मामलों के संपादक नितिन गोखले ने सरकार को कहा, "पत्रकारों को रंगों की श्रेणी में रखा जा सकता है, हरा- हाशिए पर बैठने वाले, काला- विरोधी और सफेद- जो समर्थक हैं. हमें अनुकूल बात करने वाले पत्रकारों का समर्थन और प्रचार करना चाहिए."

यह बात बृहस्पतिवार की कार्यवाही की रिपोर्ट में भी बताई गई थी.

गोखले ने कहा पत्रिका ने उनके हवाले से जो भाषा बताई वह उसका खंडन करते हैं, "कारवां पत्रिका की रिपोर्ट झूठी है. उन्होंने मुझसे मेरी टिप्पणी तक के लिए संपर्क नहीं किया. मैंने यह रिपोर्ट नहीं देखी है लेकिन मैं अपना उत्तर कारवां की रिपोर्ट में जो मेरे लिए कहा गया है उसके बिना पर दे रहा हूं."

कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक और सरकार की इस रिपोर्ट पर उस में छपे लेख के लेखक हरतोष सिंह बल ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि अगर केंद्र की रिपोर्ट झूठी है तो फिर कारवां पत्रिका की भी रिपोर्ट झूठी है.

उन्होंने कहा, "हमने केवल नितिन गोखले के हवाले से जो रिपोर्ट में कहा गया है उसी को लिखा है और अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ा है जो दस्तावेजों में नहीं है."

कारवां पत्रिका ने किरण रिजिजू और मुख्तार अब्बास नकवी वाली बैठक से जुड़े वक्तव्य को लेकर जयंत घोषाल को उनकी टिप्पणी के लिए संपर्क किया, तो फिर उन्होंने नितिन गोखले से बात क्यों नहीं की?

हरतोष उत्तर देते हैं, "घोषाल वाली बैठक में बहुत सारे सुझाव एक साथ कई लोगों के समूह के हवाले से दिए गए थे, जिनमें से किसी को भी विशेष रूप से नामित नहीं किया गया था और हम जानना चाहते थे कि क्या यह सही में उनके नामों से जुड़ा हुआ है. गोखले के मामले में ऐसा कोई सामूहिक संदेह है ही नहीं. रिपोर्ट में यह सुझाव स्पष्ट रूप से उनके द्वारा दिया गया बताया है."

न्यूजलॉन्ड्री ने अपने प्रश्न मंत्रियों स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर, मुख्तार अब्बास नकवी और किरण रिजिजू के कार्यालयों पर भी भेजे हैं. उनकी तरफ से जवाब आने पर रिपोर्ट में उन्हें जोड़ दिया जाएगा.