Newslaundry Hindi
एनएल चर्चा 157: केंद्रीय मंत्री समूह की मीडिया नियंत्रण पर रिपोर्ट और भारत में कमजोर हो रही लोकतंत्र की नींव
एनएल चर्चा के 157वें एपिसोड में कोवैक्सीन के तीसरे फेज के आंकड़े, अमेरिकी थिंकटैंक फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में भारत की गिरती लोकतंत्र की स्थिति, केंद्र सरकार की रिपोर्ट पर द कारवां में प्रकाशित रिपोर्ट, पार्थो दासगुप्ता को मिली जमानत, अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू के घर पर इनकम टैक्स की रेड और तमिलनाडु की राजनीति में वीके शशिकला के संन्यास जैसे विषयों का जिक्र हुआ.
इस बार चर्चा में स्क्रोल के सीनियर असिस्टेंट एडिटर शोएब दानियाल, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्ययान शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत ‘द कारवां’ के राजनीतिक एडिटर हरतोष बाल की रिपोर्ट से की जिसमें कहा गया है की सरकार लाकडाउन के दौरान कई बड़े पत्रकारों के साथ बातचीत कर रही थी, उनसे सलाह ले रही थी की किस तरह से मीडिया का एक छोटा सा हिस्सा जो सरकार का आलोचक बना हुआ है, जो सरकार की नीतियों पर प्रश्न खड़ा करता है, उनसे कैसे निपटना है. इस ग्रुप ऑफ मिनिस्टर की रिपोर्ट को लेकर मुझे बहुत जिज्ञासा हुई क्योंकि सरकार की उन समर्थक पत्रकारों की लिस्ट में सबसे बड़ा नाम अर्नब गोस्वामी का है, वो मीटिंग में शामिल नहीं थे? इसी तरह सुधीर चौधरी, दीपक चैरसिया, अंजना ओम कश्यप आदि को भी नहीं बुलाया गया.
इस पर मेघनाद कहते हैं, "मुझे भी ये बात बहुत दिलचस्प लगी क्योंकि इस लिस्ट में सुधीर चौधरी, अर्नब गोस्वामी जैसे बड़े पत्रकरों का नाम नहीं था जबकि जितना हम देखते है या सुनते है उनमें से ये पत्रकार छाती पीटने के लिए सबसे ज़्यादा मशहूर है."
अतुल चर्चा को आगे बढ़ाते हुए शोएब से सवाल करते है, “आपको क्या लगता है की जो ये बड़े दिखने वाले चेहरे है, वह गायब थे और जनता मानती है की यही सबसे बड़े पत्रकार है जो सरकार के साथ खड़े है. इसकी क्या वजह हो सकती है?”
इस प्रश्न का जवाब देते हुए शोएब कहते है, ''रिपब्लिक के लिए इस रिपोर्ट में महत्वपूर्ण लाइन लिखी गई है. अगर आप रिपोर्ट पढ़ेंगे तो पाएंगे की एस गुरुमूर्ति जो आरबीआई के पदाधिकारी भी हैं, वो मंत्रियों के समूह को सलाह दे रहे हैं कि ‘न्यूज में झूठ और सच का मिश्रण होना चाहिए’ और दूसरा उन्होंने ये भी कहा की रिपब्लिक तो पहले से ही यह कर ही रही है मगर रिपब्लिक को तो सब पराया मानते है, तो उससे कोई लाभ नहीं मिलेगा.''
अतुल मेघनाथ से पूछते हैं, “पत्रकार नितिन गोखले ने मीटिंग कहा कि पत्रकारों की कलर कोडिंग करना चाहिए. हमने पहले नीरा राडिया केस में भी देखा था कि पत्रकार सरकार के साथ मिलकर पत्रकारिता और राजनीति के बीच की बारीक रेखा को पार किया था. अगर हम ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की रिपोर्ट में पत्रकारों की सलाह और सुझाव को देखे को लगता है कि इस बार पत्रकारों ने उस रेखा को लगभग मिटा ही दिया है.”
जवाब में मेघनाथ कहते हैं, “कारवां की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि जो पत्रकार इन मीटिंग में शामिल हुए थे उनमें से कुछ ने तो बात नहीं की और कुछ ने कहा हमें नहीं पता था कि हमारी बातों को इस तरह से सलाह और सुझाव के तौर पर लिया जाएगा. जहां तक बात हैं कलर कोडिंग की तो उसमें कहा गया हैं कि काला रंग सरकार के विरोधी पत्रकारों, सफेद रंग सरकार के समर्थक पत्रकारों को और हरा रंग उनके लिए जो तटस्थ रहते हैं. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि सरकार मीडिया को लेकर क्या सोचती है.”
अतुल शोएब से पूछते है, “बहुत से पत्रकार मीडिया पर ही नियंत्रण के लिए सरकार को सुझाव दे रहे हैं. यह अपने आप में कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट से भी गंभीर मामला है.”
इस पर शोएब कहते हैं, “बिलकुल, यहां पर तो बहुत ही संजीदा मामला है. पत्रकारों का पहला काम ही होता है कि सरकार के खिलाफ काम करे, वहीं अगर इन रिपोर्ट को देखे तो पत्रकार मीडिया के खिलाफ ही सुझाव दे रहे है. इस मामले पर बात होनी चाहिए जो पत्रकार इस मीटिंग में शामिल हुए थे.”
इस विषय पर शार्दूल अपनी राय व्यक्त करते हुए कहते हैं, "हरतोष बल की रिपोर्ट में कुछ छोटी छोटी बाते हैं जिनकी तरफ मैं इस चर्चा को ले जाना चाहूंगा. जैसे की मुख्तार अब्बास नकवी एक शब्द का प्रयोग करते हैं की 'न्यूट्रलाइज़ द पीपल' यानि जो लोग सरकार के खिलाफ लिखते हैं उन्हें न्यूट्रलाइज़ कर दिया जाए जिसका अर्थ गुप्तचर की भाषा में देखे तो उन्हें ठिकाने लगा दिया जाए. दूसरी बात ये की सरकार पत्रकारों का प्रयोग पत्रकारों के ही खिलाफ नीति बनाने के लिए कर रही है. सरकार चाहती है की काम कुछ नहीं हो सिर्फ उन्हें वाहवाही मिलती रहे. बस इनफार्मेशन बम फोड़ते रहे और काम क्या है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है."
इस विषय के तमाम और पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
1:20 - हेडलाइन
6:30 - द कारवां की मंत्री समूह की रिपोर्ट पर प्रकाशित रिपोर्ट
20:45 - डिजिटल मीडिया पर पत्रकारों की राय
42:12 - फ्रीडम हाउस 2021 रिपोर्ट
1:01:00 - सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों/लोगों के प्रति भेदभाव
1:13:35 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.
शार्दूल कात्यायन
एसओई 2021 की वायु प्रदूषण को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट
एसओई 2021 की मनरेगा को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट
जब जज ने नाबालिग प्रेम विवाह को भी जायज माना - डी ब्लू पर प्रकाशित रिपोर्ट
शोएब दानियाल
किम वांगनर की किताब - अमृतसर 1919
इन टू द इन्फर्नो - नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंटरी
मेघनाद एस
टेरी प्रेचेट की किताब- रीपर मैन
जेके रोलिंग - कॉण्ट्रा पॉइंट यूट्यूब चैनल
अतुल चौरसिया
शेखर पाठक की किताब- दास्तान ए हिमालय
***
प्रोड्यूसर- लिपि वत्स
रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह/सना जाफर
एनएल चर्चा के 157वें एपिसोड में कोवैक्सीन के तीसरे फेज के आंकड़े, अमेरिकी थिंकटैंक फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में भारत की गिरती लोकतंत्र की स्थिति, केंद्र सरकार की रिपोर्ट पर द कारवां में प्रकाशित रिपोर्ट, पार्थो दासगुप्ता को मिली जमानत, अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू के घर पर इनकम टैक्स की रेड और तमिलनाडु की राजनीति में वीके शशिकला के संन्यास जैसे विषयों का जिक्र हुआ.
इस बार चर्चा में स्क्रोल के सीनियर असिस्टेंट एडिटर शोएब दानियाल, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्ययान शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत ‘द कारवां’ के राजनीतिक एडिटर हरतोष बाल की रिपोर्ट से की जिसमें कहा गया है की सरकार लाकडाउन के दौरान कई बड़े पत्रकारों के साथ बातचीत कर रही थी, उनसे सलाह ले रही थी की किस तरह से मीडिया का एक छोटा सा हिस्सा जो सरकार का आलोचक बना हुआ है, जो सरकार की नीतियों पर प्रश्न खड़ा करता है, उनसे कैसे निपटना है. इस ग्रुप ऑफ मिनिस्टर की रिपोर्ट को लेकर मुझे बहुत जिज्ञासा हुई क्योंकि सरकार की उन समर्थक पत्रकारों की लिस्ट में सबसे बड़ा नाम अर्नब गोस्वामी का है, वो मीटिंग में शामिल नहीं थे? इसी तरह सुधीर चौधरी, दीपक चैरसिया, अंजना ओम कश्यप आदि को भी नहीं बुलाया गया.
इस पर मेघनाद कहते हैं, "मुझे भी ये बात बहुत दिलचस्प लगी क्योंकि इस लिस्ट में सुधीर चौधरी, अर्नब गोस्वामी जैसे बड़े पत्रकरों का नाम नहीं था जबकि जितना हम देखते है या सुनते है उनमें से ये पत्रकार छाती पीटने के लिए सबसे ज़्यादा मशहूर है."
अतुल चर्चा को आगे बढ़ाते हुए शोएब से सवाल करते है, “आपको क्या लगता है की जो ये बड़े दिखने वाले चेहरे है, वह गायब थे और जनता मानती है की यही सबसे बड़े पत्रकार है जो सरकार के साथ खड़े है. इसकी क्या वजह हो सकती है?”
इस प्रश्न का जवाब देते हुए शोएब कहते है, ''रिपब्लिक के लिए इस रिपोर्ट में महत्वपूर्ण लाइन लिखी गई है. अगर आप रिपोर्ट पढ़ेंगे तो पाएंगे की एस गुरुमूर्ति जो आरबीआई के पदाधिकारी भी हैं, वो मंत्रियों के समूह को सलाह दे रहे हैं कि ‘न्यूज में झूठ और सच का मिश्रण होना चाहिए’ और दूसरा उन्होंने ये भी कहा की रिपब्लिक तो पहले से ही यह कर ही रही है मगर रिपब्लिक को तो सब पराया मानते है, तो उससे कोई लाभ नहीं मिलेगा.''
अतुल मेघनाथ से पूछते हैं, “पत्रकार नितिन गोखले ने मीटिंग कहा कि पत्रकारों की कलर कोडिंग करना चाहिए. हमने पहले नीरा राडिया केस में भी देखा था कि पत्रकार सरकार के साथ मिलकर पत्रकारिता और राजनीति के बीच की बारीक रेखा को पार किया था. अगर हम ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की रिपोर्ट में पत्रकारों की सलाह और सुझाव को देखे को लगता है कि इस बार पत्रकारों ने उस रेखा को लगभग मिटा ही दिया है.”
जवाब में मेघनाथ कहते हैं, “कारवां की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि जो पत्रकार इन मीटिंग में शामिल हुए थे उनमें से कुछ ने तो बात नहीं की और कुछ ने कहा हमें नहीं पता था कि हमारी बातों को इस तरह से सलाह और सुझाव के तौर पर लिया जाएगा. जहां तक बात हैं कलर कोडिंग की तो उसमें कहा गया हैं कि काला रंग सरकार के विरोधी पत्रकारों, सफेद रंग सरकार के समर्थक पत्रकारों को और हरा रंग उनके लिए जो तटस्थ रहते हैं. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि सरकार मीडिया को लेकर क्या सोचती है.”
अतुल शोएब से पूछते है, “बहुत से पत्रकार मीडिया पर ही नियंत्रण के लिए सरकार को सुझाव दे रहे हैं. यह अपने आप में कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट से भी गंभीर मामला है.”
इस पर शोएब कहते हैं, “बिलकुल, यहां पर तो बहुत ही संजीदा मामला है. पत्रकारों का पहला काम ही होता है कि सरकार के खिलाफ काम करे, वहीं अगर इन रिपोर्ट को देखे तो पत्रकार मीडिया के खिलाफ ही सुझाव दे रहे है. इस मामले पर बात होनी चाहिए जो पत्रकार इस मीटिंग में शामिल हुए थे.”
इस विषय पर शार्दूल अपनी राय व्यक्त करते हुए कहते हैं, "हरतोष बल की रिपोर्ट में कुछ छोटी छोटी बाते हैं जिनकी तरफ मैं इस चर्चा को ले जाना चाहूंगा. जैसे की मुख्तार अब्बास नकवी एक शब्द का प्रयोग करते हैं की 'न्यूट्रलाइज़ द पीपल' यानि जो लोग सरकार के खिलाफ लिखते हैं उन्हें न्यूट्रलाइज़ कर दिया जाए जिसका अर्थ गुप्तचर की भाषा में देखे तो उन्हें ठिकाने लगा दिया जाए. दूसरी बात ये की सरकार पत्रकारों का प्रयोग पत्रकारों के ही खिलाफ नीति बनाने के लिए कर रही है. सरकार चाहती है की काम कुछ नहीं हो सिर्फ उन्हें वाहवाही मिलती रहे. बस इनफार्मेशन बम फोड़ते रहे और काम क्या है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है."
इस विषय के तमाम और पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
1:20 - हेडलाइन
6:30 - द कारवां की मंत्री समूह की रिपोर्ट पर प्रकाशित रिपोर्ट
20:45 - डिजिटल मीडिया पर पत्रकारों की राय
42:12 - फ्रीडम हाउस 2021 रिपोर्ट
1:01:00 - सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों/लोगों के प्रति भेदभाव
1:13:35 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.
शार्दूल कात्यायन
एसओई 2021 की वायु प्रदूषण को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट
एसओई 2021 की मनरेगा को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट
जब जज ने नाबालिग प्रेम विवाह को भी जायज माना - डी ब्लू पर प्रकाशित रिपोर्ट
शोएब दानियाल
किम वांगनर की किताब - अमृतसर 1919
इन टू द इन्फर्नो - नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंटरी
मेघनाद एस
टेरी प्रेचेट की किताब- रीपर मैन
जेके रोलिंग - कॉण्ट्रा पॉइंट यूट्यूब चैनल
अतुल चौरसिया
शेखर पाठक की किताब- दास्तान ए हिमालय
***
प्रोड्यूसर- लिपि वत्स
रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह/सना जाफर
Also Read
-
‘No staff, defunct office’: Kashmir Times editor on ‘bizarre’ charges, ‘bid to silence’
-
Is Modi saving print media? Congrats, you’re paying for it
-
India’s trains are running on luck? RTI points to rampant drunk train driving
-
98% processed is 100% lie: Investigating Gurugram’s broken waste system
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms