Newslaundry Hindi
पिछले 5 वर्षों में बाघ और हाथियों के हमले में मारे गए 2,729 लोग
2016 से 2020 के बीच पिछले पांच वर्षों में बाघ और हाथियों के हमले में 2,729 लोग मारे गए थे. इनमें 200 लोग बाघों के हमले में जबकि 2,529 हाथियों के हमले में मारे गए थे. यह जानकारी 12 फरवरी 2020 को लोकसभा में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री बाबुल सुप्रियो द्वारा प्रश्न के जवाब में सामने आई है.
बाघों के हमले में मारे गए लोगों की बात करें तो पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा जानें महाराष्ट्र में गई हैं जहां इन सघर्षों के चलते 54 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. इसके बाद उत्तरप्रदेश में 51, पश्चिम बंगाल में 44, मध्य प्रदेश में 23, राजस्थान में 7, उत्तराखंड में 6 और कर्नाटक में 5 लोगों की जान गई थी. यदि सिर्फ 2020 की बात करें तो सबसे ज्यादा जानें पश्चिम बंगाल में गई हैं जहां 5 लोग इन संघर्षों का शिकार बने थे.
वहीं उत्तरप्रदेश में 4 लोगों की जान गई थी. कुल मिलाकर पिछले साल 13 लोग बाघों के हमले में मारे गए थे, जबकि 2019 में 50, 2018 में 31, 2017 में 44 और 2016 में 62 लोगों की मृत्यु हुई थी.
2019-20 में हाथियों से संघर्ष में गई 586 लोगों की जान हालांकि बाघों को सबसे ज्यादा आक्रामक माना जाता है पर देश में सबसे ज्यादा जानें हाथियों से होने वाले संघर्षों में जाती हैं. पिछले पांच वर्षों में 2015 से 2020 के बीच हाथियों से हुए संघर्ष में सबसे ज्यादा जानें ओडिशा में गई हैं जहां 449 लोगों की मृत्यु हुई है. जबकि इसके बाद पश्चिम बंगाल में 430, झारखंड में 380, असम में 353, छत्तीसगढ़ में 335, तमिलनाडु में 246, कर्नाटक में 159, केरल में 93 और मेघालय में 25 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
वहीं यदि 2019-20 को देखें तो इस अवधि में 586 लोगों की जान हाथियों के साथ होने वाले संघर्षों में गई है, जोकि पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा है. वहीं 2018-19 में 452, 2017-18 में 506, 2016-17 में 516 और 2015-16 में 469 लोगों हुई थी. आज जैसे-जैसे इंसानी आबादी बढ़ रही है और जीवों के प्राकृतिक आवास सिकुड़ते जा रहे हैं, उसका असर इंसान और जानवरों के संबंधों पर भी पड़ रहा है. इस वजह से इंसानों और जानवरों के बीच आवास और भोजन के लिए टकराव भी बढ़ता जा रहा है.
इस संघर्ष की कीमत इंसानों को अपनी फसल, मवेशियों और संपत्ति के रूप में चुकानी पड़ती है कभी-कभी इसका नतीजा उनकी मृत्यु का कारण भी बन रहा है. दूसरी तरह जानवर भी इस संघर्ष की भेंट चढ़ रहे हैं. कभी-कभी इसका शिकार वो जानवर भी बनते हैं जिनकी आबादी पहले ही खतरे में है ऐसे में उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है. ऐसे में यदि इस संघर्ष एक कोई समाधान नहीं निकाला जाता तो इन जीवों के संरक्षण के लिए जो स्थानीय समर्थन प्राप्त होता है, वो भी कम होता जाता है. जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
2016 से 2020 के बीच पिछले पांच वर्षों में बाघ और हाथियों के हमले में 2,729 लोग मारे गए थे. इनमें 200 लोग बाघों के हमले में जबकि 2,529 हाथियों के हमले में मारे गए थे. यह जानकारी 12 फरवरी 2020 को लोकसभा में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री बाबुल सुप्रियो द्वारा प्रश्न के जवाब में सामने आई है.
बाघों के हमले में मारे गए लोगों की बात करें तो पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा जानें महाराष्ट्र में गई हैं जहां इन सघर्षों के चलते 54 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. इसके बाद उत्तरप्रदेश में 51, पश्चिम बंगाल में 44, मध्य प्रदेश में 23, राजस्थान में 7, उत्तराखंड में 6 और कर्नाटक में 5 लोगों की जान गई थी. यदि सिर्फ 2020 की बात करें तो सबसे ज्यादा जानें पश्चिम बंगाल में गई हैं जहां 5 लोग इन संघर्षों का शिकार बने थे.
वहीं उत्तरप्रदेश में 4 लोगों की जान गई थी. कुल मिलाकर पिछले साल 13 लोग बाघों के हमले में मारे गए थे, जबकि 2019 में 50, 2018 में 31, 2017 में 44 और 2016 में 62 लोगों की मृत्यु हुई थी.
2019-20 में हाथियों से संघर्ष में गई 586 लोगों की जान हालांकि बाघों को सबसे ज्यादा आक्रामक माना जाता है पर देश में सबसे ज्यादा जानें हाथियों से होने वाले संघर्षों में जाती हैं. पिछले पांच वर्षों में 2015 से 2020 के बीच हाथियों से हुए संघर्ष में सबसे ज्यादा जानें ओडिशा में गई हैं जहां 449 लोगों की मृत्यु हुई है. जबकि इसके बाद पश्चिम बंगाल में 430, झारखंड में 380, असम में 353, छत्तीसगढ़ में 335, तमिलनाडु में 246, कर्नाटक में 159, केरल में 93 और मेघालय में 25 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
वहीं यदि 2019-20 को देखें तो इस अवधि में 586 लोगों की जान हाथियों के साथ होने वाले संघर्षों में गई है, जोकि पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा है. वहीं 2018-19 में 452, 2017-18 में 506, 2016-17 में 516 और 2015-16 में 469 लोगों हुई थी. आज जैसे-जैसे इंसानी आबादी बढ़ रही है और जीवों के प्राकृतिक आवास सिकुड़ते जा रहे हैं, उसका असर इंसान और जानवरों के संबंधों पर भी पड़ रहा है. इस वजह से इंसानों और जानवरों के बीच आवास और भोजन के लिए टकराव भी बढ़ता जा रहा है.
इस संघर्ष की कीमत इंसानों को अपनी फसल, मवेशियों और संपत्ति के रूप में चुकानी पड़ती है कभी-कभी इसका नतीजा उनकी मृत्यु का कारण भी बन रहा है. दूसरी तरह जानवर भी इस संघर्ष की भेंट चढ़ रहे हैं. कभी-कभी इसका शिकार वो जानवर भी बनते हैं जिनकी आबादी पहले ही खतरे में है ऐसे में उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है. ऐसे में यदि इस संघर्ष एक कोई समाधान नहीं निकाला जाता तो इन जीवों के संरक्षण के लिए जो स्थानीय समर्थन प्राप्त होता है, वो भी कम होता जाता है. जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read
- 
	    
	      Delhi AQI ‘fraud’: Water sprinklers cleaning the data, not the air?
- 
	    
	      Patna’s auto drivers say roads shine, but Bihar’s development path is uneven
- 
	    
	      Washington Post’s Adani-LIC story fizzled out in India. That says a lot
- 
	    
	      Nominations cancelled, candidate ‘missing’: Cracks in Jan Suraaj strategy or BJP ‘pressure’?
- 
	    
	      The fight to keep Indian sports journalism alive