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किसान आंदोलन का समर्थन उत्तर प्रदेश के सैनी किसान क्यों नहीं कर रहे हैं
1 फरवरी को 65 वर्षीय बलबीर सिंह उत्तर प्रदेश के बिजनौर के आईटीआई मैदान में मोदी सरकार के द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ हुई महापंचायत में भाग लेने के लिए पहुंचे. खबरों के अनुसार वहां 15,000 से ज्यादा किसान किसान आंदोलन के समर्थन में पहुंचे.
लेकिन बलबीर इससे प्रभावित नहीं हुए. सैनी समाज से आने वाले सब्जी की खेती करने वाले किसान बलबीर ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, "जाट सब पर अपनी चला रहे हैं. एक कह रहा है हम यह करेंगे, दूसरा कह रहा है हम वह करेंगे. हमें तो कुछ ज्यादा समझ नहीं आया."
बिजनौर के रामबाग में रहने वाले बलबीर चार हेक्टेयर जमीन के मालिक हैं जिसमें वह गन्ना, गाजर, मूली, लौकी और तुरई जैसी सब्जियां उगाते हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन कर रही है जो यह दावा करती है कि उसके पास सभी जातियों के किसानों और मजदूरों का समर्थन है. भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने हरियाणा में हुई महापंचायत में कहा, "यह आंदोलन सभी जातियों का है."
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह बात पूरी तरह सही नहीं है. सैनी किसान जो जाटों की तरह ही कृषि करते हैं, भारतीय जनता पार्टी की तरफ अपनी वफादारी की वजह से इस आंदोलन को लेकर एहतियात बरत रहे हैं. साथ ही वे आंदोलन में जाटों की अत्यधिक मौजूदगी और हिंदी समाचार चैनलों के द्वारा प्रदर्शन के किए जा रहे कवरेज को लेकर ख़फा हैं.
बलबीर के बेटे परमेश सिंह कहते हैं कि वह अपने गांव के कम से कम चार जाटों को जानते हैं जिन्होंने दिल्ली-यूपी सीमा गाजीपुर में प्रदर्शन में हिस्सा लिया है, लेकिन वह और उनके पिता इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं रखते हैं.
बलबीर कहते हैं, "इस प्रदर्शन का हिस्सा वह बन सकते हैं जिसके पास खेतों का ध्यान रखने के लिए मजदूर हैं. हमारे पास तो न ज्यादा जमीन है, न मजदूर हैं. अगर हम प्रदर्शन में चले जाएंगे तो फसल की देखरेख कौन करेगा?"
कोई और प्रश्न पूछते इससे पहले व्यस्त बुजुर्ग ने हमें अपने बेटे की तरफ मुखातिब किया. उन्होंने कहा कि उन्हें खेत जाना है. 31 वर्षीय परमेश बात वहीं से शुरू करते हैं जहां से उनके पिता छोड़ कर गए.
वे समझाते हैं, "जो सब्जियां हम उगाते हैं वह पानी के हिसाब से संवेदनशील होती हैं. उन्हें बार-बार देखते रहना पड़ता है. हमारी खेती जाटों से अलग है जो अपने गन्ने की फसल के लिए घंटों ट्यूबवेल चला कर छोड़ देते हैं. इससे अलग, हम काफी सब्जी अपने खुद के इस्तेमाल के लिए भी उगाते हैं और उसका थोड़ा ही हिस्सा स्थानीय बाजार में बेचते हैं."
बिजनौर के काजीपाड़ा में रहने वाले 39 वर्षीय जगदीश सैनी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का नेतृत्व "गन्ना उगाने वालों के द्वारा किया जा रहा है." विडंबना यह है कि जगदीश भी 5 एकड़ जमीन रखने वाले गन्ना किसान ही हैं. फसल से भरी हुई एक ट्रैक्टर-ट्रॉली उनके घर के बाहर खड़ी है.
जगदीश का कहना है कि, "वामपंथी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के साथ आने के बाद, यह अब एक भाजपा के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन बन गया है. अगर यह वास्तविक आंदोलन होता तो हम इसमें हिस्सा ज़रूर लेते."
हमारी बातचीत के दौरान अधिकतर समय जगदीश ने आंदोलन के खिलाफ, उसके तथाकथित खालिस्तानी संबंध और पॉप गायिका रिहाना, पूर्व पॉर्न स्टार मिया खलीफा को कैसे प्रदर्शन के समर्थन में ट्वीट करने के लिए पैसे मिले, इस बारे में बोला.
उनकी खालिस्तान वाली बात पर हमने उनसे इस जानकारी के स्रोत के बारे में पूछा. उन्होंने अपने फोन की तरफ देखते हुए बोला, "मैंने यह रिपब्लिक भारत पर देखा. एक मिनट रुकिए, मैंने उसका वीडियो भी बनाया है. मैंने इन हिस्सों को रिकॉर्ड किया, जिससे कि जब मैं किसी और से बात करूं तो यह साबित कर सकूं." हमने उस चैनल के प्राइम टाइम कार्यक्रम की जगदीश के द्वारा बनाई गई कामचलाऊ रिकॉर्डिंग को कुछ क्षण देख कर नीचे रख दिया, जिससे वह काफी निराश दिखाई दिए.
"यह दीप सिद्धू भी खालिस्तानी है", गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा के लिए गिरफ्तार हुए अभिनेता से एक्टिविस्ट बने सिद्धू की ओर इशारा करते हुए वह बोले. "अब यह प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि वो भाजपा के साथ था. इससे पहले वह कह रहे थे कि वह उनके साथ है, लेकिन तब सिद्धू बिल्कुल सही और निर्दोष था न."
जगदीश कुछ भी कहें, लेकिन यह सही है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान प्रदर्शनों का एक राजनीतिक पहलू है. 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में सभा ने सत्ताधारी भाजपा के बहिष्कार की शपथ ली थी. लेकिन इलाके के पिछड़ी जाति समूहों में से एक, सैनी जाति के लोगों ने अपने को इन प्रदर्शनों से अलग रखा है. इसके बजाय वह सत्ताधारी दल के लिए एकमत से समर्थन जाहिर करते हैं.
जगदीश कहते हैं, "प्रदर्शन करने वाले किसान कहते हैं कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ रहे हैं. लेकिन जो किसान सब्जियां उगाते हैं उनके लिए तो उन्होंने कभी समर्थन मूल्य का मुद्दा नहीं उठाया. यह आंदोलन बड़े और छोटे किसानों के बीच में बंटा हुआ नहीं है. यह केवल जाटों और सिखों का आंदोलन है."
जगदीश के पड़ोसी और उन्हीं की तरह सैनी समाज से आने वाले किसान रवि कुमार के अनुसार, स्थानीय स्तर पर सब्जी और फलों की थोक मंडी चलाने वाली इकाई मंडी समिति, बिजनौर में है ही नहीं. वे कहते हैं, "टिकैत बंधुओं नरेश और राकेश ने, यहां सब्जी उगाने वालों के किसी मुद्दे को कभी नहीं उठाया. हमारे लिए कोई नहीं बोला."
जगदीश और रवि यह मानते हैं कि नए कृषि कानून व्यापार के लिए अच्छे साबित होंगे, इनसे छोटे किसानों के सब्जी व्यापार में अंदर तक घुसे हुए बिचौलिए निकल जाएंगे.
रवि हमें समझाते हैं, "यहां बिचौलिए हर सौदे पर 6 फ़ीसदी चार्ज लगाते हैं. इस कानून से यह बिचौलिए निकाल दिए जाएंगे और हमें अपनी बिक्री के लिए बेहतर पैसा मिलेगा. आमतौर पर बिचौलिए हमारी फूलगोभी 5 रुपए किलो खरीदते हैं जिसे फिर दुकानदार 20 रुपए किलो में बेचता है. अगर हमारी उपज सीधे दुकानदार तक जाए तो हम कुछ और रुपए कमा पाएंगे."
रवि अपना फोन उठाकर फेसबुक पर उन्हें मिला एक ऑडियो क्लिप चलाते हैं. कथिततौर पर यह एक युवा जाट का कबूल नामा है, जिसमें वह पैसे और मज़े के लिए गाजीपुर प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करता है. रवि मुस्कुराते हुए चुटकी बजाकर कहते हैं, "आप पैसा हटा लो और जाट यूं वापस हो लेंगे."
मुजफ्फरनगर के कुटेसरा गांव में 81 वर्षीय सैनी किसान रोशन लाल, जिनके पास 17 हेक्टेयर जमीन है, वह कहते हैं कि उनका समाज किसान प्रदर्शनों का समर्थन नहीं कर रहा. हम जितने भी जाट किसानों से मिले, रोशन के पास उनमें से अधिकतर से ज्यादा ज़मीन है और वह उन्हीं की तरह गन्ने की खेती करते हैं.
उनका कहना है, "चाहे कुछ भी हो मैं भाजपा के साथ हूं. मैं कानूनों के बारे में तो कुछ नहीं बोल सकता जिन्होंने जाटों को सही में डरा दिया है, लेकिन अब वो भाजपा का विरोध कर रहे हैं और हम ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे."
रोशन यह बात स्वीकार करते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार के अंदर राज्य में गन्ने के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन सत्ताधारी दल से उन्हें एक दूसरा मजबूत जोड़ बांध कर रखे हुए है. वे कहते हैं, "हमारी जाति के सभी राजनीतिक नेता भाजपा में हैं- चाहे वो कवाल के विक्रम सिंह हों या सहारनपुर के धर्म सिंह. और फिर योगी आदित्यनाथ के अंदर यूपी में अपराध पर नकेल लगी है."
रोशन के पड़ोसी 35 वर्षीय विनीत सैनी भी एक गन्ना किसान हैं और हमसे बातचीत में उन्होंने शुरू में ही यह कबूल किया कि वह नहीं जानते कि कृषि कानून किस बारे में हैं. उन्होंने हिंदी समाचार चैनल रिपब्लिक भारत पर जो भी कवरेज देखा, उससे उन्हें यही पता चला कि इन कानूनों से उनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
इसका एक कारण यह भी है कि इलाके में गन्ना मिलों से भुगतान में देरी की अधिकतर जाटों के सामने आने वाली परेशानी का सामना विनीत को नहीं करना पड़ता. वे कहते हैं, "यह बात सही है कि गन्ने के दामों में बढ़ोतरी नहीं हुई है लेकिन पास की देवबंद मिल हमें हमारी उपज के लिए समय पर भुगतान करती रही है. यह प्रदर्शन केवल इसलिए हो रहे हैं कि राज्य में चुनाव आने वाले हैं. लेकिन जब समय आएगा तो जाट भी भाजपा को ही वोट देंगे."
विनीत का परिवार लंबे समय से भाजपा का समर्थक रहा है. उनके बाप दादा आडवाणी और वाजपेई वाले दिनों से ही पार्टी के लिए वोट करते रहे हैं, इसका मुख्य कारण 80 और 90 के दशक के शुरू में चला राम जन्मभूमि आंदोलन है. उनकी वफादारी का कारण पूछने पर, वे भी बिजनौर के परमेश सिंह वाली बात दोहराते हैं कि बढ़ते हुए बीजेपी के विरोध से उनका समाज बचा हुआ है. "हम भाजपा का बहिष्कार क्यों करेंगे? केवल वही तो एक हिंदू पार्टी है."
कुछ सैनी किसान ऐसे भी हैं जिनकी चल रहे प्रदर्शनों से सहानुभूति कई प्रतिवादों के साथ आती है. शामली के बाहरी इलाके में रहने वाले सैनी किसान 65 वर्षीय जयपाल सिंह कहते हैं कि गन्ने की खेती अब इस इलाके में फायदे का धंधा नहीं रही. उनका कहना है, "हम अपने पोते पोतियो की स्कूल की फीस और होम लोन नहीं चुका पाते. गायों ने हमारी फसल तबाह कर दी है. वह हमारे गेहूं की फसल खा जाती हैं क्योंकि स्थानीय गौशालाएं उन्हें रात को बाहर निकाल देती हैं."
जब भाकियू ने शामली में महापंचायत रखी थी तो जयपाल ने प्रदर्शनों के लिए पैसा भी दान किया था. लेकिन वह यह दावा खारिज करते हैं कि सभी समाज उसके समर्थन में हैं. वे कहते हैं, "यह केवल कहने वाली बात है कि सभी 36 जातियां इसका समर्थन करती हैं जबकि केवल जाट ही इसमें शामिल हैं."
जयपाल का प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का कारण प्रदर्शनों का भाजपा विरोधी पहलू है. वे कहते हैं, “उन्होंने जब से पार्टी बनी है तब से उसे ही वोट दिया है और आगे भी देते रहेंगे. भले ही वह कोई काम ना करे." वे यह भी जोड़ते हैं कि वह प्रधानमंत्री द्वारा संसद में सोमवार को कही बात "एमएसपी था, एमएसपी है और एमएसपी आगे भी रहेगा" पर विश्वास रखते हैं.
जयपाल का कहना है, "भले ही मोदी से कुछ गलतियां हुई हों, लेकिन उन्होंने एक काम ठीक से किया, जैसे उन्होंने कोविड-19 को नियंत्रित किया अगर नहीं किया होता, तो केवल भारत ही नहीं दुनिया ही तबाह हो गई होती."
उन्हें इस बात का विश्वास कैसे है. उन्होंने झट से जवाब दिया, "मैंने यह रिपब्लिक भारत पर देखा. हम उसे हर सुबह और शाम को देखते हैं."
1 फरवरी को 65 वर्षीय बलबीर सिंह उत्तर प्रदेश के बिजनौर के आईटीआई मैदान में मोदी सरकार के द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ हुई महापंचायत में भाग लेने के लिए पहुंचे. खबरों के अनुसार वहां 15,000 से ज्यादा किसान किसान आंदोलन के समर्थन में पहुंचे.
लेकिन बलबीर इससे प्रभावित नहीं हुए. सैनी समाज से आने वाले सब्जी की खेती करने वाले किसान बलबीर ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, "जाट सब पर अपनी चला रहे हैं. एक कह रहा है हम यह करेंगे, दूसरा कह रहा है हम वह करेंगे. हमें तो कुछ ज्यादा समझ नहीं आया."
बिजनौर के रामबाग में रहने वाले बलबीर चार हेक्टेयर जमीन के मालिक हैं जिसमें वह गन्ना, गाजर, मूली, लौकी और तुरई जैसी सब्जियां उगाते हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन कर रही है जो यह दावा करती है कि उसके पास सभी जातियों के किसानों और मजदूरों का समर्थन है. भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने हरियाणा में हुई महापंचायत में कहा, "यह आंदोलन सभी जातियों का है."
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह बात पूरी तरह सही नहीं है. सैनी किसान जो जाटों की तरह ही कृषि करते हैं, भारतीय जनता पार्टी की तरफ अपनी वफादारी की वजह से इस आंदोलन को लेकर एहतियात बरत रहे हैं. साथ ही वे आंदोलन में जाटों की अत्यधिक मौजूदगी और हिंदी समाचार चैनलों के द्वारा प्रदर्शन के किए जा रहे कवरेज को लेकर ख़फा हैं.
बलबीर के बेटे परमेश सिंह कहते हैं कि वह अपने गांव के कम से कम चार जाटों को जानते हैं जिन्होंने दिल्ली-यूपी सीमा गाजीपुर में प्रदर्शन में हिस्सा लिया है, लेकिन वह और उनके पिता इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं रखते हैं.
बलबीर कहते हैं, "इस प्रदर्शन का हिस्सा वह बन सकते हैं जिसके पास खेतों का ध्यान रखने के लिए मजदूर हैं. हमारे पास तो न ज्यादा जमीन है, न मजदूर हैं. अगर हम प्रदर्शन में चले जाएंगे तो फसल की देखरेख कौन करेगा?"
कोई और प्रश्न पूछते इससे पहले व्यस्त बुजुर्ग ने हमें अपने बेटे की तरफ मुखातिब किया. उन्होंने कहा कि उन्हें खेत जाना है. 31 वर्षीय परमेश बात वहीं से शुरू करते हैं जहां से उनके पिता छोड़ कर गए.
वे समझाते हैं, "जो सब्जियां हम उगाते हैं वह पानी के हिसाब से संवेदनशील होती हैं. उन्हें बार-बार देखते रहना पड़ता है. हमारी खेती जाटों से अलग है जो अपने गन्ने की फसल के लिए घंटों ट्यूबवेल चला कर छोड़ देते हैं. इससे अलग, हम काफी सब्जी अपने खुद के इस्तेमाल के लिए भी उगाते हैं और उसका थोड़ा ही हिस्सा स्थानीय बाजार में बेचते हैं."
बिजनौर के काजीपाड़ा में रहने वाले 39 वर्षीय जगदीश सैनी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का नेतृत्व "गन्ना उगाने वालों के द्वारा किया जा रहा है." विडंबना यह है कि जगदीश भी 5 एकड़ जमीन रखने वाले गन्ना किसान ही हैं. फसल से भरी हुई एक ट्रैक्टर-ट्रॉली उनके घर के बाहर खड़ी है.
जगदीश का कहना है कि, "वामपंथी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के साथ आने के बाद, यह अब एक भाजपा के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन बन गया है. अगर यह वास्तविक आंदोलन होता तो हम इसमें हिस्सा ज़रूर लेते."
हमारी बातचीत के दौरान अधिकतर समय जगदीश ने आंदोलन के खिलाफ, उसके तथाकथित खालिस्तानी संबंध और पॉप गायिका रिहाना, पूर्व पॉर्न स्टार मिया खलीफा को कैसे प्रदर्शन के समर्थन में ट्वीट करने के लिए पैसे मिले, इस बारे में बोला.
उनकी खालिस्तान वाली बात पर हमने उनसे इस जानकारी के स्रोत के बारे में पूछा. उन्होंने अपने फोन की तरफ देखते हुए बोला, "मैंने यह रिपब्लिक भारत पर देखा. एक मिनट रुकिए, मैंने उसका वीडियो भी बनाया है. मैंने इन हिस्सों को रिकॉर्ड किया, जिससे कि जब मैं किसी और से बात करूं तो यह साबित कर सकूं." हमने उस चैनल के प्राइम टाइम कार्यक्रम की जगदीश के द्वारा बनाई गई कामचलाऊ रिकॉर्डिंग को कुछ क्षण देख कर नीचे रख दिया, जिससे वह काफी निराश दिखाई दिए.
"यह दीप सिद्धू भी खालिस्तानी है", गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा के लिए गिरफ्तार हुए अभिनेता से एक्टिविस्ट बने सिद्धू की ओर इशारा करते हुए वह बोले. "अब यह प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि वो भाजपा के साथ था. इससे पहले वह कह रहे थे कि वह उनके साथ है, लेकिन तब सिद्धू बिल्कुल सही और निर्दोष था न."
जगदीश कुछ भी कहें, लेकिन यह सही है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान प्रदर्शनों का एक राजनीतिक पहलू है. 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में सभा ने सत्ताधारी भाजपा के बहिष्कार की शपथ ली थी. लेकिन इलाके के पिछड़ी जाति समूहों में से एक, सैनी जाति के लोगों ने अपने को इन प्रदर्शनों से अलग रखा है. इसके बजाय वह सत्ताधारी दल के लिए एकमत से समर्थन जाहिर करते हैं.
जगदीश कहते हैं, "प्रदर्शन करने वाले किसान कहते हैं कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ रहे हैं. लेकिन जो किसान सब्जियां उगाते हैं उनके लिए तो उन्होंने कभी समर्थन मूल्य का मुद्दा नहीं उठाया. यह आंदोलन बड़े और छोटे किसानों के बीच में बंटा हुआ नहीं है. यह केवल जाटों और सिखों का आंदोलन है."
जगदीश के पड़ोसी और उन्हीं की तरह सैनी समाज से आने वाले किसान रवि कुमार के अनुसार, स्थानीय स्तर पर सब्जी और फलों की थोक मंडी चलाने वाली इकाई मंडी समिति, बिजनौर में है ही नहीं. वे कहते हैं, "टिकैत बंधुओं नरेश और राकेश ने, यहां सब्जी उगाने वालों के किसी मुद्दे को कभी नहीं उठाया. हमारे लिए कोई नहीं बोला."
जगदीश और रवि यह मानते हैं कि नए कृषि कानून व्यापार के लिए अच्छे साबित होंगे, इनसे छोटे किसानों के सब्जी व्यापार में अंदर तक घुसे हुए बिचौलिए निकल जाएंगे.
रवि हमें समझाते हैं, "यहां बिचौलिए हर सौदे पर 6 फ़ीसदी चार्ज लगाते हैं. इस कानून से यह बिचौलिए निकाल दिए जाएंगे और हमें अपनी बिक्री के लिए बेहतर पैसा मिलेगा. आमतौर पर बिचौलिए हमारी फूलगोभी 5 रुपए किलो खरीदते हैं जिसे फिर दुकानदार 20 रुपए किलो में बेचता है. अगर हमारी उपज सीधे दुकानदार तक जाए तो हम कुछ और रुपए कमा पाएंगे."
रवि अपना फोन उठाकर फेसबुक पर उन्हें मिला एक ऑडियो क्लिप चलाते हैं. कथिततौर पर यह एक युवा जाट का कबूल नामा है, जिसमें वह पैसे और मज़े के लिए गाजीपुर प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करता है. रवि मुस्कुराते हुए चुटकी बजाकर कहते हैं, "आप पैसा हटा लो और जाट यूं वापस हो लेंगे."
मुजफ्फरनगर के कुटेसरा गांव में 81 वर्षीय सैनी किसान रोशन लाल, जिनके पास 17 हेक्टेयर जमीन है, वह कहते हैं कि उनका समाज किसान प्रदर्शनों का समर्थन नहीं कर रहा. हम जितने भी जाट किसानों से मिले, रोशन के पास उनमें से अधिकतर से ज्यादा ज़मीन है और वह उन्हीं की तरह गन्ने की खेती करते हैं.
उनका कहना है, "चाहे कुछ भी हो मैं भाजपा के साथ हूं. मैं कानूनों के बारे में तो कुछ नहीं बोल सकता जिन्होंने जाटों को सही में डरा दिया है, लेकिन अब वो भाजपा का विरोध कर रहे हैं और हम ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे."
रोशन यह बात स्वीकार करते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार के अंदर राज्य में गन्ने के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन सत्ताधारी दल से उन्हें एक दूसरा मजबूत जोड़ बांध कर रखे हुए है. वे कहते हैं, "हमारी जाति के सभी राजनीतिक नेता भाजपा में हैं- चाहे वो कवाल के विक्रम सिंह हों या सहारनपुर के धर्म सिंह. और फिर योगी आदित्यनाथ के अंदर यूपी में अपराध पर नकेल लगी है."
रोशन के पड़ोसी 35 वर्षीय विनीत सैनी भी एक गन्ना किसान हैं और हमसे बातचीत में उन्होंने शुरू में ही यह कबूल किया कि वह नहीं जानते कि कृषि कानून किस बारे में हैं. उन्होंने हिंदी समाचार चैनल रिपब्लिक भारत पर जो भी कवरेज देखा, उससे उन्हें यही पता चला कि इन कानूनों से उनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
इसका एक कारण यह भी है कि इलाके में गन्ना मिलों से भुगतान में देरी की अधिकतर जाटों के सामने आने वाली परेशानी का सामना विनीत को नहीं करना पड़ता. वे कहते हैं, "यह बात सही है कि गन्ने के दामों में बढ़ोतरी नहीं हुई है लेकिन पास की देवबंद मिल हमें हमारी उपज के लिए समय पर भुगतान करती रही है. यह प्रदर्शन केवल इसलिए हो रहे हैं कि राज्य में चुनाव आने वाले हैं. लेकिन जब समय आएगा तो जाट भी भाजपा को ही वोट देंगे."
विनीत का परिवार लंबे समय से भाजपा का समर्थक रहा है. उनके बाप दादा आडवाणी और वाजपेई वाले दिनों से ही पार्टी के लिए वोट करते रहे हैं, इसका मुख्य कारण 80 और 90 के दशक के शुरू में चला राम जन्मभूमि आंदोलन है. उनकी वफादारी का कारण पूछने पर, वे भी बिजनौर के परमेश सिंह वाली बात दोहराते हैं कि बढ़ते हुए बीजेपी के विरोध से उनका समाज बचा हुआ है. "हम भाजपा का बहिष्कार क्यों करेंगे? केवल वही तो एक हिंदू पार्टी है."
कुछ सैनी किसान ऐसे भी हैं जिनकी चल रहे प्रदर्शनों से सहानुभूति कई प्रतिवादों के साथ आती है. शामली के बाहरी इलाके में रहने वाले सैनी किसान 65 वर्षीय जयपाल सिंह कहते हैं कि गन्ने की खेती अब इस इलाके में फायदे का धंधा नहीं रही. उनका कहना है, "हम अपने पोते पोतियो की स्कूल की फीस और होम लोन नहीं चुका पाते. गायों ने हमारी फसल तबाह कर दी है. वह हमारे गेहूं की फसल खा जाती हैं क्योंकि स्थानीय गौशालाएं उन्हें रात को बाहर निकाल देती हैं."
जब भाकियू ने शामली में महापंचायत रखी थी तो जयपाल ने प्रदर्शनों के लिए पैसा भी दान किया था. लेकिन वह यह दावा खारिज करते हैं कि सभी समाज उसके समर्थन में हैं. वे कहते हैं, "यह केवल कहने वाली बात है कि सभी 36 जातियां इसका समर्थन करती हैं जबकि केवल जाट ही इसमें शामिल हैं."
जयपाल का प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का कारण प्रदर्शनों का भाजपा विरोधी पहलू है. वे कहते हैं, “उन्होंने जब से पार्टी बनी है तब से उसे ही वोट दिया है और आगे भी देते रहेंगे. भले ही वह कोई काम ना करे." वे यह भी जोड़ते हैं कि वह प्रधानमंत्री द्वारा संसद में सोमवार को कही बात "एमएसपी था, एमएसपी है और एमएसपी आगे भी रहेगा" पर विश्वास रखते हैं.
जयपाल का कहना है, "भले ही मोदी से कुछ गलतियां हुई हों, लेकिन उन्होंने एक काम ठीक से किया, जैसे उन्होंने कोविड-19 को नियंत्रित किया अगर नहीं किया होता, तो केवल भारत ही नहीं दुनिया ही तबाह हो गई होती."
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