Newslaundry Hindi
एनएल इंटरव्यू: संतोष सिंह के साथ उनकी नई किताब और बिहार के राजनीतिक इतिहास पर बातचीत
बिहार को लंबे समय से कवर कर रहे इंडियन एक्सप्रेस के असिस्टेंट एडिटर संतोष सिंह की हाल ही में नई किताब प्रकाशित हुई. ‘जेपी टू बीजेपी’- बिहार आफ्टर लालू नाम की यह किताब सेज पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित की गई है.
किताब बिहार की राजनीति से जुड़े कई सवालों के जवाब देती है. मसलन कैसे बिहार जैसे जातीय राजनीतिक प्रदेश में नीतीश कुमार इतने सालों से मुख्यमंत्री हैं जबकि उनकी जाति का वोट बैंक पूरे प्रदेश में दो से तीन प्रतिशत ही है.
किताब के शीर्षक 'जेपी टू बीजेपी' रखने पर चित्रांशु पूछते हैं, "अखबारों की रिपोर्ट्स में ऐसी कौन सी बातें छूट गईं, जिसने आपको ये किताब लिखने के लिए प्रेरित किया?"
इस पर संतोष कहते हैं, "अखबारों में शब्दों की एक सीमा होती है जिसमें आप 1000- 2000 से ज़्यादा शब्द नहीं लिख सकते. जिसके कारण अखबारों में पूरी कहानी या दशकों का अनुभव लिखना असंभव हो जाता है. अखबारों के इतर किताबों की अपनी एक अलग दुनिया होती है, जिसमे हमें समग्रता से बातें कहीं होती है और जो ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ बाते अखबारों में छूट जाती हैं, उन्हें तसल्ली से कहने की वजह किताबें हमें देती हैं."
यहां देखिए लेखक संतोष सिंह की चित्रांशु तिवारी के साथ यह खास बातचीत..
बिहार को लंबे समय से कवर कर रहे इंडियन एक्सप्रेस के असिस्टेंट एडिटर संतोष सिंह की हाल ही में नई किताब प्रकाशित हुई. ‘जेपी टू बीजेपी’- बिहार आफ्टर लालू नाम की यह किताब सेज पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित की गई है.
किताब बिहार की राजनीति से जुड़े कई सवालों के जवाब देती है. मसलन कैसे बिहार जैसे जातीय राजनीतिक प्रदेश में नीतीश कुमार इतने सालों से मुख्यमंत्री हैं जबकि उनकी जाति का वोट बैंक पूरे प्रदेश में दो से तीन प्रतिशत ही है.
किताब के शीर्षक 'जेपी टू बीजेपी' रखने पर चित्रांशु पूछते हैं, "अखबारों की रिपोर्ट्स में ऐसी कौन सी बातें छूट गईं, जिसने आपको ये किताब लिखने के लिए प्रेरित किया?"
इस पर संतोष कहते हैं, "अखबारों में शब्दों की एक सीमा होती है जिसमें आप 1000- 2000 से ज़्यादा शब्द नहीं लिख सकते. जिसके कारण अखबारों में पूरी कहानी या दशकों का अनुभव लिखना असंभव हो जाता है. अखबारों के इतर किताबों की अपनी एक अलग दुनिया होती है, जिसमे हमें समग्रता से बातें कहीं होती है और जो ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ बाते अखबारों में छूट जाती हैं, उन्हें तसल्ली से कहने की वजह किताबें हमें देती हैं."
यहां देखिए लेखक संतोष सिंह की चित्रांशु तिवारी के साथ यह खास बातचीत..
Also Read
-
‘No staff, defunct office’: Kashmir Times editor on ‘bizarre’ charges, ‘bid to silence’
-
Is Modi saving print media? Congrats, you’re paying for it
-
India’s trains are running on luck? RTI points to rampant drunk train driving
-
98% processed is 100% lie: Investigating Gurugram’s broken waste system
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms