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मोबाइल कंपनियां अपमानित करने की हद तक आम जिदंगी में घुस गई हैं
देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रिकॉर्ड संदेश प्रसारित करती है. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए.
मंत्री, ट्राई और संसदीय समिति के नाम पत्र में यह उदाहरण दिया गया है
मोबाइल कंपनियां अपने रिकॉर्ड किए गए एक संदेश में किसी उपभोक्ता को यह जानकारी देती हैं कि दूसरे उपभोक्ता के मोबाइल से संपर्क नहीं हो सकता है. एक उपभोक्ता किसी वैसे दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है जिस दूसरे के पास मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी का एक नंबर तो हैं लेकिन उसके नंबर से संपर्क स्थापित नहीं हो सकता है क्योंकि दूसरे के नंबर के सक्रिय रहने के लिए रिचार्ज नहीं कराया जा सका है.
यहां गौरतलब है यह है कि जो उपभोक्ता दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है, उसके लिए इस रेकॉर्ड संदेश में दो तरह की सूचनाएं हैं. एक सूचना तो यह है कि एक उपभोक्ता जिस दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है, वह उससे संपर्क नहीं स्थापित कर सकता है. यह सूचना उस उपभोक्ता के लिए अनिवार्य हो सकती है जो कि दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है. लेकिन दूसरी सूचना यह है कि दूसरे उपभोक्ता के नंबर पर इसलिए संपर्क नहीं हो सकता है क्योंकि उसका नंबर मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी से रिचार्ज नहीं कराया गया है. इस दूसरे संदेश की संपर्क की कोशिश करने वाले उपभोक्ता के लिए क्यों अनिवार्य होनी चाहिए?
आम जिंदगी में घुसपैठ इस तरह होती है और उससे भंग होती है
दूसरे उपभोक्ता ने अपना नंबर रिचार्ज नहीं कराया है, या वह नहीं कराने के हालात में है या फिर वह नहीं कराना चाहता या चाहती है तो इसके लिए वह संपर्क करने वाले उपभोक्ता की नजरों में क्यों अपमानित महसूस करें. दूसरे शब्दों में कहें कि मोबाइल कंपनियां क्यों अपने संदेश से अपने उन उपभोक्ताओं पर दबाव बनाने की कोशिश करती है जो कि अपने नंबर को संपर्क के हालात तक रखने के लिए रिचार्ज कराने के निर्णय को स्थगित रखना चाहते हैं.
एक उपभोक्ता का यह निजी मामला है कि उसका फोन रिचार्ज हैं या नहीं है. उसका यह फैसला भी निजीत्व का हिस्सा है कि वह रिचार्ज कराना चाहता है या उसे एक निश्चित समय तक के लिए स्थगित रखना चाहता है. मोबाइल कंपनियां इस तरह के संदेश के, जिसका वर्णन ऊपर किया गया है, अपने और उपभोक्ता के बीच करार की गोपनीयता को भी भंग करती है.
पत्र में कार्रवाई करने की मांग की गई हैं
पत्र में उन मोबाइल कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई हैं जिन्होंने निजीत्व का ध्यान नहीं रखा है. पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि मोबाइल सेवाएं देने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को शायद इस रूप में देखती है कि उपभोक्ताओं को चाहें जैसी भाषा, स्वर व शैली में वे संदेश भी दिए जा सकते हैं जो कि उन्हें आहत, अपमानित व उनके लिए अस्वीकार्य होता है.
पूरी दुनिया में जहां भी नागरिक के निजता (प्राइवेसी) की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी होती है, उसे लोकतंत्र के लिए सबसे मजबूत व खूबसूरत माना जाता हैं. यह किसी भी देश में लोकतंत्र के प्रति सजगता का एक मानक होता है. भारत में नागरिकों के निजता में किसी भी बाहरी मसलन किसी भी सत्ता संस्थान व गैर सरकारी संस्था-संस्थान के साथ किसी दूसरे नागरिक द्वारा भी हस्तक्षेप को नागरिक व मानव अधिकारों के हनन के तौर पर लिया जाता है.
पत्र में सुझाव
1- देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रेकॉर्ड संदेश प्रसारित करती हैं. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए, यह सुझाव दिया गया हैं.
2- मोबाइल कंपनियों को उन तमाम संदेशों को अपने उपभोक्ताओं के बीच प्रस्तुत करना चाहिए जो कि उपभोक्ताओं द्वारा उनकी सेवाएं लेने के साथ उन्हें मिलनी शुरू होती हैं. उपभोक्ताओं से उनकी यह इच्छा पूछी जानी चाहिए कि वे किसी तरह के संदेशों को स्वीकार करना पसंद करेंगे. उपभोक्ताओं द्वारा संदेशों की भाषा व शैली के लिए कोई सुझाव हो तो उन सुझावों को भी दर्ज करने और तदानुसार उस पर विचार करने की व्यवस्था की जानी चाहिए. उनकी भाषा क्या है , यह भी पूछा जाना चाहिए. यदि हिन्दी भाषी उपभोक्ता को अंग्रेजी व किसी दूसरी भाषा में संदेश मिलता है तो वह उसपर एक अतिरिक्त बोझ हैं. बल्कि यह उसके लिए वह कूड़े के समान है जिसका बोझ उठाने के लिए उसे अभिशप्त समझा जाता है.
3- मोबाइल सेवा कंपनियों के संदेशों की प्रक्रिया मानवीय समाज के लिए बेहद संवेदनशील होती है. संवेदनशीलता का अभाव नागरिकों के मानवीय भावों व स्वभावों को बुरी तरह प्रभावित करता है जिसका दूरगामी असर समाज और उसकी संस्कृति पर पड़ता है.
देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रिकॉर्ड संदेश प्रसारित करती है. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए.
मंत्री, ट्राई और संसदीय समिति के नाम पत्र में यह उदाहरण दिया गया है
मोबाइल कंपनियां अपने रिकॉर्ड किए गए एक संदेश में किसी उपभोक्ता को यह जानकारी देती हैं कि दूसरे उपभोक्ता के मोबाइल से संपर्क नहीं हो सकता है. एक उपभोक्ता किसी वैसे दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है जिस दूसरे के पास मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी का एक नंबर तो हैं लेकिन उसके नंबर से संपर्क स्थापित नहीं हो सकता है क्योंकि दूसरे के नंबर के सक्रिय रहने के लिए रिचार्ज नहीं कराया जा सका है.
यहां गौरतलब है यह है कि जो उपभोक्ता दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है, उसके लिए इस रेकॉर्ड संदेश में दो तरह की सूचनाएं हैं. एक सूचना तो यह है कि एक उपभोक्ता जिस दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है, वह उससे संपर्क नहीं स्थापित कर सकता है. यह सूचना उस उपभोक्ता के लिए अनिवार्य हो सकती है जो कि दूसरे उपभोक्ता से संपर्क करना चाहता है. लेकिन दूसरी सूचना यह है कि दूसरे उपभोक्ता के नंबर पर इसलिए संपर्क नहीं हो सकता है क्योंकि उसका नंबर मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनी से रिचार्ज नहीं कराया गया है. इस दूसरे संदेश की संपर्क की कोशिश करने वाले उपभोक्ता के लिए क्यों अनिवार्य होनी चाहिए?
आम जिंदगी में घुसपैठ इस तरह होती है और उससे भंग होती है
दूसरे उपभोक्ता ने अपना नंबर रिचार्ज नहीं कराया है, या वह नहीं कराने के हालात में है या फिर वह नहीं कराना चाहता या चाहती है तो इसके लिए वह संपर्क करने वाले उपभोक्ता की नजरों में क्यों अपमानित महसूस करें. दूसरे शब्दों में कहें कि मोबाइल कंपनियां क्यों अपने संदेश से अपने उन उपभोक्ताओं पर दबाव बनाने की कोशिश करती है जो कि अपने नंबर को संपर्क के हालात तक रखने के लिए रिचार्ज कराने के निर्णय को स्थगित रखना चाहते हैं.
एक उपभोक्ता का यह निजी मामला है कि उसका फोन रिचार्ज हैं या नहीं है. उसका यह फैसला भी निजीत्व का हिस्सा है कि वह रिचार्ज कराना चाहता है या उसे एक निश्चित समय तक के लिए स्थगित रखना चाहता है. मोबाइल कंपनियां इस तरह के संदेश के, जिसका वर्णन ऊपर किया गया है, अपने और उपभोक्ता के बीच करार की गोपनीयता को भी भंग करती है.
पत्र में कार्रवाई करने की मांग की गई हैं
पत्र में उन मोबाइल कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई हैं जिन्होंने निजीत्व का ध्यान नहीं रखा है. पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि मोबाइल सेवाएं देने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को शायद इस रूप में देखती है कि उपभोक्ताओं को चाहें जैसी भाषा, स्वर व शैली में वे संदेश भी दिए जा सकते हैं जो कि उन्हें आहत, अपमानित व उनके लिए अस्वीकार्य होता है.
पूरी दुनिया में जहां भी नागरिक के निजता (प्राइवेसी) की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी होती है, उसे लोकतंत्र के लिए सबसे मजबूत व खूबसूरत माना जाता हैं. यह किसी भी देश में लोकतंत्र के प्रति सजगता का एक मानक होता है. भारत में नागरिकों के निजता में किसी भी बाहरी मसलन किसी भी सत्ता संस्थान व गैर सरकारी संस्था-संस्थान के साथ किसी दूसरे नागरिक द्वारा भी हस्तक्षेप को नागरिक व मानव अधिकारों के हनन के तौर पर लिया जाता है.
पत्र में सुझाव
1- देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रेकॉर्ड संदेश प्रसारित करती हैं. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए, यह सुझाव दिया गया हैं.
2- मोबाइल कंपनियों को उन तमाम संदेशों को अपने उपभोक्ताओं के बीच प्रस्तुत करना चाहिए जो कि उपभोक्ताओं द्वारा उनकी सेवाएं लेने के साथ उन्हें मिलनी शुरू होती हैं. उपभोक्ताओं से उनकी यह इच्छा पूछी जानी चाहिए कि वे किसी तरह के संदेशों को स्वीकार करना पसंद करेंगे. उपभोक्ताओं द्वारा संदेशों की भाषा व शैली के लिए कोई सुझाव हो तो उन सुझावों को भी दर्ज करने और तदानुसार उस पर विचार करने की व्यवस्था की जानी चाहिए. उनकी भाषा क्या है , यह भी पूछा जाना चाहिए. यदि हिन्दी भाषी उपभोक्ता को अंग्रेजी व किसी दूसरी भाषा में संदेश मिलता है तो वह उसपर एक अतिरिक्त बोझ हैं. बल्कि यह उसके लिए वह कूड़े के समान है जिसका बोझ उठाने के लिए उसे अभिशप्त समझा जाता है.
3- मोबाइल सेवा कंपनियों के संदेशों की प्रक्रिया मानवीय समाज के लिए बेहद संवेदनशील होती है. संवेदनशीलता का अभाव नागरिकों के मानवीय भावों व स्वभावों को बुरी तरह प्रभावित करता है जिसका दूरगामी असर समाज और उसकी संस्कृति पर पड़ता है.
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