Book Review
पुस्तक समीक्षा: "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट", गुजरे हुए समय की याद दिलाने वाली पुस्तक
रामचंद्र गुहा हमारे समय के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से ऊपर के क्रम में गिने जाने वाले लेखक हैं. राम का पसंदीदा विषय "क्रिकेट" के प्रति उनका खास दृष्टिकोण रहा है, जिसे वे अपने जादुई भाषा शिल्प में बेहद सरलता से हमारे समक्ष लाते हैं. वह हमें "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट" किताब के माध्यम से अवगत कराते हैं कि समय के साथ कैसे भारतीय उपमहाद्वीप में इस खेल को आत्मसात किया गया है.
क्रिकेट का साहित्य समृद्ध है. क्रिकेट से सम्बंधित किताबें किसी भी अन्य खेल की तुलना में अधिक समय से हैं. यह पहली बार नहीं है जब गुहा ने क्रिकेट पर कोई किताब लिखी है. क्रिकेट विषय पर "ए कॉर्नर ऑफ ए फॉरेन फील्ड" और "स्पिन एंड अदर टर्न्स" उनकी बेहतरीन कृति है. जब हम एक क्षण के लिए फिर से एक "कार्नर ऑफ़ अ फॉरेन फील्ड" को देखते हैं, जहां राम ने विस्तार से बताया है कि, 1990 के दशक के शुरुआती वर्ष में कैसे उपमहाद्वीप में औपनिवेशिक खेल की संस्कृति को विकृत करने की शुरुआत हो चुकी थी. यहां गौरतलब है कि यह वही दशक था जिसमे आर्थिक उदारीकरण की योजना और उपग्रह टेलीविजन का भारत में आगमन हो चुका था. यह एक गुजरे हुए समय की याद दिलाने वाली वैचारिक रूप से सुसंगठित पुस्तक है.
किताब की शुरुआत गुहा के जन्मस्थान देहरादून को याद करने के साथ होती है. फिर वे अपने दिल्ली प्रवास और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के समय में खेले गए क्रिकेट का जिक्र करते हैं. इसी क्रम में हम उनके चाचा और इस खेल के पहले नायक एन दोरास्वामी से भी मिलते हैं. इस किताब में हमें क्लब और कॉलेज के मैचों के साथ व्यक्तियों, अनगिनित स्मृतियों, घटनाओं, पात्रों, और लेखक के द्वारा देखे गए मैचों के बहुत सारे स्मृतिचित्र एक साथ मिलते हैं. क्रिकेट के साथ राम गुहा के भावनात्मक संबंध का सारांश हमें इस किताब में मिलता है.
"द कॉमनवेल्थ ऑफ क्रिकेट" एक संस्मरण के रूप में शुरू होता है. गुहा इस विषय में बात करते हैं कि उन्होंने क्रिकेट देखना कैसे शुरू किया, कब उन्होंने खेलना शुरू किया, अपने स्कूल और कॉलेज के क्रिकेट के दिनों को बहुत ही संजदीगी से याद करते हैं, जिसे उन्होंने एक खास जुनून के साथ खेला और जिया है. इस पुस्तक में वह अपने अद्भुत समरण शक्ति से इस खेल से संबंधित घटनाओं, व्यक्तित्वों, उपाख्यानों (जो हमेशा तथ्यों से बंधे नहीं होते हैं) और अपने गृह राज्य कर्नाटका टीम के साथ-साथ अपने जीवन से सबंधित पक्षों को लेकर का एक शानदार आख्यान बुनते हैं. कुछ बिंदु पर यह पुस्तक एक व्यापक कैनवास को चित्रित करती है, गुहा अपने अनुभवों जिसमे उनका क्रिकेट के इतिहास का ज्ञान, अपने पसंदीदा क्रिकेटरों, उनसे मिलने के उपरांत के संस्मरणों के विषय में जो तथ्य साझा करते हैं, वह वास्तव में हमें आनंदित करता है.
मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद सामाजिक असमानता खतरनाक रूप से बढ़ गई थी. कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था. राजनीतिक रूप से भी ये अस्थिर समय था. वर्ष 1989-1998 के दौरान देश में सात अलग-अलग प्रधानमंत्री बने थे. रामचंद्र गुहा किताब में लिखते हैं, "नफरत, संदेह और भय और हिंसा के इस माहौल में सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पहला शतक बनाया. उनके बल्लेबाजी के कौशल और बहुमुखी प्रतिभा ने लाखों भारतीयों को अस्थायी रूप से अपनी रोजमर्रा की चुनौतिओं को कम कर दिया."
यदि आप क्रिकेट की किताबों के विषय में जानते हैं, तो आपको इस बात की जानकारी होगी कि अब तक जो भी लिखा गया है उसमे अधिकांश संस्मरण, क्रिकेट इतिहास और उसकी संस्कृति का विवरण, महान खिलाड़ियों की जीवनी अथवा आत्मकथा, स्कूल, क्लब, राज्य और राष्ट्रीय टीमों के पसंदीदा खिलाड़ियों के उपाख्यानों, समकालीन क्रिकेट के मुद्दों पर टिप्पणी मात्र है. इन सब विषयों पर सीएलआर जेम्स अपनी ऐतिहासिक कृति “अबाउट बियॉन्ड ए बाउंड्री” में विस्तार से लिखते हैं.
कई भारतीय लेखकों ने भी क्रिकेट पर बेहतर लिखा है. इनमें से कुछ ने इस विषय पर अपनी दृष्टि के साथ लिखने की कोशिश की है, यथा राजन बाला और मुकुल केसवन इस क्रम में प्रमुख नाम हैं. इस प्रकार के पुस्तकों में से अधिकांश रोचक और सूचनात्मक हैं, लेकिन राम गुहा की किताब, उन सबसे बेहतर है. जो पाठक गुहा को पढ़ते आएं हैं उन्हें आश्चर्य नहीं होगा. गुहा के लिए यह किताब उनके लिए एक गुरु की आज्ञा है, जिसे उन्होंने बेहद खूबसूरती से लिखा है. हम जानते हैं कि गुहा तीन दशक से अधिक समय से क्रिकेट पर बेबाक अंदाज में लिखते रहे हैं. यह नई पुस्तक एक व्यक्तिगत यात्रा की तरह है, जो हर लिहाज से आधुनिक भारतीय क्रिकेट की यात्रा भी है, जिसमें 1971 में इंग्लैंड पर जीत से लेकर 1983 और 2011 में आईपीएल से लेकर विश्व कप की जीत तक का सफर शामिल है. उनकी सहानुभूति हमेशा की तरह उन लोगों के साथ थी जिन्हें उन्होंने भारतीय क्रिकेट के निर्माण में अपना योगदान दिया है. गुहा क्रिकेट पर अधिकार के साथ लिखते हैं.
इस किताब में गुहा अपने पसंदीदा पाकिस्तानी क्रिकेटरों के विषय में विस्तार से लिखते हैं. जावेद मियांदाद पर इसमें एक लंबा लेख है. गुहा एक शानदार संस्मरण का भी उल्लेख करते हैं जिसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के कोपेनहेगन में एक पाकिस्तानी क्रिकेट प्रशंसक के साथ एक सुंदर और लंबी बातचीत की है. मुझे किताब के उस हिस्सों से व्यक्तिगत जुड़ाव जैसा है, जिसमें गुहा कुछ ऐसे क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में बात करते हैं, जो मेरे इस खेल के समझ के विकास होने से पहले ही रिटायर हो चुके थे.
मुझे खुशी हुई जब मैंने कीथ मिलर को समर्पित एक अनुभाग पढ़ा, जो मेरे पसंदीदा क्रिकेटर में से एक हैं. विजय हजारे पर भी एक लेख है जो बेहतरीन तरीके से लिखा गया है आप गुहा के इस कृति को पढ़ते हुए यादों के समन्दर में डूबते हैं और आप उन्हें याद करते हुए बार-बार भावनात्मक होते हैं. गुहा का सचिन तेंदुलकर वाला अध्याय थोड़ा खींचा गया है, इसके बावज़ूद, किताब सुंदर और परिपूर्ण है. इस कथा में बिशन सिंह बेदी और ईएएस प्रसन्ना के स्पिन मंत्रमुग्ध करता है, गुंडप्पा विश्वनाथ या विजय हजारे की आकर्षक बल्लेबाजी के रूप में यह हमें एक जादू की दुनिया में ले जाता है.
रामचंद्र गुहा हमारे समय के अग्रगण्य इतिहासकार, पर्यावरण विषय के शानदार लेखक के साथ एक गंभीर राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. पर जब बात क्रिकेट की आती है तो वह अभी भी इस प्रिय खेल के अपने नायकों के साथ एक सेल्फी के लिए उत्साहित रहते है. देहरादून की उनकी यादों के केंद्र में क्रिकेट का खेल, असंख्य प्रकार के पेड़ों से घिरे मैदान और पहाड़ी राम गुहा की समृतियों में अभी भी जीवंत है. शायद यही वह जुड़ाव है, जिसने उन्हें कटुता से मुक्ति दिलाई, जिसका उन्हें बीसीसीआई के अल्पकालिक प्रशाशनिक कायर्भार के समय उन्हें सामना करना पड़ा था.
पुस्तक के अंतिम अध्याय में, जिसमें गुहा दार्शनिक विलियम जेम्स को "वेराइटीज ऑफ क्रिकेटिंग चौविनिज्म" कहकर एक संकेत देते हैं (विलियम जेम्स ने "द वेराइटीज ऑफ रिलीजियस एक्सपीरियंस" नामक एक पुस्तक लिखी, वह कहते हैं, "क्रिकेट की दो मौलिक धुरी हैं- राष्ट्रवाद और पीढ़ी. प्रत्येक क्रिकेट प्रशंसक लगभग बिना किसी अपवाद के पैदा होता है, और अधिकांश क्रिकेट प्रशंसक उसे कभी नहीं विस्मृत करते हैं."
क्रिकेट का सबसे परिष्कृत रूप टेस्ट क्रिकेट है और बाकी वास्तव में बकवास है. टेस्ट क्रिकेट सिंगल माल्ट व्हिस्की है जबकि एकदिवसीय (50-50) क्रिकेट भारतीय-निर्मित विदेशी शराब है, तथा आईपीएल सड़क के नीचे बिकने वाली देशी शराब है. आईपीएल क्रिकेट एक ऐसी ही लत है, इसलिए लोग एडिक्ट की तरह इसे देखते हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है. यह नशीली दवाओं की ख़राब लत की तरह है. रामचन्द्र गुहा, गंभीरता से यह सब बताते हैं!
क्रिकेट फैन होने के कारण को जानने के लिए, यह एक बेहतरीन किताब है. जब आप पढ़ेंगे तो आपको यह एहसास होगा कि गुहा जब अपने खुद के अनुभवों को हमारे समक्ष रखते हैं तब यह हमरे लिए यह एक आइना दिखाने का काम करते हैं. हम एक ही समय में बार-बार मुग्ध और विस्मित होते हैं. एक प्रशंसक, खिलाड़ी, लेखक, विद्वान,और प्रशासक के रूप में, रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट के साथ बेहद भावनात्मक जीवन बिताया है. लेखक राम गुहा "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट" के रूप में इस महान खेल क्रिकेट के इतिहास और वर्तमान का समाजशात्रीय विश्लेषण के साथ एक शानदार और दीर्घकालिक महत्व की पुस्तक लिखी है.
क्रिकेट पर गुहा की इससे पहली किताब 2004 में आई थी, एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने इस विषय पर यह पुस्तक लिखी है. मुझे और उनके सभी चाहने वालों को उम्मीद है कि यह क्रिकेट पर उनकी आखिरी किताब नहीं है. गुहा की नई पुस्तक क्रिकेट के खेल का सामाजिक इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद किया जायेगा.
पुस्तक समीक्षा: कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट- रामचंद्र गुहा
प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस
भाषा: अंग्रेजी
मूल्य: 559 रुपये
(समीक्षक, आशुतोष कुमार ठाकुर बैंगलोर में रहते हैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं)
रामचंद्र गुहा हमारे समय के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से ऊपर के क्रम में गिने जाने वाले लेखक हैं. राम का पसंदीदा विषय "क्रिकेट" के प्रति उनका खास दृष्टिकोण रहा है, जिसे वे अपने जादुई भाषा शिल्प में बेहद सरलता से हमारे समक्ष लाते हैं. वह हमें "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट" किताब के माध्यम से अवगत कराते हैं कि समय के साथ कैसे भारतीय उपमहाद्वीप में इस खेल को आत्मसात किया गया है.
क्रिकेट का साहित्य समृद्ध है. क्रिकेट से सम्बंधित किताबें किसी भी अन्य खेल की तुलना में अधिक समय से हैं. यह पहली बार नहीं है जब गुहा ने क्रिकेट पर कोई किताब लिखी है. क्रिकेट विषय पर "ए कॉर्नर ऑफ ए फॉरेन फील्ड" और "स्पिन एंड अदर टर्न्स" उनकी बेहतरीन कृति है. जब हम एक क्षण के लिए फिर से एक "कार्नर ऑफ़ अ फॉरेन फील्ड" को देखते हैं, जहां राम ने विस्तार से बताया है कि, 1990 के दशक के शुरुआती वर्ष में कैसे उपमहाद्वीप में औपनिवेशिक खेल की संस्कृति को विकृत करने की शुरुआत हो चुकी थी. यहां गौरतलब है कि यह वही दशक था जिसमे आर्थिक उदारीकरण की योजना और उपग्रह टेलीविजन का भारत में आगमन हो चुका था. यह एक गुजरे हुए समय की याद दिलाने वाली वैचारिक रूप से सुसंगठित पुस्तक है.
किताब की शुरुआत गुहा के जन्मस्थान देहरादून को याद करने के साथ होती है. फिर वे अपने दिल्ली प्रवास और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के समय में खेले गए क्रिकेट का जिक्र करते हैं. इसी क्रम में हम उनके चाचा और इस खेल के पहले नायक एन दोरास्वामी से भी मिलते हैं. इस किताब में हमें क्लब और कॉलेज के मैचों के साथ व्यक्तियों, अनगिनित स्मृतियों, घटनाओं, पात्रों, और लेखक के द्वारा देखे गए मैचों के बहुत सारे स्मृतिचित्र एक साथ मिलते हैं. क्रिकेट के साथ राम गुहा के भावनात्मक संबंध का सारांश हमें इस किताब में मिलता है.
"द कॉमनवेल्थ ऑफ क्रिकेट" एक संस्मरण के रूप में शुरू होता है. गुहा इस विषय में बात करते हैं कि उन्होंने क्रिकेट देखना कैसे शुरू किया, कब उन्होंने खेलना शुरू किया, अपने स्कूल और कॉलेज के क्रिकेट के दिनों को बहुत ही संजदीगी से याद करते हैं, जिसे उन्होंने एक खास जुनून के साथ खेला और जिया है. इस पुस्तक में वह अपने अद्भुत समरण शक्ति से इस खेल से संबंधित घटनाओं, व्यक्तित्वों, उपाख्यानों (जो हमेशा तथ्यों से बंधे नहीं होते हैं) और अपने गृह राज्य कर्नाटका टीम के साथ-साथ अपने जीवन से सबंधित पक्षों को लेकर का एक शानदार आख्यान बुनते हैं. कुछ बिंदु पर यह पुस्तक एक व्यापक कैनवास को चित्रित करती है, गुहा अपने अनुभवों जिसमे उनका क्रिकेट के इतिहास का ज्ञान, अपने पसंदीदा क्रिकेटरों, उनसे मिलने के उपरांत के संस्मरणों के विषय में जो तथ्य साझा करते हैं, वह वास्तव में हमें आनंदित करता है.
मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद सामाजिक असमानता खतरनाक रूप से बढ़ गई थी. कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था. राजनीतिक रूप से भी ये अस्थिर समय था. वर्ष 1989-1998 के दौरान देश में सात अलग-अलग प्रधानमंत्री बने थे. रामचंद्र गुहा किताब में लिखते हैं, "नफरत, संदेह और भय और हिंसा के इस माहौल में सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पहला शतक बनाया. उनके बल्लेबाजी के कौशल और बहुमुखी प्रतिभा ने लाखों भारतीयों को अस्थायी रूप से अपनी रोजमर्रा की चुनौतिओं को कम कर दिया."
यदि आप क्रिकेट की किताबों के विषय में जानते हैं, तो आपको इस बात की जानकारी होगी कि अब तक जो भी लिखा गया है उसमे अधिकांश संस्मरण, क्रिकेट इतिहास और उसकी संस्कृति का विवरण, महान खिलाड़ियों की जीवनी अथवा आत्मकथा, स्कूल, क्लब, राज्य और राष्ट्रीय टीमों के पसंदीदा खिलाड़ियों के उपाख्यानों, समकालीन क्रिकेट के मुद्दों पर टिप्पणी मात्र है. इन सब विषयों पर सीएलआर जेम्स अपनी ऐतिहासिक कृति “अबाउट बियॉन्ड ए बाउंड्री” में विस्तार से लिखते हैं.
कई भारतीय लेखकों ने भी क्रिकेट पर बेहतर लिखा है. इनमें से कुछ ने इस विषय पर अपनी दृष्टि के साथ लिखने की कोशिश की है, यथा राजन बाला और मुकुल केसवन इस क्रम में प्रमुख नाम हैं. इस प्रकार के पुस्तकों में से अधिकांश रोचक और सूचनात्मक हैं, लेकिन राम गुहा की किताब, उन सबसे बेहतर है. जो पाठक गुहा को पढ़ते आएं हैं उन्हें आश्चर्य नहीं होगा. गुहा के लिए यह किताब उनके लिए एक गुरु की आज्ञा है, जिसे उन्होंने बेहद खूबसूरती से लिखा है. हम जानते हैं कि गुहा तीन दशक से अधिक समय से क्रिकेट पर बेबाक अंदाज में लिखते रहे हैं. यह नई पुस्तक एक व्यक्तिगत यात्रा की तरह है, जो हर लिहाज से आधुनिक भारतीय क्रिकेट की यात्रा भी है, जिसमें 1971 में इंग्लैंड पर जीत से लेकर 1983 और 2011 में आईपीएल से लेकर विश्व कप की जीत तक का सफर शामिल है. उनकी सहानुभूति हमेशा की तरह उन लोगों के साथ थी जिन्हें उन्होंने भारतीय क्रिकेट के निर्माण में अपना योगदान दिया है. गुहा क्रिकेट पर अधिकार के साथ लिखते हैं.
इस किताब में गुहा अपने पसंदीदा पाकिस्तानी क्रिकेटरों के विषय में विस्तार से लिखते हैं. जावेद मियांदाद पर इसमें एक लंबा लेख है. गुहा एक शानदार संस्मरण का भी उल्लेख करते हैं जिसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के कोपेनहेगन में एक पाकिस्तानी क्रिकेट प्रशंसक के साथ एक सुंदर और लंबी बातचीत की है. मुझे किताब के उस हिस्सों से व्यक्तिगत जुड़ाव जैसा है, जिसमें गुहा कुछ ऐसे क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में बात करते हैं, जो मेरे इस खेल के समझ के विकास होने से पहले ही रिटायर हो चुके थे.
मुझे खुशी हुई जब मैंने कीथ मिलर को समर्पित एक अनुभाग पढ़ा, जो मेरे पसंदीदा क्रिकेटर में से एक हैं. विजय हजारे पर भी एक लेख है जो बेहतरीन तरीके से लिखा गया है आप गुहा के इस कृति को पढ़ते हुए यादों के समन्दर में डूबते हैं और आप उन्हें याद करते हुए बार-बार भावनात्मक होते हैं. गुहा का सचिन तेंदुलकर वाला अध्याय थोड़ा खींचा गया है, इसके बावज़ूद, किताब सुंदर और परिपूर्ण है. इस कथा में बिशन सिंह बेदी और ईएएस प्रसन्ना के स्पिन मंत्रमुग्ध करता है, गुंडप्पा विश्वनाथ या विजय हजारे की आकर्षक बल्लेबाजी के रूप में यह हमें एक जादू की दुनिया में ले जाता है.
रामचंद्र गुहा हमारे समय के अग्रगण्य इतिहासकार, पर्यावरण विषय के शानदार लेखक के साथ एक गंभीर राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. पर जब बात क्रिकेट की आती है तो वह अभी भी इस प्रिय खेल के अपने नायकों के साथ एक सेल्फी के लिए उत्साहित रहते है. देहरादून की उनकी यादों के केंद्र में क्रिकेट का खेल, असंख्य प्रकार के पेड़ों से घिरे मैदान और पहाड़ी राम गुहा की समृतियों में अभी भी जीवंत है. शायद यही वह जुड़ाव है, जिसने उन्हें कटुता से मुक्ति दिलाई, जिसका उन्हें बीसीसीआई के अल्पकालिक प्रशाशनिक कायर्भार के समय उन्हें सामना करना पड़ा था.
पुस्तक के अंतिम अध्याय में, जिसमें गुहा दार्शनिक विलियम जेम्स को "वेराइटीज ऑफ क्रिकेटिंग चौविनिज्म" कहकर एक संकेत देते हैं (विलियम जेम्स ने "द वेराइटीज ऑफ रिलीजियस एक्सपीरियंस" नामक एक पुस्तक लिखी, वह कहते हैं, "क्रिकेट की दो मौलिक धुरी हैं- राष्ट्रवाद और पीढ़ी. प्रत्येक क्रिकेट प्रशंसक लगभग बिना किसी अपवाद के पैदा होता है, और अधिकांश क्रिकेट प्रशंसक उसे कभी नहीं विस्मृत करते हैं."
क्रिकेट का सबसे परिष्कृत रूप टेस्ट क्रिकेट है और बाकी वास्तव में बकवास है. टेस्ट क्रिकेट सिंगल माल्ट व्हिस्की है जबकि एकदिवसीय (50-50) क्रिकेट भारतीय-निर्मित विदेशी शराब है, तथा आईपीएल सड़क के नीचे बिकने वाली देशी शराब है. आईपीएल क्रिकेट एक ऐसी ही लत है, इसलिए लोग एडिक्ट की तरह इसे देखते हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है. यह नशीली दवाओं की ख़राब लत की तरह है. रामचन्द्र गुहा, गंभीरता से यह सब बताते हैं!
क्रिकेट फैन होने के कारण को जानने के लिए, यह एक बेहतरीन किताब है. जब आप पढ़ेंगे तो आपको यह एहसास होगा कि गुहा जब अपने खुद के अनुभवों को हमारे समक्ष रखते हैं तब यह हमरे लिए यह एक आइना दिखाने का काम करते हैं. हम एक ही समय में बार-बार मुग्ध और विस्मित होते हैं. एक प्रशंसक, खिलाड़ी, लेखक, विद्वान,और प्रशासक के रूप में, रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट के साथ बेहद भावनात्मक जीवन बिताया है. लेखक राम गुहा "कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट" के रूप में इस महान खेल क्रिकेट के इतिहास और वर्तमान का समाजशात्रीय विश्लेषण के साथ एक शानदार और दीर्घकालिक महत्व की पुस्तक लिखी है.
क्रिकेट पर गुहा की इससे पहली किताब 2004 में आई थी, एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने इस विषय पर यह पुस्तक लिखी है. मुझे और उनके सभी चाहने वालों को उम्मीद है कि यह क्रिकेट पर उनकी आखिरी किताब नहीं है. गुहा की नई पुस्तक क्रिकेट के खेल का सामाजिक इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद किया जायेगा.
पुस्तक समीक्षा: कॉमनवेल्थ ऑफ़ क्रिकेट- रामचंद्र गुहा
प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस
भाषा: अंग्रेजी
मूल्य: 559 रुपये
(समीक्षक, आशुतोष कुमार ठाकुर बैंगलोर में रहते हैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं)
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