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उत्तर प्रदेश की उलटबासियां: अधिकारी से चपरासी बनाए गए 4 कर्मचारी
अगर किसी विभाग के जिले के अधिकारी को पता चले कि जिस दफ्तर में वह अब तक अधिकारी था उसी दफ्तर में अगले दिन से उसे चपरासी और चौकीदार का काम करना होगा तो कैसा अनुभव होगा. इस सवाल का ठीक से जवाब उत्तर प्रदेश के ये चार कर्मचारी ही दे सकते हैं, जिन्हें 6 जनवरी 2021 को सरकार द्वारा जारी एक आदेश के बाद डिमोट कर दिया गया था. इन सभी को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपर जिला सूचना अधिकारी से डिमोट करके सीधे चतुर्थ श्रेणी में डाल दिया गया. हालांकि हाईकोर्ट ने अब सरकार के इस फैसले पर स्टे दे दिया है. यानी फिलहाल के लिए इस फैसले पर रोक लगा दी है.
यह कहानी बेहद हैरान करने वाली है कि किसी अधिकारी को चपरासी कैसे बनाया जा सकता है, लेकिन यह हकीकत है.
जिन्हें अब अधिकारी से डिमोट कर विभाग की सबसे नीचे की पोस्ट दे दी गई है उनसे हमने बात की. यह सब कुछ दिन पहले तक अलग-अलग जिलों में अपर जिला सूचना अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. इनके कामकाज के लिए इन्हें प्रशंसापत्र भी दिए गए. लेकिन अचानक से इन्हें एकदम से अधिकारी से डिमोट कर दिया गया. अपनी पड़ताल में हमने पाया कि ये चारो अधिकारी प्रमोशन पाकर अधिकारी बने थे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स (इंडिया टीवी, पत्रिका, जी न्यूज, न्यूज 18) बताती हैं कि इन सभी का प्रमोशन गलत तरीके से किया गया था इसलिए इन्हें दोबारा से इनके मूल पद पर भेज दिया गया है.
अब तक कई डीएम और मंत्रियों के साथ काम किया, अब चौकीदारी करेंगे
41 वर्षीय दयाशंकर फिरोजाबाद में अपर जिला सूचना अधिकारी रहते हुए जिला सूचना अधिकारी का काम देखते थे. दयाशंकर दो विषयों पॉलिटिकल साइंस और इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. साथ ही वह बीएड भी हैं और टीईटी की परीक्षा भी पास की हुई है. वह कहते हैं, "विभाग ने हमारा प्रमोशन कर दिया था इस वजह से हमने फिर दूसरी तरफ ध्यान नहीं दिया वरना आज मैं टीचर होता."
वह कहते हैं, "2013 में विभाग द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया था जिसमें प्रदेश भर के लोगों से कई पदों पर आवेदन मांगे गए. अपनी-अपनी योग्यता के हिसाब से लोगों ने आवेदन किए. 2013 में आवेदन के बाद 2014 में विभाग द्वारा एक कमेटी गठित की गई. इस कमेटी में दो आईएएस अधिकारी अनिल पाठक और डॉ. रुपेश भी शामिल थे. इनके अलावा विभाग के कई अधिकारी थे. जिसमें उपनिदेशक, सहायक निदेशक, अपर निदेशक शामिल थे. इसके बाद पूरी प्रक्रिया के तहत हमारा इंटरव्यू हुआ और हमें सलेक्ट किया गया."
वह आगे कहते हैं, "फोर्थ क्लास के एक कर्मचारी ने हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया कि उसे भी यहां मौका दिया जाए. कर्मचारी ने प्राथर्ना पत्र में लिखा- मैं भी ग्रेजुएशन हूं और मेरी योग्तया भी उस पद के लायक है. इसके बाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पूर्व में जिन लोगों को मौका दिया गया है उन्हें ध्यान में रखते हुए इनके प्रार्थना पत्र पर भी विचार किया जाए. हाईकोर्ट ने विभाग से याची के आवेदन पर विचार करने के लिए कहा था. विभाग ने ऐसा विचार किया कि उल्टा हमें ही डिमोट कर दिया."
अपर जिला सूचना अधिकारी से सीधे चौकीदार के पद पर आ गए हैं, इसे कैसे देखते हैं? इस सवाल पर वह कहते हैं, "आप समझ सकते हैं पद का नाम ही चौकीदार है तो क्या काम होगा. यह हमारे मान सम्मान के साथ खिलवाड़ है. मैंने कई अधिकारियों और मंत्रियों के साथ काम किया है. सभी ने हमारे काम की प्रशंसा की है. कई डीएम ने अच्छे काम को देखते हुए प्रशंसा पत्र दिए हैं."
प्रमोशन के बाद नहीं मिली कोई सुविधा
बरेली में तैनात 39 वर्षीय नरसिंह को अपर जिला सूचना अधिकारी से सिनेमा ऑपरेटर प्रचार सहायक कम चपरासी बना दिया गया था. स्टे मिलने से पहले उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "विभाग में हमारा नियम विरुद्ध तरीके से प्रमोशन हुआ था यह कहकर हमें डिमोट कर दिया गया. जबकि ऐसा नहीं है. हमारा प्रमोशन तो योग्यता के आधार पर हुआ था. पहले हमारा प्रमोशन संरक्षक (केयर टेकर) के पद पर हुआ था और उसके बाद में तीन साल बाद फिर आवेदन निकाले गए तब हम अपर जिला सूचना अधिकारी बनाए गए. लेकिन हमें सरकार ने अब डिमोट कर दिया है. जबकि कोर्ट ने डिमोट करने के लिए नहीं कहा है. एक व्यक्ति ने कोर्ट से मांग की थी कि हमारे आधार पर उसका भी प्रमोशन किया जाए, तो कोर्ट ने विभाग से कहा कि पूर्व में जो प्रमोशन हुए हैं उसके आधार पर इनके आवेदन पर भी विचार किया जाए. विभाग हमें डिमोट कर दिया."
वह आगे कहते हैं, "हमारी तो कोई गलती नहीं है. न ही हमने सरकार से नौकरी मांगी थी. इन्होंने हमें क्यों इतना ऊपर चढ़ाकर फिर इतना नीचे गिरा दिया. इससे हमारे मान सम्मान को ठेस पहुंची है. इससे अच्छा तो उसी समय हमसे आवेदन नहीं मांगते तब भी ठीक रहता. अब हमें अचानक से पता चला है कि हमारा डिमोशन हो गया है. तब से परेशान हैं. अब हम कुछ तो करेंगे ही. कोई न कोई तो रास्ता निकालना पड़ेगा. फिलहाल हमें बहुत अपमानित होना पड़ रहा है. सब जगह यह बात उजागर हो गई है अब किसी से छिपी हुई तो है नहीं."
कोई वित्तीय लाभ नहीं मिला, बदनाम ज्यादा हो गए
जिला भदोही (संत रविदास नगर) में तैनात अपर जिला सूचना अधिकारी अनिल कुमर सिंह को भी डिमोट कर सिनेमा ऑपरेटर कम प्रचार सहायक बना दिया गया है. इस पूरे मामले पर अनिल न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, "ऐसा प्रमोशन भाड़ में जाए जिसमें कोई वित्तीय लाभ नहीं मिला हो. ऊपर से शासन ने हमारी इतनी बेइज्जती कर दी है. इस प्रमोशन से सिर्फ पारिवारिक दुख हुआ है. मीडिया भी असलियत नहीं छाप रहा है. सभी चपरासी चपरासी करके... कि ये बनाए गए, वो बनाए गए करके हमारी बेइज्जती कर रहे हैं. इतने दिनों में कोई वित्तीय लाभ मिलता तब भी हमें थोड़ी संतु्ष्टि रहती, लेकिन अब तो सिर्फ बेइज्जती हो रही है."
जिस समिति ने प्रमोशन किया था उसके पांचों अधिकारियों के नाम बताते हुए अनिल विस्तार से बताते हैं, "इस समिति में अशोक कुमार शर्मा- अध्यक्ष, भूपेंद्र कुमार सिंह यादव- उपनिदेशक, इंदल सिंह भदौरिया- उपनिदेशक सदर, सुहैल वहीद अंसारी- सहायक निदेशक और हंसराज- सहायक निदेशक (अभी उपनिदेशक हैं) शामिल थे. वहीं जिन लोगों ने समिति बनाई थी उनमें इस समिति के डायरेक्टर थे आईएएस डॉ. रुपेश कुमार और अपर निदेशक- आईएएस अनिल कुमार त्रिपाठी."
वह कहते हैं, "इस डिमोशन के बाद समाज में हमारी बहुत बेइज्जती हो रही है. लेकिन कोई मीडिया वाला यह नहीं कह रहा है कि जब इन पर यह कार्रवाई हुई है तो जिन अधिकारियों ने हमारा प्रमोशन किया था तो उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है. मीडिया ने हमारे दुख दर्द को समझने की कोशिश नहीं की है. चलिए हमें तो डिमोट करके सजा दे दी गई लेकिन जो बड़े दोषी हैं उनका क्या हुआ. उन्हें कहां भेजा गया."
आखिर में वह दुखी मन से कहते हैं, "हम इतने दुखी हैं कि हमसे इस्तीफा ही ले लिया जाए तो ज्यादा बेहतर है. हमें अधिकारी से क्या बना दिया इससे ज्यादा भी कुछ हो सकता है क्या हमारे साथ.”
आधे डिप्रेशन में चले गए हैं
न्यूजलॉन्ड्री ने डिमोट कर दिए गए एक और कर्मचारी विनोद कुमार वर्मा से भी बात की. वह फोन रिसीव करते ही कहते हैं, "हम कल के बाद इस मामले पर बात करेंगे आज लखनऊ हाईकोर्ट में हमारा मामला पेश हुआ है. कल उसमें सुनवाई है."
आप सभी ने मिलकर कोर्ट का रुख किया है या आप अकेले ही पहुंचे हैं, इस पर वह कहते हैं, "मैं अकेला ही लखनऊ हाईकोर्ट पहुंचा हूं. कल इस मामले पर सुनवाई है जो भी कोर्ट का फैसला आएगा मैं उस पर आपसे बात करूंगा और बातऊंगा कि किया हुआ. कल आपके सभी सवालों का जवाब दूंगा.”
वह आगे कहते हैं, "इन्होंने कोर्ट के आदेश को मानकर हमें डिमोट कर दिया है जबकि कोर्ट ने तो ऐसा कोई आदेश ही नहीं दिया था. एक व्यक्ति ने अपने प्रमोशन के लिए लिखा था, इस पर हाईकोर्ट ने कह दिया कि इन पर भी विचार किया जाए. उनके तथ्यों पर विचार करने की बजाय हमें ही डिमोट कर दिया गया. यह तो इन्होंने गलत किया ना. कोई भी कर्मचारी अपनी मांग तो रखेगा ही उसने रख दी. अब कल देखते हैं इसमें क्या होता है उसके बाद हम आप से बात करेंगे."
उन्होंने बताया, "एक साल बाद मेरा रिटायरमेंट है. 37 साल नौकरी की है. लेकन इन 37 सालों में एक भी बार उनका प्रमोशन नहीं किया गया है. जबकि हाईकोर्ट का खुद ही नियम है कि कम से कम आदमी को उसकी सर्विस में तीन प्रमोशन मिलने चाहिए. पूरी सर्विस में कोई प्रमोशन नहीं हुआ जो एक हुआ भी उसे भी इन्होंने रिवर्ट कर दिया."
वह कहते हैं कि आधे डिप्रेशन में चले गए हैं. जो हुआ है, गलत हुआ है.
इस बारे में न्यूज़लॉन्ड्री ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी से भी बात की. इस पर वह कहते हैं. "ऐसे बहुत से लोग डिमोट किए गए हैं. पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एसडीएम रैंक के एक अधिकारी को भी डिमोट कर तहसीलदार बना दिया गया था. इसके दो-तीन क्राइटेरिया हैं जिसके तहत ऐसा होता है. एक तो जिनकी परफॉर्मेंस बहुत खराब रहती है, दूसरा जिनकी फाइलें भ्रष्टाचार से जुड़ी हुई हैं. ऐसे भी बहुत सारे लोगों को डिमोट किया गया है जिन्होंने गलत तरीके से या जुगाड़ लगाकर प्रमोशन करा लिए थे जबकि वो उस प्रमोशन के हकदार नहीं थे."
लेकिन इन चारों के मामले में तो ऐसा नहीं है, इनका कहना है कि इन्हें तो अच्छे काम के लिए कई बार सम्मानित भी किया गया है. फिर इन्हें क्यों अपर जिला सूचना अधिकारी से चपरासी और चौकीदार बना दिया गया है? इस सवाल पर शलभ कहते हैं, "इस बारे में हमें थोड़ा जानना पड़ेगा. इस केस की मुझे ठीक से जानकारी नहीं है कि इनका क्या मामला था, लेकिन जो भी लोग 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में डिमोट हुए हैं उनका यही कारण है जो मैंने बताया है."
इस बारे में न्यूज़लॉन्ड्री ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील और बार एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष विन्देश्वरी प्रसाद गुप्ता से भी बात की. इन चारों लोगों का प्रमोशन एक प्रोसेस के तहत हुआ था. जिसमें वैकेंसी निकाली गईं. आईएस अधिकारियों ने एक कमेटी का गठन किया. जिसमें अधिकारियों ने इनके डॉक्यूमेंट देखने और साक्षात्कार के बाद प्रमोशन किया, फिर इनके साथ ऐसा क्यों हुआ? इस सवाल पर गुप्ता कहते हैं, "यह पैनल ने गलत किया है. यह इस कमेटी को बताना पड़ेगा कि किस कानून के तहत इनका प्रमोशन किया गया था. जब एक प्रोसेस के तहत इनका प्रमोशन हुआ है तो फिर इन्हें नहीं हटाना चाहिए था."
वह कहते हैं, "अगर लॉ के अनुसार कोई विज्ञप्ति निकाली गई है और उसका एडवरटाइजमेंट हुआ है तो अगर विज्ञप्ति के अनुसार लोगों ने अप्लाई किया और वह क्वालीफाई कर गए तो उन्हें हटाया नहीं जा सकता है. हटाया तभी जा सकता है जब विज्ञप्ति में कोई कमी रही होगी. जैसे आपने किसी लोकल अखबार में जिसका सर्कुलेशन ज्यादा न हो. उसमें विज्ञापन निकाला और आठ दिन बाद आपने परीक्षा रख दी तो यह गलत है. विज्ञप्ति ऐसे अखबार में निकाली जाती है जिसका ठीक ठाक सर्कुलेशन हो, लोग पढ़ते हों इसके बाद कम से कम एक महीने का समय देना होता है. अगर इन अधिकारियों ने गलत किया है तो फिर उन्हें सजा भी होनी चाहिए."
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया योगी सरकार के फैसले पर स्टे
यह कितनी हैरानी वाली बात है कि जिस खबर को यह कहकर चलाया गया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने चार अपर जिला सूचना अधिकारियों को बनाया चपरासी और चौकीदार. अब कोर्ट ने ही उस पर स्टे दे दिया है. ऐसा लग रहा है जैसे कोर्ट ने अपने फैसले पर ही स्टे दे दिया हो.
अपर जिला सूचना अधिकारी से चौकीदार बनाए गए दयाशंकर कहते हैं, "अब यह मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट ने हमें स्टे दे दिया है. फिलहाल हम उसी पोस्ट पर काम कर रहे हैं. यह स्टे कोर्ट ने 19 जनवरी को दिया है."
वह कहते हैं, "सरकार के फैसले का कोई आधार और नियम ही नहीं था. क्योंकि इसमें कुछ उल्लेख नहीं किया. सरकार ने अपने ऑर्डर में कहा था कि इनका प्रमोशन नियम विरूद्ध है. अब क्या नियम विरूद्ध है इसका तो कारण बताना चाहिए था. सरकार ने हवा में ही यह ऑर्डर पास कर दिया था. इसमें कोई जांच भी नहीं की गई. एक अधिकारी को सरकार कैसे चपरासी बना सकती है. यह तो एक तरह से पनिशमेंट हो गया. और पनिशमेंट तब मिलता है जब कोई अपराध किया हो. अपराध सिद्ध करने के लिए जांच कमेटियां बैठती हैं, सरकार ने कोई अपराध तक नहीं खोला कि हमारा क्या अपराध था जो डिमोट कर दिया गया था."
वहीं इस मामले पर जिला सूचना अधिकारी से सिनेमा ऑपरेटर कम प्रचार सहायक बनाए गए विनोद शर्मा कहते हैं, "अब हमें इस माममे में स्टे मिल गया है. सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कोर्ट में बुलाया गया है. अब देखते हैं कि सरकार कोर्ट में अपना क्या पक्ष रखती है. हम फिलहाल अभी चारों दोबारा से उसी पोस्ट (अपर जिला सूचना अधिकारी) पर तैनात हैं. उम्मीद है जल्दी ही यह आदेश ही खारिज कर दिया जाएगा जबकि सरकार चाहती है कि हम जो स्टे लेकर आए हैं वह कैंसिल हो जाए. इसलिए अब यह दोनों की अपनी लड़ाई है. लेकिन अब यह हाईकोर्ट के उपर है कि क्या करेगा. फिलहाल हमें अगली सुनवाई तक स्टे मिल गया है."
अगर किसी विभाग के जिले के अधिकारी को पता चले कि जिस दफ्तर में वह अब तक अधिकारी था उसी दफ्तर में अगले दिन से उसे चपरासी और चौकीदार का काम करना होगा तो कैसा अनुभव होगा. इस सवाल का ठीक से जवाब उत्तर प्रदेश के ये चार कर्मचारी ही दे सकते हैं, जिन्हें 6 जनवरी 2021 को सरकार द्वारा जारी एक आदेश के बाद डिमोट कर दिया गया था. इन सभी को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपर जिला सूचना अधिकारी से डिमोट करके सीधे चतुर्थ श्रेणी में डाल दिया गया. हालांकि हाईकोर्ट ने अब सरकार के इस फैसले पर स्टे दे दिया है. यानी फिलहाल के लिए इस फैसले पर रोक लगा दी है.
यह कहानी बेहद हैरान करने वाली है कि किसी अधिकारी को चपरासी कैसे बनाया जा सकता है, लेकिन यह हकीकत है.
जिन्हें अब अधिकारी से डिमोट कर विभाग की सबसे नीचे की पोस्ट दे दी गई है उनसे हमने बात की. यह सब कुछ दिन पहले तक अलग-अलग जिलों में अपर जिला सूचना अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. इनके कामकाज के लिए इन्हें प्रशंसापत्र भी दिए गए. लेकिन अचानक से इन्हें एकदम से अधिकारी से डिमोट कर दिया गया. अपनी पड़ताल में हमने पाया कि ये चारो अधिकारी प्रमोशन पाकर अधिकारी बने थे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स (इंडिया टीवी, पत्रिका, जी न्यूज, न्यूज 18) बताती हैं कि इन सभी का प्रमोशन गलत तरीके से किया गया था इसलिए इन्हें दोबारा से इनके मूल पद पर भेज दिया गया है.
अब तक कई डीएम और मंत्रियों के साथ काम किया, अब चौकीदारी करेंगे
41 वर्षीय दयाशंकर फिरोजाबाद में अपर जिला सूचना अधिकारी रहते हुए जिला सूचना अधिकारी का काम देखते थे. दयाशंकर दो विषयों पॉलिटिकल साइंस और इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. साथ ही वह बीएड भी हैं और टीईटी की परीक्षा भी पास की हुई है. वह कहते हैं, "विभाग ने हमारा प्रमोशन कर दिया था इस वजह से हमने फिर दूसरी तरफ ध्यान नहीं दिया वरना आज मैं टीचर होता."
वह कहते हैं, "2013 में विभाग द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया था जिसमें प्रदेश भर के लोगों से कई पदों पर आवेदन मांगे गए. अपनी-अपनी योग्यता के हिसाब से लोगों ने आवेदन किए. 2013 में आवेदन के बाद 2014 में विभाग द्वारा एक कमेटी गठित की गई. इस कमेटी में दो आईएएस अधिकारी अनिल पाठक और डॉ. रुपेश भी शामिल थे. इनके अलावा विभाग के कई अधिकारी थे. जिसमें उपनिदेशक, सहायक निदेशक, अपर निदेशक शामिल थे. इसके बाद पूरी प्रक्रिया के तहत हमारा इंटरव्यू हुआ और हमें सलेक्ट किया गया."
वह आगे कहते हैं, "फोर्थ क्लास के एक कर्मचारी ने हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया कि उसे भी यहां मौका दिया जाए. कर्मचारी ने प्राथर्ना पत्र में लिखा- मैं भी ग्रेजुएशन हूं और मेरी योग्तया भी उस पद के लायक है. इसके बाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पूर्व में जिन लोगों को मौका दिया गया है उन्हें ध्यान में रखते हुए इनके प्रार्थना पत्र पर भी विचार किया जाए. हाईकोर्ट ने विभाग से याची के आवेदन पर विचार करने के लिए कहा था. विभाग ने ऐसा विचार किया कि उल्टा हमें ही डिमोट कर दिया."
अपर जिला सूचना अधिकारी से सीधे चौकीदार के पद पर आ गए हैं, इसे कैसे देखते हैं? इस सवाल पर वह कहते हैं, "आप समझ सकते हैं पद का नाम ही चौकीदार है तो क्या काम होगा. यह हमारे मान सम्मान के साथ खिलवाड़ है. मैंने कई अधिकारियों और मंत्रियों के साथ काम किया है. सभी ने हमारे काम की प्रशंसा की है. कई डीएम ने अच्छे काम को देखते हुए प्रशंसा पत्र दिए हैं."
प्रमोशन के बाद नहीं मिली कोई सुविधा
बरेली में तैनात 39 वर्षीय नरसिंह को अपर जिला सूचना अधिकारी से सिनेमा ऑपरेटर प्रचार सहायक कम चपरासी बना दिया गया था. स्टे मिलने से पहले उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "विभाग में हमारा नियम विरुद्ध तरीके से प्रमोशन हुआ था यह कहकर हमें डिमोट कर दिया गया. जबकि ऐसा नहीं है. हमारा प्रमोशन तो योग्यता के आधार पर हुआ था. पहले हमारा प्रमोशन संरक्षक (केयर टेकर) के पद पर हुआ था और उसके बाद में तीन साल बाद फिर आवेदन निकाले गए तब हम अपर जिला सूचना अधिकारी बनाए गए. लेकिन हमें सरकार ने अब डिमोट कर दिया है. जबकि कोर्ट ने डिमोट करने के लिए नहीं कहा है. एक व्यक्ति ने कोर्ट से मांग की थी कि हमारे आधार पर उसका भी प्रमोशन किया जाए, तो कोर्ट ने विभाग से कहा कि पूर्व में जो प्रमोशन हुए हैं उसके आधार पर इनके आवेदन पर भी विचार किया जाए. विभाग हमें डिमोट कर दिया."
वह आगे कहते हैं, "हमारी तो कोई गलती नहीं है. न ही हमने सरकार से नौकरी मांगी थी. इन्होंने हमें क्यों इतना ऊपर चढ़ाकर फिर इतना नीचे गिरा दिया. इससे हमारे मान सम्मान को ठेस पहुंची है. इससे अच्छा तो उसी समय हमसे आवेदन नहीं मांगते तब भी ठीक रहता. अब हमें अचानक से पता चला है कि हमारा डिमोशन हो गया है. तब से परेशान हैं. अब हम कुछ तो करेंगे ही. कोई न कोई तो रास्ता निकालना पड़ेगा. फिलहाल हमें बहुत अपमानित होना पड़ रहा है. सब जगह यह बात उजागर हो गई है अब किसी से छिपी हुई तो है नहीं."
कोई वित्तीय लाभ नहीं मिला, बदनाम ज्यादा हो गए
जिला भदोही (संत रविदास नगर) में तैनात अपर जिला सूचना अधिकारी अनिल कुमर सिंह को भी डिमोट कर सिनेमा ऑपरेटर कम प्रचार सहायक बना दिया गया है. इस पूरे मामले पर अनिल न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, "ऐसा प्रमोशन भाड़ में जाए जिसमें कोई वित्तीय लाभ नहीं मिला हो. ऊपर से शासन ने हमारी इतनी बेइज्जती कर दी है. इस प्रमोशन से सिर्फ पारिवारिक दुख हुआ है. मीडिया भी असलियत नहीं छाप रहा है. सभी चपरासी चपरासी करके... कि ये बनाए गए, वो बनाए गए करके हमारी बेइज्जती कर रहे हैं. इतने दिनों में कोई वित्तीय लाभ मिलता तब भी हमें थोड़ी संतु्ष्टि रहती, लेकिन अब तो सिर्फ बेइज्जती हो रही है."
जिस समिति ने प्रमोशन किया था उसके पांचों अधिकारियों के नाम बताते हुए अनिल विस्तार से बताते हैं, "इस समिति में अशोक कुमार शर्मा- अध्यक्ष, भूपेंद्र कुमार सिंह यादव- उपनिदेशक, इंदल सिंह भदौरिया- उपनिदेशक सदर, सुहैल वहीद अंसारी- सहायक निदेशक और हंसराज- सहायक निदेशक (अभी उपनिदेशक हैं) शामिल थे. वहीं जिन लोगों ने समिति बनाई थी उनमें इस समिति के डायरेक्टर थे आईएएस डॉ. रुपेश कुमार और अपर निदेशक- आईएएस अनिल कुमार त्रिपाठी."
वह कहते हैं, "इस डिमोशन के बाद समाज में हमारी बहुत बेइज्जती हो रही है. लेकिन कोई मीडिया वाला यह नहीं कह रहा है कि जब इन पर यह कार्रवाई हुई है तो जिन अधिकारियों ने हमारा प्रमोशन किया था तो उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है. मीडिया ने हमारे दुख दर्द को समझने की कोशिश नहीं की है. चलिए हमें तो डिमोट करके सजा दे दी गई लेकिन जो बड़े दोषी हैं उनका क्या हुआ. उन्हें कहां भेजा गया."
आखिर में वह दुखी मन से कहते हैं, "हम इतने दुखी हैं कि हमसे इस्तीफा ही ले लिया जाए तो ज्यादा बेहतर है. हमें अधिकारी से क्या बना दिया इससे ज्यादा भी कुछ हो सकता है क्या हमारे साथ.”
आधे डिप्रेशन में चले गए हैं
न्यूजलॉन्ड्री ने डिमोट कर दिए गए एक और कर्मचारी विनोद कुमार वर्मा से भी बात की. वह फोन रिसीव करते ही कहते हैं, "हम कल के बाद इस मामले पर बात करेंगे आज लखनऊ हाईकोर्ट में हमारा मामला पेश हुआ है. कल उसमें सुनवाई है."
आप सभी ने मिलकर कोर्ट का रुख किया है या आप अकेले ही पहुंचे हैं, इस पर वह कहते हैं, "मैं अकेला ही लखनऊ हाईकोर्ट पहुंचा हूं. कल इस मामले पर सुनवाई है जो भी कोर्ट का फैसला आएगा मैं उस पर आपसे बात करूंगा और बातऊंगा कि किया हुआ. कल आपके सभी सवालों का जवाब दूंगा.”
वह आगे कहते हैं, "इन्होंने कोर्ट के आदेश को मानकर हमें डिमोट कर दिया है जबकि कोर्ट ने तो ऐसा कोई आदेश ही नहीं दिया था. एक व्यक्ति ने अपने प्रमोशन के लिए लिखा था, इस पर हाईकोर्ट ने कह दिया कि इन पर भी विचार किया जाए. उनके तथ्यों पर विचार करने की बजाय हमें ही डिमोट कर दिया गया. यह तो इन्होंने गलत किया ना. कोई भी कर्मचारी अपनी मांग तो रखेगा ही उसने रख दी. अब कल देखते हैं इसमें क्या होता है उसके बाद हम आप से बात करेंगे."
उन्होंने बताया, "एक साल बाद मेरा रिटायरमेंट है. 37 साल नौकरी की है. लेकन इन 37 सालों में एक भी बार उनका प्रमोशन नहीं किया गया है. जबकि हाईकोर्ट का खुद ही नियम है कि कम से कम आदमी को उसकी सर्विस में तीन प्रमोशन मिलने चाहिए. पूरी सर्विस में कोई प्रमोशन नहीं हुआ जो एक हुआ भी उसे भी इन्होंने रिवर्ट कर दिया."
वह कहते हैं कि आधे डिप्रेशन में चले गए हैं. जो हुआ है, गलत हुआ है.
इस बारे में न्यूज़लॉन्ड्री ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी से भी बात की. इस पर वह कहते हैं. "ऐसे बहुत से लोग डिमोट किए गए हैं. पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एसडीएम रैंक के एक अधिकारी को भी डिमोट कर तहसीलदार बना दिया गया था. इसके दो-तीन क्राइटेरिया हैं जिसके तहत ऐसा होता है. एक तो जिनकी परफॉर्मेंस बहुत खराब रहती है, दूसरा जिनकी फाइलें भ्रष्टाचार से जुड़ी हुई हैं. ऐसे भी बहुत सारे लोगों को डिमोट किया गया है जिन्होंने गलत तरीके से या जुगाड़ लगाकर प्रमोशन करा लिए थे जबकि वो उस प्रमोशन के हकदार नहीं थे."
लेकिन इन चारों के मामले में तो ऐसा नहीं है, इनका कहना है कि इन्हें तो अच्छे काम के लिए कई बार सम्मानित भी किया गया है. फिर इन्हें क्यों अपर जिला सूचना अधिकारी से चपरासी और चौकीदार बना दिया गया है? इस सवाल पर शलभ कहते हैं, "इस बारे में हमें थोड़ा जानना पड़ेगा. इस केस की मुझे ठीक से जानकारी नहीं है कि इनका क्या मामला था, लेकिन जो भी लोग 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में डिमोट हुए हैं उनका यही कारण है जो मैंने बताया है."
इस बारे में न्यूज़लॉन्ड्री ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील और बार एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष विन्देश्वरी प्रसाद गुप्ता से भी बात की. इन चारों लोगों का प्रमोशन एक प्रोसेस के तहत हुआ था. जिसमें वैकेंसी निकाली गईं. आईएस अधिकारियों ने एक कमेटी का गठन किया. जिसमें अधिकारियों ने इनके डॉक्यूमेंट देखने और साक्षात्कार के बाद प्रमोशन किया, फिर इनके साथ ऐसा क्यों हुआ? इस सवाल पर गुप्ता कहते हैं, "यह पैनल ने गलत किया है. यह इस कमेटी को बताना पड़ेगा कि किस कानून के तहत इनका प्रमोशन किया गया था. जब एक प्रोसेस के तहत इनका प्रमोशन हुआ है तो फिर इन्हें नहीं हटाना चाहिए था."
वह कहते हैं, "अगर लॉ के अनुसार कोई विज्ञप्ति निकाली गई है और उसका एडवरटाइजमेंट हुआ है तो अगर विज्ञप्ति के अनुसार लोगों ने अप्लाई किया और वह क्वालीफाई कर गए तो उन्हें हटाया नहीं जा सकता है. हटाया तभी जा सकता है जब विज्ञप्ति में कोई कमी रही होगी. जैसे आपने किसी लोकल अखबार में जिसका सर्कुलेशन ज्यादा न हो. उसमें विज्ञापन निकाला और आठ दिन बाद आपने परीक्षा रख दी तो यह गलत है. विज्ञप्ति ऐसे अखबार में निकाली जाती है जिसका ठीक ठाक सर्कुलेशन हो, लोग पढ़ते हों इसके बाद कम से कम एक महीने का समय देना होता है. अगर इन अधिकारियों ने गलत किया है तो फिर उन्हें सजा भी होनी चाहिए."
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया योगी सरकार के फैसले पर स्टे
यह कितनी हैरानी वाली बात है कि जिस खबर को यह कहकर चलाया गया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने चार अपर जिला सूचना अधिकारियों को बनाया चपरासी और चौकीदार. अब कोर्ट ने ही उस पर स्टे दे दिया है. ऐसा लग रहा है जैसे कोर्ट ने अपने फैसले पर ही स्टे दे दिया हो.
अपर जिला सूचना अधिकारी से चौकीदार बनाए गए दयाशंकर कहते हैं, "अब यह मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट ने हमें स्टे दे दिया है. फिलहाल हम उसी पोस्ट पर काम कर रहे हैं. यह स्टे कोर्ट ने 19 जनवरी को दिया है."
वह कहते हैं, "सरकार के फैसले का कोई आधार और नियम ही नहीं था. क्योंकि इसमें कुछ उल्लेख नहीं किया. सरकार ने अपने ऑर्डर में कहा था कि इनका प्रमोशन नियम विरूद्ध है. अब क्या नियम विरूद्ध है इसका तो कारण बताना चाहिए था. सरकार ने हवा में ही यह ऑर्डर पास कर दिया था. इसमें कोई जांच भी नहीं की गई. एक अधिकारी को सरकार कैसे चपरासी बना सकती है. यह तो एक तरह से पनिशमेंट हो गया. और पनिशमेंट तब मिलता है जब कोई अपराध किया हो. अपराध सिद्ध करने के लिए जांच कमेटियां बैठती हैं, सरकार ने कोई अपराध तक नहीं खोला कि हमारा क्या अपराध था जो डिमोट कर दिया गया था."
वहीं इस मामले पर जिला सूचना अधिकारी से सिनेमा ऑपरेटर कम प्रचार सहायक बनाए गए विनोद शर्मा कहते हैं, "अब हमें इस माममे में स्टे मिल गया है. सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कोर्ट में बुलाया गया है. अब देखते हैं कि सरकार कोर्ट में अपना क्या पक्ष रखती है. हम फिलहाल अभी चारों दोबारा से उसी पोस्ट (अपर जिला सूचना अधिकारी) पर तैनात हैं. उम्मीद है जल्दी ही यह आदेश ही खारिज कर दिया जाएगा जबकि सरकार चाहती है कि हम जो स्टे लेकर आए हैं वह कैंसिल हो जाए. इसलिए अब यह दोनों की अपनी लड़ाई है. लेकिन अब यह हाईकोर्ट के उपर है कि क्या करेगा. फिलहाल हमें अगली सुनवाई तक स्टे मिल गया है."
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