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किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए 2017 में यूपी सरकार द्वारा बनाए कृषक समृद्धि आयोग की अब तक नहीं हुई बैठक

अप्रैल 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नवंबर के महीने में कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया. इस आयोग के गठन का मकसद था साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना. हालांकि आयोग के निर्माण को करीब तीन साल तीन महीने गुजर जाने के बाद भी इसके सदस्यों की एक भी बैठक नहीं हुई है. अभी तक इसके सदस्य आपस में ही नहीं मिले हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार का सूचना विभाग ‘संदेश’ नाम से एक पत्रिका प्रकाशित करता है. साल 2018 में इस पत्रिका ने ‘अन्नदाता की आय दोगुना करने का ठोस प्रयास’ के नाम से कवर स्टोरी प्रकाशित की थी. इसी के एक पेज में कृषक समृद्धि आयोग को लेकर जानकारी दी गई.

पत्रिका में लिखा गया है, ‘‘किसानों की आय दोगुनी करने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया है. सीएम योगी खुद इसके अध्यक्ष होंगे, जबकि कृषि मंत्री और नीति आयोग के सदस्य इसके उपाध्यक्ष बनाए गए. मुख्य सचिव और कृषि उत्पादन आयुक्त को आयोग का सदस्य बनाया गया. आयोग 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए विचार करेगा.’’

मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, नीति आयोग के सदस्य और अधिकारियों के आलावा इसमें कुछ और लोगों को नामित किया गया. इसके लिए बकायदा राज्यपाल द्वारा सदस्यों को पत्र भेजा गया. पत्रिका में दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप निर्देशक को सेंटर का सदस्य नामित किया गया. जबकि अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान फिलीपींस के भारत के प्रतिनिधि डॉक्टर यूएस सिंह तथा आईसीआरआईएसएटी हैदराबाद के महानिदेशक को गैर सरकारी सदस्य के रूप में मनोनीत किया.

प्रदर्शनकारी किसान

इसके अलावा आईसीएआर के पूर्व निदेशक डॉक्टर मंगल राय, लखनऊ में बने गिरि संस्थान के प्रो सुरेंद्र कुमार, आईआईएम लखनऊ के प्रो सुशील कुमार तथा आईसीएआर के पूर्व निदेशक डॉक्टर आरबी सिंह गैर सरकारी सदस्य के तौर पर मनोनीत किए गए.

इस आयोग में कुछ किसान प्रतिनिधियों को भी जगह दी गई थी. पत्रिका में लिखा गया है कि बाराबंकी के प्रसिद्ध किसान राम शरण शर्मा, बांदा के प्रगतिशील काश्तकार प्रेम सिंह, वाराणसी के प्रगतिशील किसान जय प्रकाश सिंह, भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारी धर्मेंद्र मलिक, लखीमपुर खीरी के उन्नत पशुपालन जयशपाल सिंह, जैविक खेती में धान जमा चुके किसान अरविन्द खरे, बाराबंकी के फूल उत्पादक मनुद्दीन, अंडा प्रोडक्शन में कीर्तिमान बनाने वाले वेद व्यास सिंह और मछली उत्पादक जनार्दन निषाद को आयोग में शामिल किया गया.

कृषि वैज्ञानिको और किसान प्रतिनिधियों के अलावा इस आयोग में कॉर्पोरेट की तरफ से महिंदा एंड महिंदा के प्रतिनिधि और आईटीसी के प्रतिनिधि शामिल हुए. आयोग में विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में अलग-अलग विभागों के सचिवों को भी शामिल किया गया था.

संदेश पत्रिका में कृषि समृद्धि आयोग के बारे में छपी जानकारी

11 नवंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ऑफिस के ट्विटर हैंडल से आयोग के गठन की जानकारी देते हुए लिखा गया, #UPCM श्री #YogiAdityanath की अध्यक्षता में कृषक समृद्धि आयोग गठित.

‘अब तक नहीं हुई एक भी बैठक’

इस आयोग की शुरुआत बेहद धूमधाम से हुई. सरकार ने आयोग के गठन को किसानों की वर्षों पुरानी मांग बताते हुए इसे पूरा करने का श्रेय लिया, लेकिन इसमें शामिल सदस्यों की माने तो गठन के समय उन्होंने बाकी सदस्यों का नाम सिर्फ अख़बारों में पढ़ा. उनकी आपस में कभी मुलाकात नहीं हुई. आयोग के प्रमुख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी कभी बैठक ही नहीं हुई.

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और भारत के नामी कृषि वैज्ञानिक 74 वर्षीय डॉक्टर मंगल राय से आयोग के कामों को लेकर जब हमने सवाल किया तो वो हंसते हुए कहते हैं, ‘‘एक वाक्य में जानिए कि उसकी आज तक कोई मीटिंग नहीं हुई.’’

इस आयोग में कृषि क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित डॉक्टर आरबी सिंह को भी शामिल किया गया था. सिंह आईसीएआर के पूर्व निदेशक हैं और वर्तमान में सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, इंफाल के चांलसर हैं.

न्यूजलॉन्ड्री ने सिंह से फोन पर बात की. आयोग के निर्माण के बाद उसके कामों के सवाल पर मंगल राय की तरह वे भी हंसते हुए कहते हैं, ‘‘आयोग तो बनाई गई थी. उसके आगे तो दोबारा कोई मीटिंग हुई नहीं. कोई फॉलोअप नहीं लिया गया. एक दो बार कृषि मंत्री से मेरी मुलाकात हुई. आयोग के लोगों के साथ कोई बैठक नहीं हुई. जहां तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की बात है तो मैं उनसे एक बार ही मिला हूं जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के रहने वाले पद्म अवार्डी और बाकी दूसरे अवार्ड पाने वालों को सम्मानित किया था. उसके अलावा मेरी कभी उनसे कोई मुलाकात नहीं हुई.’’

सरकार ने लखनऊ के गिरी संस्थान के तत्कालीन प्रमुख प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार को भी आयोग का सदस्य नामित किया था. प्रोफेसर कुमार रिटायर होने के बाद इन दिनों हरियाणा के रोहतक में रहते हैं. कुमार भी आयोग की किसी भी बैठक से इंकार करते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘आयोग का गठन नवंबर 2017 में हुआ था. मुझे उसमें शामिल किया गया था. उसके कुछ महीनों बाद मार्च 2018 में मैं रिटायर हो गया. मेरी जानकारी के मुताबिक एक बार मीटिंग का दिन तय किया गया था लेकिन वो हुई या नहीं हुई इसकी मुझे जानकारी नहीं है. जब तक मैं वहां था तब तक किसी मीटिंग में शामिल नहीं हुआ. मुझे नहीं लगता कि वो इसपर कुछ कर भी रहे हैं. आयोग के किसी भी सदस्य से मेरी मुलाकात नहीं हुई.’’

केंद्र सरकार की माने तो सिर्फ खेती के जरिए किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं की जा सकती है. इसके लिए खेती के साथ-साथ पशुपालन और उससे जुड़े दूसरे व्यवसाय को भी अपनाना होगा. शायद इसी को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने अपने इस आयोग में लखीमपुरी खीरी पशुपालन में बेहतर काम करने वाले यशपाल चौधरी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रहने वाले वेद व्यास सिंह को शामिल किया. वेद व्यास सिंह का अण्डों का बड़ा कारोबार है. उन्होंने बकायदा एक कंपनी बनाई हुई है. न्यूजलॉन्ड्री ने यशपाल चौधरी और वेद व्यास सिंह दोनों से आयोग के कामों को लेकर बता की.

सिंह आयोग को लेकर पूछे गए सवाल पर कहते हैं, ‘‘केंद्र की बीजेपी सरकार का पुराना वादा था कि किसान आयोग का गठन किया जाएगा. उसी वादे के अनुसार इन्होंने किसान आयोग का गठन तो कर लिया, लेकिन आज तक उसकी पहली बैठक नहीं हो पाई है. उसको सिर्फ कागज में लिख दिया गया. आयोग के बाकी सदस्यों से भी मुलाकात नहीं हुई. बैठक हो तब न मुलाकात हो. इसके एक सदस्य है राम शरण वर्मा उनसे इतफ़ाक़ से एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई थी.’’

कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन करते किसान

यशपाल चौधरी कहते हैं, ‘‘हमें आयोग में शामिल किया गया था. इसके लिए एक पत्र भी सरकार की तरफ से हमारे पास आया. लेकिन उसके बाद क्या हुआ हमें कोई जानकारी नहीं है. उसमें खेती के जानकारों के साथ-साथ फूल की खेती करने वाले बाराबंकी के मोइनुद्दीन को भी शामिल किया गया था. उनका फूलों को लेकर अच्छा काम है. वो मेरे जानने वाले हैं. एकबार मैं उनसे पूछा था कि कोई बैठक हुई तो उन्होंने भी बताया था कि कोई बैठक ही नहीं हुई. हमें कभी मीटिंग के लिए बुलाया ही नहीं गया. ये सरकार किसानों को लेकर गंभीर ही नहीं है. ये सरकार किसान विरोधी है. इस सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए कभी काम ही नहीं किया है.’’

फूलों की खेती के लिए कई अवार्ड से सम्मानित हो चुके बाराबंकी के मोइनुद्दीन न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘आयोग की कोई बैठक हुई या नहीं ये मुझे नहीं पता. मैं कभी भी किसी बैठक में शामिल नहीं हुआ हूं. इस आयोग में कई बड़े-बड़े वैज्ञानिक शामिल है. हो सकता है उनकी बैठक हुई हो. जहां तक रही आयोग के सदस्यों से मुलाकात की बात तो उसमें से कुछ लोग मेरे जानने वाले हैं तो उनसे कभी कभार मुलाकात होती रहती है.’’

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मालिक भी आयोग की किसी बैठक में शामिल होने से इंकार करते हुए सरकार पर किसानों के मामलों में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हैं. आयोग के सदस्य बांदा के रहने वाले प्रगतिशील काश्तकार प्रेम सिंह से भी किसी भी बैठक में शामिल होने के सवाल का जवाब बाकियों की तरह ना में ही देते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए प्रेम सिंह कहते हैं, ‘‘माननीय राज्यपाल महोदय द्वारा हमें चयनित होने का पत्र आया था. आजतक ना तो एक भी मीटिंग हुई है. मुझे लगता है कि यह एक तरह यह सरकारी कृषक समृद्धि आयोग है. आयोग के सदस्यों का नाम हमें सिर्फ अख़बारों में पढ़ा उनसे हमारी कभी कोई मुलाकात नहीं हो पाई. आयोग के प्रमुख मुख्यमंत्री उनसे भी आयोग के सदस्यों के साथ कोई बैठक नहीं ही हुई है. कम से कम मैं तो किसी बैठक में शामिल नहीं हुआ हूं. मुझे लगता है कि सरकार किसानों को लेकर गंभीर नहीं है.’’

कुछ सदस्यों से एक-दो बार सुझाव लिए गए, कुछ से वो भी नहीं

संदेश पत्रिका में आयोग के कामों के लेकर भी जिक्र किया गया है. बताया गया है कि आयोग इन बिंदुओं पर विचार करेगा.

1. कम लागत में ज़्यादा उत्पादन के तरीकों पर विचार

2. फसलों के बेहतर स्टोरेज डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में सुझाव देगा.

3. खेती में आय कम होने वाले कारणों पर मंथन. इसके साथ ही इसे बढ़ाने पर सुझाव दिए जाएंगे.

4. एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी, पशुधन, मछली पालन, मुर्गी पालन, रेशम उत्पादन, कृषि वन और दुग्ध विकास के लिए भी आयोग सुझाव देगा.

5. अलग-अलग जलवायु को इवैल्युट कर प्रदेश में बराबर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट को लेकर नीतियां बनाई जाएगी.

दरअसल सरकार आयोग में शामिल कृषि वैज्ञानिकों, अधिकारियों और प्रगतिशील किसानों से साल 2022 तक किसानों की आमदनी कैसे दोगुनी की जाए इसके लिए सुझाव लेकर उसपर एक्शन लेती. ऐसा ही संदेश पत्रिका में लिखा गया है, लेकिन आयोग में शामिल ज़्यादातर लोगों की माने तो कोई बैठक ही नहीं हुई तो सुझाव लेने देने का सवाल ही नहीं उठता. वहीं कुछ सदस्यों से सरकार ने लिखित में एक-दो बार इस संबंध में सुझाव ज़रूर लिए हैं.

किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सरकार ने कभी कोई सुझाव लिया. इस सवाल पर डॉक्टर मंगल राय कहते हैं, ‘‘कोई मीटिंग ही नहीं हुई. आयोग है, कोई मीटिंग होगी तभी न सुझाव लेंगे. मेरे ख्याल से 10 नवंबर को इस कमेटी को बने तीन साल हो गया. आयोग उन्होंने बनाया. मैं स्पेशलिस्ट हूं तो मेरी अपेक्षा यही थी कि थोड़ा बहुत जो ज्ञान मेरे पास है उसका ये सदुपयोग करेंगे. हम तो सुझाव देने के लिए तैयार बैठे हुए हैं. अब अगर आपकी मर्जी नहीं है तो मैं क्या ही बोलूं. मैंने तो कहा नहीं था कि मुझे सदस्य बनाओ.’’

पद्मभूषण डॉक्टर आरबी सिंह भी किसी तरह का सुझाव लेने से इंकार करते हुए कहते हैं, ‘‘आयोग के कामों का ठीक से फॉलोअप नहीं हुआ तो सुझाव का तो सवाल नहीं उठता. इसमें जुटकर काम करने की ज़रूरत है. बात करने से तो काम नहीं चलेगा. इसको मॉनीटर करने की जरूरत है.’’

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘हम स्कीम तो बना लेते हैं. मैं ये नहीं कहूंगा कि ये लापरवाही है. हो सकता है कि उनकी ज़िम्मेदारी कहीं और बढ़ गई हो, लेकिन किसान की आय को दोगुना करना सबसे बड़ी जिम्मेदारी होनी चाहिए. क्योंकि किसान अगर त्रस्त रहेगा तो देश त्रस्त रहेगा. किसानों की आमदनी बढ़ाने पर ध्यान देना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. मैं चाहूंगा कि इसका विशेष ध्यान देना चाहिए. सिर्फ बात करने से कुछ नहीं होगा. एक्शन प्लान बनाकर काम करना होगा कि साल भर में, छह महीने में, तीन महीने में ये करेंगे. ये ग्रोथ होगी. इसपर नजर रखनी होगी. मुझे लगता है कि यह काम फोकस तरीके से नहीं हो रहा है. हमें जिम्मेदारी के साथ फोकस होकर इसपर काम करने की ज़रूरत है.’’

गिरी संस्थान के पूर्व प्रमुख सुरेंद्र कुमार सुझाव के सवाल पर कहते हैं, ‘‘मुझे एक बार उन्होंने एजेंडा भेजा और वो चाहते थे कि मैं उसपर अपना सुझाव दूं. मैंने उन्हें दिया भी लेकिन उसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता.’’

प्रेम सिंह ने हमसे एक पत्र साझा किया जो उन्हें कृषि निदेशक सरोज सिंह द्वारा भेजा गया था. 28 जून 2019 को भेजे गए इस पत्र का विषय था, कृषक समृद्धि आयोग की बैठक के संबंध में.

आयोग के निर्माण को करीब दो साल बाद लिखे इस पत्र में बताया गया है कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया गया है. आयोग वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने हेतु समय-समय पर बैठक करते हुए सुझाव देगा. इस संबंध में 10 जुलाई 2019 से पूर्व एक विभागीय बैठक का आयोजन किया जाना है. अतः आपसे अनुरोध है कि निकट भविष्य में शासन स्तर पर कृषक समृद्धि आयोग की आगामी बैठक हेतु अपना अभिमत और सुझाव एक दो पन्नों में उपलब्ध कराने का कष्ट करें ताकि विभागीय सदस्यों के साथ आगामी बैठक में विचार विमर्श में आपके सुझाव सम्मलित करते हुए चर्चा किए जाए.

आयोग बनने के करीब दो साल बाद मांगे गए सुझाव

सुरेंद्र कुमार की तरफ किसान प्रतिनिधि प्रेम सिंह से भी एक बार सुझाव मांगे गए थे. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘केवल एक बार हमसे सुझाव मांगे गए तो मैंने उसका जवाब दिया लेकिन उस पर क्या हुआ मुझे नहीं पता है. सुझाव पर कोई काम हुआ नहीं तो थक हार कर मैं अपना सुझाव छपवा दिया.’’

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक से तो सुझाव तक नहीं मांगा गया था. वहीं बाराबंकी के मोइनुद्दीन बताते हैं, ‘‘मुझे जहां तक याद है दो बार शासन की तरफ से लिखित में मुझसे सुझाव मांगा गया था. हमने अपना सुझाव उन्हें दे दिया था.’’

आयोग के एक सदस्य भारतीय प्रबंध संस्थान लखनऊ में एग्री बिजनेस के प्रोफेसर सुशील कुमार को भी शामिल किया गया था. न्यूजलॉन्ड्री ने कुमार से बात की. वे कहते हैं, ‘‘आयोग की बैठक में मैं कभी शामिल नहीं हुआ. जहां तक रही बात सुझाव की तो जब यूपी सरकार कॉन्ट्रेक्टर फार्मिंग को लेकर कानून बना रही थी तब मुझसे सुझाव ज़रूर मांगे गए थे.’’

‘2022 तक किसानों की आमदनी डबल होने का सवाल ही नहीं उठता’

केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मकसद रखा है. इसी मकसद को पूरा करने के लिए योगी सरकार ने भी इस आयोग का गठन किया था.

आयोग की बैठक तक नहीं हुई ऐसे में क्या किसानों की आमदनी दोगुनी हो पाएगी. इस सवाल के जवाब में मंगल राय कहते हैं, ‘‘आमदनी दोगुनी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. 2022 में तो अब जो एक-दो साल रह गया. जब बात हुई थी तब से कृषि में करीब 14-15 प्रतिशत कम्पाउंड ग्रोथ होता तब जाकर आमदनी दोगुनी होती, लेकिन आपकी ग्रोथ रेट तीन से साढ़े तीन प्रतिशत पर अटकी हुई है. दूसरी तरफ डीजल- पेट्रोल का दाम बढ़ रहा है, मज़दूरी बढ़ रही है, खाद की कीमत बढ़ रही है. यातायात की कीमत बढ़ रही है. हर चीज का दाम बढ़ रहा है तो कैसे डबल हो जाएगा.’’

डॉक्टर आरबी सिंह का भी कुछ ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, ‘‘खेती के अलावा हमें इससे जुड़ी बाकी चीजों पर भी ध्यान देना होगा. फोकस होकर काम करना होगा.’’

किसानों की साल 2022 तक आमदनी बढ़ने के सवाल पर सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘इसको लेकर सरकार की तैयारी है कहां? मुझे तो नहीं लगता कि उन्होंने कुछ ऐसा किया है. जो कुछ है कागज पर ही है. जब कोई मीटिंग ही नहीं हुई. कोई मूल्यांकन ही नहीं हुआ तो ऐसे में कैसे कहा जाए कि आमदनी डबल हो जाएगी. मैं लखनऊ में रहता नहीं अब लेकिन मेरी जो जानकरी है उसके मुताबिक कोई कंक्रीट स्टेप किसानों की आमदनी डबल करने के लिए नहीं लिया गया. कम से कम मेरे संज्ञान में नहीं आया.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने आयोग में शामिल बाकी और दूसरे सदस्यों से भी इस संबंध में बात की. ज़्यादातर किसानों की आमदनी 2022 तक डबल हो जाएगी इसको लेकर सहमत नजर नहीं आते हैं. इसके लिए सरकार की तैयारी को नाकाफी बताते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री ने बीते साल पद्मश्री से सम्मानित मध्य प्रदेश के किसान बाबूलाल दाहिया का इंटरव्यू किया था. किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के सवाल पर उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि ‘किसी हाल में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी नहीं होगी’.

सरकार का क्या कहना है?

28 जून 2019 को कृषि निदेशक सरोज सिंह द्वारा लिखे गए पत्र से ऐसा लगता है कि शासन स्तर पर कृषक समृद्धि आयोग की बैठक हुई थी.

न्यूजलॉन्ड्री ने इसको लेकर कृषि मंत्री सूर्य प्रकाश शाही से बात करने की कोशिश की लेकिन हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. हमने उन्हें लिखित में सवाल भेज दिए हैं. अगर कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

इसके अलावा हमने प्रदेश के सूचना प्रमुख नवनीत सहगल को भी इस संबंध में सवाल भेजे हैं. उनका भी अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

कृषक समृद्धि आयोग के अहम सदस्यों में से एक और गिरी संस्थान के पूर्व प्रमुख सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘मेरा बाकी कई प्रदेशों में ऐसा ही अनुभव रहा है. कहने को आयोग का गठन कर देते हैं, लेकिन कोई बैठक होती नहीं. सारा कुछ ब्यूरोक्रेटस के हाथ में ही होता है.’’

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अप्रैल 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नवंबर के महीने में कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया. इस आयोग के गठन का मकसद था साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना. हालांकि आयोग के निर्माण को करीब तीन साल तीन महीने गुजर जाने के बाद भी इसके सदस्यों की एक भी बैठक नहीं हुई है. अभी तक इसके सदस्य आपस में ही नहीं मिले हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार का सूचना विभाग ‘संदेश’ नाम से एक पत्रिका प्रकाशित करता है. साल 2018 में इस पत्रिका ने ‘अन्नदाता की आय दोगुना करने का ठोस प्रयास’ के नाम से कवर स्टोरी प्रकाशित की थी. इसी के एक पेज में कृषक समृद्धि आयोग को लेकर जानकारी दी गई.

पत्रिका में लिखा गया है, ‘‘किसानों की आय दोगुनी करने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया है. सीएम योगी खुद इसके अध्यक्ष होंगे, जबकि कृषि मंत्री और नीति आयोग के सदस्य इसके उपाध्यक्ष बनाए गए. मुख्य सचिव और कृषि उत्पादन आयुक्त को आयोग का सदस्य बनाया गया. आयोग 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए विचार करेगा.’’

मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, नीति आयोग के सदस्य और अधिकारियों के आलावा इसमें कुछ और लोगों को नामित किया गया. इसके लिए बकायदा राज्यपाल द्वारा सदस्यों को पत्र भेजा गया. पत्रिका में दी गई जानकारी के मुताबिक, ‘‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप निर्देशक को सेंटर का सदस्य नामित किया गया. जबकि अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान फिलीपींस के भारत के प्रतिनिधि डॉक्टर यूएस सिंह तथा आईसीआरआईएसएटी हैदराबाद के महानिदेशक को गैर सरकारी सदस्य के रूप में मनोनीत किया.

प्रदर्शनकारी किसान

इसके अलावा आईसीएआर के पूर्व निदेशक डॉक्टर मंगल राय, लखनऊ में बने गिरि संस्थान के प्रो सुरेंद्र कुमार, आईआईएम लखनऊ के प्रो सुशील कुमार तथा आईसीएआर के पूर्व निदेशक डॉक्टर आरबी सिंह गैर सरकारी सदस्य के तौर पर मनोनीत किए गए.

इस आयोग में कुछ किसान प्रतिनिधियों को भी जगह दी गई थी. पत्रिका में लिखा गया है कि बाराबंकी के प्रसिद्ध किसान राम शरण शर्मा, बांदा के प्रगतिशील काश्तकार प्रेम सिंह, वाराणसी के प्रगतिशील किसान जय प्रकाश सिंह, भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारी धर्मेंद्र मलिक, लखीमपुर खीरी के उन्नत पशुपालन जयशपाल सिंह, जैविक खेती में धान जमा चुके किसान अरविन्द खरे, बाराबंकी के फूल उत्पादक मनुद्दीन, अंडा प्रोडक्शन में कीर्तिमान बनाने वाले वेद व्यास सिंह और मछली उत्पादक जनार्दन निषाद को आयोग में शामिल किया गया.

कृषि वैज्ञानिको और किसान प्रतिनिधियों के अलावा इस आयोग में कॉर्पोरेट की तरफ से महिंदा एंड महिंदा के प्रतिनिधि और आईटीसी के प्रतिनिधि शामिल हुए. आयोग में विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में अलग-अलग विभागों के सचिवों को भी शामिल किया गया था.

संदेश पत्रिका में कृषि समृद्धि आयोग के बारे में छपी जानकारी

11 नवंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ऑफिस के ट्विटर हैंडल से आयोग के गठन की जानकारी देते हुए लिखा गया, #UPCM श्री #YogiAdityanath की अध्यक्षता में कृषक समृद्धि आयोग गठित.

‘अब तक नहीं हुई एक भी बैठक’

इस आयोग की शुरुआत बेहद धूमधाम से हुई. सरकार ने आयोग के गठन को किसानों की वर्षों पुरानी मांग बताते हुए इसे पूरा करने का श्रेय लिया, लेकिन इसमें शामिल सदस्यों की माने तो गठन के समय उन्होंने बाकी सदस्यों का नाम सिर्फ अख़बारों में पढ़ा. उनकी आपस में कभी मुलाकात नहीं हुई. आयोग के प्रमुख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी कभी बैठक ही नहीं हुई.

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और भारत के नामी कृषि वैज्ञानिक 74 वर्षीय डॉक्टर मंगल राय से आयोग के कामों को लेकर जब हमने सवाल किया तो वो हंसते हुए कहते हैं, ‘‘एक वाक्य में जानिए कि उसकी आज तक कोई मीटिंग नहीं हुई.’’

इस आयोग में कृषि क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित डॉक्टर आरबी सिंह को भी शामिल किया गया था. सिंह आईसीएआर के पूर्व निदेशक हैं और वर्तमान में सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, इंफाल के चांलसर हैं.

न्यूजलॉन्ड्री ने सिंह से फोन पर बात की. आयोग के निर्माण के बाद उसके कामों के सवाल पर मंगल राय की तरह वे भी हंसते हुए कहते हैं, ‘‘आयोग तो बनाई गई थी. उसके आगे तो दोबारा कोई मीटिंग हुई नहीं. कोई फॉलोअप नहीं लिया गया. एक दो बार कृषि मंत्री से मेरी मुलाकात हुई. आयोग के लोगों के साथ कोई बैठक नहीं हुई. जहां तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की बात है तो मैं उनसे एक बार ही मिला हूं जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के रहने वाले पद्म अवार्डी और बाकी दूसरे अवार्ड पाने वालों को सम्मानित किया था. उसके अलावा मेरी कभी उनसे कोई मुलाकात नहीं हुई.’’

सरकार ने लखनऊ के गिरी संस्थान के तत्कालीन प्रमुख प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार को भी आयोग का सदस्य नामित किया था. प्रोफेसर कुमार रिटायर होने के बाद इन दिनों हरियाणा के रोहतक में रहते हैं. कुमार भी आयोग की किसी भी बैठक से इंकार करते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘आयोग का गठन नवंबर 2017 में हुआ था. मुझे उसमें शामिल किया गया था. उसके कुछ महीनों बाद मार्च 2018 में मैं रिटायर हो गया. मेरी जानकारी के मुताबिक एक बार मीटिंग का दिन तय किया गया था लेकिन वो हुई या नहीं हुई इसकी मुझे जानकारी नहीं है. जब तक मैं वहां था तब तक किसी मीटिंग में शामिल नहीं हुआ. मुझे नहीं लगता कि वो इसपर कुछ कर भी रहे हैं. आयोग के किसी भी सदस्य से मेरी मुलाकात नहीं हुई.’’

केंद्र सरकार की माने तो सिर्फ खेती के जरिए किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं की जा सकती है. इसके लिए खेती के साथ-साथ पशुपालन और उससे जुड़े दूसरे व्यवसाय को भी अपनाना होगा. शायद इसी को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने अपने इस आयोग में लखीमपुरी खीरी पशुपालन में बेहतर काम करने वाले यशपाल चौधरी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रहने वाले वेद व्यास सिंह को शामिल किया. वेद व्यास सिंह का अण्डों का बड़ा कारोबार है. उन्होंने बकायदा एक कंपनी बनाई हुई है. न्यूजलॉन्ड्री ने यशपाल चौधरी और वेद व्यास सिंह दोनों से आयोग के कामों को लेकर बता की.

सिंह आयोग को लेकर पूछे गए सवाल पर कहते हैं, ‘‘केंद्र की बीजेपी सरकार का पुराना वादा था कि किसान आयोग का गठन किया जाएगा. उसी वादे के अनुसार इन्होंने किसान आयोग का गठन तो कर लिया, लेकिन आज तक उसकी पहली बैठक नहीं हो पाई है. उसको सिर्फ कागज में लिख दिया गया. आयोग के बाकी सदस्यों से भी मुलाकात नहीं हुई. बैठक हो तब न मुलाकात हो. इसके एक सदस्य है राम शरण वर्मा उनसे इतफ़ाक़ से एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई थी.’’

कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन करते किसान

यशपाल चौधरी कहते हैं, ‘‘हमें आयोग में शामिल किया गया था. इसके लिए एक पत्र भी सरकार की तरफ से हमारे पास आया. लेकिन उसके बाद क्या हुआ हमें कोई जानकारी नहीं है. उसमें खेती के जानकारों के साथ-साथ फूल की खेती करने वाले बाराबंकी के मोइनुद्दीन को भी शामिल किया गया था. उनका फूलों को लेकर अच्छा काम है. वो मेरे जानने वाले हैं. एकबार मैं उनसे पूछा था कि कोई बैठक हुई तो उन्होंने भी बताया था कि कोई बैठक ही नहीं हुई. हमें कभी मीटिंग के लिए बुलाया ही नहीं गया. ये सरकार किसानों को लेकर गंभीर ही नहीं है. ये सरकार किसान विरोधी है. इस सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए कभी काम ही नहीं किया है.’’

फूलों की खेती के लिए कई अवार्ड से सम्मानित हो चुके बाराबंकी के मोइनुद्दीन न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘आयोग की कोई बैठक हुई या नहीं ये मुझे नहीं पता. मैं कभी भी किसी बैठक में शामिल नहीं हुआ हूं. इस आयोग में कई बड़े-बड़े वैज्ञानिक शामिल है. हो सकता है उनकी बैठक हुई हो. जहां तक रही आयोग के सदस्यों से मुलाकात की बात तो उसमें से कुछ लोग मेरे जानने वाले हैं तो उनसे कभी कभार मुलाकात होती रहती है.’’

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मालिक भी आयोग की किसी बैठक में शामिल होने से इंकार करते हुए सरकार पर किसानों के मामलों में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हैं. आयोग के सदस्य बांदा के रहने वाले प्रगतिशील काश्तकार प्रेम सिंह से भी किसी भी बैठक में शामिल होने के सवाल का जवाब बाकियों की तरह ना में ही देते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए प्रेम सिंह कहते हैं, ‘‘माननीय राज्यपाल महोदय द्वारा हमें चयनित होने का पत्र आया था. आजतक ना तो एक भी मीटिंग हुई है. मुझे लगता है कि यह एक तरह यह सरकारी कृषक समृद्धि आयोग है. आयोग के सदस्यों का नाम हमें सिर्फ अख़बारों में पढ़ा उनसे हमारी कभी कोई मुलाकात नहीं हो पाई. आयोग के प्रमुख मुख्यमंत्री उनसे भी आयोग के सदस्यों के साथ कोई बैठक नहीं ही हुई है. कम से कम मैं तो किसी बैठक में शामिल नहीं हुआ हूं. मुझे लगता है कि सरकार किसानों को लेकर गंभीर नहीं है.’’

कुछ सदस्यों से एक-दो बार सुझाव लिए गए, कुछ से वो भी नहीं

संदेश पत्रिका में आयोग के कामों के लेकर भी जिक्र किया गया है. बताया गया है कि आयोग इन बिंदुओं पर विचार करेगा.

1. कम लागत में ज़्यादा उत्पादन के तरीकों पर विचार

2. फसलों के बेहतर स्टोरेज डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में सुझाव देगा.

3. खेती में आय कम होने वाले कारणों पर मंथन. इसके साथ ही इसे बढ़ाने पर सुझाव दिए जाएंगे.

4. एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी, पशुधन, मछली पालन, मुर्गी पालन, रेशम उत्पादन, कृषि वन और दुग्ध विकास के लिए भी आयोग सुझाव देगा.

5. अलग-अलग जलवायु को इवैल्युट कर प्रदेश में बराबर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट को लेकर नीतियां बनाई जाएगी.

दरअसल सरकार आयोग में शामिल कृषि वैज्ञानिकों, अधिकारियों और प्रगतिशील किसानों से साल 2022 तक किसानों की आमदनी कैसे दोगुनी की जाए इसके लिए सुझाव लेकर उसपर एक्शन लेती. ऐसा ही संदेश पत्रिका में लिखा गया है, लेकिन आयोग में शामिल ज़्यादातर लोगों की माने तो कोई बैठक ही नहीं हुई तो सुझाव लेने देने का सवाल ही नहीं उठता. वहीं कुछ सदस्यों से सरकार ने लिखित में एक-दो बार इस संबंध में सुझाव ज़रूर लिए हैं.

किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सरकार ने कभी कोई सुझाव लिया. इस सवाल पर डॉक्टर मंगल राय कहते हैं, ‘‘कोई मीटिंग ही नहीं हुई. आयोग है, कोई मीटिंग होगी तभी न सुझाव लेंगे. मेरे ख्याल से 10 नवंबर को इस कमेटी को बने तीन साल हो गया. आयोग उन्होंने बनाया. मैं स्पेशलिस्ट हूं तो मेरी अपेक्षा यही थी कि थोड़ा बहुत जो ज्ञान मेरे पास है उसका ये सदुपयोग करेंगे. हम तो सुझाव देने के लिए तैयार बैठे हुए हैं. अब अगर आपकी मर्जी नहीं है तो मैं क्या ही बोलूं. मैंने तो कहा नहीं था कि मुझे सदस्य बनाओ.’’

पद्मभूषण डॉक्टर आरबी सिंह भी किसी तरह का सुझाव लेने से इंकार करते हुए कहते हैं, ‘‘आयोग के कामों का ठीक से फॉलोअप नहीं हुआ तो सुझाव का तो सवाल नहीं उठता. इसमें जुटकर काम करने की ज़रूरत है. बात करने से तो काम नहीं चलेगा. इसको मॉनीटर करने की जरूरत है.’’

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘हम स्कीम तो बना लेते हैं. मैं ये नहीं कहूंगा कि ये लापरवाही है. हो सकता है कि उनकी ज़िम्मेदारी कहीं और बढ़ गई हो, लेकिन किसान की आय को दोगुना करना सबसे बड़ी जिम्मेदारी होनी चाहिए. क्योंकि किसान अगर त्रस्त रहेगा तो देश त्रस्त रहेगा. किसानों की आमदनी बढ़ाने पर ध्यान देना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. मैं चाहूंगा कि इसका विशेष ध्यान देना चाहिए. सिर्फ बात करने से कुछ नहीं होगा. एक्शन प्लान बनाकर काम करना होगा कि साल भर में, छह महीने में, तीन महीने में ये करेंगे. ये ग्रोथ होगी. इसपर नजर रखनी होगी. मुझे लगता है कि यह काम फोकस तरीके से नहीं हो रहा है. हमें जिम्मेदारी के साथ फोकस होकर इसपर काम करने की ज़रूरत है.’’

गिरी संस्थान के पूर्व प्रमुख सुरेंद्र कुमार सुझाव के सवाल पर कहते हैं, ‘‘मुझे एक बार उन्होंने एजेंडा भेजा और वो चाहते थे कि मैं उसपर अपना सुझाव दूं. मैंने उन्हें दिया भी लेकिन उसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता.’’

प्रेम सिंह ने हमसे एक पत्र साझा किया जो उन्हें कृषि निदेशक सरोज सिंह द्वारा भेजा गया था. 28 जून 2019 को भेजे गए इस पत्र का विषय था, कृषक समृद्धि आयोग की बैठक के संबंध में.

आयोग के निर्माण को करीब दो साल बाद लिखे इस पत्र में बताया गया है कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया गया है. आयोग वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने हेतु समय-समय पर बैठक करते हुए सुझाव देगा. इस संबंध में 10 जुलाई 2019 से पूर्व एक विभागीय बैठक का आयोजन किया जाना है. अतः आपसे अनुरोध है कि निकट भविष्य में शासन स्तर पर कृषक समृद्धि आयोग की आगामी बैठक हेतु अपना अभिमत और सुझाव एक दो पन्नों में उपलब्ध कराने का कष्ट करें ताकि विभागीय सदस्यों के साथ आगामी बैठक में विचार विमर्श में आपके सुझाव सम्मलित करते हुए चर्चा किए जाए.

आयोग बनने के करीब दो साल बाद मांगे गए सुझाव

सुरेंद्र कुमार की तरफ किसान प्रतिनिधि प्रेम सिंह से भी एक बार सुझाव मांगे गए थे. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘केवल एक बार हमसे सुझाव मांगे गए तो मैंने उसका जवाब दिया लेकिन उस पर क्या हुआ मुझे नहीं पता है. सुझाव पर कोई काम हुआ नहीं तो थक हार कर मैं अपना सुझाव छपवा दिया.’’

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक से तो सुझाव तक नहीं मांगा गया था. वहीं बाराबंकी के मोइनुद्दीन बताते हैं, ‘‘मुझे जहां तक याद है दो बार शासन की तरफ से लिखित में मुझसे सुझाव मांगा गया था. हमने अपना सुझाव उन्हें दे दिया था.’’

आयोग के एक सदस्य भारतीय प्रबंध संस्थान लखनऊ में एग्री बिजनेस के प्रोफेसर सुशील कुमार को भी शामिल किया गया था. न्यूजलॉन्ड्री ने कुमार से बात की. वे कहते हैं, ‘‘आयोग की बैठक में मैं कभी शामिल नहीं हुआ. जहां तक रही बात सुझाव की तो जब यूपी सरकार कॉन्ट्रेक्टर फार्मिंग को लेकर कानून बना रही थी तब मुझसे सुझाव ज़रूर मांगे गए थे.’’

‘2022 तक किसानों की आमदनी डबल होने का सवाल ही नहीं उठता’

केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मकसद रखा है. इसी मकसद को पूरा करने के लिए योगी सरकार ने भी इस आयोग का गठन किया था.

आयोग की बैठक तक नहीं हुई ऐसे में क्या किसानों की आमदनी दोगुनी हो पाएगी. इस सवाल के जवाब में मंगल राय कहते हैं, ‘‘आमदनी दोगुनी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. 2022 में तो अब जो एक-दो साल रह गया. जब बात हुई थी तब से कृषि में करीब 14-15 प्रतिशत कम्पाउंड ग्रोथ होता तब जाकर आमदनी दोगुनी होती, लेकिन आपकी ग्रोथ रेट तीन से साढ़े तीन प्रतिशत पर अटकी हुई है. दूसरी तरफ डीजल- पेट्रोल का दाम बढ़ रहा है, मज़दूरी बढ़ रही है, खाद की कीमत बढ़ रही है. यातायात की कीमत बढ़ रही है. हर चीज का दाम बढ़ रहा है तो कैसे डबल हो जाएगा.’’

डॉक्टर आरबी सिंह का भी कुछ ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, ‘‘खेती के अलावा हमें इससे जुड़ी बाकी चीजों पर भी ध्यान देना होगा. फोकस होकर काम करना होगा.’’

किसानों की साल 2022 तक आमदनी बढ़ने के सवाल पर सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘इसको लेकर सरकार की तैयारी है कहां? मुझे तो नहीं लगता कि उन्होंने कुछ ऐसा किया है. जो कुछ है कागज पर ही है. जब कोई मीटिंग ही नहीं हुई. कोई मूल्यांकन ही नहीं हुआ तो ऐसे में कैसे कहा जाए कि आमदनी डबल हो जाएगी. मैं लखनऊ में रहता नहीं अब लेकिन मेरी जो जानकरी है उसके मुताबिक कोई कंक्रीट स्टेप किसानों की आमदनी डबल करने के लिए नहीं लिया गया. कम से कम मेरे संज्ञान में नहीं आया.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने आयोग में शामिल बाकी और दूसरे सदस्यों से भी इस संबंध में बात की. ज़्यादातर किसानों की आमदनी 2022 तक डबल हो जाएगी इसको लेकर सहमत नजर नहीं आते हैं. इसके लिए सरकार की तैयारी को नाकाफी बताते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री ने बीते साल पद्मश्री से सम्मानित मध्य प्रदेश के किसान बाबूलाल दाहिया का इंटरव्यू किया था. किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के सवाल पर उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि ‘किसी हाल में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी नहीं होगी’.

सरकार का क्या कहना है?

28 जून 2019 को कृषि निदेशक सरोज सिंह द्वारा लिखे गए पत्र से ऐसा लगता है कि शासन स्तर पर कृषक समृद्धि आयोग की बैठक हुई थी.

न्यूजलॉन्ड्री ने इसको लेकर कृषि मंत्री सूर्य प्रकाश शाही से बात करने की कोशिश की लेकिन हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. हमने उन्हें लिखित में सवाल भेज दिए हैं. अगर कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

इसके अलावा हमने प्रदेश के सूचना प्रमुख नवनीत सहगल को भी इस संबंध में सवाल भेजे हैं. उनका भी अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

कृषक समृद्धि आयोग के अहम सदस्यों में से एक और गिरी संस्थान के पूर्व प्रमुख सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘मेरा बाकी कई प्रदेशों में ऐसा ही अनुभव रहा है. कहने को आयोग का गठन कर देते हैं, लेकिन कोई बैठक होती नहीं. सारा कुछ ब्यूरोक्रेटस के हाथ में ही होता है.’’

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