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उत्तराखंड ग्राउंड जीरो से चश्मदीद की पहली रिपोर्ट: 30-40 लोग मलबे में दबते देखे और कुछ पानी में बह गये

“मैं पहले तो ऋषिगंगा वाले प्रोजेक्ट में गया. वहां केवल मलबा है और पूरी तरह गाद भरी हुई है. कुछ ही दिन पहले वहां गया था. वहां प्रोजेक्ट होता था भवन था, पावर हाउस था लेकिन अब कुछ नहीं है. सब मटियामेट हो गया था. आज वहां बड़ी सुंदर दिखने वाली ऋषिगंगा बिल्कुल बर्बाद दिख रही है.” यह कहना है उत्तराखंड में उत्तराखंड आपदा स्थल से लौटकर आये अतुल सती का जो पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं और कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के सदस्य भी हैं.

सती ने मौके पर जिन मज़ूदरों से बात की उनके मुताबिक 30-40 लोग मलबे में दबते देखे गये और कुछ पानी में बह गये. शाम तक आईटीबीपी की टीम राहत के काम में लगी थी. दिल्ली और देहरादून से केंद्रीय और राज्य आपदा प्रबन्धन विभाग ने अपनी कई टीम रवाना कीं. रात में अंधेरे के बाद इस काम में बाधा आई. गृहमंत्री अमित शाह ने हर मुमकिन मदद का आश्वासन दिया है.

जो मज़दूर बच गये उन्होंने सती को बताया कि उन्होंने अपने सामने लोगों को जान बचाने के लिये भागते देखा लेकिन कई लोग नहीं बच पाये.

दो प्रोजेक्ट हुये हैं बुरी तरह प्रभावित

इस आपदा में दो पावर प्रोजेक्ट प्रभावित हुये हैं. सरहदी इलाके में रेणी गांव के पास पेंग गांव में बना ऋषिगंगा हाइडिल प्रोजेक्ट पूरी तरह नष्ट हो गया. ये अपेक्षाकृत छोटा प्रोजेक्ट था. लेकिन ऋषिगंगा आगे जाकर धौलीगंगा में मिलती है और उस पर बना 530 मेगावॉट का एनटीपीसी का पावर प्रोजेक्ट भी प्रभावित हुआ है.

सरकार खुद मानती है कि 150 लोग लापता हैं. आशंका है कि इनमें से ज़्यादातर लोग या तो मलबे में दबे या नदी में बह गये हैं. सोमवार को ही तस्वीर साफ होने की उम्मीद है.

कैसे हुई ये आपदा

सुबह करीब 11 बजे अचानक जोशीमठ से करीब 22 किलोमीटर पहले ऋषिगंगा नदी के पानी में उफान आ गया. इससे पहले बहुत विस्फोट की सी आवाज़ सुनाई दी और लोगों द्वारा शूट किये गये वीडियो सोशल मीडिया पर देखे गये. इसके पीछे किसी ग्लेशियर से आये हिमखंड और मलबे को वजह माना जा रहा है.

हमने इस बारे में ग्लेशियर विज्ञानी डीपी डोभाल से बात की जिनका कहना है, “यह कहना बड़ा मुश्किल है कि असल में क्या हुआ. स्थानीय लोग मुझे बता रहे हैं कि सुबह 10-15 मिनट तक पानी और मलबा तेज़ रफ्तार से बहता देखा गया. यह एक बड़े आउटबर्स्ट का संकेत है. यह मुमकिन है कि ऋषिगंगा घाटी में किसी लेक वाले क्षेत्र में मलबा जमा हुआ और एवलांच आने से वह वॉटर बॉडी टूट गई. यह भी हो सकता है कि एवलांच कल या आज सुबह हुआ हो. यह केदारनाथ जैसा हादसा ही है लेकिन वह घटना मॉनसून के वक्त हुई थी और अभी जाड़ों का मौसम है.”

केदारनाथ तबाही की याद

इस आपदा की तुलना केदारनाथ तबाही से की जा रही है हालांकि वह आपदा बहुत बड़े पैमाने पर हुई थी. उसमें आधिकारिक रूप से करीब 5000 लोगों की जान गई थी. ताज़ा हादसा केदारनाथ जितना बड़ा नहीं है लेकिन कई लोगों की जान इसमें भी गई है. केदारनाथ की घटना जून में हुई थी और उसका कारण भारी बारिश और तेजी से पिघलती बर्फ थी. तब चौराबरी ग्लेशियर से आने वाली मंदाकिनी नदी के चलते बाढ़ आई थी. अभी मॉनसून सीज़न न होने और नदियों में पानी कम होने के कारण श्रीनगर, ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे इलाके में तबाही नहीं हुई.

इस ताजा आपदा के बाद उत्तराखंड में बन रही बीसियों पनबिजली परियोजनाओं पर एक बार फिर से सवाल उठ खड़ा हुआ है. केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने साफ कहा था कि आपदा को बढ़ाने में जल विद्युत परियोजनाओं की बड़ी भूमिका रही है. इन परियोजनाओं के निर्माण के वक्त ब्लास्टिंग से लेकर मलबे के निस्तारण तक तमाम नियमों की अवहेलना होती है. इसके चलते नदियों का रूप अधिक विकराल हो जाता है. जाहिर है इस तरह के सवाल इस नई आपदा के बाद फिर से खड़े होंगे.

इस घटना पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुख जाहिर करते हुए ट्वीट किया, "उत्तराखंड के जोशीमठ के पास ग्लेशियर टूटने से उस क्षेत्र में हुए भारी नुकसान के समाचारों से बहुत चिंता हुई है. मैं लोगों की सुरक्षा और सेहत के लिए प्रार्थना करता हूं. मुझे विश्वास है कि मौके पर राहत एवं बचाव कार्य पूरी तैयारी से चलाए जा रहे हैं."

“मैं पहले तो ऋषिगंगा वाले प्रोजेक्ट में गया. वहां केवल मलबा है और पूरी तरह गाद भरी हुई है. कुछ ही दिन पहले वहां गया था. वहां प्रोजेक्ट होता था भवन था, पावर हाउस था लेकिन अब कुछ नहीं है. सब मटियामेट हो गया था. आज वहां बड़ी सुंदर दिखने वाली ऋषिगंगा बिल्कुल बर्बाद दिख रही है.” यह कहना है उत्तराखंड में उत्तराखंड आपदा स्थल से लौटकर आये अतुल सती का जो पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं और कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के सदस्य भी हैं.

सती ने मौके पर जिन मज़ूदरों से बात की उनके मुताबिक 30-40 लोग मलबे में दबते देखे गये और कुछ पानी में बह गये. शाम तक आईटीबीपी की टीम राहत के काम में लगी थी. दिल्ली और देहरादून से केंद्रीय और राज्य आपदा प्रबन्धन विभाग ने अपनी कई टीम रवाना कीं. रात में अंधेरे के बाद इस काम में बाधा आई. गृहमंत्री अमित शाह ने हर मुमकिन मदद का आश्वासन दिया है.

जो मज़दूर बच गये उन्होंने सती को बताया कि उन्होंने अपने सामने लोगों को जान बचाने के लिये भागते देखा लेकिन कई लोग नहीं बच पाये.

दो प्रोजेक्ट हुये हैं बुरी तरह प्रभावित

इस आपदा में दो पावर प्रोजेक्ट प्रभावित हुये हैं. सरहदी इलाके में रेणी गांव के पास पेंग गांव में बना ऋषिगंगा हाइडिल प्रोजेक्ट पूरी तरह नष्ट हो गया. ये अपेक्षाकृत छोटा प्रोजेक्ट था. लेकिन ऋषिगंगा आगे जाकर धौलीगंगा में मिलती है और उस पर बना 530 मेगावॉट का एनटीपीसी का पावर प्रोजेक्ट भी प्रभावित हुआ है.

सरकार खुद मानती है कि 150 लोग लापता हैं. आशंका है कि इनमें से ज़्यादातर लोग या तो मलबे में दबे या नदी में बह गये हैं. सोमवार को ही तस्वीर साफ होने की उम्मीद है.

कैसे हुई ये आपदा

सुबह करीब 11 बजे अचानक जोशीमठ से करीब 22 किलोमीटर पहले ऋषिगंगा नदी के पानी में उफान आ गया. इससे पहले बहुत विस्फोट की सी आवाज़ सुनाई दी और लोगों द्वारा शूट किये गये वीडियो सोशल मीडिया पर देखे गये. इसके पीछे किसी ग्लेशियर से आये हिमखंड और मलबे को वजह माना जा रहा है.

हमने इस बारे में ग्लेशियर विज्ञानी डीपी डोभाल से बात की जिनका कहना है, “यह कहना बड़ा मुश्किल है कि असल में क्या हुआ. स्थानीय लोग मुझे बता रहे हैं कि सुबह 10-15 मिनट तक पानी और मलबा तेज़ रफ्तार से बहता देखा गया. यह एक बड़े आउटबर्स्ट का संकेत है. यह मुमकिन है कि ऋषिगंगा घाटी में किसी लेक वाले क्षेत्र में मलबा जमा हुआ और एवलांच आने से वह वॉटर बॉडी टूट गई. यह भी हो सकता है कि एवलांच कल या आज सुबह हुआ हो. यह केदारनाथ जैसा हादसा ही है लेकिन वह घटना मॉनसून के वक्त हुई थी और अभी जाड़ों का मौसम है.”

केदारनाथ तबाही की याद

इस आपदा की तुलना केदारनाथ तबाही से की जा रही है हालांकि वह आपदा बहुत बड़े पैमाने पर हुई थी. उसमें आधिकारिक रूप से करीब 5000 लोगों की जान गई थी. ताज़ा हादसा केदारनाथ जितना बड़ा नहीं है लेकिन कई लोगों की जान इसमें भी गई है. केदारनाथ की घटना जून में हुई थी और उसका कारण भारी बारिश और तेजी से पिघलती बर्फ थी. तब चौराबरी ग्लेशियर से आने वाली मंदाकिनी नदी के चलते बाढ़ आई थी. अभी मॉनसून सीज़न न होने और नदियों में पानी कम होने के कारण श्रीनगर, ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे इलाके में तबाही नहीं हुई.

इस ताजा आपदा के बाद उत्तराखंड में बन रही बीसियों पनबिजली परियोजनाओं पर एक बार फिर से सवाल उठ खड़ा हुआ है. केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने साफ कहा था कि आपदा को बढ़ाने में जल विद्युत परियोजनाओं की बड़ी भूमिका रही है. इन परियोजनाओं के निर्माण के वक्त ब्लास्टिंग से लेकर मलबे के निस्तारण तक तमाम नियमों की अवहेलना होती है. इसके चलते नदियों का रूप अधिक विकराल हो जाता है. जाहिर है इस तरह के सवाल इस नई आपदा के बाद फिर से खड़े होंगे.

इस घटना पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुख जाहिर करते हुए ट्वीट किया, "उत्तराखंड के जोशीमठ के पास ग्लेशियर टूटने से उस क्षेत्र में हुए भारी नुकसान के समाचारों से बहुत चिंता हुई है. मैं लोगों की सुरक्षा और सेहत के लिए प्रार्थना करता हूं. मुझे विश्वास है कि मौके पर राहत एवं बचाव कार्य पूरी तैयारी से चलाए जा रहे हैं."