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किसान आंदोलन: देशी-विदेशी सेलिब्रिटी आज कटघरे में खड़े किये जा रहे हैं लेकिन यह परंपरा पुरानी है

कलाकारों, लेखकों और खिलाड़ियों द्वारा उनके अपने देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आवाज़ उठाने की लंबी और शानदार परंपरा रही है. आज जब किसान आंदोलन का समर्थन करने और आंदोलन के प्रति सरकार के रवैये की आलोचना करने की वजह से देशी-विदेशी सेलिब्रिटी कटघरे में खड़े किये जा रहे हैं, तब उस शानदार परंपरा के कुछ पन्नों को देखा जाना चाहिए.

जिस दिन सुप्रसिद्ध संगीत कलाकार रिहाना किसान आंदोलन को लेकर वैश्विक चुप्पी पर सवाल उठा रही थीं, उससे ठीक पचास साल पहले अपने दौर की विख्यात अभिनेत्री जेन फ़ोंडा वियतनाम पर अमेरिका के हमले को युद्ध अपराध बता रहे अमेरिकी सैनिकों की एक ऐतिहासिक बैठक में मौजूद थीं. तब वह हमला अपने चरम पर था और अमेरिकी सैनिक लाओस और कंबोडिया में भी कार्रवाई कर रहे थे. निक्सन प्रशासन और अमेरिकी सेना के अमानवीय युद्ध का अमेरिका में और अन्यत्र लगातार विरोध हो रहा था. इस विरोध में कई बड़े कलाकार, साहित्यकार और खिलाड़ी शामिल थे, लेकिन इस विरोध का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह था कि इसमें वियतनाम में लड़े कई अमेरिकी सैनिक भी शामिल थे और उनके समूह की कोशिशों ने अमेरिकी जनता के सामने सच को उजागर किया तथा आख़िरकार अमेरिका को वियतनाम से हारकर हटना पड़ा था.

इन्हीं सैनिकों ने युद्ध के ख़िलाफ़ अपनी मुहिम के सिलसिले में डिट्रॉयट में 1971 में 31 जनवरी से दो फ़रवरी तक एक जन सुनवाई का आयोजन किया था. उसमें अभिनेत्री जेन फ़ोंडा के अलावा मशहूर इतिहाकार, दार्शनिक व लेखक हॉवर्ड ज़िन और बाद में अमेरिकी राजनीति में अहम पदों को हासिल करने वाले जॉन केरी भी शामिल हुए थे. ज़िन दूसरे महायुद्ध में और केरी वियतनाम में लड़ चुके थे. आज फ़ोंडा के साथ केरी जलवायु परिवर्तन को लेकर लगातार सक्रिय हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके जॉन केरी पूर्व विदेश सचिव हैं और अब राष्ट्रपति बाइडेन ने उन्हें जलवायु परिवर्तन पर अपना विशेष दूत बनाया है. हॉवर्ड ज़िन की किताब ‘ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ़ द यूनाइटेड स्टेट्स’ एक क्लासिक बन चुकी है और अमेरिकी इतिहास के किसी भी अध्येता को उससे गुज़रना ही होता है. यह किताब पॉपुलर कल्चर में भी बार-बार उद्धृत होती रहती है. वियतनाम युद्ध का विरोध करने के कारण जेन फ़ोंडा को उस दौर में हॉलीवुड में काम मिलना बंद हो गया था. फ़ोंडा अमेरिकी नारीवादी आंदोलन की भी बड़ी कार्यकर्ता हैं.

मोहम्मद अली के नाम के बिना वियतनाम युद्ध और मानवाधिकारों की चर्चा संभव ही नहीं है. उस युद्ध के दौरान 22 साल की उम्र में 1964 में वे विश्व हेवीवेट चैम्पियन बने थे. चार साल पहले रोम ओलम्पिक में स्वर्ण पदक भी जीत चुके थे. उनका शानदार करियर शुरू हो रहा था कि 1966 में उन्होंने वियतनाम युद्ध के लिए सेना में भर्ती से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि वे दस हज़ार मील जाकर निर्दोष लोगों को मारने में मददगार नहीं बनेंगे. इस फ़ैसले के चलते उनके पुरस्कार छीन लिये गये और पांच साल की क़ैद की सज़ा सुनायी गयी. ऊपरी अदालत में अपील के चलते, जिसमें आख़िरकार उनकी जीत हुई थी, वे जेल तो नहीं गये, पर उनके करियर के पांच साल ज़रूर बर्बाद हो गये. अमेरिका में अश्वेतों के नागरिक अधिकारों की लड़ाई के अलावा अली ने मूलनिवासियों के अधिकारों का भी समर्थन किया. अफ़्रीका की समस्याओं से उनका जुड़ाव रहा तथा उन्होंने फ़िलीस्तीन की आज़ादी के पक्ष में आवाज़ उठायी. रवांडा जनसंहार के पीड़ितों का साथ देने के लिए उन्होंने अमेरिकी सरकार पर दबाव डाला था. मोहम्मद अली को तमाम सम्मानों व पुरस्कारों के साथ अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी मिला था.

जॉर्ज हैरिसन और पंडित रविशंकर ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के दमन और जनसंहार के बारे में दुनिया को बताने तथा पीड़ितों के लिए धन जुटाने के इरादे से 1971 में न्यूयॉर्क में एक बड़ा संगीत कार्यक्रम आयोजित किया था. तब इतने बड़े स्तर पर मानवीय चिंता के लिए आयोजित होने वाला यह सबसे बड़ा कार्यक्रम था. जॉर्ज हैरिसन पहले बेहद लोकप्रिय संगीत समूह बीटल्स में थे और पंडित रविशंकर भारतीय सितारवादक थे. उस आयोजन में मूर्धन्य कलाकार अली अकबर खान, बीटल्स के पूर्व सदस्य रिंगो स्टार, बाद में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बॉब डिलन आदि अनेक बड़े कलाकार शामिल हुए थे.

इस सिलसिले में महान क्रिकेटर सर डॉन ब्रैडमैन को ज़रूर याद किया जाना चाहिए. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख के रूप में वे 1971 में दक्षिण अफ़्रीका गये थे और नाज़ीवाद के समर्थक व अश्वेत अफ़्रीकियों को दोयम दर्जे का माननेवाले तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉन वोर्स्टर से मिले थे. उस मुलाक़ात में उन्होंने दक्षिण अफ़्रीकी टीम में अश्वेतों को शामिल करने को कहा. वोर्स्टर की बकवास सुनकर चिढ़े ब्रैडमैन ने घोषणा कर दी कि जब तक मिश्रित टीम नहीं बनेगी, ऑस्ट्रेलिया की टीम दक्षिण अफ़्रीका नहीं जायेगी. इस फ़ैसले से अनेक खिलाड़ियों का करियर बर्बाद हुआ और ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड को भारी आर्थिक नुक़सान हुआ था. दोनों देशों में मैच 1993 में शुरू हो सके थे. अप्रैल, 1986 में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री मैल्कम फ़्रेज़र समेत कुछ गणमान्य लोग जेल में सालों से बंद नेल्सन मंडेला से मिलने गये थे. मंडेला ने फ़्रेज़र से पहला सवाल यही पूछा था- ‘क्या डॉन ब्रैडमैन अभी जीवित हैं?’

साल 1983 में 60 अमेरिकी कलाकारों और खिलाड़ियों ने एक अभियान चलाया था, जिसमें दक्षिण अफ़्रीका में होने वाले कार्यक्रमों का बहिष्कार किया गया था. इसमें हैरी बेलाफ़ोंट, पॉल न्यूमैन, जेन फ़ोंडा, मोहम्मद अली, टोनी बेनेट जैसे लोग शामिल थे. इस अभियान ने हज़ारों कलाकारों और खिलाड़ियों को बहिष्कार से जोड़ा था. उस समय दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेदी शासन था, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों का समर्थन था. अपने शासन के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक माहौल बनाने के लिए रंगभेदी सरकार खिलाड़ियों और कलाकारों को बहुत पैसा बांटती थी. लेकिन नैतिक आग्रहों के लिए बहिष्कार करने वालों ने नुकसान को चुना.

साल 2014 में हॉलीवुड के कई सितारों ने ग़ाज़ा में जनसंहार के ख़िलाफ़ बोला था. इनमें रिहाना, जोनाथन डेम, सेलेना गोमेज़, पेनेलोप क्रुज़, मार्क राफ़ालो, वालेस शॉन, रोजर वाटर्स, जोन स्टीवार्ट आदि शामिल थे. फ़ुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्तियानो रोनाल्डो व एरिक कैंटोना, ब्रिटिश गायक ज़ायन मलिक, अमेरिकी गायक लुप फ़ियास्को, व्हूपी गोल्डबर्ग, रॉब शेनाइडर, गीगी हदीद, मॉर्गन फ़्रीमैन आदि भी समय-समय पर फ़िलीस्तीन के पक्ष में बोलते रहे हैं. हाल में दिवंगत विख्यात खिलाड़ी डीएगो माराडोना क्यूबा और वेनेज़ुएला पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की पाबंदियों के विरुद्ध तथा फ़िलीस्तीन के अधिकारों की लगातार पैरोकारी करते थे. मैट डेमन, जॉर्ज क्लूनी, अफ़्रीका में जनसंहारों की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का लगातार प्रयास करते रहे हैं.

ये कुछ उदाहरण हैं. सूची और विवरण का आकार बहुत व्यापक और प्रेरणादायी है. ये सिलेब्रिटी अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दान में भी देते हैं तथा विभिन्न सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर भी सक्रिय रहते हैं. अक्सर उनकी सक्रियता अपने देश तक सीमित नहीं रहती. माइकल जैक्सन इसकी बड़ी मिसाल हैं.

बहरहाल, इस चर्चा को 1968 के ओलम्पिक की उस घटना से समाप्त करते हैं, जो इस आयोजन के इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना थी. मैक्सिको सिटी में आयोजित ओलंपिक्स में 200 मीटर दौड़ में जीते अमेरिकी एथलीट टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने पदक लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रगान के बजाने की अवधि तक अपना एक हाथ उठाये रखा था. इन दोनों ने काले दस्ताने पहने हुए थे. दूसरे स्थान पर आये ऑस्ट्रेलिया के पीटर नॉरमैन समेत तीनों ने मानवाधिकार के बैज भी लगाया हुआ था. नॉरमैन अपने देश की पूर्ववर्ती श्वेत ऑस्ट्रेलिया नीति के आलोचक थे. इन्होंने ही दोनों साथी खिलाड़ियों को कहा था कि दो दस्ताने को वे एक-एक हाथ में पहन लें. एक खिलाड़ी दस्ताने लाना भूल गया था. अमेरिकी खिलाड़ियों ने इस अवसर पर जूते न पहनकर काले रंग के मोज़े पहने थे, जो अश्वेत अमेरिकियों की ग़रीबी का प्रतीक था. स्मिथ ने काला स्कार्फ़ अश्वेत गर्व को इंगित करने के लिए पहना था, तो कार्लोस ने अपनी जैकेट की ज़िप खुली रखकर अमेरिकी कामगारों को रेखांकित किया था. उन्होंने एक माला भी पहनी थी, जो भीड़ द्वारा मारे गये, हत्या के पीड़ितों तथा अनाम मृतकों को समर्पित था. जॉन डॉमिनिस का वह चित्र ऐतिहासिक है. बाद में अपनी किताब में स्मिथ ने लिखा कि उनका दस्ताना पहने मुट्ठी तानना अश्वेत शक्ति का नहीं, बल्कि मानवाधिकार का सैल्यूट था.

कलाकारों, लेखकों और खिलाड़ियों द्वारा उनके अपने देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आवाज़ उठाने की लंबी और शानदार परंपरा रही है. आज जब किसान आंदोलन का समर्थन करने और आंदोलन के प्रति सरकार के रवैये की आलोचना करने की वजह से देशी-विदेशी सेलिब्रिटी कटघरे में खड़े किये जा रहे हैं, तब उस शानदार परंपरा के कुछ पन्नों को देखा जाना चाहिए.

जिस दिन सुप्रसिद्ध संगीत कलाकार रिहाना किसान आंदोलन को लेकर वैश्विक चुप्पी पर सवाल उठा रही थीं, उससे ठीक पचास साल पहले अपने दौर की विख्यात अभिनेत्री जेन फ़ोंडा वियतनाम पर अमेरिका के हमले को युद्ध अपराध बता रहे अमेरिकी सैनिकों की एक ऐतिहासिक बैठक में मौजूद थीं. तब वह हमला अपने चरम पर था और अमेरिकी सैनिक लाओस और कंबोडिया में भी कार्रवाई कर रहे थे. निक्सन प्रशासन और अमेरिकी सेना के अमानवीय युद्ध का अमेरिका में और अन्यत्र लगातार विरोध हो रहा था. इस विरोध में कई बड़े कलाकार, साहित्यकार और खिलाड़ी शामिल थे, लेकिन इस विरोध का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह था कि इसमें वियतनाम में लड़े कई अमेरिकी सैनिक भी शामिल थे और उनके समूह की कोशिशों ने अमेरिकी जनता के सामने सच को उजागर किया तथा आख़िरकार अमेरिका को वियतनाम से हारकर हटना पड़ा था.

इन्हीं सैनिकों ने युद्ध के ख़िलाफ़ अपनी मुहिम के सिलसिले में डिट्रॉयट में 1971 में 31 जनवरी से दो फ़रवरी तक एक जन सुनवाई का आयोजन किया था. उसमें अभिनेत्री जेन फ़ोंडा के अलावा मशहूर इतिहाकार, दार्शनिक व लेखक हॉवर्ड ज़िन और बाद में अमेरिकी राजनीति में अहम पदों को हासिल करने वाले जॉन केरी भी शामिल हुए थे. ज़िन दूसरे महायुद्ध में और केरी वियतनाम में लड़ चुके थे. आज फ़ोंडा के साथ केरी जलवायु परिवर्तन को लेकर लगातार सक्रिय हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके जॉन केरी पूर्व विदेश सचिव हैं और अब राष्ट्रपति बाइडेन ने उन्हें जलवायु परिवर्तन पर अपना विशेष दूत बनाया है. हॉवर्ड ज़िन की किताब ‘ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ़ द यूनाइटेड स्टेट्स’ एक क्लासिक बन चुकी है और अमेरिकी इतिहास के किसी भी अध्येता को उससे गुज़रना ही होता है. यह किताब पॉपुलर कल्चर में भी बार-बार उद्धृत होती रहती है. वियतनाम युद्ध का विरोध करने के कारण जेन फ़ोंडा को उस दौर में हॉलीवुड में काम मिलना बंद हो गया था. फ़ोंडा अमेरिकी नारीवादी आंदोलन की भी बड़ी कार्यकर्ता हैं.

मोहम्मद अली के नाम के बिना वियतनाम युद्ध और मानवाधिकारों की चर्चा संभव ही नहीं है. उस युद्ध के दौरान 22 साल की उम्र में 1964 में वे विश्व हेवीवेट चैम्पियन बने थे. चार साल पहले रोम ओलम्पिक में स्वर्ण पदक भी जीत चुके थे. उनका शानदार करियर शुरू हो रहा था कि 1966 में उन्होंने वियतनाम युद्ध के लिए सेना में भर्ती से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि वे दस हज़ार मील जाकर निर्दोष लोगों को मारने में मददगार नहीं बनेंगे. इस फ़ैसले के चलते उनके पुरस्कार छीन लिये गये और पांच साल की क़ैद की सज़ा सुनायी गयी. ऊपरी अदालत में अपील के चलते, जिसमें आख़िरकार उनकी जीत हुई थी, वे जेल तो नहीं गये, पर उनके करियर के पांच साल ज़रूर बर्बाद हो गये. अमेरिका में अश्वेतों के नागरिक अधिकारों की लड़ाई के अलावा अली ने मूलनिवासियों के अधिकारों का भी समर्थन किया. अफ़्रीका की समस्याओं से उनका जुड़ाव रहा तथा उन्होंने फ़िलीस्तीन की आज़ादी के पक्ष में आवाज़ उठायी. रवांडा जनसंहार के पीड़ितों का साथ देने के लिए उन्होंने अमेरिकी सरकार पर दबाव डाला था. मोहम्मद अली को तमाम सम्मानों व पुरस्कारों के साथ अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी मिला था.

जॉर्ज हैरिसन और पंडित रविशंकर ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के दमन और जनसंहार के बारे में दुनिया को बताने तथा पीड़ितों के लिए धन जुटाने के इरादे से 1971 में न्यूयॉर्क में एक बड़ा संगीत कार्यक्रम आयोजित किया था. तब इतने बड़े स्तर पर मानवीय चिंता के लिए आयोजित होने वाला यह सबसे बड़ा कार्यक्रम था. जॉर्ज हैरिसन पहले बेहद लोकप्रिय संगीत समूह बीटल्स में थे और पंडित रविशंकर भारतीय सितारवादक थे. उस आयोजन में मूर्धन्य कलाकार अली अकबर खान, बीटल्स के पूर्व सदस्य रिंगो स्टार, बाद में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बॉब डिलन आदि अनेक बड़े कलाकार शामिल हुए थे.

इस सिलसिले में महान क्रिकेटर सर डॉन ब्रैडमैन को ज़रूर याद किया जाना चाहिए. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख के रूप में वे 1971 में दक्षिण अफ़्रीका गये थे और नाज़ीवाद के समर्थक व अश्वेत अफ़्रीकियों को दोयम दर्जे का माननेवाले तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉन वोर्स्टर से मिले थे. उस मुलाक़ात में उन्होंने दक्षिण अफ़्रीकी टीम में अश्वेतों को शामिल करने को कहा. वोर्स्टर की बकवास सुनकर चिढ़े ब्रैडमैन ने घोषणा कर दी कि जब तक मिश्रित टीम नहीं बनेगी, ऑस्ट्रेलिया की टीम दक्षिण अफ़्रीका नहीं जायेगी. इस फ़ैसले से अनेक खिलाड़ियों का करियर बर्बाद हुआ और ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड को भारी आर्थिक नुक़सान हुआ था. दोनों देशों में मैच 1993 में शुरू हो सके थे. अप्रैल, 1986 में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री मैल्कम फ़्रेज़र समेत कुछ गणमान्य लोग जेल में सालों से बंद नेल्सन मंडेला से मिलने गये थे. मंडेला ने फ़्रेज़र से पहला सवाल यही पूछा था- ‘क्या डॉन ब्रैडमैन अभी जीवित हैं?’

साल 1983 में 60 अमेरिकी कलाकारों और खिलाड़ियों ने एक अभियान चलाया था, जिसमें दक्षिण अफ़्रीका में होने वाले कार्यक्रमों का बहिष्कार किया गया था. इसमें हैरी बेलाफ़ोंट, पॉल न्यूमैन, जेन फ़ोंडा, मोहम्मद अली, टोनी बेनेट जैसे लोग शामिल थे. इस अभियान ने हज़ारों कलाकारों और खिलाड़ियों को बहिष्कार से जोड़ा था. उस समय दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेदी शासन था, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों का समर्थन था. अपने शासन के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक माहौल बनाने के लिए रंगभेदी सरकार खिलाड़ियों और कलाकारों को बहुत पैसा बांटती थी. लेकिन नैतिक आग्रहों के लिए बहिष्कार करने वालों ने नुकसान को चुना.

साल 2014 में हॉलीवुड के कई सितारों ने ग़ाज़ा में जनसंहार के ख़िलाफ़ बोला था. इनमें रिहाना, जोनाथन डेम, सेलेना गोमेज़, पेनेलोप क्रुज़, मार्क राफ़ालो, वालेस शॉन, रोजर वाटर्स, जोन स्टीवार्ट आदि शामिल थे. फ़ुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्तियानो रोनाल्डो व एरिक कैंटोना, ब्रिटिश गायक ज़ायन मलिक, अमेरिकी गायक लुप फ़ियास्को, व्हूपी गोल्डबर्ग, रॉब शेनाइडर, गीगी हदीद, मॉर्गन फ़्रीमैन आदि भी समय-समय पर फ़िलीस्तीन के पक्ष में बोलते रहे हैं. हाल में दिवंगत विख्यात खिलाड़ी डीएगो माराडोना क्यूबा और वेनेज़ुएला पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की पाबंदियों के विरुद्ध तथा फ़िलीस्तीन के अधिकारों की लगातार पैरोकारी करते थे. मैट डेमन, जॉर्ज क्लूनी, अफ़्रीका में जनसंहारों की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का लगातार प्रयास करते रहे हैं.

ये कुछ उदाहरण हैं. सूची और विवरण का आकार बहुत व्यापक और प्रेरणादायी है. ये सिलेब्रिटी अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दान में भी देते हैं तथा विभिन्न सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर भी सक्रिय रहते हैं. अक्सर उनकी सक्रियता अपने देश तक सीमित नहीं रहती. माइकल जैक्सन इसकी बड़ी मिसाल हैं.

बहरहाल, इस चर्चा को 1968 के ओलम्पिक की उस घटना से समाप्त करते हैं, जो इस आयोजन के इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना थी. मैक्सिको सिटी में आयोजित ओलंपिक्स में 200 मीटर दौड़ में जीते अमेरिकी एथलीट टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने पदक लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रगान के बजाने की अवधि तक अपना एक हाथ उठाये रखा था. इन दोनों ने काले दस्ताने पहने हुए थे. दूसरे स्थान पर आये ऑस्ट्रेलिया के पीटर नॉरमैन समेत तीनों ने मानवाधिकार के बैज भी लगाया हुआ था. नॉरमैन अपने देश की पूर्ववर्ती श्वेत ऑस्ट्रेलिया नीति के आलोचक थे. इन्होंने ही दोनों साथी खिलाड़ियों को कहा था कि दो दस्ताने को वे एक-एक हाथ में पहन लें. एक खिलाड़ी दस्ताने लाना भूल गया था. अमेरिकी खिलाड़ियों ने इस अवसर पर जूते न पहनकर काले रंग के मोज़े पहने थे, जो अश्वेत अमेरिकियों की ग़रीबी का प्रतीक था. स्मिथ ने काला स्कार्फ़ अश्वेत गर्व को इंगित करने के लिए पहना था, तो कार्लोस ने अपनी जैकेट की ज़िप खुली रखकर अमेरिकी कामगारों को रेखांकित किया था. उन्होंने एक माला भी पहनी थी, जो भीड़ द्वारा मारे गये, हत्या के पीड़ितों तथा अनाम मृतकों को समर्पित था. जॉन डॉमिनिस का वह चित्र ऐतिहासिक है. बाद में अपनी किताब में स्मिथ ने लिखा कि उनका दस्ताना पहने मुट्ठी तानना अश्वेत शक्ति का नहीं, बल्कि मानवाधिकार का सैल्यूट था.