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25-26 जनवरी की दरम्यानी रात, गाजीपुर बॉर्डर का आंखो देखा हाल

किसानों के आंदोलन को शांति से चलते हुए दो महीने से ज्यादा हो गए हैं. लेकिन 26 जनवरी को दिल्ली में जो हुआ उसके बाद कुछ सवाल उठ रहे हैं. दो महीने से अपने पीक पर चल रहा आंदोलन अब आगे क्या रूप लेगा. पहले जहां किसान नेताओं का आत्मविश्वास देखते ही बनता था वहीं अब उनके चेहरों की रौनक कम हो गई है. 26 जनवरी के पहले के बयानों और बाद के बयानों में ज़मीन आसमान का अंतर है. यही नहीं किसानों ने एक फरवरी को होने वाले संसद मार्च को भी फिलहाल रद्द कर दिया है.

यह सवाल सबके ज़हन में है कि आखिर जो 26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ वह तत्कालिक चूक थी या किसी पूर्वनिर्धारित योजना का हिस्सा था. 25 जनवरी यानी ट्रैक्टर परेड से एक दिन पहले वाली पूरी रात न्यूज़लॉड्री की टीम गाजीपुर बॉर्डर पर ही मौजूद थी. हम वहां शाम के सात बजे पहुंचे और सुबह चार बजे तक वहीं थे. इस दौरान हमने जो देखा उसे आपके सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं.

दिल्ली की ओर से जब हम गाजीपुर बॉर्डर पुहंचे तो वहां प्रदर्शन स्थल से पहले ही फ्लाईओवर के नीचे वाले रास्ते पर दिल्ली पुलिस ने बैरिकेडिंग कर दी थी. हालांकि इसका संचालन पुलिस के जवान नहीं बल्कि कुछ युवा किसान कर रहे थे. यहां से कौन जाएगा, किसको एंट्री मिलेगी, किसको एंट्री नहीं मिलेगी यह पुलिस नहीं बल्कि यह युवा किसान ही तय कर रहे थे. कुछ पुलिस वाले थे भी तो वह आगे की ओर फ्लाईओवर की दूसरी साइड पर थे. पुलिस ने दूसरी साइड का रास्ता भी बैरिकेडिंग कर बंद कर दिया था. किसान निकल न पाएं इसके लिए रास्ते पर सरिए भी लगाए गए थे.

रास्ते पर करीब 500-600 मीटर आगे बढ़ने पर दिल्ली गाजियाबाद को जोड़ने वाले अंडर पास पर किसानों की भारी भीड़ नजर आई. अन्य दिनों से कई गुना ज्यादा. ट्रैक्टरों और कारों के चलते जाम की स्थिति पैदा हो गई थी. कई किलोमीटर तक फ्लाईओवर के नीचे और ऊपर सब जगह ट्रैक्टर और गाड़ियां का ही काफिला नजर आ रहा था. हालात पैदल चलने लायक भी नहीं थे. कई लोग उस जाम को खुलवाने की कोशिश में लगे थे.

परिवार के साथ मुंसी सद्दीक

अंडरपास से आगे चलने पर जाम तो नहीं था लेकिन रोड के दोनों किनारों पर कई किलोमीटर तक ट्रैक्टर और कारें खड़ी थीं. जगह जगह पर खाने की व्यवस्था थी. शुरुआत में ही खाना खिलाए जाने वाले कैंप पर हमारी मुलाकात जिला अमरोहा के पथवारी गांव से पहुंचे बुजुर्ग मुंसी सिद्दीक और खुशनबी से होती है. कई महिलाओं सहित अन्य लोग भी यहां इनके साथ पहुंचे थे.

सिद्दीक कहते हैं, "वह भारतीय किसान यूनियन के ब्लाक संरक्षक हैं और बॉर्डर पर पहले भी रह कर गए हैं. उनके ब्लाक से सैकड़ों ट्रैक्टर यहां पहुंचे हैं. उनके खुद के ट्रैक्टर ट्राली में करीब 25-30 लोग यहां पहुंचे हैं. जिनमें 15-16 महिलाएं भी शामिल हैं."

वह हमें बताते हैं, "पहले वह यहां चार दिन रहकर गए थे फिर उसके बाद सीधे एक महीने के लिए यहां आए, और अब फिर से आ गए हैं. जनता बहुत परेशान है. अगर ये कानून वापस हो जाएं तो जनता को राहत मिल जाएगी."

शॉल ओढ़े खुशनबी बगल में उनकी बेटी तरन्नुम

करीब 55 साल की खुशनबी अपनी बेटी तरन्नुम के साथ यहां पहुंची हैं. वह कहती हैं, "यह उनका गाजीपुर बॉर्डर पर चौथा चक्कर है. दो छोटे बच्चे की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं जब पीएम मान ही नहीं रहा है तो क्या करें हम. कम से कम इन छोटे छोटे बच्चों को देखकर उसको शर्म तो आएगी. इन बच्चों को देखकर कुछ डर तो लगेगा उनको. लेकिन उसे इन बच्चों को देखकर भी रहम नहीं आ रहा है. हम तो अपने बच्चों की लड़ाई लड़ रहे हैं."

सुशील गौतम

आगे बढ़े तो दनकौर से आए सुशील गौतम संविधान की प्रति लेकर खड़े मिले. उनके पास एक कलेंडर था जिस पर ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की तस्वीर छपी थी. वहीं भीमराव अंबेडकर और कांशीराम की तस्वीर वाला एक झंडा भी उनके पास था. वो कहते हैं, "वह यहां संविधान को बचाने और इस सरकार से लड़ने के लिए पहुंचे हैं. आज मानवता को बचाना जरूरी है. यदि हमें 10-20 रुपए किलो आटा खाना है तो उस आंदोलन में शामिल हो जाओ. वरना फिर कभी पता चले की 100-200 रुपये किलो आटा हो जाए. अडानी अंबानी सबको फिट कर रहा है."

गाजीपुर बॉर्डर पर जब हम गाजियाबाद की ओर थोड़ा और आगे बढ़े तो वहां अलग ही दुनिया दिखाई देती है. आंदोलन में इस तरह का नजारा पहली बार था. हर ट्रैक्टर पर तेज आवाज में गाने बज रहे थे. कुछ ट्रैक्टरों को लाइट से सजाया गया था. खुले आसमान के नीचे इन लाइटों और म्यूजिक की तेज़ आवाज पर झूम रहे लोगों ने अलग ही तरह का माहौल बना रखा था. इनमें ज्यादातर युवा शामिल थे. हमने पता किया तो पाया कि इनमें से ज्यादातर ट्रैक्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, अमरोहा के आसपास से आए थे.

यहां पर जश्न का माहौल देखकर लग रहा था मानों जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो. सड़कों पर जोशीले नारे और इनका उत्साह बता रहा था कि 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के लिए ये कितने तैयार थे. हालांकि यह हालात परेड के आयोजक किसानों के दावे से मेल नहीं खाते थे. उन्होंने घोषणा कर रखी थी कि न तो डीजे बजेगा न कोई हुड़दंग होगा. यहां बिल्कुल उलट नजारा था. ट्रैक्टर खड़ा करके उनकी लाइट्स के आगे युवा डांस करते नजर आ रहे थे.

कुछ ट्रैक्टर बारात के जैसे धीरे-धीरे रुक रुककर चल रहे थे. उन ट्रैक्टरों के पीछे युवाओं का एक हुजूम डांस में इनता मग्न था कि वह रात में 10 डिग्री तापमान में भी खुले आसमान के नीचे शर्ट उतार कर नंगे बदन डांस कर रहा था. खास बात यह थी कि सभी ट्रैक्टरों पर किसानों के झंडों के साथ-साथ तिरंगा भी लगा था. युवा तिरंगा लहराते हुए आगे बढ़ रहे थे.

मोदी हमारी आंखों का तारा थे

हापुड़ के पास लालपुर से ट्रैक्टरों का एक काफिला वहां पहुंचा. इस काफिले में शामिल आशीष सिद्धू बताते हैं, "उनके गांव और आस पास के गांवों से करीब 140 ट्रैक्टर यहां 26 जनवरी की परेड में शामिल होने आए हैं. इनमें 55 ट्रैक्टर अकेले उनके गांव से यहां पहुंचे हैं."

आशीष सिद्धू

ट्रैक्टरों की ओर इशारा करते हुए वह कहते हैं, "वो सारे साड्डे ही ट्रैक्टर खड़े हैं, कुछ अग्गे भी खड़े हैं. यह शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन है. मोदी जी सबकी आंख का तारा थे. किसानों की वजह से ही वह पीएम बने थे और अब किसानों को ही परेशान कर रहे हैं. ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे."

इसके बाद हमारी मुलाकात मैथ से बीएससी करने वाले 29 वर्षीय प्रदीप चौधरी से होती है. वह कहते हैं, "120 ट्रैक्टरों के जत्थे साथ हम यहां पहुंचे हैं. कल सरकार को हिला देना है. किसानों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है. मैं पढ़ा लिखा युवा हूं और एक रुपए किलो पत्ता गोभी बेच रहा हूं. इतना सस्ता रेट है हमारी फसल का. इसके अलावा मैंने अपने खेत में फूल गोभी और आलू की बुवाई भी की है. पहले भी दस दिन यहां रहकर गया हूं. कल परेड की फुल वाली तैयारी है. ये सामने नाच रहे सभी युवा (नाच रहे युवाओं की ओर इशारा करते हुए) हमारे गांव के ही हैं." यह सभी कल दिल्ली में मिलेंगे फुल तैयारी के साथ आए हैं."

नेतृत्वविहीन थे रात में आए किसान

रात को ट्रैक्टरों से आने वाली इस भीड़ का कोई नेतृत्व नहीं कर रहा था. यहां ऐसे भी लोग थे जो सिर्फ सोशल मीडिया पर तस्वीरें और ट्रैक्टरों के वीडियो देखकर यहां पहुंचे थे. हमने पाया कि इन लोगों को 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड के रूट के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी. उनका मकसद सिर्फ गाजीपुर बॉर्डर पहुंचकर लोगों के साथ शामिल होना था. गाजीपुर बॉर्डर पर काफी संख्या ऐसे लोगों की थी जिनका कहना था कि जहां सब जाएंगे वहीं पीछे-पीछे हम भी चल देंगे. कई लोग हमें ऐसे भी मिले जो अगले दिन होने वाली परेडी जानकारी हमसे ही मांग रहे थे. आगे की योजना की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

हापुड़ के पास नगौला गांव से भी दो तीन ट्रैक्टर गाजीपुर पहुंचे थे. युवाओं का एक झुंड रात को बात करते-करते सिर्फ इसलिए यहां पहुंच गया कि चलो देखते हैं कि गाजीपुर में क्या हो रहा है. इस तरह आने वालों की भी काफी भीड़ यहां नजर आई.

नगौला गांव के अभिषेक बताते हैं, "गांव से दो तीन ट्रैक्टर आधी रात को गाजीपुर पहुंचे थे. उन्हें किसी ने बुलाया नहीं था. वह सिर्फ दूसरे लोगों को देखकर या सोशल मीडिया के माध्यम से ही 26 जनवरी की परेड के लिए यहां पहुंचे थे.”

यहां कुछ ट्रैक्टर ऐसे भी थे जो रात को ही गाजीपुर पहुंचे और वह बिना दिल्ली गए ही सुबह को वहीं से वापस भी हो गए.

यानी ऐसे लोगों की संख्या भी काफी थी जो एक दूसरे को देखकर यहां पहुंचे थे. जिन्हें न आगे की किसी योजना का पता था और न परेड के रूट के बारे में कोई जानकारी थी. अगर शायद रात को आई भीड़ का कोई नेतृत्व करता या गाजीपुर में बने स्टेज पर माइक के जरिए लोगों को सूचना दी जाती तो शायद लोगों को बात समझ आती. लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं था. शायद यह भी एक वजह रही 26 जनवरी को पैदा हुई अव्यवस्था के पीछे.

बुजुर्ग और युवाओ की हुक्का बैठक

हुक्के का आनंद लेते युवा
हुक्का पीते बुजुर्ग

इस बीच रात भर कई जगहों पर हुक्के के साथ बैठकों का दौर जारी था. बैठक में जहां युवाओं की टोलियां अलग हुक्का पी रही थीं वहीं उम्रदराज लोगों की अलग टोलियां थीं. ऐसे ही कुछ लोग नए दौर के गानों पर डांस के साथ जश्न में डूबे थे तो वहीं कुछ उम्रदराज लोग रागनियों पर डांस कर रहे थे. इस बीच ट्रैक्टर के बोनट पर चढ़कर सेल्फियां भी ली जा रही थीं. कई युवा डांस करते हुए और हुक्का पीते हुए फेसबुक लाइव कर रहे थे. पूरी रात गाजीपुर बॉर्डर पर एक ड्रोन भी निगरानी करता दिखा.

करीब एक बजे खाना खाते किसान

किसानों के लिए रातभर खाने और चाय का भी इंतजाम था. एक बजे भी यहां खाना खाने वालों का तांता लगा हुआ था. जबकि कई जगहों पर चाय के लिए भी लाइनें लगी थीं.

जिसे जहां जगह मिली सो गया

आधी रात के बाद भी युवा तो सोते हुए नहीं दिखे लेकिन कुछ बुजुर्गों को जहां जगह मिली वहीं सो गए. गाजीपुर बॉर्डर पर जो भी किसान आंदोलन के समर्थन में पहुंचता है उसके रहने की व्यवस्था हो जाती है. लेकिन 25 जनवरी की रात किसानों की तादात इतनी ज्यादा थी कि सभी टेंट फुल थे. इसलिए कुछ किसानों को जहां तहां सोना पड़ा. ऐसे ही कुछ किसान ट्रॉली के नीचे या फिर खुले आसमान में कुछ कपड़े बिछाकर लेटे हुए मिले. जबकि कुछ खुले में ही आग जलाकर तापते हुए रात गुजारते नज़र आए.

सुलख्खन सिंह, सतनाम सिंह और जगदीश सिंह

लखीमपुर खीरी से आए तीन किसानों को भी सोने के लिए टेंट नहीं मिल पायी थी. वे एक ट्राली के नीचे ही कपड़े बिछाकर लेट गए थे. इनका नाम जगदीश सिंह, सतनाम सिंह और सुलख्खन सिंह था. जगदीश सिंह कहते हैं, "हम यहां सोने नहीं आए हैं हम यहां जो जंग चल रही है उसे जीतने आए हैं. कल पता चल जाएगा मोदी सरकार को भी, कल ऐतिहासिक परेड निकलने जा रही है. जिसे देश ही नहीं दुनिया देखेगी."

सुलख्खन सिंह कहते हैं, "यहां लोग आस पास से ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लोग यहां किसानों के समर्थन में पहुंच रहे हैं. जिन लोगों के पास पैसा नहीं है वह चंदा इक्ट्ठा करके यहां पहुंचे हैं. सबको अपना घर पसंद होता है. इतनी सर्दी में आदमी को खटिया रजाई चाहिए. लेकन मोदी ने हमें परेशान कर रखा है. हम सड़क पर लेटे हैं. मोदी से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है बस ये तीनों कृषि कानून वापस हो जाएं तो हम अपने घर चले जाएंगे."

इन्हीं के साथी सतनाम सिंह कहते हैं, "हमने चुनाव में मोदी को ही वोट दिया था. लेकिन अब कभी जिंदगी में भी हम मोदी को वोट नहीं देंगे. हम तो बजुर्ग हो रहे हैं. 60 के आसपास पहुंच गए हैं. अपने बच्चों से भी कह जाएंगे कि कभी मोदी को वोट नहीं देना. हम कह जाएंगे कि अगर तुम्हारा बापू या भाई भी कभी बीजेपी के समर्थन से खड़ा हो जाए तो कभी उसे भी वोट मत देना. इतने बुरे दिन हमने कभी नहीं देखे. इस सरकार ने हमें सड़क पर ला दिया है.ठ

26 जनवरी की रात क्या हुआ

26 जनवरी को दिन में किसानों ने तिरंगे वाली जगह से अलग लाल किले पर अपना झंडा फहरा दिया था. इसके बाद किसान रात 12 बजे तक भी वहीं रहे. हालांकि तब तक भीड़ काफी हल्की हो गई थी. रात के 12 बजे तक किसान लाल किले पर ट्रैक्टरों से स्टंट करते हुए नज़र आए. ट्रैक्टरों की रोशनी में लाल किले पर भी इन युवाओं का डांस जारी था. दिल्ली पुलिस लाल किले की प्राचीर पर जो कुछ हो रहा था उसे निहार रही थी.

देर रात तक यहां ठहरने वाले किसानों का कहना था कि वो सिंघु और टिकरी बॉर्डर से यहां पहुंचे थे. कुछ किसान ऐसे भी थे जो सीधे हरियाणा, पंजाब या उत्तर प्रदेश के किसी गांव से आए थे. इनकी संख्या बहुत कम थी.

अफवाहों का दौर

इस दौरान जब हम लाल किले पर थे तब एक 13 साल का लड़का बिल्ला हमारे पास आया. वह कहता है, "आप अपने फोन से मेरी बात करा दीजिए मुझे अपने पापा से बात करनी है. वह सिंघु बॉर्डर पर हैं."

यहां किसके साथ आए हो इस सवाव के जवाब में वह कहता है, "अपने चाचा और बहुत सारे भाइयों के साथ यहां आया हूं सबके फोन स्विच ऑफ हो गए हैं. प्लीज बात करा दीजिए."

हमने बिल्ला के पिता को फोन लगा दिया तो सबसे पहले उसके शब्द थे, "पापा जी मैं बिल्ला बोल रियां... बैटरी खत्म हो गई है मैं यहां किसी का फोन लेकर कॉल करियां." उसके बाद जो बिल्ला के शब्द थे, पापा जी यहां लाल किले पर तीन लोगों को पुलिस ने गोली मार दी है. हम यहां से निकलने ही वाले हैं. मैं चाचा और भाई के साथ हूं."

बात पूरी होने पर जब हमने बिल्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि तीन लोग अंदर मरे पड़े हैं. इतना कहकर बिल्ला चाचा-चाचा आवाज लगाकर भाग गया. हालांकि जब हमने अन्य लोगों से पूछा तो वहां इस तरह की कोई घटना नहीं हुई थी.

इस दौरान हमें कुछ और लोग भी मिले. जो पूछ रहे थे कि क्या अंदर गोली चल गई है. किसान भाई मारे गए हैं. हमने कहा कि ऐसी तो कोई जानकारी नहीं है. तो वह कहते हैं, "हम तो सिंघु बॉर्डर पहुंचने ही वाले थे कि तभी पता चला कि लाल किले पर गोली चल गई है और तीन लोग मारे गए हैं यह सुनकर हम बीच रास्ते से ही वापस आ गए."

लाल किले की लाइट कट कर रात नौ बजे उतारा गया किसानों का झंडा

दिल्ली पुलिस को लगा होगा कि लाइट बंद करने के बाद जो किसान बचे हैं वो चले जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लाइट कट होने पर शोरगुल और ज्यादा हो गया. जो ट्रैक्टर बंद खड़े थे वह भी स्टार्ट कर दिए गए. ताकि रोशनी बनी रहे. इस बीच दिल्ली पुलिस के करीब 20-25 जवान एक साथ लाल किले की प्राचीर से नीचे उतरे. हलचल तेज हो गई थी. पुलिस को देखकर युवा किसानों ने नारे लगाने शुरू कर दिए. कुछ देर तक यह पुलिस नीचे रही. लेकिन एक घंटे बाद और ज्यादा मात्रा में पूरी सुरक्षा के साथ इक्ट्ठे होकर फिर से लाल किले की प्राचीर पर पहुंच गए.

करीब नौ बजे पुलिस ने किसानों के द्वारा लगाए गए झंडों को उतारना शुरू किया. इस दौरान युवकों ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. कुछ युवक इस दौरान पुलिस को भद्दी-भद्दी गालियां भी दे रहे थे. जबकि इसी दौरान कुछ उम्रदराज किसान शांति का परिचय भी दे रहे थे.

लाल किले पर किसानों का एक जत्था उपासना में लीन

जब कुछ युवा किसान ट्रैक्टरों से स्टंट और पुलिस को गालियां दे रहे थे तब किसानों का एक जत्था उपासना में लीन था. लाल किले की प्राचीर पर एंट्री करने वाले गेट के सामने बैठकर किसान सतगुरु वाहे गुरु का जाप कर रहे थे. इसी दौरान युवा खालसा की जीत हो का उद्घोष कर रहे थे.

उपासना करते किसान

गेट के सामने बैठे किसानों के पीछे भारी पुलिस बल तैनात था. कोई गेट में एंट्री न करे इसके लिए किसानों ने अपनी खुद की ही सिक्योरिटी लगाई हुई थी. यानी समझदार किसान नहीं चाहते थे कि कोई भी अब लाल किले के अंदर एंट्री करे.

झंडा उतरने के एक घंटे बाद करीब 10 बजे कुछ पुलिस वाले एक बार फिर नीचे उतर आए. तब तक किसानो की भीड़ और हल्की हो चुकी थी. धीरे धीरे मामला शांत हो गया था. किसान अपने ठिकानों को वापसी कर रहे थे. पुलिस भी यही चाहती थी. लाइट काटने का फायदा भी फायदा पुलिस को मिला.

26 जनवरी की झांकियों में तोड़फोड़

26 जनवरी की परेड में शामिल झांकियों में भी किसानों ने तोड़फोड़ की. तस्वीरे खिंचवाने के साथ-साथ युवा किसान झांकियों के ऊपर चढ़ गए. झांकियों को क्षति पहुंचाने और उनके ऊपर चढ़कर उपद्रव करने का यह काम सब पुलिस वालों के सामने ही हो रहा था. हालांकि कुछ समझदार किसानों ने उन्हें ऐसा करने से रोका भी.

लाठी डंडों के साथ आए इन किसानों ने कोई एक भी झांकी ऐसी नहीं छोड़ी जिसे उन्होंने क्षतिग्रस्त न किया हो. लेकिन सभी किसान ऐसा नहीं कर रहे थे बल्कि युवा किसानों के कुछ झुंड थे जो इन हरकतों को अंजाम दे रहे थे. यह सब देर रात तक जारी रहा.

Also Read: किसान और सबसे लायक बेटे के कारनामें

Also Read: रिपोर्टर की डायरी: 26 जनवरी को जो कुछ हुआ वो ऐतिहासिक था या कलंक?

किसानों के आंदोलन को शांति से चलते हुए दो महीने से ज्यादा हो गए हैं. लेकिन 26 जनवरी को दिल्ली में जो हुआ उसके बाद कुछ सवाल उठ रहे हैं. दो महीने से अपने पीक पर चल रहा आंदोलन अब आगे क्या रूप लेगा. पहले जहां किसान नेताओं का आत्मविश्वास देखते ही बनता था वहीं अब उनके चेहरों की रौनक कम हो गई है. 26 जनवरी के पहले के बयानों और बाद के बयानों में ज़मीन आसमान का अंतर है. यही नहीं किसानों ने एक फरवरी को होने वाले संसद मार्च को भी फिलहाल रद्द कर दिया है.

यह सवाल सबके ज़हन में है कि आखिर जो 26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ वह तत्कालिक चूक थी या किसी पूर्वनिर्धारित योजना का हिस्सा था. 25 जनवरी यानी ट्रैक्टर परेड से एक दिन पहले वाली पूरी रात न्यूज़लॉड्री की टीम गाजीपुर बॉर्डर पर ही मौजूद थी. हम वहां शाम के सात बजे पहुंचे और सुबह चार बजे तक वहीं थे. इस दौरान हमने जो देखा उसे आपके सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं.

दिल्ली की ओर से जब हम गाजीपुर बॉर्डर पुहंचे तो वहां प्रदर्शन स्थल से पहले ही फ्लाईओवर के नीचे वाले रास्ते पर दिल्ली पुलिस ने बैरिकेडिंग कर दी थी. हालांकि इसका संचालन पुलिस के जवान नहीं बल्कि कुछ युवा किसान कर रहे थे. यहां से कौन जाएगा, किसको एंट्री मिलेगी, किसको एंट्री नहीं मिलेगी यह पुलिस नहीं बल्कि यह युवा किसान ही तय कर रहे थे. कुछ पुलिस वाले थे भी तो वह आगे की ओर फ्लाईओवर की दूसरी साइड पर थे. पुलिस ने दूसरी साइड का रास्ता भी बैरिकेडिंग कर बंद कर दिया था. किसान निकल न पाएं इसके लिए रास्ते पर सरिए भी लगाए गए थे.

रास्ते पर करीब 500-600 मीटर आगे बढ़ने पर दिल्ली गाजियाबाद को जोड़ने वाले अंडर पास पर किसानों की भारी भीड़ नजर आई. अन्य दिनों से कई गुना ज्यादा. ट्रैक्टरों और कारों के चलते जाम की स्थिति पैदा हो गई थी. कई किलोमीटर तक फ्लाईओवर के नीचे और ऊपर सब जगह ट्रैक्टर और गाड़ियां का ही काफिला नजर आ रहा था. हालात पैदल चलने लायक भी नहीं थे. कई लोग उस जाम को खुलवाने की कोशिश में लगे थे.

परिवार के साथ मुंसी सद्दीक

अंडरपास से आगे चलने पर जाम तो नहीं था लेकिन रोड के दोनों किनारों पर कई किलोमीटर तक ट्रैक्टर और कारें खड़ी थीं. जगह जगह पर खाने की व्यवस्था थी. शुरुआत में ही खाना खिलाए जाने वाले कैंप पर हमारी मुलाकात जिला अमरोहा के पथवारी गांव से पहुंचे बुजुर्ग मुंसी सिद्दीक और खुशनबी से होती है. कई महिलाओं सहित अन्य लोग भी यहां इनके साथ पहुंचे थे.

सिद्दीक कहते हैं, "वह भारतीय किसान यूनियन के ब्लाक संरक्षक हैं और बॉर्डर पर पहले भी रह कर गए हैं. उनके ब्लाक से सैकड़ों ट्रैक्टर यहां पहुंचे हैं. उनके खुद के ट्रैक्टर ट्राली में करीब 25-30 लोग यहां पहुंचे हैं. जिनमें 15-16 महिलाएं भी शामिल हैं."

वह हमें बताते हैं, "पहले वह यहां चार दिन रहकर गए थे फिर उसके बाद सीधे एक महीने के लिए यहां आए, और अब फिर से आ गए हैं. जनता बहुत परेशान है. अगर ये कानून वापस हो जाएं तो जनता को राहत मिल जाएगी."

शॉल ओढ़े खुशनबी बगल में उनकी बेटी तरन्नुम

करीब 55 साल की खुशनबी अपनी बेटी तरन्नुम के साथ यहां पहुंची हैं. वह कहती हैं, "यह उनका गाजीपुर बॉर्डर पर चौथा चक्कर है. दो छोटे बच्चे की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं जब पीएम मान ही नहीं रहा है तो क्या करें हम. कम से कम इन छोटे छोटे बच्चों को देखकर उसको शर्म तो आएगी. इन बच्चों को देखकर कुछ डर तो लगेगा उनको. लेकिन उसे इन बच्चों को देखकर भी रहम नहीं आ रहा है. हम तो अपने बच्चों की लड़ाई लड़ रहे हैं."

सुशील गौतम

आगे बढ़े तो दनकौर से आए सुशील गौतम संविधान की प्रति लेकर खड़े मिले. उनके पास एक कलेंडर था जिस पर ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की तस्वीर छपी थी. वहीं भीमराव अंबेडकर और कांशीराम की तस्वीर वाला एक झंडा भी उनके पास था. वो कहते हैं, "वह यहां संविधान को बचाने और इस सरकार से लड़ने के लिए पहुंचे हैं. आज मानवता को बचाना जरूरी है. यदि हमें 10-20 रुपए किलो आटा खाना है तो उस आंदोलन में शामिल हो जाओ. वरना फिर कभी पता चले की 100-200 रुपये किलो आटा हो जाए. अडानी अंबानी सबको फिट कर रहा है."

गाजीपुर बॉर्डर पर जब हम गाजियाबाद की ओर थोड़ा और आगे बढ़े तो वहां अलग ही दुनिया दिखाई देती है. आंदोलन में इस तरह का नजारा पहली बार था. हर ट्रैक्टर पर तेज आवाज में गाने बज रहे थे. कुछ ट्रैक्टरों को लाइट से सजाया गया था. खुले आसमान के नीचे इन लाइटों और म्यूजिक की तेज़ आवाज पर झूम रहे लोगों ने अलग ही तरह का माहौल बना रखा था. इनमें ज्यादातर युवा शामिल थे. हमने पता किया तो पाया कि इनमें से ज्यादातर ट्रैक्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, अमरोहा के आसपास से आए थे.

यहां पर जश्न का माहौल देखकर लग रहा था मानों जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो. सड़कों पर जोशीले नारे और इनका उत्साह बता रहा था कि 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के लिए ये कितने तैयार थे. हालांकि यह हालात परेड के आयोजक किसानों के दावे से मेल नहीं खाते थे. उन्होंने घोषणा कर रखी थी कि न तो डीजे बजेगा न कोई हुड़दंग होगा. यहां बिल्कुल उलट नजारा था. ट्रैक्टर खड़ा करके उनकी लाइट्स के आगे युवा डांस करते नजर आ रहे थे.

कुछ ट्रैक्टर बारात के जैसे धीरे-धीरे रुक रुककर चल रहे थे. उन ट्रैक्टरों के पीछे युवाओं का एक हुजूम डांस में इनता मग्न था कि वह रात में 10 डिग्री तापमान में भी खुले आसमान के नीचे शर्ट उतार कर नंगे बदन डांस कर रहा था. खास बात यह थी कि सभी ट्रैक्टरों पर किसानों के झंडों के साथ-साथ तिरंगा भी लगा था. युवा तिरंगा लहराते हुए आगे बढ़ रहे थे.

मोदी हमारी आंखों का तारा थे

हापुड़ के पास लालपुर से ट्रैक्टरों का एक काफिला वहां पहुंचा. इस काफिले में शामिल आशीष सिद्धू बताते हैं, "उनके गांव और आस पास के गांवों से करीब 140 ट्रैक्टर यहां 26 जनवरी की परेड में शामिल होने आए हैं. इनमें 55 ट्रैक्टर अकेले उनके गांव से यहां पहुंचे हैं."

आशीष सिद्धू

ट्रैक्टरों की ओर इशारा करते हुए वह कहते हैं, "वो सारे साड्डे ही ट्रैक्टर खड़े हैं, कुछ अग्गे भी खड़े हैं. यह शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन है. मोदी जी सबकी आंख का तारा थे. किसानों की वजह से ही वह पीएम बने थे और अब किसानों को ही परेशान कर रहे हैं. ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे."

इसके बाद हमारी मुलाकात मैथ से बीएससी करने वाले 29 वर्षीय प्रदीप चौधरी से होती है. वह कहते हैं, "120 ट्रैक्टरों के जत्थे साथ हम यहां पहुंचे हैं. कल सरकार को हिला देना है. किसानों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है. मैं पढ़ा लिखा युवा हूं और एक रुपए किलो पत्ता गोभी बेच रहा हूं. इतना सस्ता रेट है हमारी फसल का. इसके अलावा मैंने अपने खेत में फूल गोभी और आलू की बुवाई भी की है. पहले भी दस दिन यहां रहकर गया हूं. कल परेड की फुल वाली तैयारी है. ये सामने नाच रहे सभी युवा (नाच रहे युवाओं की ओर इशारा करते हुए) हमारे गांव के ही हैं." यह सभी कल दिल्ली में मिलेंगे फुल तैयारी के साथ आए हैं."

नेतृत्वविहीन थे रात में आए किसान

रात को ट्रैक्टरों से आने वाली इस भीड़ का कोई नेतृत्व नहीं कर रहा था. यहां ऐसे भी लोग थे जो सिर्फ सोशल मीडिया पर तस्वीरें और ट्रैक्टरों के वीडियो देखकर यहां पहुंचे थे. हमने पाया कि इन लोगों को 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड के रूट के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी. उनका मकसद सिर्फ गाजीपुर बॉर्डर पहुंचकर लोगों के साथ शामिल होना था. गाजीपुर बॉर्डर पर काफी संख्या ऐसे लोगों की थी जिनका कहना था कि जहां सब जाएंगे वहीं पीछे-पीछे हम भी चल देंगे. कई लोग हमें ऐसे भी मिले जो अगले दिन होने वाली परेडी जानकारी हमसे ही मांग रहे थे. आगे की योजना की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

हापुड़ के पास नगौला गांव से भी दो तीन ट्रैक्टर गाजीपुर पहुंचे थे. युवाओं का एक झुंड रात को बात करते-करते सिर्फ इसलिए यहां पहुंच गया कि चलो देखते हैं कि गाजीपुर में क्या हो रहा है. इस तरह आने वालों की भी काफी भीड़ यहां नजर आई.

नगौला गांव के अभिषेक बताते हैं, "गांव से दो तीन ट्रैक्टर आधी रात को गाजीपुर पहुंचे थे. उन्हें किसी ने बुलाया नहीं था. वह सिर्फ दूसरे लोगों को देखकर या सोशल मीडिया के माध्यम से ही 26 जनवरी की परेड के लिए यहां पहुंचे थे.”

यहां कुछ ट्रैक्टर ऐसे भी थे जो रात को ही गाजीपुर पहुंचे और वह बिना दिल्ली गए ही सुबह को वहीं से वापस भी हो गए.

यानी ऐसे लोगों की संख्या भी काफी थी जो एक दूसरे को देखकर यहां पहुंचे थे. जिन्हें न आगे की किसी योजना का पता था और न परेड के रूट के बारे में कोई जानकारी थी. अगर शायद रात को आई भीड़ का कोई नेतृत्व करता या गाजीपुर में बने स्टेज पर माइक के जरिए लोगों को सूचना दी जाती तो शायद लोगों को बात समझ आती. लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं था. शायद यह भी एक वजह रही 26 जनवरी को पैदा हुई अव्यवस्था के पीछे.

बुजुर्ग और युवाओ की हुक्का बैठक

हुक्के का आनंद लेते युवा
हुक्का पीते बुजुर्ग

इस बीच रात भर कई जगहों पर हुक्के के साथ बैठकों का दौर जारी था. बैठक में जहां युवाओं की टोलियां अलग हुक्का पी रही थीं वहीं उम्रदराज लोगों की अलग टोलियां थीं. ऐसे ही कुछ लोग नए दौर के गानों पर डांस के साथ जश्न में डूबे थे तो वहीं कुछ उम्रदराज लोग रागनियों पर डांस कर रहे थे. इस बीच ट्रैक्टर के बोनट पर चढ़कर सेल्फियां भी ली जा रही थीं. कई युवा डांस करते हुए और हुक्का पीते हुए फेसबुक लाइव कर रहे थे. पूरी रात गाजीपुर बॉर्डर पर एक ड्रोन भी निगरानी करता दिखा.

करीब एक बजे खाना खाते किसान

किसानों के लिए रातभर खाने और चाय का भी इंतजाम था. एक बजे भी यहां खाना खाने वालों का तांता लगा हुआ था. जबकि कई जगहों पर चाय के लिए भी लाइनें लगी थीं.

जिसे जहां जगह मिली सो गया

आधी रात के बाद भी युवा तो सोते हुए नहीं दिखे लेकिन कुछ बुजुर्गों को जहां जगह मिली वहीं सो गए. गाजीपुर बॉर्डर पर जो भी किसान आंदोलन के समर्थन में पहुंचता है उसके रहने की व्यवस्था हो जाती है. लेकिन 25 जनवरी की रात किसानों की तादात इतनी ज्यादा थी कि सभी टेंट फुल थे. इसलिए कुछ किसानों को जहां तहां सोना पड़ा. ऐसे ही कुछ किसान ट्रॉली के नीचे या फिर खुले आसमान में कुछ कपड़े बिछाकर लेटे हुए मिले. जबकि कुछ खुले में ही आग जलाकर तापते हुए रात गुजारते नज़र आए.

सुलख्खन सिंह, सतनाम सिंह और जगदीश सिंह

लखीमपुर खीरी से आए तीन किसानों को भी सोने के लिए टेंट नहीं मिल पायी थी. वे एक ट्राली के नीचे ही कपड़े बिछाकर लेट गए थे. इनका नाम जगदीश सिंह, सतनाम सिंह और सुलख्खन सिंह था. जगदीश सिंह कहते हैं, "हम यहां सोने नहीं आए हैं हम यहां जो जंग चल रही है उसे जीतने आए हैं. कल पता चल जाएगा मोदी सरकार को भी, कल ऐतिहासिक परेड निकलने जा रही है. जिसे देश ही नहीं दुनिया देखेगी."

सुलख्खन सिंह कहते हैं, "यहां लोग आस पास से ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लोग यहां किसानों के समर्थन में पहुंच रहे हैं. जिन लोगों के पास पैसा नहीं है वह चंदा इक्ट्ठा करके यहां पहुंचे हैं. सबको अपना घर पसंद होता है. इतनी सर्दी में आदमी को खटिया रजाई चाहिए. लेकन मोदी ने हमें परेशान कर रखा है. हम सड़क पर लेटे हैं. मोदी से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है बस ये तीनों कृषि कानून वापस हो जाएं तो हम अपने घर चले जाएंगे."

इन्हीं के साथी सतनाम सिंह कहते हैं, "हमने चुनाव में मोदी को ही वोट दिया था. लेकिन अब कभी जिंदगी में भी हम मोदी को वोट नहीं देंगे. हम तो बजुर्ग हो रहे हैं. 60 के आसपास पहुंच गए हैं. अपने बच्चों से भी कह जाएंगे कि कभी मोदी को वोट नहीं देना. हम कह जाएंगे कि अगर तुम्हारा बापू या भाई भी कभी बीजेपी के समर्थन से खड़ा हो जाए तो कभी उसे भी वोट मत देना. इतने बुरे दिन हमने कभी नहीं देखे. इस सरकार ने हमें सड़क पर ला दिया है.ठ

26 जनवरी की रात क्या हुआ

26 जनवरी को दिन में किसानों ने तिरंगे वाली जगह से अलग लाल किले पर अपना झंडा फहरा दिया था. इसके बाद किसान रात 12 बजे तक भी वहीं रहे. हालांकि तब तक भीड़ काफी हल्की हो गई थी. रात के 12 बजे तक किसान लाल किले पर ट्रैक्टरों से स्टंट करते हुए नज़र आए. ट्रैक्टरों की रोशनी में लाल किले पर भी इन युवाओं का डांस जारी था. दिल्ली पुलिस लाल किले की प्राचीर पर जो कुछ हो रहा था उसे निहार रही थी.

देर रात तक यहां ठहरने वाले किसानों का कहना था कि वो सिंघु और टिकरी बॉर्डर से यहां पहुंचे थे. कुछ किसान ऐसे भी थे जो सीधे हरियाणा, पंजाब या उत्तर प्रदेश के किसी गांव से आए थे. इनकी संख्या बहुत कम थी.

अफवाहों का दौर

इस दौरान जब हम लाल किले पर थे तब एक 13 साल का लड़का बिल्ला हमारे पास आया. वह कहता है, "आप अपने फोन से मेरी बात करा दीजिए मुझे अपने पापा से बात करनी है. वह सिंघु बॉर्डर पर हैं."

यहां किसके साथ आए हो इस सवाव के जवाब में वह कहता है, "अपने चाचा और बहुत सारे भाइयों के साथ यहां आया हूं सबके फोन स्विच ऑफ हो गए हैं. प्लीज बात करा दीजिए."

हमने बिल्ला के पिता को फोन लगा दिया तो सबसे पहले उसके शब्द थे, "पापा जी मैं बिल्ला बोल रियां... बैटरी खत्म हो गई है मैं यहां किसी का फोन लेकर कॉल करियां." उसके बाद जो बिल्ला के शब्द थे, पापा जी यहां लाल किले पर तीन लोगों को पुलिस ने गोली मार दी है. हम यहां से निकलने ही वाले हैं. मैं चाचा और भाई के साथ हूं."

बात पूरी होने पर जब हमने बिल्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि तीन लोग अंदर मरे पड़े हैं. इतना कहकर बिल्ला चाचा-चाचा आवाज लगाकर भाग गया. हालांकि जब हमने अन्य लोगों से पूछा तो वहां इस तरह की कोई घटना नहीं हुई थी.

इस दौरान हमें कुछ और लोग भी मिले. जो पूछ रहे थे कि क्या अंदर गोली चल गई है. किसान भाई मारे गए हैं. हमने कहा कि ऐसी तो कोई जानकारी नहीं है. तो वह कहते हैं, "हम तो सिंघु बॉर्डर पहुंचने ही वाले थे कि तभी पता चला कि लाल किले पर गोली चल गई है और तीन लोग मारे गए हैं यह सुनकर हम बीच रास्ते से ही वापस आ गए."

लाल किले की लाइट कट कर रात नौ बजे उतारा गया किसानों का झंडा

दिल्ली पुलिस को लगा होगा कि लाइट बंद करने के बाद जो किसान बचे हैं वो चले जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लाइट कट होने पर शोरगुल और ज्यादा हो गया. जो ट्रैक्टर बंद खड़े थे वह भी स्टार्ट कर दिए गए. ताकि रोशनी बनी रहे. इस बीच दिल्ली पुलिस के करीब 20-25 जवान एक साथ लाल किले की प्राचीर से नीचे उतरे. हलचल तेज हो गई थी. पुलिस को देखकर युवा किसानों ने नारे लगाने शुरू कर दिए. कुछ देर तक यह पुलिस नीचे रही. लेकिन एक घंटे बाद और ज्यादा मात्रा में पूरी सुरक्षा के साथ इक्ट्ठे होकर फिर से लाल किले की प्राचीर पर पहुंच गए.

करीब नौ बजे पुलिस ने किसानों के द्वारा लगाए गए झंडों को उतारना शुरू किया. इस दौरान युवकों ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. कुछ युवक इस दौरान पुलिस को भद्दी-भद्दी गालियां भी दे रहे थे. जबकि इसी दौरान कुछ उम्रदराज किसान शांति का परिचय भी दे रहे थे.

लाल किले पर किसानों का एक जत्था उपासना में लीन

जब कुछ युवा किसान ट्रैक्टरों से स्टंट और पुलिस को गालियां दे रहे थे तब किसानों का एक जत्था उपासना में लीन था. लाल किले की प्राचीर पर एंट्री करने वाले गेट के सामने बैठकर किसान सतगुरु वाहे गुरु का जाप कर रहे थे. इसी दौरान युवा खालसा की जीत हो का उद्घोष कर रहे थे.

उपासना करते किसान

गेट के सामने बैठे किसानों के पीछे भारी पुलिस बल तैनात था. कोई गेट में एंट्री न करे इसके लिए किसानों ने अपनी खुद की ही सिक्योरिटी लगाई हुई थी. यानी समझदार किसान नहीं चाहते थे कि कोई भी अब लाल किले के अंदर एंट्री करे.

झंडा उतरने के एक घंटे बाद करीब 10 बजे कुछ पुलिस वाले एक बार फिर नीचे उतर आए. तब तक किसानो की भीड़ और हल्की हो चुकी थी. धीरे धीरे मामला शांत हो गया था. किसान अपने ठिकानों को वापसी कर रहे थे. पुलिस भी यही चाहती थी. लाइट काटने का फायदा भी फायदा पुलिस को मिला.

26 जनवरी की झांकियों में तोड़फोड़

26 जनवरी की परेड में शामिल झांकियों में भी किसानों ने तोड़फोड़ की. तस्वीरे खिंचवाने के साथ-साथ युवा किसान झांकियों के ऊपर चढ़ गए. झांकियों को क्षति पहुंचाने और उनके ऊपर चढ़कर उपद्रव करने का यह काम सब पुलिस वालों के सामने ही हो रहा था. हालांकि कुछ समझदार किसानों ने उन्हें ऐसा करने से रोका भी.

लाठी डंडों के साथ आए इन किसानों ने कोई एक भी झांकी ऐसी नहीं छोड़ी जिसे उन्होंने क्षतिग्रस्त न किया हो. लेकिन सभी किसान ऐसा नहीं कर रहे थे बल्कि युवा किसानों के कुछ झुंड थे जो इन हरकतों को अंजाम दे रहे थे. यह सब देर रात तक जारी रहा.

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