Newslaundry Hindi
राष्ट्रपति कलाम का “भारत महाशक्ति 2020” का नारा कहां पहुंचा
किसी साल के अंत में यह परंपरा बन गई है कि उस पूरे साल का एक लेखा जोखा पेश किया जाए. लेकिन 2020 की कहानी कुछ अलग है. पिछले 15 वर्षों से 2020 के लिए यह रट लगाया जा रहा था कि भारत 2020 में दक्षिण एशिया में एक महाशक्ति होगा. लिहाजा 2020 में कहां पहुंचा, यह तो खुद महसूस किया जा सकता है. 2020 के आखिरी दिन इस पहलू पर जरूर गौर किया जा सकता है कि आखिर महाशक्तिवान भारत 2020 का नारा लगाया क्यों गया.
किसने-किसने किया था महाशक्ति होने का दावा
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने नई आर्थिक नीतियों को लागू करने में पूरा जोर लगाया था. तब अमेरिकी संस्थाओं ने भारत के 2020 में महाशक्ति होने का सपना दिखाया था. इसके बाद राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान अपने संबोधन में भारत को 2020 में दुनिया की बड़ी महाशक्तियों में शुमार करने का पहले पहल आह्वान किया था. राष्ट्रपति कलाम की भी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. उनकी छवि परमाणु एवं उपग्रह के वैज्ञानिक होने के साथ जुड़ी हैं. इसीलिए राष्ट्रपति कलाम की इस छवि ने 2020 के भारत की परिकल्पना को स्वीकार करने का एक आकर्षक माहौल तैयार किया.
इस तरह के माहौल से सरकारों को अपने मन मर्जी के फैसलों को लागू करने में सहूलियत होती है. लेकिन वाजपेयी सरकार के 2004 में मतदाताओं ने उनके गुड फील के विज्ञापन को नकार दिया और मनमोहन सिंह के नेतृत्व के हाथों में नई आर्थिक नीति की चाबी आ गई. नई आर्थिक नीतियों के लागू करने के कार्यक्रमों में तेज गति पैदा करने के लिए भारत के महाशक्ति 2020 के सपने का जोर शोर से प्रचार बाधित नहीं हुआ. यह दावा गूंजता रहा कि 2020 तक भारत विकसित देशों मसलन अमेरिका, ब्रिटेन, जापान आदि की कतार में खड़ा हो सकता है.
आखिर अनुमान क्यों लगते हैं 15 साल पहले
एक तो अमेरिकी अनुमान और अपनी सरकार के नारे के बीच संबंध का विश्लेषण करना चाहिए. क्या यह अवधि सीआईए के मुताबिक लगातार आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर निर्धारित की गई? या फिर 15 वर्षों के समय को इस बुनियादी राजनीतिक सिद्धांतो से दूर ले जाने के लिए पर्याप्त माना जाता है कि देश में पांच वर्षों के लिए जो योजना बनाई जाती है उन योजनाओं की सीमाओं को लांघने में मदद मिलती है?
यह विदित है कि भारत में अंग्रेजों के शासन के बाद देश में सोवियत संघ की तरह पांच साला योजनाएं बननी शुरू हुईं. यह समाजवादी देश सोवियत संध का प्रभाव था. संसदीय लोकतंत्र में पांच साल के बाद नये आम चुनाव होते हैं. इन दोनों अवधि के एक सामान होने का अर्थ यह है कि सरकार अपनी नीतियों से देश को कहां ले आई, उसे आम चुनावों के दौरान मतदाताओं के लिए पेश किया जा सकें. लेकिन सोवियत संघ के टूटने से ठीक पहले 1984 में राजीव गांघी ने "इक्कसवीं सदी" का नारा दिया. पंचवर्षीय योजना पर इक्कसवीं सदी का नारा हावी हो गया.
राजीव से पहले भी 15 साल पहले सपने बुने गए
राजीव गांधी ने 15 साल पहले छलांग लगाने की कोई पहली कोशिश नहीं की थी. 15 साल की अवधि निर्धारित करने की एक पृष्ठभूमि भी है. 1947 से पहले अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन के दौरान देश के चंद पूंजीपतियों ने अंग्रेजों के जाने के बाद देश का एक मॉडल पेश किया था. भारत के राजनीतिज्ञों के हाथों में सत्ता मिलते ही मुबंई के पूंजीपतियों ने एक 15 वर्षीय योजना की रूपरेखा सरकार के सामने प्रस्तुत की थी. लेकिन आजादी के आंदोलन से निकली सरकार यह नहीं चाहती थी कि लोगों को लगे कि वह पूंजीपतियों के इशारे पर चल रही है. इसीलिए मुबंई के पूंजीपतियों की योजना सीधे तौर पर लागू नहीं की जा सकी. राजनीतिक माहौल बदलता चला गया और सरकार ने लोगों के सोचने की परवाह करनी खुले आम बंद कर दी.
क्या यह महज संयोग है कि राजीव गांधी कोई लंबी प्रक्रिया से गुजरकर राजनीति में नहीं आए थे. उन्हें भाई संजय गांधी की हवाई दुर्धटना में मौत के बाद पायलट की नौकरी छोड़कर अपनी मां इंदिरा गांधी की विरासत संभालनी पड़ी. राष्ट्रपति कलाम की भी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. उनकी छवि एक वैज्ञानिक की हैं. वैसे वैज्ञानिक की जो परमाणु और उपग्रहों के जरिये महाशक्ति बनने की परिकल्पना करता हो. मनमोहन सिंह की भी राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. माना जाता है कि उन्हें नई आर्थिक नीतियों को लागू करने वाले विशेषज्ञ के रूप में राजनीतिक सत्ता मिली थी.
2020 तक आखिरकार क्या हुआ
जनता ने 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को नकार दिया और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गई. नरेन्द्र मोदी को 2020 के नारे को जारी रखने के लिए राजनीतिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा. एनडीए की नई सरकार ने नई आर्थिक नीतियों को लागू करने की गति पहले से ज्यादा तेज कर दी. नई सरकार ने पांच साल के लिए योजनाएं बनाने वाली संस्था योजना आयोग को पूरी तरह से बदल कर नीति आयोग कर दिया. योजना आयोग का प्रमुख पद राजनैतिक माना जाता है लेकिन उसकी कमान नई आर्थिक नीतियों के प्रवक्ता नौकरशाह के हाथों में सौंप दी. योजना आयोग को एक बौद्धिक संस्था का रूप दे दिया गया. राजनीतिक परछाई से दूर हो गई. राजीव गांधी का कंप्यूटरीकरण छलांग लगाकार ऑनलाइन तक पहुंच गया.
अमेरिकी संस्थानों के आकलन के मुताबिक भारत के दूसरे महाशक्तियों के सामने खड़ा होने का प्रतीक विदेशी मुद्राभंडार का बढ़ना, सेंसेक्स के रिकॉर्ड का टूटना और इसे परमाणु शक्ति जैसे प्रतीकों और दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बनने में दिखता है लेकिन इस "महाशक्ति" को वैसे किसान आंदोलन का सामना करना पड़ रहा है जिसकी मिसाल अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आंदोलन के दौरान देखने को मिली थी. दलितों और आदिवासियों में बड़े पैमाने पर असंतोष हैं. जबकि राष्ट्रपति कलाम ने 2020 का नारा देते वक्त यह अनुमान व्यक्त किया था कि भारत में 2020 में ऐसी महाशक्ति बनेगा जब एक भी नागरिक गरीबी रेखा से नीचे नहीं होगा. दूसरे बुद्धिजीवियों ने भी मीडिया में भारत से गरीबी के खत्म हो जाने का ऐलान किया था. अर्थशास्त्री माने जाने वाले नेता सुब्रहमणयम स्वामी ने भी यह स्वीकार किया था कि 2020 तक भारत अर्थवय्वस्था के मामले में चीन को पीछे छोड़ चुका होगा और अमेरिकी अर्थ व्यवस्था को चुनौती पेश करेगा. जबकि बेरोजगारी का स्तर पिछले पचास वर्षों के स्तर पर पहुंच गया है.
2019 के चुनाव में केन्द्रीय गृह मंत्री ने मतदाताओं से यह वादा किया है कि यदि नरेन्द्र मोदी की सरकार बनती है तो भारत 2024 तक महाशक्ति होगा.
Also Read: दास्तान-ए-गांधी: औरतों की निगाह में ‘गांधी’
Also Read
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Why one of India’s biggest electoral bond donors is a touchy topic in Bhiwandi
-
‘Govt can’t do anything about court case’: Jindal on graft charges, his embrace of BJP and Hindutva
-
Reporter’s diary: Assam is better off than 2014, but can’t say the same for its citizens
-
‘INDIA coalition set to come to power’: RJD’s Tejashwi Yadav on polls, campaign and ECI