Newslaundry Hindi
टिप्पणी परिक्रमा: मीडिया के अच्छे-बुरे दिन और धृतराष्ट्र संजय संवाद
साल जाते-जाते महाराज धृतराष्ट्र और संजय संवाद की वापसी हो रही है. किसानों का आंदोलन दिल्ली के इर्द गिर्द चल रहा है इसलिए इस बार का संवाद किसानों आंदोलन पर केंद्रित रहा.
संजय ने धृतराष्ट्र के चित की बेचैनियों का उत्तर देते हुए कहा कि डंकापति को लगता है कि बाबा गुरुनानक देव के बंदों को खुश करने की बजाय गुरुनानक देव को ही खुश कर लिया जाय. इसलिए वो किसानों बात करने की बजाय सीधे नई दिल्ली की गुरुद्वारा रकाबगंज पहुंच गए. इस मौके पर भी डंकापति एक अदद वीडियो कैमरामैन और दो नग फोटोग्राफर साथ ले जाना नहीं भूले. इसके बाद ट्विटर और सोशल मीडिया पर डंकापति की अक्षौहिणी सेना और आईटी के कारिंदों ने आंख बंद कर रकाबगंज को रकाबजंग में तब्दील कर दिया.
यह इस साल की आखिरी टिप्पणी है. हम उम्मीद करते हैं कि नया साल आप सबके लिए बीते साल से बेहतर होगा. नए साल के पहले हमने टिप्पणी की साल भर की छोटी सी यात्रा की एक परिक्रमा की है. पूरे साल के दौरान आई तमाम टिप्पणियों के पीछे जिस टीम की भूमिका है उससे आप सबको मिलवाना भी था.
बहुत थोड़े से समय में टिप्पणी को आप लोगों ने काफी प्यार दिया है. कोरोना और लॉकडाउन ने पत्रकारिता की चुनौतियों को कई गुना बढ़ा दिया. न्यूज़लॉन्ड्री के सामने भी इस दौरान बड़ी चुनौती पेश आयी. विज्ञापन से मुक्त मीडिया आज बहुत बड़ी जरूरत है. कोरोना के कारण सरकारों के विज्ञापन पर मीडिया की निर्भरता बहुत बढ़ गई है. ऐसे मीडिया घरानों को सरकारें आसानी से अपने मनमुताबिक प्रभावित कर लेती हैं. क्या आप चाहते हैं मीडिया सरकार के इशारे पर, कारपोरेशन के इशारे पर चले. अगर नहीं तो नए साल में आपका नया रिज़ोलुशन होना चाहिए आज़ाद मीडिया. मीडिया जो आपके सहयोग से चले. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें. और गर्व से कहें, मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.
क्या इस बीत रहे साल में सबकुछ बुरा ही बुरा था. ऐसा नहीं है. बुराई की आवाज़ भले ही बुलंद होती है, इसलिए इसका हल्ला दूर तक सुनाई देता है, लेकिन अच्छाई चुपके से अपना काम करती हैं. भारत के मीडिया के अच्छे पलों को समेटने की हमने कोशिश और यकीन मानिए हमें ऐसे तमाम अवसर मिले. उम्मीदें कायम हैं, मजबूत हैं, आगे रौशनी है.
लॉकडाउन संकट के दौरान बरखा दत्त की रिपोर्टिंग ने ग्राउंड रिपोर्टिंग को आकर्षण का केंद्र बना दिया. अनगिनत नए-पुराने पत्रकार सड़कों पर लोगों की दुर्दशा का दस्तावेज बनाने के लिए निकल पड़े. यकीन मानिए ग्राउंड रिपोर्टिंग इतनी सेक्सी कभी नहीं थी.
Also Read: अयोध्या भूमिपूजन पर धृतराष्ट्र-संजय संवाद
साल जाते-जाते महाराज धृतराष्ट्र और संजय संवाद की वापसी हो रही है. किसानों का आंदोलन दिल्ली के इर्द गिर्द चल रहा है इसलिए इस बार का संवाद किसानों आंदोलन पर केंद्रित रहा.
संजय ने धृतराष्ट्र के चित की बेचैनियों का उत्तर देते हुए कहा कि डंकापति को लगता है कि बाबा गुरुनानक देव के बंदों को खुश करने की बजाय गुरुनानक देव को ही खुश कर लिया जाय. इसलिए वो किसानों बात करने की बजाय सीधे नई दिल्ली की गुरुद्वारा रकाबगंज पहुंच गए. इस मौके पर भी डंकापति एक अदद वीडियो कैमरामैन और दो नग फोटोग्राफर साथ ले जाना नहीं भूले. इसके बाद ट्विटर और सोशल मीडिया पर डंकापति की अक्षौहिणी सेना और आईटी के कारिंदों ने आंख बंद कर रकाबगंज को रकाबजंग में तब्दील कर दिया.
यह इस साल की आखिरी टिप्पणी है. हम उम्मीद करते हैं कि नया साल आप सबके लिए बीते साल से बेहतर होगा. नए साल के पहले हमने टिप्पणी की साल भर की छोटी सी यात्रा की एक परिक्रमा की है. पूरे साल के दौरान आई तमाम टिप्पणियों के पीछे जिस टीम की भूमिका है उससे आप सबको मिलवाना भी था.
बहुत थोड़े से समय में टिप्पणी को आप लोगों ने काफी प्यार दिया है. कोरोना और लॉकडाउन ने पत्रकारिता की चुनौतियों को कई गुना बढ़ा दिया. न्यूज़लॉन्ड्री के सामने भी इस दौरान बड़ी चुनौती पेश आयी. विज्ञापन से मुक्त मीडिया आज बहुत बड़ी जरूरत है. कोरोना के कारण सरकारों के विज्ञापन पर मीडिया की निर्भरता बहुत बढ़ गई है. ऐसे मीडिया घरानों को सरकारें आसानी से अपने मनमुताबिक प्रभावित कर लेती हैं. क्या आप चाहते हैं मीडिया सरकार के इशारे पर, कारपोरेशन के इशारे पर चले. अगर नहीं तो नए साल में आपका नया रिज़ोलुशन होना चाहिए आज़ाद मीडिया. मीडिया जो आपके सहयोग से चले. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें. और गर्व से कहें, मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.
क्या इस बीत रहे साल में सबकुछ बुरा ही बुरा था. ऐसा नहीं है. बुराई की आवाज़ भले ही बुलंद होती है, इसलिए इसका हल्ला दूर तक सुनाई देता है, लेकिन अच्छाई चुपके से अपना काम करती हैं. भारत के मीडिया के अच्छे पलों को समेटने की हमने कोशिश और यकीन मानिए हमें ऐसे तमाम अवसर मिले. उम्मीदें कायम हैं, मजबूत हैं, आगे रौशनी है.
लॉकडाउन संकट के दौरान बरखा दत्त की रिपोर्टिंग ने ग्राउंड रिपोर्टिंग को आकर्षण का केंद्र बना दिया. अनगिनत नए-पुराने पत्रकार सड़कों पर लोगों की दुर्दशा का दस्तावेज बनाने के लिए निकल पड़े. यकीन मानिए ग्राउंड रिपोर्टिंग इतनी सेक्सी कभी नहीं थी.
Also Read: अयोध्या भूमिपूजन पर धृतराष्ट्र-संजय संवाद
Also Read
-
TV Newsance 308: Godi media dumps Trump, return of Media Maulana
-
Trump’s tariff bullying: Why India must stand its ground
-
How the SIT proved Prajwal Revanna’s guilt: A breakdown of the case
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
South Central 38: Kerala nuns arrested in Chhattisgarh, TCS layoffs