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ज्यादातर अंतरधार्मिक शादियों में हिंदूवादी संगठनों की भूमिका सामने आती है
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर तम्बौर थाने में हम पुलिस अधिकारी अमित भदौरिया का इंतज़ार कर रहे थे. भदौरिया सीतापुर में दर्ज कथित धर्मांतरण और लड़की के ‘अपहरण’ के मामले की जांच कर रहे हैं. शाम करीब सात बजे वे थाने पहुंचते हैं. उनके पीछे-पीछे तीन और लोग भी थाने पहुंते हैं. जिसमें से एक हिंदू युवा वाहिनी के जिला अध्यक्ष उत्तम सिंह थे, दूसरे जिला महामंत्री अभिनव मिश्रा और तीसरे भी इनके ही साथी थे.
भदौरिया इन तीनों के साथ बातचीत में मशगूल हो जाते हैं. लगभग आधे घंटे बाद हमें अंदर बुलाया जाता है. हिंदू युवा वाहिनी के अभिनव मिश्रा से हमारी बातचीत पहले ही हो चुकी थी. इसलिए हम उनके सामने पुलिस अधिकारी से बातचीत नहीं करना चाहते थे. इसका एहसास अभिनव मिश्रा को हो जाता है. वे जाने की बात करते हैं. इस पर इलाहाबादी अंदाज में भदौरिया कहते हैं, ‘‘अरे बैठिए, आप हमसे अलग थोड़ी हैं. आपको भी तो सबकुछ पता ही है, आप ही बताइए.’’
अभिनव मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘‘जितना आपने बताया वो तो हम इन्हें पहले ही बता चुके हैं. हमारा केस जिससे प्रभावित होगा वो बात हम इन्हें कैसे बता सकते हैं.’’ इसपर वहां बैठे तमाम लोग मुस्कुराने लगे. हम अधूरी बातचीत के साथ लौटने को मज़बूर हो जाते हैं. बजरंग दल के तीनों कार्यकर्ता भी हमारे साथ ही वहां से निकलते हैं.
सीतापुर में लड़की को लेकर भागने के संबंध में दर्ज मामले में आरोपी लड़के के परिवार के सभी लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. उनके कुछ रिश्तेदारों की भी गिरफ्तारी हुई है. कुछ मिलाकर 13 लोग हिरासत में हैं. यह सब हिंदू युवा वाहिनी के दबाव और पैरवी के चलते हुआ है. यह दावा बजरंग दल के जिला महामंत्री और पेशे से वकील अभिनव मिश्रा ने हमसे किया.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मिश्रा कहते हैं, ''जिस दिन लड़की के पिता हमारे पास आए उसी दिन से हमने पुलिस पर दबाव बना शुरू कर दिया. नतीजा यह निकला कि आज लड़की को भगाने में सहयोग करने वाले तमाम लोग गिरफ्तार हो चुके है. पुलिस की कई टीमें लड़के और लड़की की तलाश में जुटी हुई हैं. उन्हें भी जल्द से जल्द पकड़ा जाए इसके लिए हम हर शाम यहां जानकारी लेने आते हैं.”
बजरंग दल, वीएचपी, हिंदू युवा वाहिनी जैसे कुछ अन्य धर्म रक्षक संगठनों के कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच यह तालमेल लव जिहाद की स्टोरी कवर करने के दौरान हम जहां भी गए, हर जगह देखने को मिला. सीतापुर, कानपुर, लखनऊ, हर जगह. लव जिहाद और धर्मांतरण के लगभग हरेक मामले में इन संगठनों की भूमिका नज़र आई. कहीं पुलिस को सहयोग देते हुए तो कहीं पुलिस पर दबाव बनाते हुए.
धर्मांतरण कानून: एक मुंह मांगी मुराद
यूपी में विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश जारी होने के बाद से ही इसकी आलोचना हो रही है. इसके खिलाफ खड़े लोग इस कानून को मुस्लिम समुदाय को परेशान करने का एक और हथियार बता रहे हैं. जिस तरह से इस कानून का अब तक इस्तेमाल पुलिस ने किया है उससे इस दावे को बल मिलता है. लड़के-लड़की के परिजन राजी होते हैं उसके बावजूद शादियां रोक दी जा रही है. जिन मामलों में प्रेमी जोड़े घर छोड़कर भाग गए हैं, उन मामलो में उनके परिजनों और रिश्तेदारों तक को जेल भेज दिया जा रहा है. हिंदू लड़का होने पर पुलिस अलग रवैया अपना रही है, मुस्लिम लड़का होने पर अलग तरीके से काम कर रही है.
एक तरह जहां इस कानून की ख़ामियों और मनमानियों पर बहस छिड़ी हुई है वहीं दूसरी तरफ बजरंग दल और वीएचपी जैसे संगठनों को इससे काफी उम्मीदें हैं. हमने वीएचपी और बजरंग दल के तमाम पदाधिकारियों से बातचीत में पाया कि उन्हें इस कानून के आने से बहुत ख़ुशी है. कइयों ने कहा कि इस कानून के आने से मुस्लिम समुदाय के लड़के, हिन्दू लड़कियों से प्रेम करने से पहले सौ दफा सोचेंगे.
कानपुर का किस्सा दिलचस्प है. बजरंग दल ने इस शहर को चार हिस्सों में बांटा है. इसके पश्चिमी जिला संयोजक नरेश सिंह तोमर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए धर्मांतरण कानून के प्रति खुशी जताते हुए कहते हैं, ‘‘अपने समाज की बहन-बेटियों की रक्षा की जिम्मेदारी जो अब तक हमारे संगठन पर हुआ करती थी उसमें थोड़ी कमी ज़रूर आएगी. हालांकि हम इस पर नज़र बनाए रखेंगे. अगर हमने ढील दी तो ये लोग ज़्यादा सक्रिय होकर काम करेंगे. अधिकारी भी कुछ कर नहीं पांएगे.’’
बीते दो सालों के दौरान कानपुर में कथित 'लव जिहाद' के कई मामले सामने आए. जिसका यहां के दक्षिणपंथी सगठनो ने जमकर विरोध किया और एसआईटी जांच की मांग की थी. सरकार ने इसकी इजाजत भी दे दी. एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. हालांकि धर्मांतरण कराने और नाबालिक लड़कियों को भगाने के अलावा अलग-अलग आरोपों में 11 लोगों पर मामला दर्ज किया. हालांकि ये अपराध कथित लव जिहाद नहीं बल्कि अन्य किस्म के अपराध थे. वहीं तीन मामलों में जोड़ों ने अपने मन से साथ रहने की बात कबूली.
एसआईटी ने जिन मामलों की जांच की उसमें दो की शिकायत पुलिस में दर्ज कराने और उन्हें तलाशने में नरेश सिंह तोमर की भूमिका थी. ये मामले पनकी और कल्याणपुर थाने में दर्ज हैं. इसमें पीड़िता दो जुड़वा बहने हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम तीन को तो बचा लिए पर एक चली गई. इसका हमें अफ़सोस है, लेकिन हम क्या ही कर सकते हैं. हमारी भी एक लिमिटेशन (सीमा) है. वो बालिग है और साथ रहना चाहती है तो उन्हें रोकने का हमें कोई हक़ नहीं. वो इनका (मुसलमानों) का सच नहीं जानती नहीं तो उनके साथ जाती ही क्यों. इनके यहां महिलाओं की इज्जत है क्या? बच्चा पैदा करना उनका काम होता है. कई बार हमारी बहनें सूटकेस में कटी हुई किसी नदी या तालाब में मिलती हैं.’’
नरेश बताते हैं कि जब शालिनी यादव वाला मामला सामने आया और पुलिस ने उन पर नकेल कसना शुरू कर दिया तो बाकी लोग सामने आए. हम किसी के पास नहीं गए लोग खुद हमारे पास आए. जैसे पनकी में वर्मा परिवार की लड़कियों का मामला था. उनके सगे मौसा, पिता और चचेरे भाई तीनों मुझे मिलने आए. उन्होंने कहा कि भैया ऐसा-ऐसा मामला है. लोकलाज के कारण हम किसी से कह नहीं पा रहे थे. ऐसा ही कल्याणपुर थाने के मामले में हुआ. वे हमारे संगठन के लोगों के पास पहुंचे थे. वे ब्राह्मण समुदाय से थे तो उनका संगठन के लोगों से मिलना जुलना था. उन्होंने धीरे से बताया कि ऐसा-ऐसा हुआ है. लड़की के पिता ने कहा कि जॉब के बहाने गई थी. हालांकि हमने अपने स्तर पर पता किया तो मालूम चला कि लड़का अलग नाम से इन लड़कियों से मिला था. लड़कियों की मां को इस बात की जानकरी थी कि वे किसी से बात करती है.”
कल्याणपुर के जिस मामले को नरेश लव जिहाद बताते हैं उसे मामले की जांच करने वाले आवास विकास चौकी के इंचार्ज आनंद कुमार द्विवेदी कहते हैं कि आपसी रजामंदी का मामला था. वे हमें बताते हैं कि एक लड़की नाबालिक थी इसलिए उन्हें जेल भेजा गया है. यह मामला लव जिहाद का नहीं था. इसी तरह 11 मामलों में कुछ न कुछ गड़बड़ी पायी गई थी.
जब आपके पास पीड़ित परिवार के लोग पहुंचे उसके बाद आपने क्या किया? इस सवाल के जवाब में नरेश बताते हैं, ‘‘जानकारी आई तो हमने संबंधित थाने से संपर्क किया. शासन ने सहयोग भी किया. वो लड़के धमकी देते थे. संबंधित पुलिस चौकी के इंचार्ज थे उधम सिंहजी. हमने उनसे सम्पर्क किया. उन्होंने आरोपियों को उठाकर बंद किया क्योंकि उनके पास साक्ष्य थे. लड़का तो जेल चला क्या लेकिन उसमें से एक लड़की लड़के के रिश्तेदार के यहां जाजमऊ में थी. हम अपने कार्यकर्ताओं के जरिए उसकी तलाश किए. वहां से पुलिस लेकर आई. लड़की बालिक थी. वो दो दिन थाने में रही, लेकिन परिवार के लोग मिलने नहीं गए. उसने कोर्ट में लड़के के साथ रहने का बयान दिया क्योंकि उसका माइंडवॉश किया जा चुका था.’’
बीएससी की पढ़ाई करने के बाद छात्र राजनीति के जरिए साल 2013 में बजरंग दल में शामिल हुए नरेश तोमर कानपुर में रियल इस्टेट का बिजनेस करते हैं. वे बताते हैं कि पिछले तीन साल से कानपुर के पश्चिमी इलाके के बजरंग दल संयोजक हैं. इस दौरान 23 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं. नरेश के मुताबिक उनके पास जो मामले आते हैं उसमें से 99 प्रतिशत लड़कियों को वो “बचा” लेते हैं. जिन एक प्रतिशत मामलों में सफलता नहीं मिलती उसमें लड़कियों का तंत्र-मंत्र के जरिए माइंडवॉश किया जा चुका होता है. हालांकि जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो क्या ही क्या जा सकता है.
‘हम लड़कियों का पीछा भी कराते हैं, थर्ड डिग्री का इस्तेमाल भी करते हैं’
नरेश तोमर से मिलने के बाद हम बजरंग दल के राज्य स्तरीय नेता आशीष गुप्ता से मिले. गुप्ता हमें एक पार्क में हमें लेकर गए. जहां एक हनुमान मंदिर था. वे बताते हैं, ‘‘यह हमारा मिलन स्थल है जहां बजरंग दल के कार्यकर्ता और हमें चाहने वाले सप्ताह में दो दिन, मंगलवार और शनिवार को मिलते हैं. यह हमने जुमे की नमाज के तर्ज पर शुरू किया है. मुसलमान एक दिन मिलते हैं और अपनी बातें साझा करते हैं लेकिन हिंदुओं में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी. हमने व्यवस्था किया. यहां मिलकर हम एक-दूसरे की बात सुनते हैं. इसी दौरान हमें इलाके की जानकारी मिलती है. अगर कोई कार्यकर्ता किसी हिन्दू लड़की को किसी मुस्लिम से मिलने की जानकरी देता है तो हम उस लड़की का पीछा कराते हैं. पहले उसे समझाते हैं. अगर वह मान गई तो ठीक नहीं तो उसके परिजनों से मिलकर हर बात बताते हैं और लड़की पर नज़र रखने के लिए कहते हैं.’’
आशीष बताते हैं, ‘‘मैं अब सीधे तौर पर किसी मामले में सक्रिय नहीं होता. कानपुर में बजरंग दल के 192 नगर संयोजक हैं. चार जिला संयोजक है. आठ-आठ लोगों की चार जिला टोली है. 2500 लोग कोई ना कोई पद संभाल रहे हैं. इसके अलावा हज़ारों की संख्या में कार्यकर्ता और शुभचिंतक है. कार्यकर्ता हमें सूचना देते हैं उस पर हम प्रशासन से संपर्क करते हैं. आज कल तो हमारी विचारधारा की सरकार है तो प्रशासन वाले हमारी बात जल्दी सुन लेते हैं. अगर कहीं नहीं सुनते तो उन्हें हम अपनी ताकत दिखाते हैं. सरकार कोई भी हो हम अपनी बात मनवा ही लेते हैं. चाहे प्रेम से या हंगामा-प्रदर्शन करके.’’
अपनी कार्रवाइयों की जानकारी देते हुए आशीष कहते हैं, “चार महीने पहले लाल बंगले का एक प्रकरण आया था. हिन्दू परिवार के ठीक बगल में मुस्लिम परिवार रहता था. हिन्दू परिवार को उन्होंने बरगलाना शुरू किया. इनके मस्जिद के जो इमाम सूफी संत वगैराह होते हैं. वो कुछ टोटका करते है. उसका कुछ समय के लिए लड़कियों पर गहरा असर होता है. वो लड़की अपने बाप को अब्बा और मां को अम्मी कहने लगी. मुस्लिमों में जो सिस्टम चलता है उसका पालन शुरू कर दिया. घर वालों को समझ आया तो लाल बंगले में हनुमानजी का मंदिर है. उसके पुजारी के पास ले गए. वहां लड़की दो दिन में ठीक हो गई. उसने हमें बताया. फिर कार्रवाई हुई और वे लोग जेल भेजे गए.”
इसके बाद आशीष हमें लाल कॉलोनी मामले की जानकारी देने लगे, “वहां दबिश दी गई. एसपी पश्चिमी के पास हम गए. उन्होंने भी दबिश दी. कई लोग जेल भेजे गए. ऐसा ही कल्याणपुर में जो मामला सामने आया उसमें भी हम लगे रहे. तीन लड़कियों को हम वापस ले लाए. एक बड़ी लड़की नहीं मानी, भाग गई वो. सबकुछ किया गया. महिला समाखनी में रखा गया. थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया गया. बयान बदलवाने की कोशिश की गई. लेकिन वो नहीं मानी.’’
आप लोग थर्ड डिग्री कैसे देते हैं? इस सवाल पर आशीष कहते हैं, ‘‘मारते नहीं है. पुलिस को अधिकार भी नहीं मारने का. हमारी दुर्गवाहिनी (बजरंग दल का महिला संगठन) की महिलाएं उन्हें समझाती हैं. उन्हें बताया जाता है कि आपके मां-बाप ने आपको पाला. अगर तुमको शादी करनी है तो हिन्दू परिवार में करो. हमारे में कमी थोड़ी है. ये लोग (मुसलमान) शुरुआत में कलावा बांधकर, टीका लगाकर बन गए हिन्दू और लड़की को अपने जाल में फंसा लिया. लड़की जब जाल में फंस गई. कोर्ट में शादी कर ली तब उसे पता चलता है कि ये मुस्लिम है. तब लड़की ना इधर की रहती है और ना उधर की. फिर वो मर-मरकर जीवन काटती है. फिर कुछ दिनों बाद उसको खत्म ही कर देते हैं.’’
दुर्गावाहिनी की महिलाएं थाने में जाकर लड़कियों को समझाती हैं. क्या पुलिस इसकी इजाजत देती है. इस पर आशीष कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं. पुलिस ज़्यादा देर तक लड़कियों को थाने में नहीं रख सकती है. उन्हें महिला समाखनी गृह में भेज दिया जाता है. वहां बातचीत करके हमारे संगठन के चार लोग जाते हैं. वहां जाकर हमारी संगठन की महिलाएं लड़कियों से बात करती है. उन्हें समझाती है. बहुत से मामले हल होते हैं. दस लड़कियां गई हैं, दस में से आठ लड़कियों को हम वापस ले आते हैं. चार साल पांच साल बाद भी लड़कियां वापस आती हैं.’’
शादी के चार-पांच साल बाद वापस लौटने वाली लड़कियों का क्या होता है. उनका एक परिवार तो छूट जाता है. भारतीय समाज की बनावट ऐसी है कि इस तरह अपने मन से शादी करने वाली लड़कियों को उपेक्षित भाव से देखा जाता है. आशीष बताते हैं, ‘‘उन लड़कियों की शादी कराई जाती है. जिसके दिमाग में हिंदुत्व की भावना बस गई वो आगे पीछे की बात भूल जाता है. वो शादी कर लेता है. ज़रूरी नहीं की सबकी शादी हो जाए. जिस तरह का उन्होंने अपराध किया है उसका दंड भी तो भोगना होगा. हम लोग प्रयास करते हैं उनकी शादी हो जाए.’’
कोई बालिक लड़की अपने मन से किसी भी जाति-धर्म के लड़के से शादी करती है तो आप लोगों को क्या ऐतराज है? आशीष कहते हैं, ‘‘अगर वह लड़की बिना छल-कपट के अपने मन से जाती है, उस मामले में हम थोड़ा ढील देते हैं. लेकिन हम उन्हें भी समझाते हैं कि आपके धर्म में लड़कों की कमी है क्या? क्या उनकी धर्म की लड़कियां हिन्दुओं में शादी करती हैं. तो अपने लोग क्यों जा रहे हैं. अगर आप जाए तो उस लड़के को हिन्दू धर्म में कन्वर्ट कराओ. उनकी घर वापसी कराओ. हम लोग धर्मांतरण नहीं कराते, घर वापसी कराते हैं. हिन्दू लड़कियां क्यों मुसलमानों से शादी करेंगी?’’
'नए कानून से कोई फायदा नहीं होगा'
बजरंग दल के अलावा कानपुर में राष्ट्रीय बजरंग दल भी काफी सक्रिय है. कथित लव जिहाद के कई मामलों में इनकी भूमिका सामने आई है. ऑप इंडिया और दैनिक जागरण ने राष्ट्रीय बजरंग दल के नेताओं के बयान के आधार पर कई रिपोर्टे लिखी हैं.
बजरंग दल, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद का एक अंग हैं, वहीं राष्ट्रीय बजरंग दल, अंतराष्ट्रीय हिन्दू परिषद का अंग है जिसका निर्माण वीएचपी से अलग होने वाले प्रवीण तोगड़िया ने किया है. अंतराष्ट्रीय हिन्दू परिषद का महिला विंग भी है जिसका नाम राष्ट्रीय महिला परिषद है. ये संगठन भी काफी सक्रिय रहता है.
नौबस्ता थाना क्षेत्र में कथित तौर पर अपना धर्म छुपाकर लड़की को फंसाने और उसका धर्मपरिवर्तन कर शादी करने का मामला हो या गोविंद नगर इलाके में घर से नाराज़ होकर भागने वाली लड़की का एक मुस्लिम लड़के द्वारा कथित तौर पर बहलाकर शादी करने का मामला हो, इस संगठन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और मामला दर्ज करवाया. इन दोनों मामलों में आरोपी जेल में हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए रामजी तिवारी बताते हैं, ‘‘हम लोग प्रेम के विरोधी नहीं है लेकिन जिस प्रेम में छल-कपट शामिल हो उसे हम किसी भी स्थिति में मंज़ूर नहीं कर सकते.’’
क्या आप लोगों के पास जाते हैं या लोग आप तक आते हैं. इस पर रामजी तिवारी कहते हैं , ‘‘आप लोग जैसे सोर्स बनाते हैं वैसे हमारे भी लोग समाज में हैं. वे हमें जानकरी देते हैं. आर्यन मल्होत्रा नाम बताकर मुस्लिम लड़का एक हिन्दू लड़की के सम्पर्क में था. जब ये बात लड़की के चाचा को पता चली तो वे हमारे पास आए. लड़की नाबालिक थी. हमने उसकी जानकारी निकाली तो उसका आधार कार्ड मिला जिसमें उसका नाम बदला हुआ था. हम उसे पकड़कर पुलिस के पास ले गए. ठीक ऐसा ही नौबस्ता थाने में ही अपना नाम राहुल सिंह बताकर एक लड़का हिन्दू लड़की से शादी कर लिया था. उसके परिजन हम तक पहुंचे तो हमने उनकी हर स्तर पर मदद की. चाहे पुलिस तक उनकी बात पहुंचानी हो या उनके लिए वकील करना हो. हम हर जगह उनके साथ खड़े रहते हैं. आरोपी पक्ष कई दफा पीड़ित पक्ष को धमकाता भी है, लेकिन उनको जैसे पता चलता है कि बजरंग दल के लोग इनके साथ हैं तो वे डर जाते हैं.’’
हिंदुवादी संगठनों के तमाम दावों के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गठित एसआईटी को जांच में किसी बी तरह की साजिश या गिरोह का पता नहीं चला. उसने रिपोर्ट में लिखा कि कोई संगठित तरीके से इन मामलों में आरोपियों की मदद नहीं कर रहा है. रामजी तिवारी कहते हैं, ‘‘भले ही पाकिस्तान इनको मदद नहीं कर रहा हो लेकिन भारत में ही न जाने कितने लोग और संगठन पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं. वे लोग इनकी मदद करते हैं. फिर यह सवाल उठता है कि यह भी एक तरह का आतंकवाद है क्या? भारत में जनसंख्या असंतुलित करने का यह भी एक रूप है क्या? या हिंदुओं के अंदर एक समाजिक और सांस्कृतिक तानाबाना खत्म करने का रूप है.”
रामजी एसआईटी की रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘उन्होंने ठीक से जांच नहीं की. उन लोगों ने उन्हें ही उठाकर जेल भेजा जिसकी सूचना हमने उन्हें दी. उनके साथ के लोगों को क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया. यह अकेले का काम नहीं था. उस मौलवी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जिसने निकाह कराया. वो कौन लोग हैं जो इनको कानूनी सहायता दे रहे हैं. आज ये लोग हाईकोर्ट जाते हैं तो इनकी फीस कौन दे रहा है. ये तो ड्राइवर, मज़दूर लोग हैं. हाईकोर्ट के वकील की फीस लाखों में होती है. फिर इनको कौन मदद पहुंचा रहा है. इसकी जांच क्यों नहीं हुई. हम इसके लिए भी जल्द ही आंदोलन करने वाले हैं.’’
योगी सरकार ने जो कानून पास किया उससे क्या लव जिहाद के मामलों में कमी आएगी. इस सवाल पर रामजी कहते हैं, ‘‘देखिए देश में पहले से ही कई कानून बने हुए हैं. एक कानून और पास हो गया तो कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. जो कानून मौजूद है उनके हिसाब से ही काम किया जाए तो ऐसे मामलों को रोका जा सकता है. बजरंग दल के लोगों की सरकार है इसलिए वे कुछ बोल नहीं रहे है लेकिन हमारी तो सरकार नहीं है इसलिए हम कह सकते हैं कि इस कानून से कोई फायदा नहीं होगा.’’
परिजनों की सहमति के बावजूद क्यों रोकी शादी?
दो दिसंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पारा इलाके में रैना और आदिल की शादी होनी थी. ये शादी दोनों परिवारों की रजामंदी से हो रही थी. शादी हिन्दू और मुस्लिम दोनों रीति से होनी थी. लेकिन दो दिसंबर को अचानक से पुलिस पहुंची और शादी रुकवा दी गई. जब दोनों के परिजन राजी थे तो आखिर पुलिस को सूचना किसने दिया? किसी इस शादी से परेशानी हुई? इस सवाल का जवाब हैं राष्ट्रीय युवा वाहिनी और हिन्दू महासभा.
राष्ट्रीय युवा वाहिनी के प्रमुख केडी शर्मा का आवास लड़का और लड़की के घर से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर हैं. इनके कार्यालय में बाबा साहब अंबेडकर, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के कई नेताओं की तस्वीर लगी हुई है. लम्बे समय तक बहुजन समाज पार्टी के सदस्य रहे केडी शर्मा साल 2012 में पश्चिमी लखनऊ से निर्दलीय विधायक का चुनाव भी लड़ चुके हैं हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यह संगठन वैसे तो आरएसएस या बीजेपी का कोई अंग नहीं ये खुद को भाजपा का सहयोगी संगठन बताते हैं. जो इनके तमाम पोस्टर पर भी लिखा मिलता हैं.
इस शादी को रुकवाने का पत्र केडी शर्मा ने खुद तो नहीं लिखा बल्कि संगठन के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष यासिर खान से लिखवाया. एक दिसंबर को सहायक आयुक्त को लिखे अपने पत्र में यासिर लिखते हैं, ''हमें इस शादी से कोई ऐतराज नहीं है लेकिन इनके द्वारा नवीन कानून लव जिहाद का उल्लंघन किया जा रहा है. हम सभी का कर्तव्य है कि नए कानून का पालन किया जाए. ऐसा नहीं होने पर कोई भी घटना घट सकती है. मैं चाहता हूं कि इस शादी को तत्काल प्रभाव से रोककर क़ानूनी व्यवस्था के अनुसार शादी कराई जाए.''
जब दोनों पक्ष शादी के लिए राजी थे. कोई धर्म परिवर्तन नहीं हो रहा था. ऐसे में नए कानून का पालन नहीं करने का सवाल कैसे उठता है. आखिर आपको कौन सी घटना घटने का डर था. इस सवाल के जवाब में यासिर खान कहते हैं, “जागरूक नागरिक होने के नाते किसी भी कानून का पालन कराना हमारी जिम्मेदारी है और वही ज़िम्मेदारी हमने निभाई है. जहां तक घटना घटने की बात है तो आसपास के लोगों में नाराज़गी थी. कुछ और संगठन के लोग वहां पहुंच गए थे. ऐसे में दंगा भी ही सकता था.”
तो क्या आप सड़क चलते किसी भी जगह कानून का पालन होते नहीं देखते तो उसकी शिकायत करते हैं. उन्हें रोककर कानून पालन करने की नसीहत देते हैं? इस सवाल के जवाब में यासिर कहते हैं, “हम कोशिश करते हैं. हमारे संगठन का मकसद समाज में शांति व्यवस्था कायम करना है. हम लोग कोई चुनाव तो लड़ते नहीं हैं. ऐसे में जहां लगता है कि समाज में टूट पड़ेगी वहां हम आगे बढ़कर चीजों को बेहतर करने की कोशिश करते हैं. यकीन मानिए इसके अलावा हमें कोई मतलब नहीं.’’
केडी शर्मा का दावा है कि स्थानीय लोग उनके पास शिकायत लेकर पहुंचे थे. उन्होंने ने ही यासिर खान को मामले को देखने के लिए बोला. जब शिकायत आपके पास आई तो आपने खुद आगे बढ़कर मामले को क्यों नहीं देखा कि यासिर खान को यह ज़िम्मेदारी सौंप दी. इस पर शर्मा कोई स्पष्ट जवाब नहीं देते. वो बताते हैं, ‘‘दोनों के परिवार से लोग तो हमारे पास नहीं आए थे लेकिन उस गली के हिन्दू मेरे पास आए और उन्होंने बताया कि अजीब तरह से यह शादी हो रही है. हिन्दू रीतिरिवाज से मंडप में भी शादी होगी और इस्लाम के मुताबिक निकाह भी होगा. लड़की के पिता का निधन हो गया है. उसका सौतेला पिता शराबी है और वह मुस्लिम लड़के से शराब मंगा कर पीता है. पूरे परिवार का माइंड वॉश मुसलमान परिवार ने कर दिया था. इसलिए शादी हो रही है. इसका गलत असर हमारी घर की बेटियों पर पड़ेगा. यह सब जानने के बाद हमने यासिर को फोन किया और फिर शादी रुकवाई गई. बिना कानून का पालन किए शादी करना गलत है.’’
हिन्दू लड़कियों पर क्या गलत असर पड़ सकता था यह शादी होने की स्थिति में? इस सवाल के जवाब में केडी शर्मा बताते हैं, ‘‘नियम को ताक पर रखते हुए मंडप लगाकर शादी एक विशेष वर्ग के व्यक्ति से की जा रही हो. ऐसे में अन्य हिन्दू लड़कियां निडर हो जाएगी कि जब उन्होंने नियम को ताक पर रखकर शादी किया है तो हम क्यों न करें. इसी वजह से हमने करवाई करने का प्लान बनाया. यह वास्तव में लव जिहाद था.’’
केडी शर्मा बजरंग दल से थोड़ा अलग सोचते हैं. अंतरधार्मिक विवाह में भले ही लड़का-लड़की किसी भी धर्म के हो इनके लिए यह लव जिहाद ही है. पुलिस आपकी ऐसे मामलों में कैसे मदद करती है. इस सवाल के जवाब में केडी शर्मा कहते हैं, ‘‘सरकार कोई भी हो पुलिस हमें मदद करती रही है. हम कानून से बाहर जाकर कोई काम करते ही नहीं है. इसी मामले को देख लीजिए. हमने कानूनसम्मत काम किया तो पुलिस भी तत्काल कार्रवाई करते हुए शादी रुकवा दी. दोनों के परिजनों को बुलाकर समझाया गया. उन्हें नए कानून के बारे में बताया गया.’’
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर तम्बौर थाने में हम पुलिस अधिकारी अमित भदौरिया का इंतज़ार कर रहे थे. भदौरिया सीतापुर में दर्ज कथित धर्मांतरण और लड़की के ‘अपहरण’ के मामले की जांच कर रहे हैं. शाम करीब सात बजे वे थाने पहुंचते हैं. उनके पीछे-पीछे तीन और लोग भी थाने पहुंते हैं. जिसमें से एक हिंदू युवा वाहिनी के जिला अध्यक्ष उत्तम सिंह थे, दूसरे जिला महामंत्री अभिनव मिश्रा और तीसरे भी इनके ही साथी थे.
भदौरिया इन तीनों के साथ बातचीत में मशगूल हो जाते हैं. लगभग आधे घंटे बाद हमें अंदर बुलाया जाता है. हिंदू युवा वाहिनी के अभिनव मिश्रा से हमारी बातचीत पहले ही हो चुकी थी. इसलिए हम उनके सामने पुलिस अधिकारी से बातचीत नहीं करना चाहते थे. इसका एहसास अभिनव मिश्रा को हो जाता है. वे जाने की बात करते हैं. इस पर इलाहाबादी अंदाज में भदौरिया कहते हैं, ‘‘अरे बैठिए, आप हमसे अलग थोड़ी हैं. आपको भी तो सबकुछ पता ही है, आप ही बताइए.’’
अभिनव मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘‘जितना आपने बताया वो तो हम इन्हें पहले ही बता चुके हैं. हमारा केस जिससे प्रभावित होगा वो बात हम इन्हें कैसे बता सकते हैं.’’ इसपर वहां बैठे तमाम लोग मुस्कुराने लगे. हम अधूरी बातचीत के साथ लौटने को मज़बूर हो जाते हैं. बजरंग दल के तीनों कार्यकर्ता भी हमारे साथ ही वहां से निकलते हैं.
सीतापुर में लड़की को लेकर भागने के संबंध में दर्ज मामले में आरोपी लड़के के परिवार के सभी लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. उनके कुछ रिश्तेदारों की भी गिरफ्तारी हुई है. कुछ मिलाकर 13 लोग हिरासत में हैं. यह सब हिंदू युवा वाहिनी के दबाव और पैरवी के चलते हुआ है. यह दावा बजरंग दल के जिला महामंत्री और पेशे से वकील अभिनव मिश्रा ने हमसे किया.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मिश्रा कहते हैं, ''जिस दिन लड़की के पिता हमारे पास आए उसी दिन से हमने पुलिस पर दबाव बना शुरू कर दिया. नतीजा यह निकला कि आज लड़की को भगाने में सहयोग करने वाले तमाम लोग गिरफ्तार हो चुके है. पुलिस की कई टीमें लड़के और लड़की की तलाश में जुटी हुई हैं. उन्हें भी जल्द से जल्द पकड़ा जाए इसके लिए हम हर शाम यहां जानकारी लेने आते हैं.”
बजरंग दल, वीएचपी, हिंदू युवा वाहिनी जैसे कुछ अन्य धर्म रक्षक संगठनों के कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच यह तालमेल लव जिहाद की स्टोरी कवर करने के दौरान हम जहां भी गए, हर जगह देखने को मिला. सीतापुर, कानपुर, लखनऊ, हर जगह. लव जिहाद और धर्मांतरण के लगभग हरेक मामले में इन संगठनों की भूमिका नज़र आई. कहीं पुलिस को सहयोग देते हुए तो कहीं पुलिस पर दबाव बनाते हुए.
धर्मांतरण कानून: एक मुंह मांगी मुराद
यूपी में विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश जारी होने के बाद से ही इसकी आलोचना हो रही है. इसके खिलाफ खड़े लोग इस कानून को मुस्लिम समुदाय को परेशान करने का एक और हथियार बता रहे हैं. जिस तरह से इस कानून का अब तक इस्तेमाल पुलिस ने किया है उससे इस दावे को बल मिलता है. लड़के-लड़की के परिजन राजी होते हैं उसके बावजूद शादियां रोक दी जा रही है. जिन मामलों में प्रेमी जोड़े घर छोड़कर भाग गए हैं, उन मामलो में उनके परिजनों और रिश्तेदारों तक को जेल भेज दिया जा रहा है. हिंदू लड़का होने पर पुलिस अलग रवैया अपना रही है, मुस्लिम लड़का होने पर अलग तरीके से काम कर रही है.
एक तरह जहां इस कानून की ख़ामियों और मनमानियों पर बहस छिड़ी हुई है वहीं दूसरी तरफ बजरंग दल और वीएचपी जैसे संगठनों को इससे काफी उम्मीदें हैं. हमने वीएचपी और बजरंग दल के तमाम पदाधिकारियों से बातचीत में पाया कि उन्हें इस कानून के आने से बहुत ख़ुशी है. कइयों ने कहा कि इस कानून के आने से मुस्लिम समुदाय के लड़के, हिन्दू लड़कियों से प्रेम करने से पहले सौ दफा सोचेंगे.
कानपुर का किस्सा दिलचस्प है. बजरंग दल ने इस शहर को चार हिस्सों में बांटा है. इसके पश्चिमी जिला संयोजक नरेश सिंह तोमर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए धर्मांतरण कानून के प्रति खुशी जताते हुए कहते हैं, ‘‘अपने समाज की बहन-बेटियों की रक्षा की जिम्मेदारी जो अब तक हमारे संगठन पर हुआ करती थी उसमें थोड़ी कमी ज़रूर आएगी. हालांकि हम इस पर नज़र बनाए रखेंगे. अगर हमने ढील दी तो ये लोग ज़्यादा सक्रिय होकर काम करेंगे. अधिकारी भी कुछ कर नहीं पांएगे.’’
बीते दो सालों के दौरान कानपुर में कथित 'लव जिहाद' के कई मामले सामने आए. जिसका यहां के दक्षिणपंथी सगठनो ने जमकर विरोध किया और एसआईटी जांच की मांग की थी. सरकार ने इसकी इजाजत भी दे दी. एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. हालांकि धर्मांतरण कराने और नाबालिक लड़कियों को भगाने के अलावा अलग-अलग आरोपों में 11 लोगों पर मामला दर्ज किया. हालांकि ये अपराध कथित लव जिहाद नहीं बल्कि अन्य किस्म के अपराध थे. वहीं तीन मामलों में जोड़ों ने अपने मन से साथ रहने की बात कबूली.
एसआईटी ने जिन मामलों की जांच की उसमें दो की शिकायत पुलिस में दर्ज कराने और उन्हें तलाशने में नरेश सिंह तोमर की भूमिका थी. ये मामले पनकी और कल्याणपुर थाने में दर्ज हैं. इसमें पीड़िता दो जुड़वा बहने हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम तीन को तो बचा लिए पर एक चली गई. इसका हमें अफ़सोस है, लेकिन हम क्या ही कर सकते हैं. हमारी भी एक लिमिटेशन (सीमा) है. वो बालिग है और साथ रहना चाहती है तो उन्हें रोकने का हमें कोई हक़ नहीं. वो इनका (मुसलमानों) का सच नहीं जानती नहीं तो उनके साथ जाती ही क्यों. इनके यहां महिलाओं की इज्जत है क्या? बच्चा पैदा करना उनका काम होता है. कई बार हमारी बहनें सूटकेस में कटी हुई किसी नदी या तालाब में मिलती हैं.’’
नरेश बताते हैं कि जब शालिनी यादव वाला मामला सामने आया और पुलिस ने उन पर नकेल कसना शुरू कर दिया तो बाकी लोग सामने आए. हम किसी के पास नहीं गए लोग खुद हमारे पास आए. जैसे पनकी में वर्मा परिवार की लड़कियों का मामला था. उनके सगे मौसा, पिता और चचेरे भाई तीनों मुझे मिलने आए. उन्होंने कहा कि भैया ऐसा-ऐसा मामला है. लोकलाज के कारण हम किसी से कह नहीं पा रहे थे. ऐसा ही कल्याणपुर थाने के मामले में हुआ. वे हमारे संगठन के लोगों के पास पहुंचे थे. वे ब्राह्मण समुदाय से थे तो उनका संगठन के लोगों से मिलना जुलना था. उन्होंने धीरे से बताया कि ऐसा-ऐसा हुआ है. लड़की के पिता ने कहा कि जॉब के बहाने गई थी. हालांकि हमने अपने स्तर पर पता किया तो मालूम चला कि लड़का अलग नाम से इन लड़कियों से मिला था. लड़कियों की मां को इस बात की जानकरी थी कि वे किसी से बात करती है.”
कल्याणपुर के जिस मामले को नरेश लव जिहाद बताते हैं उसे मामले की जांच करने वाले आवास विकास चौकी के इंचार्ज आनंद कुमार द्विवेदी कहते हैं कि आपसी रजामंदी का मामला था. वे हमें बताते हैं कि एक लड़की नाबालिक थी इसलिए उन्हें जेल भेजा गया है. यह मामला लव जिहाद का नहीं था. इसी तरह 11 मामलों में कुछ न कुछ गड़बड़ी पायी गई थी.
जब आपके पास पीड़ित परिवार के लोग पहुंचे उसके बाद आपने क्या किया? इस सवाल के जवाब में नरेश बताते हैं, ‘‘जानकारी आई तो हमने संबंधित थाने से संपर्क किया. शासन ने सहयोग भी किया. वो लड़के धमकी देते थे. संबंधित पुलिस चौकी के इंचार्ज थे उधम सिंहजी. हमने उनसे सम्पर्क किया. उन्होंने आरोपियों को उठाकर बंद किया क्योंकि उनके पास साक्ष्य थे. लड़का तो जेल चला क्या लेकिन उसमें से एक लड़की लड़के के रिश्तेदार के यहां जाजमऊ में थी. हम अपने कार्यकर्ताओं के जरिए उसकी तलाश किए. वहां से पुलिस लेकर आई. लड़की बालिक थी. वो दो दिन थाने में रही, लेकिन परिवार के लोग मिलने नहीं गए. उसने कोर्ट में लड़के के साथ रहने का बयान दिया क्योंकि उसका माइंडवॉश किया जा चुका था.’’
बीएससी की पढ़ाई करने के बाद छात्र राजनीति के जरिए साल 2013 में बजरंग दल में शामिल हुए नरेश तोमर कानपुर में रियल इस्टेट का बिजनेस करते हैं. वे बताते हैं कि पिछले तीन साल से कानपुर के पश्चिमी इलाके के बजरंग दल संयोजक हैं. इस दौरान 23 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं. नरेश के मुताबिक उनके पास जो मामले आते हैं उसमें से 99 प्रतिशत लड़कियों को वो “बचा” लेते हैं. जिन एक प्रतिशत मामलों में सफलता नहीं मिलती उसमें लड़कियों का तंत्र-मंत्र के जरिए माइंडवॉश किया जा चुका होता है. हालांकि जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो क्या ही क्या जा सकता है.
‘हम लड़कियों का पीछा भी कराते हैं, थर्ड डिग्री का इस्तेमाल भी करते हैं’
नरेश तोमर से मिलने के बाद हम बजरंग दल के राज्य स्तरीय नेता आशीष गुप्ता से मिले. गुप्ता हमें एक पार्क में हमें लेकर गए. जहां एक हनुमान मंदिर था. वे बताते हैं, ‘‘यह हमारा मिलन स्थल है जहां बजरंग दल के कार्यकर्ता और हमें चाहने वाले सप्ताह में दो दिन, मंगलवार और शनिवार को मिलते हैं. यह हमने जुमे की नमाज के तर्ज पर शुरू किया है. मुसलमान एक दिन मिलते हैं और अपनी बातें साझा करते हैं लेकिन हिंदुओं में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी. हमने व्यवस्था किया. यहां मिलकर हम एक-दूसरे की बात सुनते हैं. इसी दौरान हमें इलाके की जानकारी मिलती है. अगर कोई कार्यकर्ता किसी हिन्दू लड़की को किसी मुस्लिम से मिलने की जानकरी देता है तो हम उस लड़की का पीछा कराते हैं. पहले उसे समझाते हैं. अगर वह मान गई तो ठीक नहीं तो उसके परिजनों से मिलकर हर बात बताते हैं और लड़की पर नज़र रखने के लिए कहते हैं.’’
आशीष बताते हैं, ‘‘मैं अब सीधे तौर पर किसी मामले में सक्रिय नहीं होता. कानपुर में बजरंग दल के 192 नगर संयोजक हैं. चार जिला संयोजक है. आठ-आठ लोगों की चार जिला टोली है. 2500 लोग कोई ना कोई पद संभाल रहे हैं. इसके अलावा हज़ारों की संख्या में कार्यकर्ता और शुभचिंतक है. कार्यकर्ता हमें सूचना देते हैं उस पर हम प्रशासन से संपर्क करते हैं. आज कल तो हमारी विचारधारा की सरकार है तो प्रशासन वाले हमारी बात जल्दी सुन लेते हैं. अगर कहीं नहीं सुनते तो उन्हें हम अपनी ताकत दिखाते हैं. सरकार कोई भी हो हम अपनी बात मनवा ही लेते हैं. चाहे प्रेम से या हंगामा-प्रदर्शन करके.’’
अपनी कार्रवाइयों की जानकारी देते हुए आशीष कहते हैं, “चार महीने पहले लाल बंगले का एक प्रकरण आया था. हिन्दू परिवार के ठीक बगल में मुस्लिम परिवार रहता था. हिन्दू परिवार को उन्होंने बरगलाना शुरू किया. इनके मस्जिद के जो इमाम सूफी संत वगैराह होते हैं. वो कुछ टोटका करते है. उसका कुछ समय के लिए लड़कियों पर गहरा असर होता है. वो लड़की अपने बाप को अब्बा और मां को अम्मी कहने लगी. मुस्लिमों में जो सिस्टम चलता है उसका पालन शुरू कर दिया. घर वालों को समझ आया तो लाल बंगले में हनुमानजी का मंदिर है. उसके पुजारी के पास ले गए. वहां लड़की दो दिन में ठीक हो गई. उसने हमें बताया. फिर कार्रवाई हुई और वे लोग जेल भेजे गए.”
इसके बाद आशीष हमें लाल कॉलोनी मामले की जानकारी देने लगे, “वहां दबिश दी गई. एसपी पश्चिमी के पास हम गए. उन्होंने भी दबिश दी. कई लोग जेल भेजे गए. ऐसा ही कल्याणपुर में जो मामला सामने आया उसमें भी हम लगे रहे. तीन लड़कियों को हम वापस ले लाए. एक बड़ी लड़की नहीं मानी, भाग गई वो. सबकुछ किया गया. महिला समाखनी में रखा गया. थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया गया. बयान बदलवाने की कोशिश की गई. लेकिन वो नहीं मानी.’’
आप लोग थर्ड डिग्री कैसे देते हैं? इस सवाल पर आशीष कहते हैं, ‘‘मारते नहीं है. पुलिस को अधिकार भी नहीं मारने का. हमारी दुर्गवाहिनी (बजरंग दल का महिला संगठन) की महिलाएं उन्हें समझाती हैं. उन्हें बताया जाता है कि आपके मां-बाप ने आपको पाला. अगर तुमको शादी करनी है तो हिन्दू परिवार में करो. हमारे में कमी थोड़ी है. ये लोग (मुसलमान) शुरुआत में कलावा बांधकर, टीका लगाकर बन गए हिन्दू और लड़की को अपने जाल में फंसा लिया. लड़की जब जाल में फंस गई. कोर्ट में शादी कर ली तब उसे पता चलता है कि ये मुस्लिम है. तब लड़की ना इधर की रहती है और ना उधर की. फिर वो मर-मरकर जीवन काटती है. फिर कुछ दिनों बाद उसको खत्म ही कर देते हैं.’’
दुर्गावाहिनी की महिलाएं थाने में जाकर लड़कियों को समझाती हैं. क्या पुलिस इसकी इजाजत देती है. इस पर आशीष कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं. पुलिस ज़्यादा देर तक लड़कियों को थाने में नहीं रख सकती है. उन्हें महिला समाखनी गृह में भेज दिया जाता है. वहां बातचीत करके हमारे संगठन के चार लोग जाते हैं. वहां जाकर हमारी संगठन की महिलाएं लड़कियों से बात करती है. उन्हें समझाती है. बहुत से मामले हल होते हैं. दस लड़कियां गई हैं, दस में से आठ लड़कियों को हम वापस ले आते हैं. चार साल पांच साल बाद भी लड़कियां वापस आती हैं.’’
शादी के चार-पांच साल बाद वापस लौटने वाली लड़कियों का क्या होता है. उनका एक परिवार तो छूट जाता है. भारतीय समाज की बनावट ऐसी है कि इस तरह अपने मन से शादी करने वाली लड़कियों को उपेक्षित भाव से देखा जाता है. आशीष बताते हैं, ‘‘उन लड़कियों की शादी कराई जाती है. जिसके दिमाग में हिंदुत्व की भावना बस गई वो आगे पीछे की बात भूल जाता है. वो शादी कर लेता है. ज़रूरी नहीं की सबकी शादी हो जाए. जिस तरह का उन्होंने अपराध किया है उसका दंड भी तो भोगना होगा. हम लोग प्रयास करते हैं उनकी शादी हो जाए.’’
कोई बालिक लड़की अपने मन से किसी भी जाति-धर्म के लड़के से शादी करती है तो आप लोगों को क्या ऐतराज है? आशीष कहते हैं, ‘‘अगर वह लड़की बिना छल-कपट के अपने मन से जाती है, उस मामले में हम थोड़ा ढील देते हैं. लेकिन हम उन्हें भी समझाते हैं कि आपके धर्म में लड़कों की कमी है क्या? क्या उनकी धर्म की लड़कियां हिन्दुओं में शादी करती हैं. तो अपने लोग क्यों जा रहे हैं. अगर आप जाए तो उस लड़के को हिन्दू धर्म में कन्वर्ट कराओ. उनकी घर वापसी कराओ. हम लोग धर्मांतरण नहीं कराते, घर वापसी कराते हैं. हिन्दू लड़कियां क्यों मुसलमानों से शादी करेंगी?’’
'नए कानून से कोई फायदा नहीं होगा'
बजरंग दल के अलावा कानपुर में राष्ट्रीय बजरंग दल भी काफी सक्रिय है. कथित लव जिहाद के कई मामलों में इनकी भूमिका सामने आई है. ऑप इंडिया और दैनिक जागरण ने राष्ट्रीय बजरंग दल के नेताओं के बयान के आधार पर कई रिपोर्टे लिखी हैं.
बजरंग दल, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद का एक अंग हैं, वहीं राष्ट्रीय बजरंग दल, अंतराष्ट्रीय हिन्दू परिषद का अंग है जिसका निर्माण वीएचपी से अलग होने वाले प्रवीण तोगड़िया ने किया है. अंतराष्ट्रीय हिन्दू परिषद का महिला विंग भी है जिसका नाम राष्ट्रीय महिला परिषद है. ये संगठन भी काफी सक्रिय रहता है.
नौबस्ता थाना क्षेत्र में कथित तौर पर अपना धर्म छुपाकर लड़की को फंसाने और उसका धर्मपरिवर्तन कर शादी करने का मामला हो या गोविंद नगर इलाके में घर से नाराज़ होकर भागने वाली लड़की का एक मुस्लिम लड़के द्वारा कथित तौर पर बहलाकर शादी करने का मामला हो, इस संगठन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और मामला दर्ज करवाया. इन दोनों मामलों में आरोपी जेल में हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए रामजी तिवारी बताते हैं, ‘‘हम लोग प्रेम के विरोधी नहीं है लेकिन जिस प्रेम में छल-कपट शामिल हो उसे हम किसी भी स्थिति में मंज़ूर नहीं कर सकते.’’
क्या आप लोगों के पास जाते हैं या लोग आप तक आते हैं. इस पर रामजी तिवारी कहते हैं , ‘‘आप लोग जैसे सोर्स बनाते हैं वैसे हमारे भी लोग समाज में हैं. वे हमें जानकरी देते हैं. आर्यन मल्होत्रा नाम बताकर मुस्लिम लड़का एक हिन्दू लड़की के सम्पर्क में था. जब ये बात लड़की के चाचा को पता चली तो वे हमारे पास आए. लड़की नाबालिक थी. हमने उसकी जानकारी निकाली तो उसका आधार कार्ड मिला जिसमें उसका नाम बदला हुआ था. हम उसे पकड़कर पुलिस के पास ले गए. ठीक ऐसा ही नौबस्ता थाने में ही अपना नाम राहुल सिंह बताकर एक लड़का हिन्दू लड़की से शादी कर लिया था. उसके परिजन हम तक पहुंचे तो हमने उनकी हर स्तर पर मदद की. चाहे पुलिस तक उनकी बात पहुंचानी हो या उनके लिए वकील करना हो. हम हर जगह उनके साथ खड़े रहते हैं. आरोपी पक्ष कई दफा पीड़ित पक्ष को धमकाता भी है, लेकिन उनको जैसे पता चलता है कि बजरंग दल के लोग इनके साथ हैं तो वे डर जाते हैं.’’
हिंदुवादी संगठनों के तमाम दावों के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गठित एसआईटी को जांच में किसी बी तरह की साजिश या गिरोह का पता नहीं चला. उसने रिपोर्ट में लिखा कि कोई संगठित तरीके से इन मामलों में आरोपियों की मदद नहीं कर रहा है. रामजी तिवारी कहते हैं, ‘‘भले ही पाकिस्तान इनको मदद नहीं कर रहा हो लेकिन भारत में ही न जाने कितने लोग और संगठन पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं. वे लोग इनकी मदद करते हैं. फिर यह सवाल उठता है कि यह भी एक तरह का आतंकवाद है क्या? भारत में जनसंख्या असंतुलित करने का यह भी एक रूप है क्या? या हिंदुओं के अंदर एक समाजिक और सांस्कृतिक तानाबाना खत्म करने का रूप है.”
रामजी एसआईटी की रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘उन्होंने ठीक से जांच नहीं की. उन लोगों ने उन्हें ही उठाकर जेल भेजा जिसकी सूचना हमने उन्हें दी. उनके साथ के लोगों को क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया. यह अकेले का काम नहीं था. उस मौलवी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जिसने निकाह कराया. वो कौन लोग हैं जो इनको कानूनी सहायता दे रहे हैं. आज ये लोग हाईकोर्ट जाते हैं तो इनकी फीस कौन दे रहा है. ये तो ड्राइवर, मज़दूर लोग हैं. हाईकोर्ट के वकील की फीस लाखों में होती है. फिर इनको कौन मदद पहुंचा रहा है. इसकी जांच क्यों नहीं हुई. हम इसके लिए भी जल्द ही आंदोलन करने वाले हैं.’’
योगी सरकार ने जो कानून पास किया उससे क्या लव जिहाद के मामलों में कमी आएगी. इस सवाल पर रामजी कहते हैं, ‘‘देखिए देश में पहले से ही कई कानून बने हुए हैं. एक कानून और पास हो गया तो कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. जो कानून मौजूद है उनके हिसाब से ही काम किया जाए तो ऐसे मामलों को रोका जा सकता है. बजरंग दल के लोगों की सरकार है इसलिए वे कुछ बोल नहीं रहे है लेकिन हमारी तो सरकार नहीं है इसलिए हम कह सकते हैं कि इस कानून से कोई फायदा नहीं होगा.’’
परिजनों की सहमति के बावजूद क्यों रोकी शादी?
दो दिसंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पारा इलाके में रैना और आदिल की शादी होनी थी. ये शादी दोनों परिवारों की रजामंदी से हो रही थी. शादी हिन्दू और मुस्लिम दोनों रीति से होनी थी. लेकिन दो दिसंबर को अचानक से पुलिस पहुंची और शादी रुकवा दी गई. जब दोनों के परिजन राजी थे तो आखिर पुलिस को सूचना किसने दिया? किसी इस शादी से परेशानी हुई? इस सवाल का जवाब हैं राष्ट्रीय युवा वाहिनी और हिन्दू महासभा.
राष्ट्रीय युवा वाहिनी के प्रमुख केडी शर्मा का आवास लड़का और लड़की के घर से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर हैं. इनके कार्यालय में बाबा साहब अंबेडकर, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के कई नेताओं की तस्वीर लगी हुई है. लम्बे समय तक बहुजन समाज पार्टी के सदस्य रहे केडी शर्मा साल 2012 में पश्चिमी लखनऊ से निर्दलीय विधायक का चुनाव भी लड़ चुके हैं हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यह संगठन वैसे तो आरएसएस या बीजेपी का कोई अंग नहीं ये खुद को भाजपा का सहयोगी संगठन बताते हैं. जो इनके तमाम पोस्टर पर भी लिखा मिलता हैं.
इस शादी को रुकवाने का पत्र केडी शर्मा ने खुद तो नहीं लिखा बल्कि संगठन के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष यासिर खान से लिखवाया. एक दिसंबर को सहायक आयुक्त को लिखे अपने पत्र में यासिर लिखते हैं, ''हमें इस शादी से कोई ऐतराज नहीं है लेकिन इनके द्वारा नवीन कानून लव जिहाद का उल्लंघन किया जा रहा है. हम सभी का कर्तव्य है कि नए कानून का पालन किया जाए. ऐसा नहीं होने पर कोई भी घटना घट सकती है. मैं चाहता हूं कि इस शादी को तत्काल प्रभाव से रोककर क़ानूनी व्यवस्था के अनुसार शादी कराई जाए.''
जब दोनों पक्ष शादी के लिए राजी थे. कोई धर्म परिवर्तन नहीं हो रहा था. ऐसे में नए कानून का पालन नहीं करने का सवाल कैसे उठता है. आखिर आपको कौन सी घटना घटने का डर था. इस सवाल के जवाब में यासिर खान कहते हैं, “जागरूक नागरिक होने के नाते किसी भी कानून का पालन कराना हमारी जिम्मेदारी है और वही ज़िम्मेदारी हमने निभाई है. जहां तक घटना घटने की बात है तो आसपास के लोगों में नाराज़गी थी. कुछ और संगठन के लोग वहां पहुंच गए थे. ऐसे में दंगा भी ही सकता था.”
तो क्या आप सड़क चलते किसी भी जगह कानून का पालन होते नहीं देखते तो उसकी शिकायत करते हैं. उन्हें रोककर कानून पालन करने की नसीहत देते हैं? इस सवाल के जवाब में यासिर कहते हैं, “हम कोशिश करते हैं. हमारे संगठन का मकसद समाज में शांति व्यवस्था कायम करना है. हम लोग कोई चुनाव तो लड़ते नहीं हैं. ऐसे में जहां लगता है कि समाज में टूट पड़ेगी वहां हम आगे बढ़कर चीजों को बेहतर करने की कोशिश करते हैं. यकीन मानिए इसके अलावा हमें कोई मतलब नहीं.’’
केडी शर्मा का दावा है कि स्थानीय लोग उनके पास शिकायत लेकर पहुंचे थे. उन्होंने ने ही यासिर खान को मामले को देखने के लिए बोला. जब शिकायत आपके पास आई तो आपने खुद आगे बढ़कर मामले को क्यों नहीं देखा कि यासिर खान को यह ज़िम्मेदारी सौंप दी. इस पर शर्मा कोई स्पष्ट जवाब नहीं देते. वो बताते हैं, ‘‘दोनों के परिवार से लोग तो हमारे पास नहीं आए थे लेकिन उस गली के हिन्दू मेरे पास आए और उन्होंने बताया कि अजीब तरह से यह शादी हो रही है. हिन्दू रीतिरिवाज से मंडप में भी शादी होगी और इस्लाम के मुताबिक निकाह भी होगा. लड़की के पिता का निधन हो गया है. उसका सौतेला पिता शराबी है और वह मुस्लिम लड़के से शराब मंगा कर पीता है. पूरे परिवार का माइंड वॉश मुसलमान परिवार ने कर दिया था. इसलिए शादी हो रही है. इसका गलत असर हमारी घर की बेटियों पर पड़ेगा. यह सब जानने के बाद हमने यासिर को फोन किया और फिर शादी रुकवाई गई. बिना कानून का पालन किए शादी करना गलत है.’’
हिन्दू लड़कियों पर क्या गलत असर पड़ सकता था यह शादी होने की स्थिति में? इस सवाल के जवाब में केडी शर्मा बताते हैं, ‘‘नियम को ताक पर रखते हुए मंडप लगाकर शादी एक विशेष वर्ग के व्यक्ति से की जा रही हो. ऐसे में अन्य हिन्दू लड़कियां निडर हो जाएगी कि जब उन्होंने नियम को ताक पर रखकर शादी किया है तो हम क्यों न करें. इसी वजह से हमने करवाई करने का प्लान बनाया. यह वास्तव में लव जिहाद था.’’
केडी शर्मा बजरंग दल से थोड़ा अलग सोचते हैं. अंतरधार्मिक विवाह में भले ही लड़का-लड़की किसी भी धर्म के हो इनके लिए यह लव जिहाद ही है. पुलिस आपकी ऐसे मामलों में कैसे मदद करती है. इस सवाल के जवाब में केडी शर्मा कहते हैं, ‘‘सरकार कोई भी हो पुलिस हमें मदद करती रही है. हम कानून से बाहर जाकर कोई काम करते ही नहीं है. इसी मामले को देख लीजिए. हमने कानूनसम्मत काम किया तो पुलिस भी तत्काल कार्रवाई करते हुए शादी रुकवा दी. दोनों के परिजनों को बुलाकर समझाया गया. उन्हें नए कानून के बारे में बताया गया.’’
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