Newslaundry Hindi
एनएल चर्चा 146: किसान आंदोलन में बढ़ता मौत का आंकड़ा और तबलीगी जमात पर कोर्ट का आदेश
एनएल चर्चा का 146वां एपिसोड एक बार फिर से किसान आंदोलन पर केंद्रित रहा. जिसमें लगातार 21 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसान, संत राम सिंह समेत अभी हुई 17 किसानों की मौत, सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन पर हुई सुनवाई और संसद के रद्द कर दिए गए शीतकालीन सत्र समेत कई मसलों पर बातचीत हुई.
इस बार चर्चा में पत्रकार मनीषा भल्ला और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत मेघनाथ के ‘मैरुआना एक्सप्लेनर’ के साथ की. उन्होंने कहा समय के साथ चीजें बदलती है. 1970-80 के समय जब दुनियाभर में ड्रग के खिलाफ विरोध हुआ, एक तरफ से देशों ने गांजे को प्रतिबंधित श्रेणी के ड्रग में शामिल किया तो भारत भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में मैरुआना (गांजा) को बैन कर दिया, जबकि सालों साल से भारत में इसका उपयोग चल रहा है. हमारे पुराणों में गांजे का जिक्र है.
यहां मेघनाथ कहते हैं, “लोगों को यह ग़लतफहमी है की गांजे से लोगों को लत लग जाती है. जबकि सबसे ज्यादा लत लोगों को निकोटिन से लगती है, जो सिगरेट में उपयोग होता है.”
गांजे के उपयोग और इसे कानूनी तौर पर वैध करने के सवाल पर मनीषा कहती हैं, “गांजे की जिस तरह से खपत होती है, उस तौर पर उसे गैर कानूनी बनाए रखने पर सोचना चाहिए. जिस तरह से सुशांत सिंह केस में एनसीबी ने एक ग्राम और दो ग्राम गांजे को लेकर भी कई के खिलाफ केस दर्ज कर लिया हैं, अगर ऐसे देखे तो हमारे धार्मिक स्थलों पर इससे ज्यादा उपयोग होता है.”
किसान आंदोलन पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अतुल कहते हैं, “प्रधानमंत्री आवास से 40 किलोमीटर की दूरी पर लाखों किसान बैठे हैं लेकिन देश के प्रधानमंत्री 1400 किलोमीटर दूर कच्छ में किसानों से बातचीत करने जाते हैं. जहां न तो खेती होती है न ही पंजाबी समुदाय है इसके बावजूद प्रधानमंत्री के साथ फोटो में पगड़ी पहने किसानों को दिखाया जाता है. यह साफ दिखाता हैं कि उनकी दिलचस्पी किसानों की समस्याओं को हल करने से ज्यादा फोटो ऑप में है.” अतुल, मनीषा से सवाल पूछते हैं, इस समय ग्राउंड पर क्या स्थिति है?
मनीषा बताती हैं, “मैं ग्राउंड पर करीब 10 दिन तक रहीं. लेकिन यह प्रदर्शन कई मायनों में अलग है. इसमें पंजाब के युवाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है. ज्यादातर पंजाब के किसान संगठन मौजूद है. इस आंदोलन की खास बात यह हैं कि किसानों ने इसे इस तरह से बनाया हैं कि वह कई महीनों तक आंदोलन को जारी रख सकते है. इसलिए सरकार को चाहिए की जल्द से जल्द इस किसानों की बात मानकर आंदोलन को खत्म कराए.”
मेघनाथ को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल कहते है, “इस पूरे आंदोलन और उस पर सरकार के मंत्रियों के बेतुके तर्क, क्या लगता हैं सरकार इस पूरे मामले को लेकर कितनी गंभीर है?”
प्रश्न का उत्तर देते हुए मेघनाथ कहते हैं, “बिल पर हमने बात तो की लेकिन उससे पहले हमें बिल कैसे पास किया गया उस पर बातचीत करनी चाहिए. हम सब को याद हैं कि किस तरह राज्यसभा से इस बिल को पास किया गया है. वहीं अगर बात सरकार की करे तो, उन्होंने कहा कि वह कानून में बदलाव के लिए तैयार है लेकिन उसके लिए संसद के सत्र को बुलाया जाना चाहिए. लेकिन सरकार ने शीतकालीन सत्र बुलाने से इंकार कर दिया. अगर संसद को सत्र नहीं बुलाया जाएगा तो संशोधन कैसे किया जाएगा, तो इससे साफ पता चलता हैं कि सरकार इस मामले को हैंडल नहीं कर पा रही है.”
**
टाइम कोड
00:00 - प्रस्तावना और हेडलाइन
15:41 - किसान आंदोलन
41:15 - तब्लीगी जमात पर अदालत का फैसला
01:01:00 - सलाह और सुझाव
***
क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
सलाह और सुझाव
मनीषा भल्ला
यूट्यूब पर किसान आंदोलन से जुड़े गाने
मेधनाथ
इस सप्ताह की टिप्पणी - मेरे देश की धरती अर्नब उगले, उगले अंजना, रोहित..
वीडियो स्टोरी - फार्मर्स आंसर्स, डंप क्वेश्चन
अतुल चौरसिया
किसान आंदोलन थीम सांग - त्वाड़ा जाओ
अमिताभ घोष की किताब अफ़ीम सागर
इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित - जीन ड्रेज़ का लेख
****
प्रोड्यूसर- लिपि वत्स
रिकॉर्डिंग - लिपि वत्स
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
एनएल चर्चा का 146वां एपिसोड एक बार फिर से किसान आंदोलन पर केंद्रित रहा. जिसमें लगातार 21 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसान, संत राम सिंह समेत अभी हुई 17 किसानों की मौत, सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन पर हुई सुनवाई और संसद के रद्द कर दिए गए शीतकालीन सत्र समेत कई मसलों पर बातचीत हुई.
इस बार चर्चा में पत्रकार मनीषा भल्ला और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत मेघनाथ के ‘मैरुआना एक्सप्लेनर’ के साथ की. उन्होंने कहा समय के साथ चीजें बदलती है. 1970-80 के समय जब दुनियाभर में ड्रग के खिलाफ विरोध हुआ, एक तरफ से देशों ने गांजे को प्रतिबंधित श्रेणी के ड्रग में शामिल किया तो भारत भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में मैरुआना (गांजा) को बैन कर दिया, जबकि सालों साल से भारत में इसका उपयोग चल रहा है. हमारे पुराणों में गांजे का जिक्र है.
यहां मेघनाथ कहते हैं, “लोगों को यह ग़लतफहमी है की गांजे से लोगों को लत लग जाती है. जबकि सबसे ज्यादा लत लोगों को निकोटिन से लगती है, जो सिगरेट में उपयोग होता है.”
गांजे के उपयोग और इसे कानूनी तौर पर वैध करने के सवाल पर मनीषा कहती हैं, “गांजे की जिस तरह से खपत होती है, उस तौर पर उसे गैर कानूनी बनाए रखने पर सोचना चाहिए. जिस तरह से सुशांत सिंह केस में एनसीबी ने एक ग्राम और दो ग्राम गांजे को लेकर भी कई के खिलाफ केस दर्ज कर लिया हैं, अगर ऐसे देखे तो हमारे धार्मिक स्थलों पर इससे ज्यादा उपयोग होता है.”
किसान आंदोलन पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अतुल कहते हैं, “प्रधानमंत्री आवास से 40 किलोमीटर की दूरी पर लाखों किसान बैठे हैं लेकिन देश के प्रधानमंत्री 1400 किलोमीटर दूर कच्छ में किसानों से बातचीत करने जाते हैं. जहां न तो खेती होती है न ही पंजाबी समुदाय है इसके बावजूद प्रधानमंत्री के साथ फोटो में पगड़ी पहने किसानों को दिखाया जाता है. यह साफ दिखाता हैं कि उनकी दिलचस्पी किसानों की समस्याओं को हल करने से ज्यादा फोटो ऑप में है.” अतुल, मनीषा से सवाल पूछते हैं, इस समय ग्राउंड पर क्या स्थिति है?
मनीषा बताती हैं, “मैं ग्राउंड पर करीब 10 दिन तक रहीं. लेकिन यह प्रदर्शन कई मायनों में अलग है. इसमें पंजाब के युवाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है. ज्यादातर पंजाब के किसान संगठन मौजूद है. इस आंदोलन की खास बात यह हैं कि किसानों ने इसे इस तरह से बनाया हैं कि वह कई महीनों तक आंदोलन को जारी रख सकते है. इसलिए सरकार को चाहिए की जल्द से जल्द इस किसानों की बात मानकर आंदोलन को खत्म कराए.”
मेघनाथ को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल कहते है, “इस पूरे आंदोलन और उस पर सरकार के मंत्रियों के बेतुके तर्क, क्या लगता हैं सरकार इस पूरे मामले को लेकर कितनी गंभीर है?”
प्रश्न का उत्तर देते हुए मेघनाथ कहते हैं, “बिल पर हमने बात तो की लेकिन उससे पहले हमें बिल कैसे पास किया गया उस पर बातचीत करनी चाहिए. हम सब को याद हैं कि किस तरह राज्यसभा से इस बिल को पास किया गया है. वहीं अगर बात सरकार की करे तो, उन्होंने कहा कि वह कानून में बदलाव के लिए तैयार है लेकिन उसके लिए संसद के सत्र को बुलाया जाना चाहिए. लेकिन सरकार ने शीतकालीन सत्र बुलाने से इंकार कर दिया. अगर संसद को सत्र नहीं बुलाया जाएगा तो संशोधन कैसे किया जाएगा, तो इससे साफ पता चलता हैं कि सरकार इस मामले को हैंडल नहीं कर पा रही है.”
**
टाइम कोड
00:00 - प्रस्तावना और हेडलाइन
15:41 - किसान आंदोलन
41:15 - तब्लीगी जमात पर अदालत का फैसला
01:01:00 - सलाह और सुझाव
***
क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
सलाह और सुझाव
मनीषा भल्ला
यूट्यूब पर किसान आंदोलन से जुड़े गाने
मेधनाथ
इस सप्ताह की टिप्पणी - मेरे देश की धरती अर्नब उगले, उगले अंजना, रोहित..
वीडियो स्टोरी - फार्मर्स आंसर्स, डंप क्वेश्चन
अतुल चौरसिया
किसान आंदोलन थीम सांग - त्वाड़ा जाओ
अमिताभ घोष की किताब अफ़ीम सागर
इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित - जीन ड्रेज़ का लेख
****
प्रोड्यूसर- लिपि वत्स
रिकॉर्डिंग - लिपि वत्स
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else
-
डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट: गुजरात का वो कानून जिसने मुस्लिमों के लिए प्रॉपर्टी खरीदना असंभव कर दिया