Newslaundry Hindi
गाजीपुर बॉर्डर: किसान आंदोलन के कई रंग
नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद पिछले 22 दिनों से दिल्ली के कई बॉर्डर्स पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच कुंडली सीमा पर सिख संत राम सिंह ने खुदकुशी कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है, जिसमें किसानों पर सरकार के रवैये से परेशान होकर सुसाइड की बात कही है. इस घटना के बाद माहौल और गर्मा गया है.
दिल्ली में एक तरफ किसान जहां, सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं तो एक आंदोलन दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर पर भी चल रहा है. जहां ज्यादातर किसान पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड से आए हैं. इन्होंने एनएच-9 का एक हिस्सा पूरी तरह बंद कर दिया है. लेकिन इन सब के बीच यहां पहुंचने पर आपको इन आंदोलन में भारत के अलग-अलग रंग नजर आ जाएंगे. निहंग सिख, किसानों के लंगर, ट्रैक्टरों पर सामग्री ढ़ोते लोग और अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बंदोबस्त यानी किसान पूरी तैयारी के साथ यहां पहुंचे हैं. हमने एक दिन यहां जाकर किसान आंदोलन का जायजा लिया.
‘नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी’ मेट्रो स्टेशन से उतर कर जब हम यहां पहुंचे तो सबसे पहले हमारा सामना भारी पुलिस बल से हुआ. जिन्होंने बैरिकेटिंग कर वाहनों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. हालांकि हमारे सामने जब किसानों से भरा एक वाहन आया तो उसके पीछे पुलिस की गाड़ी भी आई.
नेशनल हाईवे बना क्रिकेट पिच
यहां से आगे बढ़ने पर खाली पड़े रोड पर प्रदर्शनकारियों के साथ आए बच्चों ने आपदा में अवसर तलाश लिया और वे यहां नेशनल हाइवे पर क्रिकेट खेल रहे थे.
आगे बढ़ने पर दूर, जहां तक नजर जाती बड़ी-बड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां ही नजर आ रही थीं. जिन्हें एक अस्थाई घर में तब्दील कर दिया गया है. पिछले दिनों से यही इनके सोने का ठिकाना हैं. इनमें बिजली, खाने के अलावा कुछ में तो मनोरंजन और एसी तक की सुविधा उपल्बध थी. यानी किसानों ने दिल्ली मार्च से पहले काफी तैयारी की थी और शायद उन्हें ये अहसास था कि ये आंदोलन लंबा चलने वाला है. आगे बढ़ने पर किसानों का एक ग्रुप नजर आया, जो पत्ते खेलकर समय गुजार रहा था. इस ग्रुप ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया. क्योंकि उन्हें भरोसा नहीं था कि मीडिया उनकी बात सही तरीके से रखेगा.
जब हम यहां से थोड़ा आगे बढ़े तो एक लकड़ी की चौकी पर डिस टीवी का एंटिना नजर आया. जिसे देखकर हम रुके.
यहां हमें एक ट्रॉली में चार लोग नजर आए जो उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से आए थे. हमने यहां बब्लजीत सिंह और अन्य लोगों से बात की. यह सभी सरकार के इन नए कृषि बिलों से नाराज दिखे. साथ ही इन लोगों का कहना था कि सरकार जब तक ये बिल वापस नहीं ले लेती तब तक वे यहां से नहीं हटेंगे. इसके लिए उन्होंने हमें अपने इंतजाम भी दिखाए. बाहर डिश टीवी के अलावा अंदर एक एलईडी रखा था. बिजली न आने की दशा में दो बैटरे भी अंदर रखे गए थे. इसके अलावा बिजली के लिए सोलर पैनल भी ट्रॉली के छत पर लगाए गए थे.
50 एकड़ के किसान भूपेंद्र 12वीं करने के बाद विदेश जाकर इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं. वे भी इस ग्रुप के साथ हैं. उन्होंने कहा कि ये इंतजाम इस लिए करने पड़े हैं क्योंकि यहां बिजली और इंटरनेट काट दिया जाता है.
धरना स्थल के चारों ओर लंगर चल रहे थे. जहां किसानों को मैगी से लेकर चाय-पकौड़े, खीर आदि खाने कि लिए मुहैया कराया जा रहा था. संतरों का एक बड़ा ढ़ेर भी वहीं पड़ा हुआ था. किसानों के लिए रोटी की मशीन का प्रबंध भी किया गया है. मंच पर किसान नेता भाषण दे रहे थे. एक प्रवक्ता मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बेहद झूठा बताते हुए उनसे कम झूठ बोलने की अपील कर रहा था.
लाइब्रेरी की शुरुआत
धरना स्थल के पास ही “विकल्प मंच” की तरफ से एक लाइब्रेरी की शुरुआत भी की गई है. इसमें किसानों को जागरुक करने के लिए खेती- किसानी से जुड़ी किताबें थीं. जिन्हें किसान पढ़कर वापस यहीं रख सकते थे. इस लाइब्रेरी का संचालन कर रहे मोहित ने हमें बताया कि हमने किसानों को जागरुक करने के लिए ये लाइब्रेरी शुरू की है. और इसका बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. अगर कोई खरीदना चाहे तो सिर्फ 10- 15 रूपए में खरीद सकता है, और अगर न खरीदना चाहे तो सिर्फ पढ़कर भी रख सकते हैं. मोहित ने हमें एक किताब भी दिखाई जो इन तीनों कृषि कानूनों से जुड़ी हुई थी. मोहित के साथ इस काम में शालू और अमित भी जुड़े हैं.
फसलों के फैसले किसान करेगा
उत्तराखंड के सितारगंज निवासी कमलजीत सिंह भी अपने ग्रुप के साथ यहीं बैठे हुए थे. 50 एकड़ खेती करने वाले कमलजीत की ट्रॉली सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही थी. दरअसल उन्होंने अपनी ट्रॉली को पूरी तरह मॉडिफाइड करा कर उसमें अंदर एसी लगाया हुआ है. साथ ही चलो दिल्ली, फसलों के फैसले किसान करेगा, #किसान_आंदोलन जैसे नारे लिखे हैं.
नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद पिछले 22 दिनों से दिल्ली के कई बॉर्डर्स पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच कुंडली सीमा पर सिख संत राम सिंह ने खुदकुशी कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है, जिसमें किसानों पर सरकार के रवैये से परेशान होकर सुसाइड की बात कही है. इस घटना के बाद माहौल और गर्मा गया है.
दिल्ली में एक तरफ किसान जहां, सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं तो एक आंदोलन दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर पर भी चल रहा है. जहां ज्यादातर किसान पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड से आए हैं. इन्होंने एनएच-9 का एक हिस्सा पूरी तरह बंद कर दिया है. लेकिन इन सब के बीच यहां पहुंचने पर आपको इन आंदोलन में भारत के अलग-अलग रंग नजर आ जाएंगे. निहंग सिख, किसानों के लंगर, ट्रैक्टरों पर सामग्री ढ़ोते लोग और अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बंदोबस्त यानी किसान पूरी तैयारी के साथ यहां पहुंचे हैं. हमने एक दिन यहां जाकर किसान आंदोलन का जायजा लिया.
‘नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी’ मेट्रो स्टेशन से उतर कर जब हम यहां पहुंचे तो सबसे पहले हमारा सामना भारी पुलिस बल से हुआ. जिन्होंने बैरिकेटिंग कर वाहनों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. हालांकि हमारे सामने जब किसानों से भरा एक वाहन आया तो उसके पीछे पुलिस की गाड़ी भी आई.
नेशनल हाईवे बना क्रिकेट पिच
यहां से आगे बढ़ने पर खाली पड़े रोड पर प्रदर्शनकारियों के साथ आए बच्चों ने आपदा में अवसर तलाश लिया और वे यहां नेशनल हाइवे पर क्रिकेट खेल रहे थे.
आगे बढ़ने पर दूर, जहां तक नजर जाती बड़ी-बड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां ही नजर आ रही थीं. जिन्हें एक अस्थाई घर में तब्दील कर दिया गया है. पिछले दिनों से यही इनके सोने का ठिकाना हैं. इनमें बिजली, खाने के अलावा कुछ में तो मनोरंजन और एसी तक की सुविधा उपल्बध थी. यानी किसानों ने दिल्ली मार्च से पहले काफी तैयारी की थी और शायद उन्हें ये अहसास था कि ये आंदोलन लंबा चलने वाला है. आगे बढ़ने पर किसानों का एक ग्रुप नजर आया, जो पत्ते खेलकर समय गुजार रहा था. इस ग्रुप ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया. क्योंकि उन्हें भरोसा नहीं था कि मीडिया उनकी बात सही तरीके से रखेगा.
जब हम यहां से थोड़ा आगे बढ़े तो एक लकड़ी की चौकी पर डिस टीवी का एंटिना नजर आया. जिसे देखकर हम रुके.
यहां हमें एक ट्रॉली में चार लोग नजर आए जो उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से आए थे. हमने यहां बब्लजीत सिंह और अन्य लोगों से बात की. यह सभी सरकार के इन नए कृषि बिलों से नाराज दिखे. साथ ही इन लोगों का कहना था कि सरकार जब तक ये बिल वापस नहीं ले लेती तब तक वे यहां से नहीं हटेंगे. इसके लिए उन्होंने हमें अपने इंतजाम भी दिखाए. बाहर डिश टीवी के अलावा अंदर एक एलईडी रखा था. बिजली न आने की दशा में दो बैटरे भी अंदर रखे गए थे. इसके अलावा बिजली के लिए सोलर पैनल भी ट्रॉली के छत पर लगाए गए थे.
50 एकड़ के किसान भूपेंद्र 12वीं करने के बाद विदेश जाकर इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं. वे भी इस ग्रुप के साथ हैं. उन्होंने कहा कि ये इंतजाम इस लिए करने पड़े हैं क्योंकि यहां बिजली और इंटरनेट काट दिया जाता है.
धरना स्थल के चारों ओर लंगर चल रहे थे. जहां किसानों को मैगी से लेकर चाय-पकौड़े, खीर आदि खाने कि लिए मुहैया कराया जा रहा था. संतरों का एक बड़ा ढ़ेर भी वहीं पड़ा हुआ था. किसानों के लिए रोटी की मशीन का प्रबंध भी किया गया है. मंच पर किसान नेता भाषण दे रहे थे. एक प्रवक्ता मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बेहद झूठा बताते हुए उनसे कम झूठ बोलने की अपील कर रहा था.
लाइब्रेरी की शुरुआत
धरना स्थल के पास ही “विकल्प मंच” की तरफ से एक लाइब्रेरी की शुरुआत भी की गई है. इसमें किसानों को जागरुक करने के लिए खेती- किसानी से जुड़ी किताबें थीं. जिन्हें किसान पढ़कर वापस यहीं रख सकते थे. इस लाइब्रेरी का संचालन कर रहे मोहित ने हमें बताया कि हमने किसानों को जागरुक करने के लिए ये लाइब्रेरी शुरू की है. और इसका बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. अगर कोई खरीदना चाहे तो सिर्फ 10- 15 रूपए में खरीद सकता है, और अगर न खरीदना चाहे तो सिर्फ पढ़कर भी रख सकते हैं. मोहित ने हमें एक किताब भी दिखाई जो इन तीनों कृषि कानूनों से जुड़ी हुई थी. मोहित के साथ इस काम में शालू और अमित भी जुड़े हैं.
फसलों के फैसले किसान करेगा
उत्तराखंड के सितारगंज निवासी कमलजीत सिंह भी अपने ग्रुप के साथ यहीं बैठे हुए थे. 50 एकड़ खेती करने वाले कमलजीत की ट्रॉली सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही थी. दरअसल उन्होंने अपनी ट्रॉली को पूरी तरह मॉडिफाइड करा कर उसमें अंदर एसी लगाया हुआ है. साथ ही चलो दिल्ली, फसलों के फैसले किसान करेगा, #किसान_आंदोलन जैसे नारे लिखे हैं.
Also Read
-
From farmers’ protest to floods: Punjab’s blueprint of resistance lives on
-
TV Newsance 313: What happened to India’s No. 1 China hater?
-
No surprises in Tianjin show: Xi’s power trip, with Modi and Putin as props
-
In upscale Delhi neighbourhood, public walkways turn into private parking lots
-
Delhi’s iconic Cottage Emporium now has empty shelves, workers and artisans in crisis