Newslaundry Hindi
लव गुरू सुधीर चौधरी और उनके भी गुरू अर्णब गोस्वामी
जब तक दवाई नहीं, तब तक कोई ढिलाई नहीं. कोविड के कारण पिछले दो हफ्ते न्यूज़लॉन्ड्री का स्टूडियो बंद रहा. कोविड के साथ हस्तिनापुर की हवा में घुला ज़हर महाराज धृतराष्ट्र की चिंता को बढ़ा रहा है. भरी दुपहरी में सूरज के दर्शन दुर्लभ हो चुके हैं. इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द इस बार का धृतराष्ट्र-संजय संवाद.
इसके अलावा बीते हफ्ते भाजपा शासित कई सूबों के सूबेदारों ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की घोषणा कर दी. उत्तर प्रदेश के सूबेदार योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने लखनऊ में इस बाबत अध्यादेश भी पारित कर दिया है. और इसके साथ ही लव जिहाद की कथित परिकल्पना के ऊपर हमारे खबरिया चैनलों ने महासंग्राम छेड़ दिया है.
साजिश, आतंकवाद, विदेशी फंडिंग गरज ये कि जो भी अटकलें आप लगा सकते हैं लगाएं लेकिन एक अदद कानपुर पुलिस की एसआईटी रिपोर्ट पर पूरे कार्यक्रम में चुप्पी साध ली या फिर घुमा-फिराकर तथ्यों पर बात ही नहीं की चैनलों ने. इतना ही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट का इसी तरह के एक मामले में आया निर्देश भी नजरअंदाज किया चैनलों ने. सिर्फ लव जिहाद, आतंकवाद और साजिश की फर्जी कहानियों पर सारा जोर लगा दिया.
जब बात संविधान और लोकतंत्र की हो तो अपने योगीजी कतल कर देते हैं. दो हफ्ते पहले जब अर्णब की गिरफ्तारी हुई थी तब योगीजी ने जिन खास चीजों के खतरे में पड़ जाने का जिक्र किया उनमें क्रमश: अभिव्यक्ति की आजादी, आपातकाल, प्रजातंत्र का गला घोंटने और लोकतंत्र के चौथे खंभे को ध्वस्त करने जैसे खतरे प्रमुखता से चिन्हित किए. उत्तर प्रदेश में क्रमश: अभिव्यक्ति की आजादी, प्रजातंत्र का गला घोटने और लोकतंत्र के चौथे खंभे पर हथौड़ा चलाने के 40 से ज्यादा वाकए योगीजी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए हैं.
अर्णब के पक्ष-विपक्ष में पत्रकारिता बिरादरी भी बंट गई. ग़ालिबान सारी बहस ब्लैक एंड व्हाइट पालों में बंट गई. कोई मिडिल ग्राउंड ही नहीं बचा. यह पत्रकारिता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. अच्छी, जनहित वाली, सरोकारों वाली पत्रकारिता हमेशा इसी मिडिल ग्राउंड में फलती-फूलती है. महाराष्ट्र पुलिस की कार्रवाई बताती है कि इसमें गंदी राजनीति है. जो काम एक नोटिस भेजकर, अर्नब को थाने बुलाकर किया जा सकता था, उसके लिए बीस पुलिसवालों को सुबह-सुबह अर्नब के घर भेजना उसी गंदी राजनीति का नमूना है.
इसका दूसरा पहलू है कि अर्नब के साथ बाकी पत्रकारिता बिरादरी क्यों नहीं उतरी. इसका जवाब यही हो सकता है कि पूरी पत्रकारिता के साथ आज जो कुछ बुरा हो रहा है, उसके इकलौते प्रतिनिधि और जिम्मेदार अर्णब गोस्वामी हैं. उन्होंने ऐसी पत्रकारिता की नींव रखी है जिसमें सत्ता के साथ बेशर्म सांठगांठ कोई छुपी बात नहीं है.
सत्ता का चरित्र एक जैसा होता है. इसे न्यूज़लॉन्ड्री के एक ताजा उदाहरण से समझिए. पुणे का पुराना अखबार समूह है सकाल. यह महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार के परिवार की संपत्ति है. लॉकडाउन के दौरान जब सरकार ने घोषणा की थी कि लोगों को नौकरियों से नहीं निकाला जाय तब सकाल ग्रुप ने कई कर्मचारियों और पत्रकारों को नौकरी से निकाल बाहर किया. चुंकि अखबार पवार परिवार का है और हमारी ख़बर उनके मनमुताबिक नहीं थी तो महाराष्ट्र पुलिस के जरिए उन्होंने हरविधि से न्यूज़लॉन्ड्री को परेशान करना शुरू किया. पहले 65 करोड़ के मानहानी की धमकी दी गई फिर हमारे रिपोर्टर प्रतीक गोयल के खिलाफ ओछे और सतही आरोपों में एफआईआर दर्ज की गई, कोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत दी तो हमारे रिपोर्टर का लैपटॉप जब्त करने की कोशिश पुलिस ने की. यानि सरकारें लेफ्ट, राइट की हों या सेंटर की, सत्ता में आने के बाद मीडिया की आजादी जैसी बातें उन्हें न तो समझ आती है न पसंद आती हैं.
इन्हीं घटनाओं पर केंद्रित है इस बार की टिप्पणी.
जब तक दवाई नहीं, तब तक कोई ढिलाई नहीं. कोविड के कारण पिछले दो हफ्ते न्यूज़लॉन्ड्री का स्टूडियो बंद रहा. कोविड के साथ हस्तिनापुर की हवा में घुला ज़हर महाराज धृतराष्ट्र की चिंता को बढ़ा रहा है. भरी दुपहरी में सूरज के दर्शन दुर्लभ हो चुके हैं. इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द इस बार का धृतराष्ट्र-संजय संवाद.
इसके अलावा बीते हफ्ते भाजपा शासित कई सूबों के सूबेदारों ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की घोषणा कर दी. उत्तर प्रदेश के सूबेदार योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने लखनऊ में इस बाबत अध्यादेश भी पारित कर दिया है. और इसके साथ ही लव जिहाद की कथित परिकल्पना के ऊपर हमारे खबरिया चैनलों ने महासंग्राम छेड़ दिया है.
साजिश, आतंकवाद, विदेशी फंडिंग गरज ये कि जो भी अटकलें आप लगा सकते हैं लगाएं लेकिन एक अदद कानपुर पुलिस की एसआईटी रिपोर्ट पर पूरे कार्यक्रम में चुप्पी साध ली या फिर घुमा-फिराकर तथ्यों पर बात ही नहीं की चैनलों ने. इतना ही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट का इसी तरह के एक मामले में आया निर्देश भी नजरअंदाज किया चैनलों ने. सिर्फ लव जिहाद, आतंकवाद और साजिश की फर्जी कहानियों पर सारा जोर लगा दिया.
जब बात संविधान और लोकतंत्र की हो तो अपने योगीजी कतल कर देते हैं. दो हफ्ते पहले जब अर्णब की गिरफ्तारी हुई थी तब योगीजी ने जिन खास चीजों के खतरे में पड़ जाने का जिक्र किया उनमें क्रमश: अभिव्यक्ति की आजादी, आपातकाल, प्रजातंत्र का गला घोंटने और लोकतंत्र के चौथे खंभे को ध्वस्त करने जैसे खतरे प्रमुखता से चिन्हित किए. उत्तर प्रदेश में क्रमश: अभिव्यक्ति की आजादी, प्रजातंत्र का गला घोटने और लोकतंत्र के चौथे खंभे पर हथौड़ा चलाने के 40 से ज्यादा वाकए योगीजी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए हैं.
अर्णब के पक्ष-विपक्ष में पत्रकारिता बिरादरी भी बंट गई. ग़ालिबान सारी बहस ब्लैक एंड व्हाइट पालों में बंट गई. कोई मिडिल ग्राउंड ही नहीं बचा. यह पत्रकारिता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. अच्छी, जनहित वाली, सरोकारों वाली पत्रकारिता हमेशा इसी मिडिल ग्राउंड में फलती-फूलती है. महाराष्ट्र पुलिस की कार्रवाई बताती है कि इसमें गंदी राजनीति है. जो काम एक नोटिस भेजकर, अर्नब को थाने बुलाकर किया जा सकता था, उसके लिए बीस पुलिसवालों को सुबह-सुबह अर्नब के घर भेजना उसी गंदी राजनीति का नमूना है.
इसका दूसरा पहलू है कि अर्नब के साथ बाकी पत्रकारिता बिरादरी क्यों नहीं उतरी. इसका जवाब यही हो सकता है कि पूरी पत्रकारिता के साथ आज जो कुछ बुरा हो रहा है, उसके इकलौते प्रतिनिधि और जिम्मेदार अर्णब गोस्वामी हैं. उन्होंने ऐसी पत्रकारिता की नींव रखी है जिसमें सत्ता के साथ बेशर्म सांठगांठ कोई छुपी बात नहीं है.
सत्ता का चरित्र एक जैसा होता है. इसे न्यूज़लॉन्ड्री के एक ताजा उदाहरण से समझिए. पुणे का पुराना अखबार समूह है सकाल. यह महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार के परिवार की संपत्ति है. लॉकडाउन के दौरान जब सरकार ने घोषणा की थी कि लोगों को नौकरियों से नहीं निकाला जाय तब सकाल ग्रुप ने कई कर्मचारियों और पत्रकारों को नौकरी से निकाल बाहर किया. चुंकि अखबार पवार परिवार का है और हमारी ख़बर उनके मनमुताबिक नहीं थी तो महाराष्ट्र पुलिस के जरिए उन्होंने हरविधि से न्यूज़लॉन्ड्री को परेशान करना शुरू किया. पहले 65 करोड़ के मानहानी की धमकी दी गई फिर हमारे रिपोर्टर प्रतीक गोयल के खिलाफ ओछे और सतही आरोपों में एफआईआर दर्ज की गई, कोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत दी तो हमारे रिपोर्टर का लैपटॉप जब्त करने की कोशिश पुलिस ने की. यानि सरकारें लेफ्ट, राइट की हों या सेंटर की, सत्ता में आने के बाद मीडिया की आजादी जैसी बातें उन्हें न तो समझ आती है न पसंद आती हैं.
इन्हीं घटनाओं पर केंद्रित है इस बार की टिप्पणी.
Also Read
-
From farmers’ protest to floods: Punjab’s blueprint of resistance lives on
-
TV Newsance 313: What happened to India’s No. 1 China hater?
-
No surprises in Tianjin show: Xi’s power trip, with Modi and Putin as props
-
In upscale Delhi neighbourhood, public walkways turn into private parking lots
-
Delhi’s iconic Cottage Emporium now has empty shelves, workers and artisans in crisis