Newslaundry Hindi
किसी भी हाल में किसानों को दिल्ली नहीं पहुंचने देना चाहती मोदी सरकार
दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर 'दिल्ली में आपका स्वागत है' का बोर्ड लगा है. उसके ठीक बगल में ट्रकों पर बालू और मिट्टी भरके रास्ता रोकने के लिए सड़कों पर खड़ा कर दिया गया है. थोड़ा आगे बैरिकेडिंग करके कुछ हिस्सों में कंटीली तारे लगाई जा चुकी है और कुछ हिस्सों में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के निर्देश पर लगाई जा रही है.
बैरिकेडिंग के आसपास केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सीमा सुरक्षा बल, रैपिड एक्शन फाॅर्स और दिल्ली पुलिस के सैकड़ों जवान मुस्तैदी से खड़े नज़र आते हैं. इन दलों के अधिकारी थोड़ी-थोड़ी देरी पर इन्हें आदेश देते नज़र आते हैं, इनका मकसद सिर्फ यह है कि कुछ भी करके प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश नहीं करने देना है. बीच-बीच में ड्रोन भी उड़ता नज़र आता है. शाम तक बॉर्डर का यह इलाका छावनी में तब्दील होता नज़र आने लगता है.
दोपहर में ही हरियाणा से दिल्ली आ रही गाड़ियों को सघन जांच के बाद ही आने दिया जा रहा था, लेकिन शाम होते-होते दोनों तरफ से आवाजाही बिल्कुल बंद कर दी गई. यह सब इंतज़ाम सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली पहुंचने वाले हैं.
देशभर के किसान यूनियन मोदी सरकार द्वारा बीते लोकसभा सत्र में पारित तीन कृषि कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020, को लेकर खफा है.
इन कानूनों से सबसे ज़्यादा नाराजगी पंजाब और हरियाणा के किसानों में दिख रही है. यहां के किसान कानून बनने के बाद से ही प्रदर्शन कर रहे हैं. पहले यह प्रदर्शन हरियाणा और पंजाब में ही हुआ. पंजाब में किसान सड़कों पर उतरे, लेकिन केंद्र सरकार अपने दावे पर अड़ी रही कि यह कानून किसानों के हित में है. पंजाब से ताल्लुक रखने वाली हरसिमरत कौर ने विरोध के ताव को देखते हुए केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया पर सरकार कानून में बदलाव करने को तैयार नज़र नहीं आई. किसानों ने पंजाब में अपना प्रदर्शन जारी रखा और 26-27 नवंबर को दिल्ली पहुंचने के लिए निकल गए ताकि केंद्र सरकार के करीब जाकर उन तक अपनी बात पहुंचाई जा सके.
दिल्ली से लगे हरियाणा और राजस्थान के बॉर्डर पर तो सुरक्षा बढ़ाई ही गई है, लेकिन किसानों को हरियाणा से ही नहीं आने दिया जा रहा है. हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार किसी भी तरह किसानों को रोकने की कोशिश कर रही है. इसके लिए कड़ाके की ठंड में कई जगहों पर वाटर कैंनन का इस्तेमाल किया गया. सोनीपत में रात में किसानों के ऊपर देर रात में पानी की बौछार की गई. जिस पर लोगों ने नाराजगी दर्ज की. दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मोदी सरकार पर सवाल उठाते हुए लिखा, ‘‘आज रोटी खाते वक्त याद रखना कि उस रोटी के लिए अन्न उगाने वाले अन्नदाता किसानों पर आपकी पुलिस ने रात को ये कहर ढाया है नरेंद्र मोदी जी! और किसान की ख़ता ये है कि वो अपनी व्यथा लेकर दिल्ली आना चाह रहा है.’’
किसानों को रोकने के लिए बुलाये गए अर्धसैनिक बलों पर स्वराज पार्टी के प्रमुख योगेंद्र यादव ने लिखा, ‘‘मोदी सरकार ने जवानों को किसानों के सामने लाकर खड़ा दिया.’’
दिल्ली तेनु देखेंगे!
सरकार किसानों को एकत्रित होने से रोकने की लगातार कोशिश कर रही है. जिसके कारण अलग-अलग जगहों पर किसानों का दल फंसा हुआ है. किसानों का एक दल दिल्ली के निकट पानीपत पहुंच चुका है. इस आंदोलन के साथ चल रहे स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया बताते हैं, ‘‘सोनीपत और दिल्ली बॉर्डर जिस तरह से बैरिकेड बनाया जा रहा है उससे बड़े-बड़े बैरिकेड थे जिसे किसानों ने तोड़ दिया है.’’
मनदीप कहते हैं, ‘‘किसान एक पावरफुल चीज के साथ चल रहा है वो है ट्रैक्टर. ट्रैक्टर ऐसी चीज है जो पहाड़ को भी खोदकर उसपर खेती किसानी कर सकते हैं. ऐसे में बैरिकेड तो छोटी मोटी बांधा है. ये हल-बैल वाले या बिना चप्पलों वाले किसान नहीं हैं. मोटी कमाई करने वाले ये किसान हरियाणा और पंजाब में अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं. एक तरह से जो ग्रामीण राजा हैं वो देश की सरकार को अपनी बात सुनाने आ रहे हैं. इन प्रदर्शनों में जो गाने बज रहे उसमें भी कहा जा रहा है कि दिल्ली तेनु देखेंगे यानी, हे दिल्ली के राजा अबकी गांव के राजा आ रहे हैं, तुम्हें हम देखेंगे. अभी जो स्थिति है उसके अनुसार कहें तो दिल्ली के सिंधु से पंजाब के शंभू बॉर्डर तक ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर देखने को मिलेंगे. कल करनाल में तीन हज़ार से छत्तीस सौ टैक्टर थे. किसान सिर्फ ट्रैक्टर ही नहीं साथ में टोचन भी लेकर आए हैं. टोचन तो किसान किसी ग्रह की कर दें यह तो फिर भी छोटी-मोटी बैरिगेड है.’’
किसानों को रोकने के लिए जिस तरह से प्रशासन सख्ती के साथ पेश आ रहा है. जगह-जगह वाटर कैनन का इस्तेमाल हो रहा है. इसका किसानों पर क्या असर हो रहा है. इस सवाल के जवाब में मनदीप न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘पानी से भिगोने के कारण तो बहुत ज़्यादा गुस्सा है. जिस भी ट्रैक्टर पर पानी पहुंच जा रहा है वो ही बैरिकेड पर सबसे पहले पहुंच रहा है और तोड़फोड़ कर रहा है. इतनी ठंड में कोई किसान भीगता है. वो भी बुजुर्ग किसान तो उसको सर्दी भी लगती है और बीमार होने के खतरे तो हैं ही. वाटर कैनन से भीगने के कारण किसानों में गुस्सा और फुट रहा है. किसान कह रहे हैं, हमें दिल्ली तक नहीं जाने दे रहे हैं और हम पर आंसू गैस के गोले और पानी का बौछार कर रहे हैं. किसानों को रोकने की सरकार की सख्त कोशिश उनकी नाराजगी को और बढ़ा रही है.’’
पंजाब में किसानों के प्रदर्शन को कवर कर रहे गांव कनेक्शन के पत्रकार अरविन्द शुक्ला न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘पंजाब की सरकार तो किसानों के साथ में है. किसानों के रहने का भी इंतज़ाम सरकार ने किया है. पुलिस भी कहीं किसानों नहीं रोक रही है. कहीं कोई बैरिकेडिंग नहीं है, बल्कि कई जगहों पर उनके खाने-पीने का भी इंतज़ाम किया गया है. हरियाणा पुलिस के जवान सरकारी आदेश का पालन कर रहे हैं और किसानों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी पता है कि किसान उनके ही परिजन और रिश्तेदार हैं. हरियाणा में वाटर कैनन का इस्तेमाल लगातार हो रहा है फिर भी किसान बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ रहे हैं. सरकार जिस सख्ती से निपटने की कोशिश कर रही है उससे किसानों में नाराजगी बढ़ती जा रही है. पंजाब के किसानों में जितनी नाराजगी मोदी सरकार से है उससे ज़्यादा अब लोग खट्टर सरकार से नाराज दिख रहे हैं. यहां खट्टर सरकार को लेकर नारे लग रहे हैं. हरियाणा में लोग उस हद तक नाराज़ नजर नहीं आ रहे हैं.’’
अरविन्द शुक्ला आगे कहते हैं, ‘‘इस कानून से नाराजगी मूलतः पंजाब और हरियाणा के किसानों में है. पंजाब के 70 प्रतिशत किसान मोदी सरकार से नाराज हैं. जो बड़ा किसान है, जिसके पास दो से पांच एकड़ से ज़्यादा जमीन है उसपर इस कानून का असर होगा. किसानों को लग रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बंद हो जाएगी. एमएसपी बंद हो जाएगी तो मंडियां बंद हो जाएगी. किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट से नाराज़ हैं. उन्हें डर है कि उनकी जमीनें कॉरपोरेट के कब्जे में आ जाएगी और वे ऐसा होने नहीं देना चाहते हैं. वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाह रहे हैं और इसलिए नाराजगी है.’’
नेशनल मीडिया के आरोपों से किसान नाराज़
कई टेलीविजन चैनल ने किसानों के आंदोलन को ही आरोपों के घेरे में खड़ा कर दिया. किसी ने किसानों को भटका हुआ बताया तो किसी ने इस प्रदर्शन के पीछे खालिस्तान का समर्थन देख लिया.
टीवी 9 भारतवर्ष ने अपने यहां यह तक लिख दिया कि खालिस्तान के निशाने पर अन्नदाता. पंजाब-हरियाणा के किसानों को खालिस्तान ने मोहरा बनाया.
ज़ी न्यूज़ ने अपने शो में किसानों के आंदोलन को डिजायनर प्रदर्शन बताते हुए स्लग चलाया गया. जिसमें लिखा गया, किसान आज़ाद कौन बर्बाद, किसानों के नफे से किसे नुकसान?, किसानों के नाम पर डिजायनर प्रदर्शन?
कई टीवी शो पर बहस का विषय किसान नहीं किसानों के पीछे कौन रहा. हालांकि यह पहली बार नहीं था जब किसी आंदोलन को डिस्क्रेडिट करने की कोशिश मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा की गई हो. इससे पहले कई दफा किसानों के प्रदर्शन को ऐसे ही दिखाया गया है. बीते साल नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली समेत देशभर में हुए प्रदर्शन के साथ भी ऐसा ही किया गया.
टीवी के इस कृत्य पर किसान क्या सोच रहे हैं. इस सवाल के जवाब में मनदीप बताते हैं, ‘‘टीवी पर जो दिखाया जा रहा है उसपर किसान बातचीत कर रहे हैं जिसका नतीजा यह हुआ कि कल करनाल में टीवी 9 भारतवर्ष के एक रिपोर्टर की बुजुर्ग किसानों ने हूटिंग कर दी. उसे भगा दिया. किसान टीवी 9 वालों से एक ही बात कह रहे हैं कि आप हमें अलग मानते हो. गांव वालों को कहां अपने जैसा मानते हो. हमें दोयम दर्जे का मानते ही हो तो हमें खालिस्तानी कह लो या कुछ भी कह लो. किसानों को फर्क नहीं पड़ रहा लेकिन इससे नाराजगी ज़रूर है.’’
दिल्ली में रैली धरना और प्रदर्शन करना सख्त मना है लेकिन चुनावी जीत का जश्न मनाया गया?
सिंधु बॉर्डर पर जगह-जगह एक पोस्टर लगा हुआ है. जिस पर तीन बार चेतावनी लिखने के बाद लिखा गया है कि आप सभी को सूचित किया जाता है कि कोविड-19 महामारी के कारण डीडीएमए द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार इस क्षेत्र में कोई भी रैली, प्रदर्शन या धरना करना सख्त मना है. उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी. यह आदेश एसएचओ अलीपुर द्वारा दिया गया है.
इस चेतावनी का मतलब है कि दिल्ली के अंदर कोविड-19 को देखते हुए किसी भी तरीके का धरना प्रदर्शन या रैली नहीं की जा सकती है. लेकिन हाल ही में कोरोना महामारी के बीच बिहार में न ही सिर्फ विधानसभा का चुनाव हुआ बल्कि जब वहां भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला तो दिल्ली में ही बीजेपी के कार्यालय पर जश्न का आयोजन किया गया. इस आयोजन में हज़ारों की भीड़ शामिल हुई और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई गईं यही नहीं इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पहुंचे थे.
तमाम लोग सवाल उठा रहे हैं कि जिस वक़्त दिल्ली में कोरोना के मामले आ रहे थे तब जीत के जश्न का आयोजन किया गया. दिल्ली बीजेपी के लोग घाट पर ही छठ पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन करते रहे. तब क्या कोई चेतावनी का बोर्ड पुलिस द्वारा लगाया गया. अगर नहीं तो अब क्यों? अगर कोरोना महामारी के बीच बीजेपी कार्यालय में जीत का जश्न मनाया जा सकता है तो आखिर क्यों उसी दिल्ली में किसान किसानों का प्रदर्शन करना गैरकानूनी बन गया. अगर यह गैरकानूनी है तो जश्न की रैली भी गैरकानूनी ही थी और अगर वह गैरकानूनी नहीं था तो किसानों का प्रदर्शन क्यों रोका जा रहा है और वह गैरकानूनी क्यों है.
हालांकि जिस तरीके का इंतजाम प्रशासन कर रहा है उसको देखते हुए यह लग रहा है कि शायद ही किसान दिल्ली पहुंच पाए. लेकिन जिस तरीके से किसान लगातार बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं उसे देखकर यह भी अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि किसान दिल्ली पहुंच जाएंगे.
Also Read: किसान के लिए आज करो या मरो की स्थिति!
दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर 'दिल्ली में आपका स्वागत है' का बोर्ड लगा है. उसके ठीक बगल में ट्रकों पर बालू और मिट्टी भरके रास्ता रोकने के लिए सड़कों पर खड़ा कर दिया गया है. थोड़ा आगे बैरिकेडिंग करके कुछ हिस्सों में कंटीली तारे लगाई जा चुकी है और कुछ हिस्सों में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के निर्देश पर लगाई जा रही है.
बैरिकेडिंग के आसपास केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सीमा सुरक्षा बल, रैपिड एक्शन फाॅर्स और दिल्ली पुलिस के सैकड़ों जवान मुस्तैदी से खड़े नज़र आते हैं. इन दलों के अधिकारी थोड़ी-थोड़ी देरी पर इन्हें आदेश देते नज़र आते हैं, इनका मकसद सिर्फ यह है कि कुछ भी करके प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश नहीं करने देना है. बीच-बीच में ड्रोन भी उड़ता नज़र आता है. शाम तक बॉर्डर का यह इलाका छावनी में तब्दील होता नज़र आने लगता है.
दोपहर में ही हरियाणा से दिल्ली आ रही गाड़ियों को सघन जांच के बाद ही आने दिया जा रहा था, लेकिन शाम होते-होते दोनों तरफ से आवाजाही बिल्कुल बंद कर दी गई. यह सब इंतज़ाम सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली पहुंचने वाले हैं.
देशभर के किसान यूनियन मोदी सरकार द्वारा बीते लोकसभा सत्र में पारित तीन कृषि कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020, को लेकर खफा है.
इन कानूनों से सबसे ज़्यादा नाराजगी पंजाब और हरियाणा के किसानों में दिख रही है. यहां के किसान कानून बनने के बाद से ही प्रदर्शन कर रहे हैं. पहले यह प्रदर्शन हरियाणा और पंजाब में ही हुआ. पंजाब में किसान सड़कों पर उतरे, लेकिन केंद्र सरकार अपने दावे पर अड़ी रही कि यह कानून किसानों के हित में है. पंजाब से ताल्लुक रखने वाली हरसिमरत कौर ने विरोध के ताव को देखते हुए केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया पर सरकार कानून में बदलाव करने को तैयार नज़र नहीं आई. किसानों ने पंजाब में अपना प्रदर्शन जारी रखा और 26-27 नवंबर को दिल्ली पहुंचने के लिए निकल गए ताकि केंद्र सरकार के करीब जाकर उन तक अपनी बात पहुंचाई जा सके.
दिल्ली से लगे हरियाणा और राजस्थान के बॉर्डर पर तो सुरक्षा बढ़ाई ही गई है, लेकिन किसानों को हरियाणा से ही नहीं आने दिया जा रहा है. हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार किसी भी तरह किसानों को रोकने की कोशिश कर रही है. इसके लिए कड़ाके की ठंड में कई जगहों पर वाटर कैंनन का इस्तेमाल किया गया. सोनीपत में रात में किसानों के ऊपर देर रात में पानी की बौछार की गई. जिस पर लोगों ने नाराजगी दर्ज की. दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मोदी सरकार पर सवाल उठाते हुए लिखा, ‘‘आज रोटी खाते वक्त याद रखना कि उस रोटी के लिए अन्न उगाने वाले अन्नदाता किसानों पर आपकी पुलिस ने रात को ये कहर ढाया है नरेंद्र मोदी जी! और किसान की ख़ता ये है कि वो अपनी व्यथा लेकर दिल्ली आना चाह रहा है.’’
किसानों को रोकने के लिए बुलाये गए अर्धसैनिक बलों पर स्वराज पार्टी के प्रमुख योगेंद्र यादव ने लिखा, ‘‘मोदी सरकार ने जवानों को किसानों के सामने लाकर खड़ा दिया.’’
दिल्ली तेनु देखेंगे!
सरकार किसानों को एकत्रित होने से रोकने की लगातार कोशिश कर रही है. जिसके कारण अलग-अलग जगहों पर किसानों का दल फंसा हुआ है. किसानों का एक दल दिल्ली के निकट पानीपत पहुंच चुका है. इस आंदोलन के साथ चल रहे स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया बताते हैं, ‘‘सोनीपत और दिल्ली बॉर्डर जिस तरह से बैरिकेड बनाया जा रहा है उससे बड़े-बड़े बैरिकेड थे जिसे किसानों ने तोड़ दिया है.’’
मनदीप कहते हैं, ‘‘किसान एक पावरफुल चीज के साथ चल रहा है वो है ट्रैक्टर. ट्रैक्टर ऐसी चीज है जो पहाड़ को भी खोदकर उसपर खेती किसानी कर सकते हैं. ऐसे में बैरिकेड तो छोटी मोटी बांधा है. ये हल-बैल वाले या बिना चप्पलों वाले किसान नहीं हैं. मोटी कमाई करने वाले ये किसान हरियाणा और पंजाब में अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं. एक तरह से जो ग्रामीण राजा हैं वो देश की सरकार को अपनी बात सुनाने आ रहे हैं. इन प्रदर्शनों में जो गाने बज रहे उसमें भी कहा जा रहा है कि दिल्ली तेनु देखेंगे यानी, हे दिल्ली के राजा अबकी गांव के राजा आ रहे हैं, तुम्हें हम देखेंगे. अभी जो स्थिति है उसके अनुसार कहें तो दिल्ली के सिंधु से पंजाब के शंभू बॉर्डर तक ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर देखने को मिलेंगे. कल करनाल में तीन हज़ार से छत्तीस सौ टैक्टर थे. किसान सिर्फ ट्रैक्टर ही नहीं साथ में टोचन भी लेकर आए हैं. टोचन तो किसान किसी ग्रह की कर दें यह तो फिर भी छोटी-मोटी बैरिगेड है.’’
किसानों को रोकने के लिए जिस तरह से प्रशासन सख्ती के साथ पेश आ रहा है. जगह-जगह वाटर कैनन का इस्तेमाल हो रहा है. इसका किसानों पर क्या असर हो रहा है. इस सवाल के जवाब में मनदीप न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘पानी से भिगोने के कारण तो बहुत ज़्यादा गुस्सा है. जिस भी ट्रैक्टर पर पानी पहुंच जा रहा है वो ही बैरिकेड पर सबसे पहले पहुंच रहा है और तोड़फोड़ कर रहा है. इतनी ठंड में कोई किसान भीगता है. वो भी बुजुर्ग किसान तो उसको सर्दी भी लगती है और बीमार होने के खतरे तो हैं ही. वाटर कैनन से भीगने के कारण किसानों में गुस्सा और फुट रहा है. किसान कह रहे हैं, हमें दिल्ली तक नहीं जाने दे रहे हैं और हम पर आंसू गैस के गोले और पानी का बौछार कर रहे हैं. किसानों को रोकने की सरकार की सख्त कोशिश उनकी नाराजगी को और बढ़ा रही है.’’
पंजाब में किसानों के प्रदर्शन को कवर कर रहे गांव कनेक्शन के पत्रकार अरविन्द शुक्ला न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘पंजाब की सरकार तो किसानों के साथ में है. किसानों के रहने का भी इंतज़ाम सरकार ने किया है. पुलिस भी कहीं किसानों नहीं रोक रही है. कहीं कोई बैरिकेडिंग नहीं है, बल्कि कई जगहों पर उनके खाने-पीने का भी इंतज़ाम किया गया है. हरियाणा पुलिस के जवान सरकारी आदेश का पालन कर रहे हैं और किसानों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी पता है कि किसान उनके ही परिजन और रिश्तेदार हैं. हरियाणा में वाटर कैनन का इस्तेमाल लगातार हो रहा है फिर भी किसान बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ रहे हैं. सरकार जिस सख्ती से निपटने की कोशिश कर रही है उससे किसानों में नाराजगी बढ़ती जा रही है. पंजाब के किसानों में जितनी नाराजगी मोदी सरकार से है उससे ज़्यादा अब लोग खट्टर सरकार से नाराज दिख रहे हैं. यहां खट्टर सरकार को लेकर नारे लग रहे हैं. हरियाणा में लोग उस हद तक नाराज़ नजर नहीं आ रहे हैं.’’
अरविन्द शुक्ला आगे कहते हैं, ‘‘इस कानून से नाराजगी मूलतः पंजाब और हरियाणा के किसानों में है. पंजाब के 70 प्रतिशत किसान मोदी सरकार से नाराज हैं. जो बड़ा किसान है, जिसके पास दो से पांच एकड़ से ज़्यादा जमीन है उसपर इस कानून का असर होगा. किसानों को लग रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बंद हो जाएगी. एमएसपी बंद हो जाएगी तो मंडियां बंद हो जाएगी. किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट से नाराज़ हैं. उन्हें डर है कि उनकी जमीनें कॉरपोरेट के कब्जे में आ जाएगी और वे ऐसा होने नहीं देना चाहते हैं. वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाह रहे हैं और इसलिए नाराजगी है.’’
नेशनल मीडिया के आरोपों से किसान नाराज़
कई टेलीविजन चैनल ने किसानों के आंदोलन को ही आरोपों के घेरे में खड़ा कर दिया. किसी ने किसानों को भटका हुआ बताया तो किसी ने इस प्रदर्शन के पीछे खालिस्तान का समर्थन देख लिया.
टीवी 9 भारतवर्ष ने अपने यहां यह तक लिख दिया कि खालिस्तान के निशाने पर अन्नदाता. पंजाब-हरियाणा के किसानों को खालिस्तान ने मोहरा बनाया.
ज़ी न्यूज़ ने अपने शो में किसानों के आंदोलन को डिजायनर प्रदर्शन बताते हुए स्लग चलाया गया. जिसमें लिखा गया, किसान आज़ाद कौन बर्बाद, किसानों के नफे से किसे नुकसान?, किसानों के नाम पर डिजायनर प्रदर्शन?
कई टीवी शो पर बहस का विषय किसान नहीं किसानों के पीछे कौन रहा. हालांकि यह पहली बार नहीं था जब किसी आंदोलन को डिस्क्रेडिट करने की कोशिश मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा की गई हो. इससे पहले कई दफा किसानों के प्रदर्शन को ऐसे ही दिखाया गया है. बीते साल नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली समेत देशभर में हुए प्रदर्शन के साथ भी ऐसा ही किया गया.
टीवी के इस कृत्य पर किसान क्या सोच रहे हैं. इस सवाल के जवाब में मनदीप बताते हैं, ‘‘टीवी पर जो दिखाया जा रहा है उसपर किसान बातचीत कर रहे हैं जिसका नतीजा यह हुआ कि कल करनाल में टीवी 9 भारतवर्ष के एक रिपोर्टर की बुजुर्ग किसानों ने हूटिंग कर दी. उसे भगा दिया. किसान टीवी 9 वालों से एक ही बात कह रहे हैं कि आप हमें अलग मानते हो. गांव वालों को कहां अपने जैसा मानते हो. हमें दोयम दर्जे का मानते ही हो तो हमें खालिस्तानी कह लो या कुछ भी कह लो. किसानों को फर्क नहीं पड़ रहा लेकिन इससे नाराजगी ज़रूर है.’’
दिल्ली में रैली धरना और प्रदर्शन करना सख्त मना है लेकिन चुनावी जीत का जश्न मनाया गया?
सिंधु बॉर्डर पर जगह-जगह एक पोस्टर लगा हुआ है. जिस पर तीन बार चेतावनी लिखने के बाद लिखा गया है कि आप सभी को सूचित किया जाता है कि कोविड-19 महामारी के कारण डीडीएमए द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार इस क्षेत्र में कोई भी रैली, प्रदर्शन या धरना करना सख्त मना है. उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी. यह आदेश एसएचओ अलीपुर द्वारा दिया गया है.
इस चेतावनी का मतलब है कि दिल्ली के अंदर कोविड-19 को देखते हुए किसी भी तरीके का धरना प्रदर्शन या रैली नहीं की जा सकती है. लेकिन हाल ही में कोरोना महामारी के बीच बिहार में न ही सिर्फ विधानसभा का चुनाव हुआ बल्कि जब वहां भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला तो दिल्ली में ही बीजेपी के कार्यालय पर जश्न का आयोजन किया गया. इस आयोजन में हज़ारों की भीड़ शामिल हुई और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई गईं यही नहीं इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पहुंचे थे.
तमाम लोग सवाल उठा रहे हैं कि जिस वक़्त दिल्ली में कोरोना के मामले आ रहे थे तब जीत के जश्न का आयोजन किया गया. दिल्ली बीजेपी के लोग घाट पर ही छठ पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन करते रहे. तब क्या कोई चेतावनी का बोर्ड पुलिस द्वारा लगाया गया. अगर नहीं तो अब क्यों? अगर कोरोना महामारी के बीच बीजेपी कार्यालय में जीत का जश्न मनाया जा सकता है तो आखिर क्यों उसी दिल्ली में किसान किसानों का प्रदर्शन करना गैरकानूनी बन गया. अगर यह गैरकानूनी है तो जश्न की रैली भी गैरकानूनी ही थी और अगर वह गैरकानूनी नहीं था तो किसानों का प्रदर्शन क्यों रोका जा रहा है और वह गैरकानूनी क्यों है.
हालांकि जिस तरीके का इंतजाम प्रशासन कर रहा है उसको देखते हुए यह लग रहा है कि शायद ही किसान दिल्ली पहुंच पाए. लेकिन जिस तरीके से किसान लगातार बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं उसे देखकर यह भी अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि किसान दिल्ली पहुंच जाएंगे.
Also Read: किसान के लिए आज करो या मरो की स्थिति!
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways TV anchors missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
‘You can burn the newsroom, not the spirit’: Kathmandu Post carries on as Nepal protests turn against the media