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ग्रामीण अर्थव्यवस्था के डाटा का संग्रह है इंडिया डाटा पोर्टल

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हो रही रिपोर्टिंग में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है डाटा. यह डाटा, अलग-अलग विषयों पर उपलब्ध है जो रिपोर्ट में सभी तथ्यों को पूरा करता है. इसी विषय पर न्यूज़लॉन्ड्री ने यह वेबिनार आयोजित की, जिसमें विस्तृत रूप से इस मुद्दे पर बात की गई.

इस वेबिनार में मेहमान के तौर पर आईआईटी दिल्ली की एसोसिएट प्रोफेसर और लेखक रीतिका खेड़ा, गांव कनेक्शन के एसोसिएट एडिटर अरविन्द शुक्ला, स्वतंत्र पत्रकार पुष्यमित्र, पीपल आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडियन से जुड़ीं पत्रकार मेधा काले और भारती इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में कम्युनिकेशन प्रमुख दीप्ती सोनी ने हिस्सा लिया. इस वेबिनार का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

दीप्ति शुरुआत में इंडिया डाटा पोर्टल के बारे में बताते हुए कहती हैं, “यह पोर्टल हर किसी के लिए खुला है, जिसे खासतौर से पत्रकारों की मदद के लिए बनाया गया है. इसके साथ ही शोधकर्ता और छात्र आदि के लिए भी यह पोर्टल बनाया गया है. पोर्टल पर मौजूद जानकारी भारत के 28 राज्यों और आठ केंद्र-शासित प्रदेशों के बारे में है, जो कि छह भाषाओं में उपलब्ध है. वहीं एग्रीकल्चर सेंसेस, सॉइल, रेन फॉल जैसे 40 अलग-अलग डाटा सेट इस वक्त पोर्टल पर मौजूद हैं. इन जानकारी को 45 से भी ज्यादा ग्राफ़िक्स या चित्र के रूप में उपयोग किया जा सकता है.

सत्र में आगे अतुल चौरसिया आंकड़ों पर रीतिका खेड़ा से सवाल करते हुए कहते हैं, "क्या सच में इस तरह के आकड़ों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हमारी मीडिया को सूचना सम्पन्न और उसकी रिपोर्टिंग को प्रभावशाली बनाने में मदद कर सकती है?"

इस पर रीतिका कहती हैं, "ये सवाल बहुत अहम है जो मुद्दे की जड़ तक जाता है. अगर देखा जाए तो पत्रकारों की पकड़ मुद्दे पर नहीं है. ऐसे में डाटा को जल्दबाजी में इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के तौर पर प्रजेंटेशन में बताया गया है कि कैसे मनरेगा में कितनों की मांग थी और कितने लोगों को काम मिला. यह सब सरकारी खेल है जो एमआईएस के डाटा में होता है और यह कब अपलोड किया जाएगा उसका किसी को पता नहीं."

इस विषय पर अतुल कहते हैं, "हम लम्बे समय से देख रहे हैं कि ग्रामीण पत्रकारिता, कभी पत्रकारिता में एक बीट हुआ करता थी और कृषि पत्रकारिता मुख्यधारा की पत्रकारिता से गायब हो गई है. मौजूदा समय में दूसरा पी साईनाथ जैसा नाम खोजना मुश्किल है. इससे दिखता है कि जो पत्रकारिता कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हुआ करती थी, वो लगातार खत्म हुई है."

मीडिया में कृषि पत्रकारिता की खत्म होती अहमियत पर अतुल, मेधा से पूछते है "ये जो दिक्कत है, कि पत्रकार और मीडिया हाउस कृषि बीट को एहमियत नहीं दे रहे हैं. क्या लगता है हमें इस पर फिर से ध्यान देना चाहिए. जिससे कृषि बीट को फिर से मजबूत किया जा सके?"

इस पर मेधा कहती हैं, "जब हम डाटा देखते हैं कि मनरेगा में इतने सारे जॉब धारक हैं लेकिन कितनों को जॉब कार्ड मिला है और कितनों को मना कर दिया गया इसका डाटा हमारी रिपोर्ट से गायब है. पहले जब पत्रकार ग्रामीण स्तर पर काम करते थे, तब वह गांव के लोगों की समस्याओं को समझते थे और जानते थे और उनकी वही जानकारी उस समय डाटा का स्वरूप ले लेती थी, लेकिन आज के समय में यह गायब हैं क्योंकि कोई भी गांव आधारित पत्रकारिता नहीं है."

इस वेबिनार में रोजगार और पत्रकरिता को लेकर जो बात निकलकर सामने आई उसमें निश्चित तौर पर इंडिया डाटा पोर्टल या इस तरह के आकड़े उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म पत्रकरिता को बड़ा सपोर्ट कर सकते हैं तथा रिपोटिंग को बहुत मजबूत कर सकते हैं.

इससे भी जो ज़रूरी खास बात है वो ये है कि मुख्य धारा की पत्रकारिता को ग्रामीण पत्रकारिता की अर्थव्यवस्था के इलाके पर ध्यान दें, इसमें निवेश करें और इसे मुख्य धारा की पत्रकारिता का हिस्सा समझें. क्योंकि ये भी इसी देश के लोग और देश का हिस्सा हैं. इनसे देश की नीतियां, जीडीपी और भी बहुत कुछ तय होता है.

देखें पूरा वीडियो-

Also Read: एक दिन रिया चक्रवर्ती के घर के बाहर: बार-बार उठी टेलीविज़न पत्रकारिता की अर्थी

Also Read: उत्तर प्रदेश के उन्नाव में संदिग्ध परिस्थितियों में मिली पत्रकार की लाश

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हो रही रिपोर्टिंग में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है डाटा. यह डाटा, अलग-अलग विषयों पर उपलब्ध है जो रिपोर्ट में सभी तथ्यों को पूरा करता है. इसी विषय पर न्यूज़लॉन्ड्री ने यह वेबिनार आयोजित की, जिसमें विस्तृत रूप से इस मुद्दे पर बात की गई.

इस वेबिनार में मेहमान के तौर पर आईआईटी दिल्ली की एसोसिएट प्रोफेसर और लेखक रीतिका खेड़ा, गांव कनेक्शन के एसोसिएट एडिटर अरविन्द शुक्ला, स्वतंत्र पत्रकार पुष्यमित्र, पीपल आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडियन से जुड़ीं पत्रकार मेधा काले और भारती इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में कम्युनिकेशन प्रमुख दीप्ती सोनी ने हिस्सा लिया. इस वेबिनार का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

दीप्ति शुरुआत में इंडिया डाटा पोर्टल के बारे में बताते हुए कहती हैं, “यह पोर्टल हर किसी के लिए खुला है, जिसे खासतौर से पत्रकारों की मदद के लिए बनाया गया है. इसके साथ ही शोधकर्ता और छात्र आदि के लिए भी यह पोर्टल बनाया गया है. पोर्टल पर मौजूद जानकारी भारत के 28 राज्यों और आठ केंद्र-शासित प्रदेशों के बारे में है, जो कि छह भाषाओं में उपलब्ध है. वहीं एग्रीकल्चर सेंसेस, सॉइल, रेन फॉल जैसे 40 अलग-अलग डाटा सेट इस वक्त पोर्टल पर मौजूद हैं. इन जानकारी को 45 से भी ज्यादा ग्राफ़िक्स या चित्र के रूप में उपयोग किया जा सकता है.

सत्र में आगे अतुल चौरसिया आंकड़ों पर रीतिका खेड़ा से सवाल करते हुए कहते हैं, "क्या सच में इस तरह के आकड़ों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हमारी मीडिया को सूचना सम्पन्न और उसकी रिपोर्टिंग को प्रभावशाली बनाने में मदद कर सकती है?"

इस पर रीतिका कहती हैं, "ये सवाल बहुत अहम है जो मुद्दे की जड़ तक जाता है. अगर देखा जाए तो पत्रकारों की पकड़ मुद्दे पर नहीं है. ऐसे में डाटा को जल्दबाजी में इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के तौर पर प्रजेंटेशन में बताया गया है कि कैसे मनरेगा में कितनों की मांग थी और कितने लोगों को काम मिला. यह सब सरकारी खेल है जो एमआईएस के डाटा में होता है और यह कब अपलोड किया जाएगा उसका किसी को पता नहीं."

इस विषय पर अतुल कहते हैं, "हम लम्बे समय से देख रहे हैं कि ग्रामीण पत्रकारिता, कभी पत्रकारिता में एक बीट हुआ करता थी और कृषि पत्रकारिता मुख्यधारा की पत्रकारिता से गायब हो गई है. मौजूदा समय में दूसरा पी साईनाथ जैसा नाम खोजना मुश्किल है. इससे दिखता है कि जो पत्रकारिता कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हुआ करती थी, वो लगातार खत्म हुई है."

मीडिया में कृषि पत्रकारिता की खत्म होती अहमियत पर अतुल, मेधा से पूछते है "ये जो दिक्कत है, कि पत्रकार और मीडिया हाउस कृषि बीट को एहमियत नहीं दे रहे हैं. क्या लगता है हमें इस पर फिर से ध्यान देना चाहिए. जिससे कृषि बीट को फिर से मजबूत किया जा सके?"

इस पर मेधा कहती हैं, "जब हम डाटा देखते हैं कि मनरेगा में इतने सारे जॉब धारक हैं लेकिन कितनों को जॉब कार्ड मिला है और कितनों को मना कर दिया गया इसका डाटा हमारी रिपोर्ट से गायब है. पहले जब पत्रकार ग्रामीण स्तर पर काम करते थे, तब वह गांव के लोगों की समस्याओं को समझते थे और जानते थे और उनकी वही जानकारी उस समय डाटा का स्वरूप ले लेती थी, लेकिन आज के समय में यह गायब हैं क्योंकि कोई भी गांव आधारित पत्रकारिता नहीं है."

इस वेबिनार में रोजगार और पत्रकरिता को लेकर जो बात निकलकर सामने आई उसमें निश्चित तौर पर इंडिया डाटा पोर्टल या इस तरह के आकड़े उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म पत्रकरिता को बड़ा सपोर्ट कर सकते हैं तथा रिपोटिंग को बहुत मजबूत कर सकते हैं.

इससे भी जो ज़रूरी खास बात है वो ये है कि मुख्य धारा की पत्रकारिता को ग्रामीण पत्रकारिता की अर्थव्यवस्था के इलाके पर ध्यान दें, इसमें निवेश करें और इसे मुख्य धारा की पत्रकारिता का हिस्सा समझें. क्योंकि ये भी इसी देश के लोग और देश का हिस्सा हैं. इनसे देश की नीतियां, जीडीपी और भी बहुत कुछ तय होता है.

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