Newslaundry Hindi
क्या महागठबंधन की हार में ओवैसी वोट-कटवा हैं?
अब जब बिहार विधानसभा चुनाव के सभी नतीजे आ चुके हैं और फिलहाल राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाला महागठबंधन नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने में चूक गया है, तब अलग-अलग नजरिए से नतीजे का विश्लेषण शुरू हो चुका है.
इस चुनाव में सबसे बड़ी बात रही तेलंगाना, हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) द्वारा पांच सीटों पर जीत हासिल करना. आनन फानन में सोशल मीडिया के धुरंधरो और राजनीतिक पंडितों ने घोषित कर दिया कि एनडीए की जीत के ज़िम्मेदार ओवैसी हैं. वो भाजपा की बी टीम हैं. उन्होंने मुसलमानों के वोट बांट दिए और इस वजह से महागठबंधन की हार हो गयी. सोशल मीडिया पर यही सब चलने लगा. ये बात अब आम हो चुकी है कि ओवैसी हर चुनाव में गैर भाजपा दलों के लिए आसान पंचिंग बैग बन गए हैं.
क्या सच में ओवैसी ने मुसलमानों के वोट काट कर महागठबंधन को हराने में भूमिका निभाई है?
चुनावी परिणाम के आंकड़ों को देखा जाये तो यह बात सिरे से गलत साबित होती है. ओवैसी ने एक अलग गठबंधन बनाया था जिसमें बहुजन समाज पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी शामिल थी. इसमें मात्र बसपा एक सीट जीत पायी जबकि ओवैसी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की.
ओवैसी ने कुल 20 सीटों पर चुनाव लड़ा इसमें से पांच सीट वो जीत गए. ये सीट हैं अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचादमन. इसमें मात्र जोकीहाट सीट पर दूसरे नंबर पर राजद रही और बाकी चार सीटों पर एनडीए के साथ उनका सीधा मुकाबला हुआ. इसका सीधा मतलब यही हैं कि बाकी चार सीटों पर महागठबंधन का कोई मतलब नहीं रहा. अमौर में दूसरे नंबर पर जनता दल (यूनाइटेड), बहादुरगंज में एनडीए का घटक दल विकासशील इन्साफ पार्टी, बायसी में भाजपा, और कोचादमन में जनता दल (यूनाइटेड) है.
अब बाकी बचीं 15 सीट जहां पर ओवैसी की पार्टी लड़ी और चुनाव हार गयी है. इनमें से एनडीए को छह सीट पर जीत हासिल हुई जिसमें भाजपा को तीन, जनता दल (यूनाइटेड) को दो और वीआईपी को एक सीट मिली है.
अब इन छह सीटों को फिर से देखिये. इनमें से कोई भी सीट ऐसी नहीं हैं जहां पर महागठबंधन सिर्फ इस वजह से हार गया हो कि ओवैसी की पार्टी ने वोट काट दिया. साहेबगंज सीट वीआईपी ने जीती और दूसरे नंबर पर राजद है. यहां पर जीत का अंतर 15,333 वोट हैं जबकि ओवैसी की पार्टी ने मात्र 4,055 वोट प्राप्त किये.
दूसरी सीट छातापुर है, जहां भाजपा जीती और दूसरे नंबर पर राजद है. जीत का अंतर हैं 20,635 वोट और ओवैसी को मिले मात्र 1,990 वोट. तीसरी सीट नरपतगंज है. भाजपा ने राजद को 28,610 के अंतर से हराया और ओवैसी के कैंडिडेट को मिले सिर्फ 5,495 वोट.
चौथी सीट है प्राणपुर, जहां भाजपा ने कांग्रेस को हराया और ओवैसी के कैंडिडेट को मिले सिर्फ 508 वोट. पांचवीं सीट है बरारी सीट जो जनता दल (यूनाइटेड) ने जीती और राजद दूसरे स्थान पर रहा. यहां पर अंतर 10,438 का रहा लेकिन ओवैसी के उम्मीदवार को मात्र 6,598 वोट मिले. और अंत में है, रानीगंज सीट, जहां पर जनता दल (यूनाइटेड) ने राजद को 2,304 वोट से हराया और ओवैसी को मिले 2,412 वोट. यही एक ऐसी सीट हैं जहां पर जीत का अंतर ओवैसी के उम्मीदवार को मिले वोट से कम है.
तो आंकड़ों की रोशनी में आप दावे से कह सकते हैं कि सिर्फ एक इसी सीट का नुकसान महागठबंधन को ओवैसी की वजह से हुआ है. लेकिन इसी सीट पर पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (लोकतान्त्रिक), चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और एक निर्दलीय को भी ओवैसी की पार्टी से ज़्यादा वोट मिले. यहां तक नोटा में भी इन सबसे ज़्यादा वोट हैं. लेकिन इन सबको किसी ने वोटकटवा नहीं कहा.
अब बचती हैं नौ सीट जहां पर ओवैसी के कैंडिडेट रहने के बावजूद महागठबंधन के उम्मीदवार जीत गए. इसमें कांग्रेस ने चार, राजद ने तीन और सीपीआई (माले) ने दो सीट जीती हैं. इन नौ सीटों पर ओवैसी को वोट कटवा कहा ही नहीं जा सकता है.
पिक्चर साफ़ है. सिर्फ एक सीट रानीगंज ऐसी है जहां पर ओवैसी के कैंडिडेट को जीत के अंतर से अधिक वोट मिले और वो एनडीए ने जीती. इसीलिए सिर्फ ओवैसी और उनकी पार्टी को दोष देना, मुसलमानों ने वोट नहीं दिया, ये सोचना तथ्यों से परे है. आंकड़े साफ़ बताते हैं कि बहुत सी सीटों पर मुसलमानों ने महागठबंधन को ज़्यादा वोट दिया है जबकि वहां पर ओवैसी का मुस्लिम कैंडिडेट मौजूद था. जैसे शेरघाटी सीट राजद की मंजू अग्रवाल ने जीती और एमआईएम के मसरूर आलम मात्र 14,951 वोट पाए. वो लड़ाई में कहीं नहीं थे.
अररिया में कांग्रेस के मुस्लिम कैंडिडेट को एक लाख से ज़्यादा वोट मिले और ओवैसी के कैंडिडेट को मात्र 8,924 वोट. ये सीट कांग्रेस ने जीती. क़स्बा सीट से कांग्रेस के मुस्लिम कैंडिडेट मोहम्मद आफ़ाक़ आलम ने 77,410 वोट पाकर जीत दर्ज की और एमआईएम के शाहबाज़ को मात्र 5,316 वोट मिले.
यहां तक कि किशनगंज में एमआईएम के सिटिंग विधायक कमरुल हुदा थे, जिनको 41,904 वोट मिले. यहां पर कांग्रेस के इजहारुल हुसैन ने 61,078 वोट पाकर जीत दर्ज की. मतलब मुसलमानों ने कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार को ज़्यादा पसंद किया. सिकता सीट पर लेफ्ट के बीरेंद्र प्रसाद गुप्ता को 49,075 वोट मिले और वो जीत गए जबकि ओवैसी के मुस्लिम कैंडिडेट रिज़वान रियाजी को मात्र 8,519 वोट मिले. इसी तरह ठाकुरगंज में भी राजद के मुस्लिम कैंडिडेट सऊद आलम जीते और एमआईएम के महबूब आलम चुनाव हार गए.
इससे साफ़ हैं की ओवैसी के मुस्लिम उम्मीदवारों को हर जगह वोट नहीं मिला हैं. और यह कहना पूरी तरह से गलत है कि महागठबंधन सिर्फ ओवैसी के वोट काटने की वजह से हार गया. असलियत इससे परे है और वो चुनावी हार जीत की गहमा-गहमी में खो जाती है.
Also Read
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
‘Vote after marriage’: Around 70 lakh eligible women voters missing from UP’s electoral rolls
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
‘Need to reclaim Constitution’: The Karnataka civil society groups safeguarding democracy