Newslaundry Hindi
नीतीश कुमार से 2010 के भोज-भंग का बदला पीएम मोदी इतने निर्मम तरीके से लेंगे यह नहीं सोचा था!
28 अक्टूबर के अपने बिहार के चुनावी भाषण में राजद नेता तेजस्वी पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जब उन्हें ‘जंगल का युवराज’ कहा तब मुझे अटपटा लगा. यह सही है कि प्रधानमंत्री ने अपने स्तर से हमला जैसा ही कुछ किया होगा. उनके मन में यह भी होगा कि मैंने कोई बहुत गंभीर हमला कर दिया है और तेजस्वी इसे सम्भाल नहीं पाएंगे.
मैंने जब सुना तब मेरी प्रतिक्रिया भी यही रही कि प्रधानमंत्री क्या अब इस निचले स्तर पर उतर कर बात करेंगे? इसलिए शाम में एक पत्रकार ने इस बाबत जब मुझ से मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही तब मैंने यही कहा कि ऐसा बोल कर प्रधानमंत्री ने अपना मान गिराया है. उन्होंने अपने भाषण में तेजस्वी को अंडरलाइन (रेखांकित) कर निश्चित रूप से उसका मान बढ़ाया है.
देर रात तक प्रधानमंत्री का भाषण और चेहरा मेरे ध्यान में बना रहा. प्रधानमंत्री को मवालियों की भाषा में भाषण नहीं देना था. वह गलत कर रहे हैं. उनका चेहरा भी मुझे अटपटा लगा. अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी में वह बिहार के एक हिंसक संगठन रणवीर सेना के संस्थापक दिवंगत ब्रम्हेश्वर मुखिया जैसे नजर आने लगे हैं. बिहार में उन्हें इस धज की जरूरत महसूस हुई होगी. उन्हें यह भी लगता होगा कि यह दाढ़ी अधिक बढ़ कर अगले वर्ष तक रवीन्द्रनाथ टैगोर की तरह हो जाएगी. और तब वह बंगाल में टैगोर की प्रतिमूर्ति नजर आएंगे. जो हो, फिलहाल उनकी दाढ़ी उन पर बिलकुल अप्रासंगिक और फिजूल लगती है.
लेकिन स्थिर चित्त हो कर उनके भाषण के बारे में जब गहराई से सोचा, तब उसका एक अलग अर्थ प्रस्फुटित हुआ. इस अर्थ के खुलने के साथ ही अपने प्रधानमंत्री पर थोड़ा गुमान हुआ. यह तो है कि उनकी पढ़ाई-लिखाई चाहे जितनी और जैसी भी हुई है, इन दिनों वह ‘काबिल’ लोगों के साथ रहते हैं और ‘सत्संग’ का कुछ असर तो पड़ता ही है.
जंगल का युवराज. कितना खूबसूरत शब्द विन्यास है. अर्थ भी उतने ही गहरे हैं. जंगल का राजा, यानी शेर. जंगल का युवराज, यानी युवा सिंह शावक. इसमें बुरा क्या है? कितनी खूबसूरत उपमा है! सचमुच प्रधानमंत्री खूब तैयारी कर के आए थे. निश्चय ही उन्होंने कालिदास का नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ हाल में ही पढ़ा या दोहराया है. यह शब्द-युग्म निश्चय ही वहीं से मिला होगा.
नाटक के सातवें अंक में दुष्यंत जंगल जाते हैं. शकुंतला को पहचानने से उसने इंकार कर दिया था. इसलिए कि उसे दी गई अंगूठी शकुंतला ने खो दी थी और एक ऋषि के शाप के कारण दुष्यंत अपना अभिज्ञान खो देते हैं. वह शकुंतला को नहीं पहचान पाते. अपमानित शकुंतला ने जाने कितने कष्ट झेले. अंततः वह मारीच ऋषि के आश्रम में आती है और वहां अपने बेटे को पालती है. जंगल में आए हुए दुष्यंत की नजर अचानक एक ऐसे बच्चे पर पड़ती है जो सिंह शावकों से खेल रहा है. दुष्यंत का आकर्षण बच्चे के प्रति बढ़ता है. अंततः उसे पता चलता है कि यह तो मेरा ही बेटा है. एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद दुष्यंत और शकुंतला का मिलन होता है और जंगल का युवराज भरत पूरे देश का युवराज हो जाता है. उसके नाम पर ही इस देश का नाम भारत होता है.
प्रधानमंत्री जी आप सचमुच महान हो. नीतीश कुमार की जड़ें इतने तरीके से काट सकोगे, मुझे उम्मीद नहीं थी. आप की होशियारी लाजवाब है. 2010 के भोज-भंग का बदला आप इतने निर्मम तरीके से करोगे, यह नहीं सोचा था. इसे ही कहते हैं दृढ़-निश्चयी.
(साभार जनपथ)
Also Read
-
Adani met YS Jagan in 2021, promised bribe of $200 million, says SEC
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
What’s Your Ism? Kalpana Sharma on feminism, Dharavi, Himmat magazine
-
मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग ने वापस लिया पत्रकार प्रोत्साहन योजना
-
The Indian solar deals embroiled in US indictment against Adani group