Newslaundry Hindi
अनलॉक के साथ ही शहरों की आबोहवा में प्रदूषण भी हुआ “अनलॉक”
लॉकडाउन के पहले तीन चरणों में ( 25 मार्च, 2020 से) प्रदूषण के स्तर में गिरावट देखी गई है. अमेरिका के सैटेलाइट सेंसर नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने एरोसोल का अवलोकन किया और पाया की उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में पिछले 20 सालों के मुकाबले इस वर्ष एरोसोल सबसे निचले स्तर पर हैं. एरोसोल हवा में निलंबित छोटे, ठोस और तरल कण होते हैं जो मनुष्य के फेफडों और दिल को नुकसान पहुंचाते हैं. नासा की सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती हैं की लॉकडाउन के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों में प्रदूषण कम हुआ है.
यूरोपियन स्पेस एजेंसी की तस्वीरों ने दिखाया है की उत्तरी इटली और स्पेन में लॉकडाउन लागू होने के बाद गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन अब जैसे-जैसे अनलॉक लागू हो रहा है आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है और उत्सर्जन बढ़ रहा है, वैसे ही प्रदूषण के स्तर में फिर से पर्याप्त वृद्धि देखी गई है. शुरुआती लॉकडाउन चरणों में प्रदूषण का स्तर औसतन कम देखा गया. इसी के चलते एक प्रासंगिक सवाल उठता है कि एक बार अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने पर हवा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए? यह ज्वलंत सवाल हाल ही में प्रकाशित “क्लीन एयर ब्ल्यू स्काइज, एयर पाल्यूशन डयूरिंग ए समर ऑफ लॉकडाउन” रिपोर्ट में उठाया गया है. ध्यान रहे कि यह रिपोर्ट गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने प्रकाशित की है.
रिपोर्ट के शोधकर्ता अनुमिता रायचौधरी और अविकल सोमवंशी ने बताया कि इस दौरान, कोरोना काल ने लोगों की मानसिकता को भी उजागर किया है. किसी भी स्वास्थ्य समस्या के तात्कालिक नियंत्रण के लिए कठिन उपायों को अपनाने के लिए सामूहिक रूप से समर्थन मिलता है लेकिन वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली या संबंधित बीमारियों के बारे में सहजता से कोई नहीं सोचता है और ना ही प्रदूषण से होने वाले जोखिमों को कोई भी गंभीरता से लेता है.
वह कहते हैं कि भारत में वायु प्रदूषण से 12 लाख लोग बीमारियों की वजह से मर जाते हैं. लेकिन वायु प्रदूषण के जोखिमों की जागरूकता की लोगों के बीच बहुत कमी देखने को मिली है, जैसे कोरोना महामारी के तौर पर एक उदाहरण देखा जा सकता है, लोगों के मन में कोविड-19 का भय है जो की जायज भी है जिससे पार पाने के लिए सभी उपायों को अपनाने लगे. सर्दियों के दौरान जब दिल्ली और एनसीआर में गंभीर स्मॉग बढ़ने लगता है तब ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू किया जाता है.
इस प्लान के लागू होने से यह उद्योगों को अस्थायी रूप से बंद करता है, पारंपरिक ईंट भट्टों, निर्माण कार्य, ट्रक वाहनों पर रोक लग जाती है. इस तरह के प्लान या कानून को जनता का स्ट्रांग रिएक्शन झेलना पड़ता है उनके मुताबिक इस तरह के उपाय बहुत ही असुविधाजनक हैं. कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन ने लोगों की आंखें खोल दी हैं. अब लोग शुद्ध और सांस लेने योग्य हवा को महसूस कर सकते हैं. वर्तमान में लोग गवाह हैं यदि जरूरी परिवर्तन और सुरक्षा प्रणाली के उपायों को अपनाया जाए तो वायु प्रदूषण में सुधार हो सकता है.
रिपोर्ट के शोधकर्ताओं ने बताया कि वैज्ञानिकों ने महामारी और वायु प्रदूषण के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित किया है. उन्होंने चेतावनी दी है की जिन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण ज्यादा है, वहां महामारी बदतर हो सकती है. जैसा की फेफड़े और पूरे स्वास्थ्य के साथ लोग पहले से ही वायु प्रदूषण के साथ समझौता करते आए हैं लेकिन कोरोना वायरस से जोखिम अधिक है. गंदी हवा प्रदूषित क्षेत्रों में कोविड-19 मामलों को तेज कर सकती है. ध्यान रहे कि वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से देश ही नहीं पूरी दुनिया ही व्यापार, रोजगार से लेकर आर्थिक स्तर पर मार झेल रहे हैं. सार्वजनिक रूप से भारत सहित पूरी दुनिया में ही अपने आप ही आपातकाल लग गया है और यह लगातार जारी है.
यही नहीं मानवतावादी अविश्वनीय पैमाने का संकट भी कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुआ. यह बहुत ही असाधारण काल है. लेकिन लॉकडाउन के दौरान यह देखा गया है कि वायु स्तर को पिछले कई सालों के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर देखा गया. लॉकडाउन के दौरान आर्थिक बंदी होने के चलते वायु प्रदूषण भी बहुत कम हुआ है. पहले, जहां आसमान में स्मॉग दिखाई देता था, वहीं वर्तमान में नीले साफ बादल दिख रहे हैं. वायु प्रदूषण के घटते स्तर से हम शुद्ध हवा का भी अंदाजा लगा सकते हैं.
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन जैसे प्रयास किए गए जिससे आर्थिक संकट तो बहुत देखने को मिल रहा है लेकिन दूसरी तरफ वायु प्रदूषण में गिरावट दर्ज की गई है. इससे 2020 की गर्मी निस्संदेह अलग लग रही है. इस दौरान लोगों की नियमित गतिविधियों में एक बदलाव देखने को मिला है. इस कोरोना संकट काल में सामाजिक और कार्य स्थल का महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है. हालांकि, अब पहले की तरह लोगों ने वाहनों का इस्तेमाल करना बहुत कम किया है और कुछ दूरी तय करने के लिए पैदल चलना उचित समझते हैं. विनिर्माण और निर्माण कार्य बंद हो गए हैं. हालांकि, अभी बिजली संयंत्रों, कुछ यातायात के रेगुलर उपयोग से, वेस्ट मटेरियल जलाने से प्रदूषण अभी भी जारी है.
यहां उम्मीद की जा रही है की वायु प्रदूषण की गंभीरता के बारे में लोगों के बीच अधिक जागरूकता होनी चाहिए. वर्तमान में इस तरह के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात काल के लिए लंबे समय के उपायों के साथ- साथ मजबूत समुदाय और राजनीतिक समर्थन की जरूरत है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
Also Read
-
Rajiv Pratap Rudy on PM’s claims on ‘infiltrators’, ‘vote-chori’, Nishikant Dubey’s ‘arrogance’
-
Unchecked hate speech: From Kerala's right wing X Spaces to YouTube’s Hindutva pop
-
यूपी की अदालत ने दिया टीवी एंकर अंजना ओम कश्यप पर मामला दर्ज करने का आदेश
-
UP court orders complaint case against Anjana Om Kashyap over Partition show
-
The meeting that never happened: Farewell Sankarshan Thakur