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‘कोरोना’ के बाउंसर से घायल हुई मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री
कोरोना महामारी के कारण बुरी तरह से प्रभावित होने वाले उद्योगों में ‘खेल उद्योग’ भी शामिल है. लॉकडाउन के बाद खेल गतिविधियों पर लागू प्रतिबंध के चलते स्टेडियम बंद पड़े हैं, बड़े खेल आयोजन रद्द हो गए हैं. इसका असर दुनिया भर के खेल उद्योग खासकर आउटडोर गेम के उद्योग पर पड़ा है. भारतीय खेल उद्योग भी इसके चलते आर्थिक संकट में फंस गया है. आलम यह है कि आईपीएल शुरू होने के बाद भी इस उद्योग में खास तेजी नहीं आई है. इसका एक कारण इस साल आईपीएल का खाली स्टेडियमों में और दुबई में खेला जाना भी है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक शहर है मेरठ. दो बड़ी नदियों गंगा और यमुना के बीच बसा हुआ मेरठ कई मायनों में ऐतिहासिक है. 10 मई, 1857 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सैनिक बैरकों में हुए विद्रोह का बिगुल मेरठ छावनी से शुरू हुआ था. इसके अलावा भी मेरठ अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है. इन्हीं में से एक है मेरठ का ‘खेल उद्योग’. खेल से जुड़े साजो-सामान के लिए मेरठ देश ही नहीं दुनिया भर में भारत की “स्पोर्टस सिटी” के नाम से मशहूर है. खेल उद्योग से जुड़ी यहां हजारों छोटी-बड़ी इकाइयां हैं. यहां बने खेल के साजो-सामान, खासकर “इंग्लिश विलो” से बनने वाले क्रिकेट बल्लों की दुनिया भर में जबरदस्त मांग रहती है.
लेकिन कोरोना वायरस के बाद हुए विश्वव्यापी लॉकडाउन ने मेरठ स्पोर्ट्स इंडस्ट्री का विकेट उखाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कोरोना की मार से यह उद्योग भी बच नहीं सका. सामान की आवाजाही पर रोक लग जाने और सप्लाई चैन रुकने से कारोबार ठप हो गया है. इससे छोटे-बड़े सभी व्यापारी प्रभावित हुए. हर साल आईपीएल का सीजन इस उद्योग के लिए एक सरप्राइज की तरह आता था. इसके शुरू होते ही खेल के मैदानों पर युवाओं, बच्चों की भीड़ उमड़ जाती थी. इससे लोकल मार्केट में क्रिकेट के सामानों की जमकर बिक्री होती थी. मगर कोरोना वायरस के चलते आईपीएल विदेश में पहुंचने से इस इंडस्ट्री की रही सही उम्मीदें भी धूमिल हो गई हैं.
कोरोना वायरस से इन व्यापारियों को कितना नुकसान हुआ और इससे कैसे और कितने समय में उभरा जा सकता है, इसका आकलन करने के लिए हमने मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री का जायजा लिया.
प्रीमियर लैगार्ड वर्क्स
दिल्ली रोड पर स्थित है ‘प्रीमियर लैगार्ड वर्क्स’. यह कंपनी 50 साल से ज्यादा समय से क्रिकेट के साजो-सामान बनाने के लिए मशहूर है. यहां के बने क्रिकेट संबंधी उपकरण आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, इंग्लैण्ड सहित दुनिया भर में निर्यात किए जाते हैं.
यहां हमारी मुलाकात इस कम्पनी के मालिक सुमनेश अग्रवाल से हुई, सुमनेश इस धंधे में पुश्तैनी जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया, “कोरोना के बाद हमारे धंधे में कम से कम 50 फीसदी की कमी आई है. यह कमी इससे ज्यादा भी हो सकती है. क्योंकि इस उद्योग का मुख्य सीजन फरवरी-मार्च में होता है, जब हमें दुनिया भर से ऑर्डर मिलते हैं. हमें ऑर्डर तो मिल गए थे लेकिन एन मार्च महीने में लॉकडाउन होने से सारा माल स्टॉक पड़ा हुआ है. अब वो लोग उसे मंगाएंगे, इसकी गारंटी नहीं है.”
सुमनेश आगे बताते हैं, “हम अपने बल्लों को बनाने के लिए “इंग्लिश विलो” लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं, जो इंग्लैण्ड से मंगाते हैं. लॉकडाउन के बाद वह भी नहीं आई. आगे ऑस्ट्रेलिया से ऑर्डर का सीजन आ रहा है. देखते हैं वो आता है या नहीं. भारतीय मार्केट को पूरा खुलने में कम से कम नौ महीने लगेंगे. उससे पहले नहीं खुल पाएगी. हमारे धंधे पर ज्यादा असर इसलिए भी पड़ेगा क्योंकि खेल लोगों की प्राथमिकताओं में बहुत बाद में आता है. हर इंसान को पहले रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए. हम एक साल पीछे चले गए हैं. 2020 तो गया.”
सुमनेश आगे बताते हैं, “और भी दिक्कतें हैं मसलन हमें सरकार ने जीएसटी का रिफंड भी नहीं दिया है. इसके चलते सैलरी आदि देने में परेशानी हो रही है, छंटनी करनी पड़ सकती है. जो मजदूर लॉकडाउन में वापस चले गए थे, उन्हें भी हमने नहीं बुलाया है.”
सुमनेश हमें अपनी फैक्ट्री के अंदर ले जाकर दिखाते हैं. वहां बड़ी मात्रा में बना और अधबना माल स्टॉक में रखा हुआ था. जो मार्च में जाना था. अनलॉक के बाद कुछ शुरू हुआ है. हमारे सामने ही इंग्लिश विलो लकड़ी का एक ट्रक आया हुआ था. सारे कारीगर उसी सामान को उतारने में लगे हुए थे.
इस मौके पर सुमनेश हमारे सामने एक चौंकाने वाली जानकारी उजागर करते हैं. उन्होंने हमें बताया कि कोरोना के चलते इंडोर गेम के व्यापारियों का काम तेज हो गया है. उनका काम 10 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया है, बल्कि लॉकडाउन में उन्होंने अपने सामान कई गुना मंहगे दामों में भी बेचा.
दिल्ली रोड पर हमने और भी कई फैक्ट्रियों में जाकर इन उद्योगों से जुड़े लोगों से बात करने की कोशिश की. लेकिन ज्यादातर लोगों ने टाइम या मीटिंग की बात कह कर पीछा छुड़ा लिया. ऐसे कई लोगों से संक्षिप्त बातचीत में यही निकल कर आया कि कोरोना के चलते उनके धंधे पर काफी फर्क पड़ा है.
सूरजकुंड रोड
मेरठ के सूरजकुंड रोड को “खेल मार्केट” के नाम से भी जाना जाता है. यहां खेल के सामानों की सैकड़ों दुकानें हैं, जिनमें से कुछ आजादी से पहले की हैं. यहां से देश-विदेश में खेल के सामानों की आपूर्ति की जाती है.
एमिट्को स्पोर्ट्स इंडस्ट्री
दिल्ली रोड के बाद हमारा अगला पड़ाव सूरजकुंड मार्केट था. यहां सबसे पहले हमारी मुलाकात “एमिट्को स्पोर्ट्स इंडस्ट्री” के मैनेजर सौरभ तनेजा उर्फ सन्नी से उनके शोरूम में हुई. उनकी सूरजकुंड में खेल सामानों की तीन बड़ी दुकानों के अलावा परतापुर में लेदर बॉल, किट, बैट, गोलपोस्ट आदि बनाने की फैक्ट्री है. वे 1993 से इस व्यापार में हैं और इंडोर और आउटडोर दोनों खेलों के सामान बेचते हैं.
लॉकडाउन इफेक्ट के बारे में सौरभ बताते हैं, “हमारा काम ऑल इंडिया लेवल के साथ ही सरकारी टेंडर लेने का भी है. लॉकडाउन में सब कुछ बंद होने के कारण हमारे शो-रूम भी बंद रहे, जिससे काम पर बहुत ज्यादा असर पड़ा. अब कुछ सुधार तो हुआ है लेकिन पिछले साल से तुलना करें तो धंधा आधा हो गया है. फुटकर व्यापारी भी सामान लेने नहीं आ रहे हैं. आईपीएल का भी कोई खास असर नहीं पड़ा है.” लेकिन इंडस्ट्री के भविष्य के बारे में सौरभ को उम्मीद है कि ये उद्योग और ज्यादा तेजी से वापसी करेगा.
सौरभ कहते हैं, “आने वाले कुछ समय में स्पोर्टस बहुत ज्यादा चलने वाला है क्योंकि लोग भरे बैठे हैं, खाली बैठ कर बोर हो चुके हैं. लेकिन पूरी तरह से हालत कोरोना वैक्सीन आने पर ही नॉर्मल होगी.”
छंटनी के बारे में सौरभ ने बताया, “हमारे यहां से एक भी लड़के को नहीं निकाला गया है. जब बिल्कुल लॉकडाउन था तब जरूर हमने उन्हें आधी सैलरी दी थी, अब फिर से उन्हें पूरी सैलरी दे रहे हैं.”
हमें उन्होंने अपना तीन मंजिलों वाला शोरूम भी दिखाया. वहां काम करने वाले एक लड़के ने बताया कि पहले आपको यहां पैर रखने की जगह नहीं मिलती, लेकिन अब देखो यह खाली पड़ा रहता है.
एक्सीलेंट स्पोर्टस इंडस्ट्री
खेल व्यापार से जुड़े ‘एक्सीलेंट स्पोर्टस इंडस्ट्री’ के मालिक विभोर अग्रवाल का शोरूम 42 साल से सूरजकुंड रोड पर है. ये देश के अलावा नेपाल, श्रीलंका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों को खेल के सामान सप्लाई करते हैं. जिस वक्त हमारी उनसे मुलाकात हुई, वो ग्राहकों से घिरे हुए थे. कोरोना के प्रति सावधानी के तौर पर अपने डेस्क के चारों ओर एक निश्चित दूरी तक रस्सी से हदबंदी की हुई थी. अंदर आने वाले हर शख्स (जिनमें हम भी शामिल थे) के हाथ सैनेटाइज किए जा रहे थे.
कोरोना के बारे में बात करते हुए विभोर कहते हैं, “ऐसा पेन्डमिक जीवन में कभी नहीं आया. उम्मीद करते हैं कि आगे भी कभी न आए. स्पोर्टस इंडस्ट्री को बहुत मेजर नुकसान हुआ है. जो छोटा रिटेलर है, वह तो बिल्कुल बेकार हो गया. हालांकि हमारे पास लॉकडाउन में भी थोड़ा-बहुत काम था. हमने इंडोर गेम्स पर काफी काम किया लेकिन जितने भी आउटडोर गेम हैं उसका बहुत लॉस है. जैसे-जैसे देश, विदेश खुल रहा है, इंडस्ट्री रिवाइव कर रही है. बाहर से भी ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं, लोग भी खेलना शुरू कर रहे हैं. तो रिवाइव तो हो रहा है लेकिन उसका रेट थोड़ा स्लो है.”
“उम्मीद है अगले साल मार्च तक ये इंडस्ट्री रिवाइव कर जाएगी. कुछ आईपीएल से भी फर्क पड़ा है, जो पिछले 15 दिन में देखने को मिला है. ग्राहक बाजार में आने लगे हैं. स्कूल बंद होने से बी नुकसान हुआ है. जो बच्चे स्कूली किट यूज करते थे वह सब बंद है. कुल मिलाकर 50 प्रतिशत रिवाइवल है,” विभोर ने कहा.
विश्व स्पोर्टस कंपनी
सूरजकुंड रोड पर ही “विश्व स्पोर्टस कंपनी” मेरठ के खेल उदयोग से जुड़े सबसे पुराने कारोबारियों में से एक हैं. ये बंटवारे के पहले से इस काम को कर रहे हैं. जो देश में और कनाडा, अमेरिका, यूके सहित दुनिया भर में तमाम खेलों के सामान निर्यात करते हैं.
इसके मालिक अभिषेक ने हमें बताया, “जब लॉकडाउन हुआ उस समय इंग्लैण्ड का सीजन पीक पर हुआ करता था, लेकिन उनके सारे ऑर्डर कैंसिल हो गए. कोई मैटिरियल जा ही नहीं पाया. इस दौरान इंडोर गेम की मांग तो बढ़ी, लेकिन आउटडोर गेम, जो इस इंडस्ट्री में मेजर होता है वो लगभग जीरो हो गया था. ये एक बड़ा मेजर इफेक्ट पड़ा है. आईपीएल के बाद भी इसमें कोई खास सुधार नहीं आया है. अनलॉक के बाद भी 50 प्रतिशत तक काम आया है. पुरानी पेमेंट भी नहीं आ रही है. 120 साल से हमारा परिवार इस व्यापार में है, आज तक ऐसी स्थिति नहीं आई.”
छोटे कारीगर
कोरोना से हुए लॉकडाउन ने बड़े कारोबारियों को तो नुकसान पहुंचाया ही, छोटे और घरों में काम करने वाले इस उद्योग से जुड़े लोग भी जबरदस्त प्रभावित हुए हैं. मेरठ में बहुत से लोग अपने घरों में बड़े व्यापारियों का आर्डर लेकर काम करते हैं. जिनके सामने कोरोना दो जून की रोटी का संकट लेकर आया.
सूरजकुंड रोड के सामने ही हनुमानपुरी मोहल्ले में 50 वर्षीय ओमप्रकाश से हम उनके घर पर मिले. 35 गज के छोटे से घर में गुजर-बसर कर रहे ओमप्रकाश अपने घर में दो लड़कों और कुछ कारीगरों के साथ 30 साल से बैट बनाने का काम कर रहे थे. लेकिन कोरोना के बाद बैट छोड़कर कैरमबोर्ड बनाने लगे. उनके ग्राउंड फ्लोर में चारों तरफ आधी-अधूरी कैरम रखी हुईं थीं.
ओमप्रकाश ने हमें बताया, “कोरोना से आठ महीने बैट का काम बंद रहा तो अब ये कैरम का काम किया है. लेकिन इसके चलने की भी कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही. लॉकडाउन में तो स्थिति बहुत ही गंभीर रही. इसी दौरान, ढाई-तीन लाख का कर्ज चढ़ गया, जिसका ब्याज भी देना पड़ रहा है. 30 साल में अब तक इतनी परेशानी नहीं हुई, अभी तो हालत खराब है.”
हनुमानपुरी में ही राजकुमार भी अपने घरों में मुख्यत: बल्ले बनाने का काम करते थे, लेकिन अब लूडो भी बना रहे हैं. जब हम वहां पहुंचे तो कारीगर भट्टी में बल्लों की सीलिंग कर अंतिम रूप दे रहे थे.
उनके पुत्र राहुल ने बताया, “अब जो काम हम कर रहे हैं वह नए स्तर से शुरू कर रहे हैं. बल्लों का काम तो चल नहीं रहा तो इसी के साथ लूडो वगैरह का भी काम शुरू किया है. तीन महीने जेब से खाया है. पुराना पेमेंट कुछ आया नहीं. बाकि आगे 2020 में तो कोई उम्मीद नहीं है, मार्च के बाद ही कुछ काम में जान पड़ने की उम्मीद है.” पास ही खड़े एक लड़के ने कहा, “2020 तो जान बचाने के लिए है, कमाने के लिए तो 2021 आएगा.” जिस पर राहुल ने पूरी जिम्मेदारी से हामी भरी.
ऑल इंडिया स्पोर्टस गुड्स मैन्यूफैक्चर्स फेडरेशन के अध्यक्ष पुनीत मोहन शर्मा कहते हैं, “दरअसल स्पोर्टस एक ऐसा आइटम है, जो न तो लक्जरी है और न ही जरूरी है. सब खर्चे पूरे कर आदमी स्पोर्टस की तरफ जाता है. आज की तारीख में 70 प्रतिशत तक हमारा मार्केट डाउन है. और जब तक स्कूल-कॉलेज, ट्रेनिंग सेंटर ओपन न होंगे और लोग वहां तक बेझिझक न पहुंचेंगे, तब तक कुछ नहीं हो पाएगा. क्योंकि मुख्य व्यवसाय तो स्कूल कॉलेज के टेंडर से ही होता है. नए ऑर्डर अभी भी नहीं आ रहे हैं और आईपीएल में भी जब तक दर्शक न हों तब तक वो बूम नहीं रहता. उससे भी खास फर्क नहीं है.”
सरकार से मदद के नाम पर पुनीत कहते हैं, “सरकार अगर चाहती तो बिजली के बिल माफ कर सकती थी. लेकिन उन्होंने ब्याज सहित बिल वसूले. ऐसे ही जीएसटी है, वह स्पोर्टस पर तो लगना ही नहीं चाहिए. एक जुलाई, 2017 तक इस पर कोई टैक्स नहीं था. जब से ये जीएसटी लगा तब से आज तक इसमें कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है. अगर ये लगाना जरूरी ही था तो कोई मिनिमम और सिम्पल सा लगता. अब सरकार से यही मांग है कि जितने दिन काम नहीं चला उनका ब्याज माफ करे और जीएसटी खत्म या मिनिमम करे. अगर यही कर दिया तो हमारे धंधे को काफी मदद मिल जाएगी.”
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