Newslaundry Hindi
‘समाजवादी पार्टी अगर यादव हत्यारों का समर्थन करती है तो हम भी क्षत्रिय हत्यारों के साथ हैं’
किसी को समझ आता उससे पहले ही उसके गांव की आबोहवा बदल गई. देखते ही देखते पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. एक घटना के चलते किस तरह से किसी गांव की पूरी सूरत कैसे बदल जाती है, इसका उदाहरण है पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का दुर्जनपुर गांव.
दुर्जनपुर के स्थानीय निवासी शशिकांत सिंह बताते हैं, “दरअसल यहां लड़ाई वर्चस्व की आ गई थी. कोटे की दुकान को लेकर वर्तमान प्रधान कृष्णा यादव और हत्या के आरोपी धीरेंद्र सिंह के बीच काफी दिनों से तनातनी चल रही थी, दोनों पक्ष अपने-अपने चहेतों के नाम पर कोटे की दुकान का आवंटन कराना चाहते थे. इसे तय करने के लिए दुर्जनपुर पंचायत भवन के पास एक मीटिंग रखी गई थी. वहां एसडीएम बैरिया सुरेश पाल, सीओ चंद्रकेश सिंह, बीडीओ बैरिया गजेन्द्र प्रताप सिंह समेत रेवती थाने की पूरी पुलिस फोर्स मौजूद थी.”
शशिकांत के मुताबिक शुरुआत में कुछ बहस हुई, देखते ही देखते बात बढ़ती बिगड़ती चली गई. जल्द ही वहां खूनी संघर्ष शुरू हो गया. लाठी-डंडे, पथराव के बाद आपस में गोलीबारी शुरू हो गई. इस गोलीबारी में दुर्जनपुर के निवासी जयप्रकाश पाल उर्फ गामा को ताबड़तोड़ चार गोलियां लगी और मौके पर ही उनकी मौत हो गई.
एक स्थानीय युवक ने हमें बताया कि बीते 15 वर्षों से कृष्णा यादव गांव के प्रधान हैं. 2017 में भाजपा से सुरेंद्र सिंह विधायक बन गए, इसके बाद से स्थितियां बदलने लगीं. उनके करीबी सहयोगी धीरेंद्र सिंह का रवैया हिंसक हो गया था. गौरतलब है कि धीरेंद्र सिंह के ऊपर ही जय प्रकाश पाल की हत्या का आरोप लगा है.
दुर्जनपुर के ग्रामीण के मुताबिक विधायक का करीबी होने के नाते वह आये दिन गांव में धौंस दिखाया करता था. वहीं दूसरे स्थानीय युवक की माने तो हाल के दिनों में धीरेंद्र सिंह एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभर कर सामने आए थे और यही बात वर्तमान प्रधान से उनके टकराव की वजह बनी.
इस घटना के प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो एसडीएम ने पहले मीटिंग में स्पष्ट कर दिया था कि कोटे की दुकान का आवंटन मतदान के आधार पर किया जाएगा, लिहाजा, जो लोग भी अगली मीटिंग में आएं वो अपना आधार कार्ड साथ जरूर लाएं.
गुरुवार को हुई इस मीटिंग में लगभग पांच सौ लोग मौजूद थे. कहा जा रहा है कि उस वक्त कृष्णा यादव के समर्थकों की भीड़ अधिक थी. धीरेंद्र सिंह ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए बाहर के गांवों से महिलाओं को बुला लिया था. इस बात पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई कि बाहरी लोग वहां क्यों हैं. यह कहासुनी बढ़ती गई. इसके बाद दोनों पक्षों में कुर्सियां चलनी शुरू हुई. दोनों ओर के लोग एक-दूसरे को कुर्सियां फेंक कर मारने लगे. पुलिस प्रशासन और तमाम आला अधिकारी मूक दर्शक बने रहे.
मृतक जयप्रकाश की पत्नी धरम शीला देवी का रो-रोकर बुरा हाल था. हमसे बातचीत के दौरान वो बार-बार कह रही थी कि यह सब पुलिस की मिलीभगत के कारण हुआ है. शीला आरोप लगाती हैं, “गोली मारने के बाद आरोपी धीरेंद्र सिंह को पुलिस ने अपनी गाड़ी में बैठाकर फरार होने में मदद की. धीरेंद्र आये दिन हमारे परिवार के सदस्यों को जान से मारने की धमकी देता रहता था.”
मृतक की बड़ी बेटी सुमन (जिसकी उम्र 17 साल है) अपने पापा को याद कर बार-बार बेहोश हो जा रही थी. होश आने पर जब हमने बात करने की कोशिश की तो उसका कहना था, "मेरे आंखों के सामने मेरे पापा की गोली मार दी गयी, पुलिस वाले अंकल वहीं खड़े थे. उन्होंने चाहा होता तो आज मेरे पापा जिंदा होते."
मृतक के बड़े बेटे अभिषेक कुमार पाल कहते हैं, “घटना वाले दिन आरोपी धीरेंद्र और एसओ के बीच कहासुनी भी हुई थी. आरोपी बार-बार विधायक सुरेंद्र सिंह के नाम की धौंस दिखाते हुए देख लेने की धमकी दे रहा था.”
इस वारदात में अब तक कुल 7 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. पुलिस ने इस केस में 8 लोगों के खिलाफ नामजद और 25 अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है. नामजद आरोपियों में धीरेंद्र के दो भाई नरेंद्र प्रताप सिंह और देवेंद्र प्रताप सिंह गिरफ्तार हुए हैं, वहीं अज्ञात 25 में 5 लोग गिरफ्तार किए गए हैं. मुख्य आरोपी धीरेंद्र सिंह अभी तक फरार है. डीआईजी ने घटना के वक्त दावा किया था कि रात तक आरोपी को पकड़ लिया जाएगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
फरार आरोपी धीरेंद्र सिंह ने अपना एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया है, जिसमें वो कह रहा है- "15 अक्टूबर को कोटे का आवंटन होना था, इसके लिए एसडीएम बैरिया सुरेश पाल, सीओ चंद्रकेश सिंह, बीडीओ बैरिया गजेन्द्र प्रताप सिंह समेत एसआई सदानंद यादव मौजूद थे. मैंने पहले से कई बार एसडीएम और बीडीओ को पत्रक के माध्यम से सूचना दी थी कि यहां का माहौल काफी खराब है. मैंने उनसे पूछा था कि कोटे का आवंटन कैसे और किस आधार पर किया जाएगा. उन्होंने मुझे बताया कि समूह को आगे किया जाएगा और जो भी जनता आएगी, उसे पीछे रख दिया जाएगा. जिसका जन-समूह ज्यादा होगा, कोटे का दुकान उसकी होगी. जबकि कोटे की दुकान इधर से धोबी रेणु देवी का था जो कि मां सायर जगदंबा के नाम से रजिस्टर्ड था और उधर से नारी शक्ति के नाम से था जो कोई सीमा देवी है.”
आरोपी धीरेंद्र सिंह ने ग्राम प्रधान और स्थानीय प्रशासन के कई बड़े अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा, "ग्राम प्रधान की मिलीभगत से एसडीएम, बीडीओ और क्षेत्राधिकारी ने पैसे लेकर सेटिंग कर रखा था. मुझे इसकी आशंका थी इसलिए मैं बार-बार अधिकारियों के पास जाकर बोल रहा था, गाइडलाइन्स बताइए लेकिन कोई मानने के लिए तैयार नहीं था.”
धीरेंद्र ने आगे बताया कि, “दूसरे पक्ष से कुल 300 लोग ही थे. पंचायत भवन के बगल में खेत जोतवा कर प्रधान समेत तमाम अधिकारियों ने कैंप लगा दिया था. जबकि वहीं पर पाल और पासवान लोगों का घर हैं. मैंने वहां मौजूद सभी अधिकारियों को बार-बार कहा कि मुझे रात से ही आशंका है और यहां कुछ बवाल होने वाला है लेकिन एसडीएम, बीडीओ समेत सभी ने कहा कि नहीं, कुछ नहीं होगा.”
धीरेंद्र ने आरोप लगाया है कि इस घटना के बाद पाल समुदाय के लोगों ने उसके घर पर हमला कर दिया, जहां उसके 80 साल के रिटायर पिता, भाभी समेत कई परिवार वाले मौजूद थे.
धीरेंद्र आगे बताता है- “मैं एक पूर्व भारतीय सैनिक हूं. मैंने 18 साल भारतीय सेना में नौकरी की है, इसलिए मैं अपने परिवार वालों को बचाने जा रहा था लेकिन मुझे तीन-चार पुलिस वालों ने पकड़कर डंडों से पीटना शुरू कर दिया. मैं किसी तरह क्षेत्राधिकारी से अपना हाथ छुड़ाकर भागा क्योंकि उनकी मंशा थी कि मुझे उसी जगह पीट-पीट कर मार दिया जाए.”
जाहिर है आरोपी धीरेंद्र अपने ऊपर लग रहे आरोपों को नकार रहा है. उसका कहना है कि उसने गोली नहीं चलाई. गोली दूसरे पक्ष से चल रही थी, जिसमें जयप्रकाश पाल को गोली लग गई और उनकी मौत हो गई. धीरेंद्र का आरोप है कि उसके परिवार के लोगों को भी गंभीर चोट लगी है.
आपको बता दें कि कोटे की दुकान आवंटन के लिए 4 स्वयं सहायता समूहों ने आवेदन किया था, जिसमें से दो समूहों 'मां सायर जगदंबा' और 'शिवशक्ति' स्वयं सहायता समूह के बीच मतदान कराने का निर्णय लिया गया. एक स्थानीय व्यक्ति के मुताबिक अधिकारियों ने कहा कि वोटिंग का अधिकार उसी शख्स को होगा, जिसके पास आधार कार्ड या कोई मान्य पहचान पत्र होगा लेकिन आरोपी धीरेंद्र ने बताया कि अधिकारियों ने कहा था कि, जिसका जन समूह ज्यादा होगा, कोटे का आवंटन उसी को होगा. अब इसमें कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, यह एक जांच का विषय है.
भाजपा जिलाध्यक्ष और भाजपा विधायक में मतभेद
इस घटना को तूल पकड़ता देख भारतीय जनता पार्टी आरोपी धीरेंद्र से किनारा करती दिख रही है. बीजेपी बलिया जिलाध्यक्ष जयप्रकाश साहू ने पहले पहल कहा कि आरोपी धीरेंद्र सिंह उर्फ डब्बू भाजपा या उससे जुड़े किसी संगठन का पदाधिकारी नहीं है. वह ना मंडल में किसी दायित्व पर है और ना ही जिले में किसी पद पर है.
लेकिन बैरिया से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने मीडिया के सामने आकर खुलेआम स्वीकार किया कि धीरेन्द्र भाजपा का कार्यकर्ता है.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भाजपा के शासन और प्रसाशन पर गंभीर सवाल उठाते हुए हमला बोला है. अखिलेश ने ट्वीट कर कहा, "बलिया में सत्ताधारी भाजपा के एक नेता के, एसडीएम और सीओ के सामने खुलेआम, एक युवक की हत्या कर फ़रार हो जाने से उप्र में क़ानून व्यवस्था का सच सामने आ गया है. अब देखें क्या एनकाउंटर वाली सरकार अपने लोगों की गाड़ी भी पलटाती है या नहीं."
आरोपी के पक्ष में लामबंदी
अखिलेश यादव के इस बयान पर विधायक सुरेंद्र सिंह ने जवाब देते हुए कहा कि जब उनकी सरकार में एक यादव पुलिस-प्रशासन के सामने खुलेआम एक बैंक मैनेजर की गोली मारकर हत्या कर देता है, तब वो ट्वीट क्यों नहीं करते. तो अगर तुमको यादव प्रिय है तो हमें भी क्षत्रिय प्रिय है. मैं एक क्षत्रिय हूं और इसके लिए जरूरत पड़ी तो राजनीति भी छोड़ दूंगा.”
भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह के इस बयान से साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश में जातीय वर्चस्व का संघर्ष चल रहा है. भाजपा विधायक खुलेआम एक हत्याआरोपी कार्यकर्ता के पक्ष में बयान दे रहे हैं. उनका तर्क है कि अगर अखिलेश यादव की सरकार ने यादव हत्यारों को सरंक्षण दिया तो भाजपा सरकार भी क्षत्रिय हत्यारों को संरक्षण देगी.
सुरेंद्र सिंह ने मीडिया के सामने दावा किया है कि धीरेंद्र सिंह ने आत्मरक्षा में गोली चलाई है, आत्मरक्षा के लिए ही हथियार का लाइसेंस मिलता है. सुरेंद्र सिह का यह दावा धीरेंद्र सिंह के दावे की कलई खोल देता है जिसमें वह खुद को बेकसूर बता रहा है.
बलिया भूतपूर्व सैनिक संगठन के उपाध्यक्ष उमाशंकर सिंह ने बताया कि धीरेंद्र हमारे संगठन में महामंत्री के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने अपनी आत्मरक्षा में घटना को अंजाम दिया है. हम धीरेंद्र के लिए न्याय की आवाज उठाएंगे.
संगठन की राजनीति में सक्रियता को लेकर सवाल पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हमारा किसी दल व पार्टी से कोई संबंध नहीं है, हमारा संगठन गैरराजनीतिक है. हमारे संगठन में फौजी लोग जुड़े हैं और राष्ट्रप्रेम ही हमारा धर्म है.
इस घटना के बाद से दुर्जनपुर गांव दो जातीय धड़ों में बंट चुका है. एक धड़ा पीड़ित परिवार के पक्ष में है, वहीं एक हिस्सा आरोपी के साथ खड़ा है. दुर्जनपुर चट्टी पर जब हमने कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की तो मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आई.
घटना के बाद समाजवादी पार्टी के नेता और बैरिया के पूर्व विधायक जयप्रकाश अंचल दुर्जनपुर पहुंचे और पीड़ित परिवार से मुलाकात की. वहीं घटनास्थल से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर बैरिया के वर्तमान भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह का आवास है. उन्होंने यह खबर लिखे जाने तक घटनास्थल का जायजा और पीड़ित पक्ष से मिलना भी उचित नहीं समझा.
घटना पर बलिया का पुलिस और जिला प्रशासन पूरी तरह से चुप्पी साधे बैठा है. हमने बैरिया सीओ, एसडीएम और बलिया जिले के पुलिस कप्तान देवेंद्र नाथ से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है. रेवती थाने के एसओ प्रवीण कुमार सिंह से भी हमने घटना का ताजा सूरतेहाल जानने के लिए फोन किया लेकिन उन्होंने ये कहकर हमसे बात कने से इनकार कर दिया कि इस मामले मे सिर्फ कप्तान साहब (एसपी) ही बात करेंगे.
Also Read
-
On Constitution Day, a good time to remember what journalism can do
-
‘Not a Maoist, just a tribal student’: Who is the protester in the viral India Gate photo?
-
The Constitution we celebrate isn’t the one we live under
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms
-
130 kmph tracks, 55 kmph speed: Why are Indian trains still this slow despite Mission Raftaar?