Newslaundry Hindi
लांसेट जर्नल: ‘वैक्सीन पर पूरी तरह भरोसा नहीं करते लोग’
2015 और 2019 के बीच कई देशों में वैक्सीन के प्रति झिझक बढ़ी है. 10 सितंबर 2020 को द लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है. अध्ययन के शोधकर्ताओं ने यह समझने की कोशिश की है कि दुनिया भर के लोग टीकों के प्रभाव, सुरक्षा और महत्व के बारे में कैसा महसूस करते हैं. यह सर्वेक्षण 149 देशों के 284,381 व्यक्तियों के बीच किया गया.
सर्वेक्षण के मुताबिक, दूसरे देशों के मुकाबले भारत में सबसे अधिक लोगों ने माना कि वैक्सीन के टीके प्रभावी रहते हैं. 2019 में भारत में 84.26 प्रतिशत लोगों ने माना कि टीके प्रभावी रहते हैं. अल्बानिया इस संबंध में सबसे निचले स्थान पर है, जिसमें 14.2 प्रतिशत लोग मानते हैं कि टीके प्रभावी रहते हैं. युगांडा के सबसे अधिक लोगों (87.24 प्रतिशत ) ने माना कि वैक्सीन के टीके सुरक्षित रहते हैं, जबकि जापान में सबसे कम 17.13 प्रतिशत लोगों ने टीका की सुरक्षा पर विश्वास जताया.
जापानियों में वैक्सीन के प्रति असुरक्षा की भावना के बारे में लेखकों ने कहा कि ऐसा ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) वैक्सीन की वजह से हो सकता है. यह वैक्सीन 2013 में शुरू हुआ था, जो सर्वाइकल कैंसर को रोकने के लिए था, लेकिन तब जापान के स्वास्थ्य, श्रम और कल्याण मंत्रालय ने एचपीवी वैक्सीन की सिफारिशों को निलंबित कर दिया था. लंदन के इम्पीरियल कॉलेज की क्लैरिसा सिमास और लंदन स्कूल ऑफ हेल्थ एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के अलेक्जेंड्रे डी फिगुएरेडो इस पेपर के प्रथम संयुक्त लेखक हैं.
2019 में इराक में सबसे अधिक (95.17 प्रतिशत) लोगों ने माना कि वैक्सीन बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन अल्बानिया में सबसे कम 26.06 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की महत्ता को माना. अध्ययन के लेखकों ने कहा कि कुल मिलाकर कई देशों में टीकों पर विश्वास की प्रवृत्ति घट रही है. नवंबर 2015 से दिसंबर 2019 के बीच अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और दक्षिण कोरिया में तीनों मापदंडों पर भरोसा सबसे ज्यादा गिर गया.
फिलीपींस एक बड़ा उदाहरण है, जहां टीके के प्रति विश्वास में सबसे ज्यादा कमी देखी गई है. यह देश 2015 के अंत में इस श्रेणी में 10वें स्थान पर था, लेकिन 2019 में वह 70वें स्थान से पार पहुंच गया. इस अध्ययन के अनुसार, सनोफी एसए द्वारा निर्मित डेंगू वैक्सीन (डेंगवाक्सिया) के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. यह वहां (फिलीपींस) 2017 में पेश किया गया था, लेकिन यह वैक्सीन सेहत के लिए नुकसान पहुंचाने से लगभग 850,000 बच्चों को दिया जा चुका था. अध्ययन के लेखकों के अनुसार, इंडोनेशिया में 2015 और 2019 के बीच टीके के प्रति विश्वास में एक बड़ी गिरावट देखी, जो आंशिक रूप से खसरा, कण्ठमाला, और रूबेला (एमएमआर) वैक्सीन की सुरक्षा पर सवाल उठा रहे थे.
उन्होंने कहा कि धार्मिक नेताओं ने एक फतवा जारी किया, जिसमें कहा गया कि वैक्सीन में सूअरों का मांस पाया गया, इसलिए लोगों ने वैक्सीन को नकारना शुरू कर दिया. हालांकि, केवल धर्म को ही वैक्सीन के प्रति अविश्वास का कारण नहीं माना गया, बल्कि गलत प्रचार और वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध न करा पाने के कारण भी लोगों ने वैक्सीन पर विश्वास नहीं किया. दक्षिण कोरिया और मलेशिया में, वैक्सीन के खिलाफ ऑनलाइन अभियान चलाए गए. दक्षिण कोरिया में, एक ऑनलाइन एंटी-वैक्सीनेशन ग्रुप जिसका नाम ANAKI है ने बचपन के टीकाकरण के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया. हालांकि, फ्रांस, भारत, मैक्सिको, पोलैंड, रोमानिया और थाईलैंड ने वैक्सीन के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है. इन देशों में टीकों के प्रति विश्वास के साथ-साथ कई निर्धारक भी पाए गए. जैसे...
- वैक्सीन पर उच्च विश्वास (66 देश)
- परिवार, दोस्तों या अन्य गैर-चिकित्सा स्रोतों से अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना (43 देशों)
- विज्ञान शिक्षा का उच्च स्तर (35 देश)
- लिंग, महिलाओं के साथ पुरुषों की तुलना में किसी भी बच्चे की रिपोर्ट करने की अधिक संभावना.
- युवा आयु वर्ग में आगे बढ़ने की संभावना बेहतर थी.
बता दं कि नोवल कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) महामारी ने दुनिया की सबसे तेज वैक्सीन बनाने की प्रक्रियाओं की शुरुआत की है, जिसके चलते लोगों में भी वैक्सीन के प्रति उम्मीद बंधी है.
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else
-
डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट: गुजरात का वो कानून जिसने मुस्लिमों के लिए प्रॉपर्टी खरीदना असंभव कर दिया