Newslaundry Hindi
एनएल चर्चा 133: कंगना के घर पर बीएमसी का बुलडोजर और रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी
यहां क्लिक कर डाउनलोड करें और ऑफलाइन सुने पूरा पॉडकॉस्ट.
एनएल चर्चा का 133वां अंक खास तौर पर कंगना रनौत और शिवसेना के बीच जारी जुबानी तकरार, बीएमसी द्वारा तोड़ा गया कंगना का ऑफिस और रिया चक्रवर्ती की ड्रग मामले में हुई गिरफ्तारी पर केंद्रित रहा. इसके अलावा हमने भारत चीन सीमा पर जारी तनाव के बीच एलएसी पर हुई गोलीबारी, ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज केस में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई राहत और बीजेपी राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी और अमित मालवीय के बीच चल रहे ट्विटर वार का भी जिक्र हुआ.
इस बार की चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज, शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. संलाचन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने कंगना रनौत के मुद्दे पर अजय ब्रह्मात्मज से सवाल करते हुए चर्चा की शुरुआत की. उन्होंने पूछा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में राजनीतिक विचारों के स्तर पर इतना खुलेआम बंटवारा पहले कभी नहीं था, जैसा आज है. राजेश खन्ना, सुनील दत्त, राजेश खन्ना और बहुत से अभिनेता और अभिनेत्रियां राजनीतिक दलों से जुड़े लेकिन इतनी कड़वाहट और टकराव कभी नहीं दिखा. आप इस बदलाव को कैसे देख रहे हैं?
इस पर अजय कहते हैं, “इसके लिए हमें 2014 के पहले जाना होगा. मैं सुशांत के मुद्दे पर लिख भी रहा हूं और बता भी रहा हूं कि, कैसे एक पार्टी का राज देश की सारे संस्थाओं पर है, चाहें वह कोई भी संस्था हो, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री पर उस तरीके से यह पार्टी काबू नहीं कर पायी है. इस पर लगाम लगाने के लिए यह हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. दूसरी बात यह की फिल्म इंडस्ट्री कभी भी सरकार पर निर्भर नहीं रही है. यह आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर और मजबूत है.”
अजय आगे जोड़ते हैं, “दूसरी बात भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का आजादी के बाद से ही इस तरह विकास हुआ है कि हिदू बहुसंख्यक दर्शकों के देश में तीन खान पिछले 25 सालों से नंबर वन हैं. यह बात मुझे लगता हैं बीजेपी के वोटरों को बहुत खटकती है. लेकिन अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि ये तीनों अपनी फिल्मों में हिंदू, सवर्ण किरदार ही निभाते हैं जिससे दर्शक खुद को जोड़ पाता है. मुझे लगता है इंडस्ट्री को दो भागों में बांटने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसमें कामयाब नहीं हो पाएं हैं.”
अतुल फिर से सवाल करते हुए कहते है, “कंगना के दफ्तर पर जो कार्रवाई हुई, उसके बाद बहुत से लोग इस कार्रवाई के खिलाफ उतरे हैं. लोग बीएमसी द्वारा तोड़े गए अवैध हिस्से पर नाराजगी जाहिर कर रहे है. लेकिन कंगना पिछले कुछ समय जो कर रही हैं वह विशुद्ध राजनीति कर रही हैं. जब आप राजनीति कर रही हैं तो फिर आपके राजनीतिक विरोधी आप पर पलटवार करेंगे, यह इसी तरह से चलता है. शाहरुख कान का बंगला इसी बीएमसी ने बीजेपी नेता फडनवीस के मुख्यमंत्री रहते तोड़ा था.”
अजय कहते हैं, “मैने पिछले साल ही न्यूज़लॉन्ड्री पर कंगना को लेकर लेख लिखा था. उस वक्त मैंने कहा था कि राष्ट्रवाद को कवच मत बनाईए. तब उन्होंने आलोचना करने वाले मीडिया समूह को ‘सूडो लिबरल’ और ‘सूडो सेक्यूलर’ संबोधित कर रही था. वह देशद्रोहिता का नया शब्द लेकर आई थीं. उनका कहना था कि हम अगर उनके साथ नहीं है तो हम देशद्रोही हैं. यह आईटी सेल की भाषा होती है. जैसे आईटी सेल कहता हैं, अगर मोदी समर्थक नहीं है तो देशविरोधी है. मेरी जो जानकारी हैं कि कंगना को आरएसएस के लोग पीछे से फीड कर रहे हैं.”
मेघनाद इस मसले पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं, “बहुत से लोग कहते हैं रिया और अब कंगना का मामला ध्यान हटाने के लिए उछाला गया है. इस पर बात करने से पहले मैं अनिंद्यो चक्रवर्ती जिन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री पर एक लेख में लिखा है कि, लॉकडाउन होने के बाद कंपनियों ने विज्ञापन कम कर दिया था, इससे चैनलों की आमदनी कम हो गई. तो ऐसे में चैनलों के पास दिखाने के लिए सुशांत सिंह राजपूत का एलिमेंट था. यह मामला टीवी पर इसलिए खूब चला क्योंकि इसमें फिल्म इंडस्ट्री थी, बिहार था, मुंबई थी और बीजेपी थी. इसका उपयोग कर रिपब्लिक टीवी और रिपब्लिक भारत नंबर वन हो गया. इस समय जो टीआरपी की लड़ाई चल रही है वह बहुत खतरनाक है. वहीं दूसरी तरफ कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया हैं कि रिपब्लिक टीवी ने अपने साथ कई लोगों को कंगना के घर जाकर विरोध प्रदर्शन करने को कहा साथ में वह लोग इंडिया टुडे के खिलाफ नारे बी लगा रहे थे.”
अतुल यहां पर शार्दूल से पूछते हैं कि ऐसा नहीं है कि बीएमसी पहली बार अवैध निर्माण पर कार्रवाई कर रही हो, इससे पहले जब बीजेपी और शिवसेना की सरकार थी, तब शाहरुख खान के बंगले के अवैध हिस्से को तोड़ दिया गया था, तब तो ऐसा विरोध नहीं हुआ.
शार्दूल कहते है, ‘जिस तरह से कंगना इस मामले में बयानबाजी कर रही है, उससे मुझे लगता हैं कि वह बहुत जल्द बीजेपी ज्वाइन कर लेंगी. इस बात का मुझे भरोसा तब हो गया जब रामदास अठावले ने उनसे जाकर मुलाकात की. कंगना मुंहफट, बिना अक्ल लगाए बात करती हैं. जितना होशियार उन्हें बताया जा रहा है, वह उतना हैं नहीं. जिस तरह से अभी वह व्यवहार कर रही हैं, इसी वजह से वह हमेशा चर्चाओं में रहती है. इस पूरे मामले में बीएमसी की गलती यह है कि उसने इसमें ओवर रिएक्ट किया और 24 घंटे की मोहलत देते हुए उनका ऑफिस तोड़ दिया.
“यह सिर्फ और सिर्फ राजनीति हो रही है, इसमें महिला होने की बात ही नहीं है. महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना के खिलाफ ज़मीन ढूढ़ रही हैं, वह नहीं चाहते की उद्धव ठाकरे की तरह आदित्य अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर लें. शाहरुख खान के समय जो बीजेपी ने किया था वहीं शिवसेना ने कंगना के खिलाफ किया है. इसके पीछे राजनीतिक बहुत हो रही है. असल में हमें रिया चक्रवर्ती की बात करनी चाहिए जो सबसे ज्यादा राजनीतिक की ज्यादा शिकार हुई हैं,” शार्दूल ने आगे जोड़ा.
अन्य विषयों के लिए पूरी चर्चा सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
रेफरेंस
मेघनाथ का सुदर्शन टीवी के हेट कार्यक्रम पर दिखाए गए अमूल का विज्ञापन
एनएल वर्सेज़ एनएल - क्या मारिजुआना को भारत में लीगलाइज्ड किया जा सकता है?
सलाह और सुझाव
अजय ब्रह्मात्मज
क्रैश लैंडिग आन यू - नेटफ्लिक्स
मेघनाथ
एनएल इंटरव्यू: अतुल चौरसिया और अजय लांबा की बातचीत
मनीषा पांडे का रिपब्लिक टीवी के पूर्व कर्मचारियों से की गई बातचीत पर आधारित लेख
शार्दूल कात्यायन
हाउ टू फिक्स डेमोक्रेसी - द ईकोनॉमिस्ट पर प्रकाशित लेख
नंदन और कादंबिनी पत्रिका बंद होने और निकाले जा रहे पत्रकार - अश्वनी सिंह की रिपोर्ट
अतुल चौरसिया
मनीषा पांडे का रिपब्लिक टीवी के पूर्व कर्मचारी तेंजिदर सिंह सोढी के साथ की गई बातचीत
राशीद किदवई की किताब - ‘नेता अभिनेता’
***
आप इन चैनलों पर भी सुन सकते हैं चर्चा: Apple Podcasts | Google Podcasts | Spotify | Castbox | Pocket Casts | TuneIn | Stitcher | SoundCloud | Breaker | Hubhopper | Overcast | JioSaavn | Podcast Addict | Headfone
Also Read
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’