Newslaundry Hindi
जंगलों की मिट्टी से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उष्णकटिबंधीय वनों की मिट्टी के तापमान में भी वृद्धि हो रही है. यह सदी के तापमान के लिए लगाए गए अनुमानों की तुलना में 55 प्रतिशत अधिक CO2 का उत्सर्जन कर रहैं हैं. जबकि इन्हें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने वाले कारक के रूप में जाना जाता है.
मिट्टी में CO2 का मिलना और फिर उसका उत्सर्जन पृथ्वी के जटिल कार्बन चक्र का एक प्रमुख भाग है. इससे कार्बन चक्र का संतुलन लगभग बना रहता है. पर अब हम लोग इस पर जीवाश्म ईंधन को जलाकर लगातार कार्बन प्रदूषण में बढ़ोतरी का दबाव बढ़ा रहे हैं.
एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ जियोसाइंसेज के शोधकर्ता एंड्रयू नॉटिंघम ने बताया कि उष्णकटिबंधीय मिट्टी में मौजूद कार्बन पहले की तुलना में अधिक है, जो तापमान बढ़ाने के लिए अधिक संवेदनशील है. यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
यहां तक कि उष्णकटिबंधीय वनों की मिट्टी में CO2 की एक छोटी सी वृद्धि वैश्विक जलवायु के परिणामों के साथ वायुमंडलीय CO2 की मात्रा पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है. दुनिया भर में मिट्टी के माध्यम से हर साल कार्बन चक्र की मात्रा मानव द्वारा उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से 10 गुना अधिक होती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल साइंस के शोधकर्ता, एरिक डेविडसन ने कहा कि यदि एक प्रतिशत कार्बन भी सिंक होने के बजाय बाहर निकल जाता है तो, यह मानव निर्मित कार्बन उत्सर्जन के लगभग दस प्रतिशत के बराबर होगा.
पृथ्वी की औसत सतह का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर केवल 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो, यह सूखा, हीटवेव और भयंकर तूफान के खतरों को बढ़ाने के लिए पर्याप्त है. समुद्रों का बढ़ता जलस्तर इसे और अधिक विनाशकारी बना देगा.
कहां-कहां होता है कार्बन सिंक
प्रयोगों के लिए नॉटिंघम और उनके सहयोगियों ने पनामा के बारो कोलोराडो द्वीप पर निर्जन वन के एक हेक्टेयर भू-भाग में तापक छड़ों के जरिए इसका आकलन किया. इन छड़ों ने दो साल की अवधि में मिट्टी को केवल 1 मीटर (तीन फीट) की गहराई तक 4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया. मिट्टी का तापमान आमतौर पर हवा के तापमान से एक डिग्री अधिक गर्म होता है.
हालांकि इस तरह के प्रयोग उच्च अक्षांश के जंगलों में किए गए हैं, लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इस तरह का कोई भी प्रयोग अभी तक नहीं किया गया था.
बढ़ते तापमान के कारण मिट्टी से संभावित कार्बन रिसाव को ध्यान में रखने वाले जलवायु मॉडल ने सैद्धांतिक गणनाओं पर भरोसा किया है. जो परीक्षण की तुलना में आउटपुट को कम आंकते हैं.
अध्ययन का अनुमान है कि अगर 2100 से कुछ समय पहले दुनिया की सभी उष्णकटिबंधीय वनों की मिट्टी दो साल की अवधि के लिए 4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाती है, तो यह 6,500 करोड़ (65 बिलियन) टन कार्बन जो कि लगभग 24,000 करोड़ टन के बराबर CO2 वायुमंडल में जारी करेगी.
नॉटिंघम ने कहा कि यह मानव-जनित स्रोतों से मौजूदा वार्षिक उत्सर्जन से छह गुना अधिक है. इसे कम करके आंका जा सकता है, क्योंकि हमने अपने दो वर्षों के प्रयोग में पाया कि आगे बड़े नुकसान होने के आसार हैं.
शोधकर्ताओं ने कहा किसी भी प्रयोग के आधार पर कोई व्यापक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है, फिर भी हमने सावधानी बरती है.
अब तक वनों और महासागरों ने मानव गतिविधि से लगभग आधे से अधिक कार्बन उत्सर्जन को लगातार अवशोषित किया है. लेकिन कुछ ऐसे संकेत मिले हैं जिनमें कहा गया है कि, कुछ जंगलों द्वारा CO2 कम अवशोषित की जा रही है.
जब पेड़ों को काट दिया जाता है, तब संग्रहीत CO2 भी निकल जाती है. ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच के अनुसार पिछले साल, हर छह सेकंड में फुटबॉल के मैदान के बराबर वनों के आवरण को नष्ट किया गया. जो लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर (14,500 वर्ग मील) के बराबर है.
Also Read: पर्यावरण का सच: अभी नहीं तो कभी नहीं
Also Read
-
TV Newsance 319: Bihar dramebaazi and Yamuna PR wash
-
Argument over seats to hate campaign: The story behind the Mumbai Press Club row
-
Delhi AQI ‘fraud’: Water sprinklers cleaning the data, not the air?
-
How a $20 million yacht for Tina Ambani became a case study in ‘corporate sleight’
-
NDA’s ‘jungle raj’ candidate? Interview with Bihar strongman Anant Singh