Newslaundry Hindi
बर्फ की गहराई में जलवायु का भविष्य
जूल्स वर्न ने बर्फ की मोटी परत के नीचे छिपे महासागर के रास्ते अपनी काल्पनिक पनडुब्बी दक्षिणी ध्रुव पर भेजी थी. किसी भी खोजकर्ता के दक्षिणी ध्रुव पहुंचने से 40 वर्ष पहले लिखी गई यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक नहीं कही जा सकती.
अंटार्कटिक के आसपास वास्तव में छिपी हुई समुद्री गुफाएं हैं और हमारे नवीनतम अनुसंधान बताते हैं कि इस महाद्वीप की बर्फीली चट्टानों के नीचे महासागर किस तरह घूमता है. ये बर्फीली चट्टानें बर्फ के तैरते हुए टुकड़े हैं जो पानी के बहाव के साथ ऊपर-नीचे होते रहते हैं. ये बर्फीली चट्टानें बर्फ की भूमि आधारित विस्तृत परत को मजबूती देती हैं और भविष्य में जल-स्तर में बढ़ोतरी के मूल्यांकन में अहम भूमिका निभाती हैं.
हमारा यह अनुसंधान अंटार्कटिक में बर्फ के पिघलने में महासागरीय लहरों के योगदान पर नई रोशनी डालता है जो जलवायु मॉडल के संबंध में भविष्यवाणी करने की सबसे बड़ी अनिश्चितताओं में से एक है.एक अज्ञात महासागर रॉस आइस शेल्फ धरती पर बर्फ का सबसे बड़ा टुकड़ा है जो 4,80,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है. इसकी समुद्री चट्टान अंटार्कटिक तट के दक्षिण से 700 किमी. में फैली है और इसके बड़े हिस्से तक अभी पहुंचा नहीं जा सका है.
हम जानते हैं कि समुद्री चट्टानें ज्यादातर नीचे से पिघलती हैं जिसका कारण महासागर का गर्म होना है. लेकिन बर्फ के नीचे पानी किस तरह मिलता है, इस बारे में बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं. जलवायु मॉडल में अक्सर इस पर ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन हमारे नए माप इस समस्या को दूर करने में मदद करेंगे. केंद्रीय रॉस आइस शेल्फ के नीचे समुद्री चट्टान के लिए आखिरी खोजी अभियान वर्ष 1970 में चलाया गया था जिसके नतीजे पहेली जैसे थे.
उस समय की सीमित तकनीक के बावजूद यह पता चला कि समुद्री चट्टान कोई स्थिर चीज नहीं है, बल्कि इसमें जल समूहों की पतली परत दिखाई दी जिसमें अलग-अलग तापमान और खारापन मौजूद है.
अन्य महासागरीय अध्ययन महासागर के छोर या ऊपरी हिस्से में किए गए हैं. ये अध्ययन बताते हैं कि व्यवस्था किस प्रकार कार्य करती है, लेकिन इसे वास्तव में समझने के लिए हमें बर्फ के सैकड़ों मीटर नीचे समुद्र को सीधे तौर पर नापने की जरूरत है.
वर्ष 2017 में हमने महासागर के नीचे 350 मीटर बर्फ में ड्रिल करने के लिए ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे डिजाइन पर आधारित हॉट-वाटर जेट का इस्तेमाल किया. हम सुराख को इतनी देर तक तरल अवस्था में रखने में कामयाब रहे जिससे महासागर के विस्तृत माप लिए जा सकें. इसके साथ ही महासागर की लहरों और तापमान की निगरानी जारी रखने के लिए हमने ये उपकरण वहीं छोड़ दिए. सेटेलाइट के जरिए ये आंकड़े अब भी मिल रहे हैं.
हमने पाया कि छिपा हुआ महासागर एक बड़े मुहाने की तरह है जिसमें तुलनात्मक रूप से गर्म (2 डिग्री सेल्सियस) समुद्री जल आता है, जो पिघले पानी और उप-हिमनदों के संयोजन में सतह के करीब बढ़ने के लिए समुद्र में आ रहा है और बर्फ की चादर और अंटार्कटिक की छिपी हुई पथरीली नींव से बाहर निकल गया है. सैकड़ों मीटर बर्फ महासागर की गुफाओं को हवाओं से बचाकर रखती है और अंटार्कटिक की हवा के तापमान को कम करती है. लेकिन लहरों को कोई नहीं रोक सकता.
हमारे आंकड़े बताते हैं कि लहरें बर्फ के नीचे और महासागर की गुफाओं के मिश्रित हिस्सों की हलचलों में स्तरीकृत महासागर को आगे और पीछे की ओर ले जाती हैं.भावी अनुमान इस तरह की खोज जलवायु विज्ञान की असली चुनौती है. हम ऐसी प्रक्रियाओं को कैसे दर्शाएं जो मॉडल्स में दैनिक स्तर पर कार्य करें और भावी दशकों के लिए अनुमान लगाएं?
हमारे आंकड़े दर्शाते हैं कि दैनिक परिवर्तन मायने रखते हैं इसलिए समाधान ढूंढना जरूरी है. उदाहरण के लिए, महासागर की गुफा और कंप्यूटर मॉडल्स के बाहर इकट्ठे किए गए आंकड़े बताते हैं कि पानी के किसी भी हिस्से को इस गुफा से गुजरने का रास्ता बनाने में एक से छह वर्ष लग जाते हैं. हमारे नए आंकड़े सीमा के निचले छोर की संभावना को दर्शाते हैं तथा यह बताते हैं कि हमें बड़े सर्किट के बारे में नहीं सोचना चाहिए. ऐसी बात नहीं है कि रॉस को महासागरों की गर्मी के कारण सबसे ज्यादा खतरा है. लेकिन इसका आकार और नजदीक के रॉस समुद्र के साथ इसका संबंध इस ग्रह की महासागरीय व्यवस्था में इसकी भूमिका को अहम बनाता है.
अगले कुछ दशकों के दौरान समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी के संबंध में इन बर्फीली चट्टानों का महत्त्व स्पष्ट है. अनुसंधान दर्शाते हैं कि यदि वायुमंडलीय गर्मी दो डिग्री सेल्सियस बढ़ जाती है, तो अंटार्कटिक की प्रमुख बर्फीली चट्टानें पिघल जाएंगी तथा इस महाद्वीप की बर्फ की परत बहनी शुरू हो जाएगी. इससे वर्ष 2300 तक समुद्र का स्तर 3 मीटर ऊपर हो जाएगा.
वैश्विक थर्मोहेलिन सर्कुलेशन पर पिघले पानी के प्रभाव को ठीक से नहीं समझा गया है, लेकिन यह परिवर्तन का बहुत बड़ा संभावित कारण है. थर्मोहेलिन सर्कुलेशन महासागरीय ट्रांसपोर्ट लूप है जो लगभग प्रत्येक 1,000 वर्ष में अंटार्कटिक तट से दूर समुद्र की गहराई से उष्णकटिबंधीय सतही जल तक महासागर के चक्र को देखता है.अंटार्कटिक की बर्फ मुहाने पर बने गड्ढे की तरह है और इसलिए अंटार्कटिक में जो भी होता है, उसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देती है. बर्फीली चट्टानों के तेजी से पिघलने से महासागर का स्तर बदल जाएगा जिसका असर वैश्विक महासागरीय प्रचलन पर पड़ेगा और इसका एक नतीजा जलवायु की व्यापक अस्थिरता के रूप में सामने आएगा.
(क्रेग स्टीवंस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाटर एंड एटमॉस्फेरिक रिसर्च में असोसिएट प्रोफेसर और क्रिस्टीना यूनिवर्सिटी ऑफ ओगैटा के स्कूल ऑफ सर्वेइंग में डीन एवं प्रोफेसर हैं. यह लेख ‘द कन्वरसेशन’ से विशेष अनुबंध के तहत डाउन टू अर्थ में प्रकाशित)
Also Read
-
‘They find our faces disturbing’: Acid attack survivor’s 16-year quest for justice and a home
-
From J&K statehood to BHU polls: 699 Parliamentary assurances the government never delivered
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy