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कमला हैरिस के चुनाव जीतने से भारत को क्या फायदा होगा?

अमेरिका के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से उम्मीदवार कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद के लिए नामित किया गया है. कमला आधी हिंदुस्तानी यानी भारतीय मूल की है. जो भारत के लिए गौरव की बात है. अब सवाल यह है कि अगर कमला हैरिस चुनाव जीत जाती हैं तो भारत के लिए उनका चुना जाना किस हद तक फायदेमंद हो सकता है. क्या भारत को अमेरिकी चुनाव से उम्मीद लगानी चाहिए? यह सारे सवाल हैं जो हर किसी के ज़हन में उठ रहे हैं.

कौन है कमला हैरिस?

बता देंकि कमला हैरिस का जन्म कैलिफ़ोर्निया के ऑकलैंड में हुआ था. उनके माता-पिता दोनो प्रवासी थे. उनकी मां का जन्म भारत में हुआ था, जबकि पिता का जन्म जमैका में हुआ था. उनकी जड़ें भारत में भी हैं और भारतीय-जमैकन मूल की हैं. उनकी एक और पहचान इस चुनाव में एक गैर श्वेत यानी काली महिला के तौर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की भी होगी. इस लिहाज से इस पद के लिए चुनाव लड़ने वाली वो पहली काली महिला होंगी.

अमेरिकी महिला उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि

अमेरिका में इससे पहले दो बार किसी महिला को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नामित किया जा चुका है. 1984 में डेमोक्रेटिक पार्टी ने गेराल्डिन फेरारो को उम्मीदवार बनाया था. इसी तरह 2008 में रिपब्लिक पार्टी ने सारा पैलिन को उम्मीदवार चुना था. लेकिन ये दोनों महिलाएं चुनाव हर गईं.

आज तक कोई भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी है और ना ही अबतक कोई अश्वेत महिला महिला को उम्मीदवार बनाया गया है. इस लिहाज से कमला हैरिस दो तरीके से इतिहास बनाने के मुकाम पर खड़ी हैं.

यहां बड़ा और मौजूं सवाल उठता है कि कमला हैरिस का राजनीतिक और वैचारिक मत क्या रहा है. यह बहस उनके अश्वेत महिला उम्मीदवार होने से आगे का सवाल है. यह सवाल भारत के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है कि उनके जीतने की स्थिति में भारत के साथ अमेरिकी रिश्तों में किस चरह के बदलाव होंगे. कमला हैरिस अगर चुनाव जीतती हैं तो किन किन क्षेत्रों में सुधार या बदलाव की उम्मीद की जा सकती है. इसकी एक झलक डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पर के उम्मीदवार जो बाइडेन की हालिया कुछ घोषणाओं से मिलता है. इसके मुताबिक जीतने की स्थिति में जो बाइडेन प्रशासन भारत की निम्नलिखित क्षेत्र में मदद करेगा:

सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सीट मिलेगी

डेमोक्रिटक सरकार बनने की स्थिति में कमला हैरिस भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी को मदद करेंगी. साथ-साथ अमेरिका और भारत के संबंधों में भी मज़बूती आएगी.

यह दावा बाइडेन के एक शीर्ष सहयोगी ने प्रचार मुहिम के दौरान कहा. उन्होंने हामी भरी कि बाइडेन-हैरिस की जोड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भारत की अग्रणी भूमिका की हिमायत करेगी. साथ ही उनकी प्राथमिकता होगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की लंबे समय से रुकी हुई प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाय. इसके तहत भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने का प्रयास रहेगा. यह बात पूर्व राजनयिक एवं बाइडेन के शीर्ष विदेशनीति सलाहकार टोनी ने कही.

लोकतंत्र को मिलेगी ऊर्जा

कोरोना काल में सभी देश बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं. जिससे लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था की रफ्तार थम गई है. बाइडेन के अनुसार यह चुनावी जीत दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में कारगर होगी. और साथ-साथ लोकतंत्र को और मज़बूत करेगी. जिसकी ताकत उनकी विविधता है.

एच-1 बी वीजा प्रणाली में सुधार

बाइडेन के अभियान में दावा किया गया है कि वह एच-1 बी वीजा प्रणाली में सुधार करेगा. साथ ही यह दावा भी किया गया है कि ग्रीन कार्ड के लिए विभिन्न देशोंका कोटा भी समाप्त कर देंगे.

हैरिस के भारतीय मुद्दों को संभालने पर उठे सवाल

सवाल यह है कि अमेरिकी चुनाव इतने भारत केंद्रित क्यों हैं? इसका मुख्य कारण है भारतीय-अमेरिकन समुदाय जिसकी अच्छी खासी तादात ने डेमोक्रेटिक पार्टी को बारत के प्रति उदार नजरिया बनाने में भूमिका अदा की है. इस समुदाय को अपने पाले में लाकर एक बड़ा वोट बैंक तैयार हो सकता है, और इससे चुनाव के नतीजे पर निर्णायक असर डाला जा सकता है.

इस विषय पर अमेरिकन्स फॉर हिन्दू के संस्थापक आदित्य सत्संगी की राय है कि- “डेमोक्रेटिक पार्टी ने भारतीय अमेरिकी वोटरों को विभाजित करने की सोची समझी रणनीति के तहत हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया है.”

प्रतिष्ठित ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुभाष काक ने अपनी राय देते हुए कहा, “मुझे हैरिस के उम्मीदवार बनने की खुशी है, लेकिन मैं उनके राजनीतिक जुड़ाव को लेकर खुश नहीं हूं. उन्होंने कहा है कि मैं निराश हूं कि अतीत में उनका राजनीतिक रुख भारत के अनुकूल नहीं रहा है. वह वामपंथी विचार से प्रभावित हैं.”

हैरिस ने 370 समाप्ति का किया था विरोध

हैरिस ने भारत। रकार द्वाराजम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने का विरोध किया था. इसी तरह भारत की संसद द्वारा पारित नए नागरिकता संशोधन कानून का भी उन्होंने विरोध किया था.हैरिस कायह वैचारिक अतीत भारतीय-अमेरिकी समुदाय के मन में शंका पैदा कर रहा है.