Newslaundry Hindi
केंद्रीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग का पैमाना क्या हो?
पिछले सप्ताह देश में मानव संसाधन मंत्रालय ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग सूची जारी कर दी. हालांकि जब अखबारों में खबरें आना शुरू हुईं उसके बाद भी मिनिस्ट्री या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वेबसाइट पर इससे जुड़ा कोई नोटिफिकेशन नहीं मिला. इस ख़बर की पुष्टि तब जाकर हुई जब विश्वविद्यालयों को मंत्रालय की चिट्ठी मिलनी शुरू हो गयी.
सबसे पहले दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी ने बताया की वो इस रैंकिंग में देश में सर्वोच्च स्थान पर हैं. जामिया की वाइस चांसलर नज़मा अख्तर ने कहा कि हाल के दिनों में विश्वविद्यालय जिस चुनौतीपूर्ण दौर से गुजरा है, यह उपलब्धि सबसे महत्वपूर्ण है. उन्होंने "उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण, विश्वविद्यालय के उच्चतम गुणवत्ता और बेहतर धारणा के प्रासंगिक और केंद्रित अनुसंधान" के लिए इस उपलब्धि को जिम्मेदार ठहराया और आने वाले वर्षों में प्रदर्शन को बेहतर बनाने की उम्मीद की.
इस वर्ष रैंकिंग में जामिया मिलिया इस्लामिया (90% के साथ) को पहला स्थान प्राप्त हुआ है. पहले दस संस्थानों में राजीव गांधी विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश (83%), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (82%), अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश (78%), एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय (77%), बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (75%), मिज़ोरम विश्वविद्यालय (75%), तेज़पुर विश्वविद्यालय (74%), बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ (73%) और पॉन्डिचेरी विश्वविद्यालय (72%) का स्थान रहा.
उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रशासनिक और शैक्षणिक गुणवत्ता मे मूलभूत सुधार लाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय के द्वारा हाल के वर्षों मे कई तरह के प्रयास किए गए हैं, जिनमें 2016 से उच्च शिक्षा संस्थानों की राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के तहत वार्षिक रैंकिंग जारी करना एक मुख्य कदम है. इसी प्रकार यूजीसी द्वारा राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) द्वारा सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों का पांच वर्षों में एक बार एक्रिडेशन आवश्य किया जाना भी इस दिशा मे महत्वपूर्ण कदम है.
इसी क्रम में वर्ष 2017 में, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को यूजीसी एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय से एक त्रिपक्षीय सहमति ज्ञापन (एमओयू) के अंतर्गत लाया गया जिसका उद्देश्य मुख्यतः केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को अनुदानित करने हेतु अनुदान का निर्धारण पिछले सत्र में उनके मूल्यांकन लक्ष्यों की प्राप्ति के आधार पर निर्धारित करना था. मुख्यतः इन लक्ष्यों के मापदंडों को हम मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं:
सामाजिक मापदंड
इनमें से पहली श्रेणी शिक्षण संस्थान के सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति हो सकती है, जिनमे मुख्य मापदंड क्रमश: संस्थान के छात्रों एवं वहां पढ़ाने और काम करने वालों के मध्य सामाजिक एवं लिंग आधारित भेदभाव रहित वातावरण एवं उनमें पायी जाने वाली विविधता, और संस्थान का स्थानीय समाज में योगदान आते हैं. ये मापदंड संस्थान की सामाजिक प्रतिबद्धता का मूल्यांकन करते हैं.
प्रशासनिक मापदंड
इसके बाद दूसरी श्रेणी आती है, प्रशासनिक मापदंडों की. इसमें क्रमश: शासन-विधि (कार्यालयों का स्वचालन, नगदीरहित फ़ीस भुगतान), आय और व्यय (यूजीसी एवं अन्य संस्थानों से प्राप्त), और वित्तीय प्रबंधन (आंतरिक संसाधन, कॉर्पस फंड की उपलब्धता) इत्यादि आते हैं. इन मापदंडों को प्रशासनिक सुधारों एवं विश्वविद्यालयों के आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ने के रूप मे देखा जा सकता है.
अकादमिक मापदंड
इसके बाद तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी आती है, अकादमिक मापदंडों की, जिसमें क्रमश: शिक्षक गुणवत्ता, शैक्षिक परिणाम, शोध प्रकाशन, अनुसंधान अनुदान, पटेंट एवं पुरस्कार, पाठ्येतर गतिविधियां, वैश्विक एवं राष्ट्रीय रैंकिंग मे स्थान संबंधित मापदंड निर्धारित है. ये मापदंड विश्वविद्यालय के अकादमिक पक्ष का मूल्यांकन करते हैं.
प्रत्येक विश्वविद्यालय द्वारा हर वर्ष एक लक्ष्य तय किया जाता है और मंत्रालय को सूचित किया जाता है. वर्ष के अंत में मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है. वह विश्वविद्यालय जो अपने तय लक्ष्यों को प्राप्त कर लेते हैं उन्हे अधिक अंक आवंटित किये जाते हैं और अंत में सभी विश्वविद्यालयों को प्राप्त प्रतिशत अंकों के आधार पर सात श्रेणियों मे विभाजित किया जाता है, जो क्रमश: “अति उत्कृष्ट”, “उत्कृष्ट”, “बहुत अच्छा”, “अच्छा”, “औसत”, “संतोषजनक”, “असंतोषजनक” है (तालिका#1). ये श्रेणियां विश्वविद्यालय के वार्षिक प्रदर्शन की सूचक होती हैं.
मूल्यांकन (तालिका#2) में प्रदर्शन अंकों के विस्तृत अध्ययन और विश्लेषण से भारतीय केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थिति का आकलन किया जा सकता है. कुल चालीस केन्द्रीय विश्वविद्यालयों मे से मात्र एक विश्वविद्यालय “अति उत्कृष्ट” श्रेणी में पाया गया जबकि 11-11 विश्वविद्यालय “उत्कृष्ट” एवं “बहुत अच्छा” श्रेणी में पाए गए वहीं 10 विश्वविद्यालय “अच्छा” श्रेणी में पाए गए.
इस तरह लगभग 77% विश्वविद्यालय तीन श्रेणियों “उत्कृष्ट”, “बहुत अच्छा”, “अच्छा” में पाए गए. गौरतलब है की, दो विश्वविद्यालय “असंतोषजनक” श्रेणी में भी पाए गए. इसी प्रकार 17 विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से भी नीचे पाया गया .
यह आंकड़े सिद्ध करते हैं कि ज़्यादातर केन्द्रीय विश्वविद्यालय अपने तय लक्ष्यों को पाने में असमर्थ हैं. इनके पीछे के कारणों पर यदि विचार किया जाए तो मिलेगा की लगभग सभी विश्वविद्यालय कई आंतरिक और वाह्य चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जैसे गिरता हुआ शिक्षक छात्र अनुपात, कई शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों का लंबे समय तक खाली रहना, विश्वविद्यालयों का पुस्तकालयों एवं प्रयोगशालाओं के निर्माण एवं उन्नयन मे निवेश की तरफ उदासीनता, स्वयं से संसाधन जुटाने का अत्यधिक दबाव, न्यायालयों मे बढ़ते हुए वादों की संख्या, कुछ विश्वविद्यालयों का अस्थायी परिसर से चलाया जाना, इत्यादि.
मंत्रालय का यह “प्रदर्शन आधारित अनुदान” का मॉडल एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को अवश्य ही प्रोत्साहित करेगा परंतु इस तरह की गणना का महत्व अकादमिक की अपेक्षा प्रशासनिक अधिक लगता है. ये कहने के कई आधार हो सकते हैं, पहला तो यह की इस मूल्यांकन में सभी बिन्दुओं को बराबर माना गया है, जबकि ये सभी बिन्दु बराबर महत्व के नहीं है. किसी भी शैक्षणिक संस्थान के लिए शिक्षण की गुणवत्ता और शोध से संबंधित गतिविधियों का ज्यादा महत्व होता है क्योंकि यही इन संस्थाओं की स्तापना का मूल मकसद होता है.
इस लिहाज से इस मूल्यांकन में अतिरिक्त बिन्दुओं पर शैक्षणिक बिंदु जितना ही महत्व दिया जाना सही नहीं है. यही कारण है की, एनआईआरएफ में उच्च पायदान प्राप्त विश्वविद्यालय इस तालिका में उन उच्च पायदानों को नहीं पा सके हैं. हालांकि यह उभरते हुए विश्वविद्यालयों को अवश्य ही प्रोत्साहित करती है. दूसरा, इन संस्थानों में से अधिकांश के बारे में हमारे प्रत्यक्ष अनुभव ये बताते हैं कि इनमें से कुछ विश्वविद्यालयों की इस वर्ष की केंद्रीय विश्विद्यालयों की "स्कोरिंग" के बारे में कुछ चिंताएं हो सकती हैं, और इसके कारण मूल्यांकन पद्धति की वस्तुनिष्ठता सवालों के घेरे में आ सकती है. खासकर दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित छोटे विश्वविद्यालयों के स्कोर अचंभित करने वाले हैं.
इसी प्रकार देश के कुछ बहुत उत्कृष्ट केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का तुलनात्मक रूप से कम स्कोर हासिल करना भी विश्लेषण का विषय हो सकता है. अकादमिक, प्रशासनिक एवं सामाजिक पैमानों को बराबर का महत्व दिए जाने से विस्तृत व्याख्या किये जाने पर मूल्यांकन पद्धति में निहित चूक स्पष्ट दिखती है. अन्तत: यह मूल्यांकन मॉडल अकादमिक उत्कृष्टता को प्रदर्शित करते हुए तो नहीं दिखता, परंतु ये कई विश्वविद्यालयों के लिए आत्म निरीक्षण एवं स्वमूल्यांकन कर प्रत्येक मापदंड मे सुधार करने की तरफ प्रेरित अवश्य ही करता है.
(डॉ विनीत कुमार एवं डॉ यूसुफ़ अख़्तर बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ, में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)
Also Read
-
In Rajasthan’s anti-conversion campaign: Third-party complaints, police ‘bias’, Hindutva link
-
At JNU, the battle of ideologies drowns out the battle for change
-
If manifestos worked, Bihar would’ve been Scandinavia with litti chokha
-
Mukesh Sahani on his Deputy CM bid, the Mallah voter, and breaking with Nitish
-
NDA’s ‘jungle raj’ candidate? Interview with Bihar strongman Anant Singh