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इसी गति से पघलते रहे ग्लेशियर तो तटों पर रहने वाले 7.7 करोड़ लोग होंगे प्रभावित

समुद्र के बढ़ते जलस्तर से पूरी दुनिया चिंतित है. जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को बेहद गंभीर बना दिया है. इंटरगवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) समुद्र के बढ़ते स्तर और एक्सट्रीम मौसम के नतीजतन आने वाली बाढ़ का क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर विश्लेषण कर चिंता जाहिर कर चुका है. आने वाले सालों में यह समस्या किस हद तक विकराल होगी, इसकी झलक 30 जुलाई को नेचर में प्रकाशित अध्ययन “प्रोजेक्शन ऑफ ग्लोबल-स्केल एक्सट्रीम सी लेवल एंड रिजल्टिंग एपिसोडिक कोस्टल फ्लडिंग ओवर ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी” से मिलती है.

अध्ययन के मुताबिक, अगर कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन तेजी से जारी रहता है तो जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले 80 सालों में दुनियाभर के समुद्र तटों पर होने वाली बाढ़ में 50 प्रतिशत इजाफा हो जाएगा. इससे लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ेगी.

यह अध्ययन मेलबॉर्न विश्वविद्यालय और ईस्ट एंजिलिया विश्वविद्यालय (यूईए) द्वारा किया गया है. इसके अनुसार, दुनियाभर में अत्याधिक बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र में 2.5 लाख वर्ग किलोमीटर वृद्धि हो जाएगी. यह वृद्धि 48 प्रतिशत की होगी और इसी के साथ कुल प्रभावित क्षेत्र 8 लाख वर्ग किलोमीटर हो जाएगा. दूसरे शब्दों में कहें तो 21वीं शताब्दी के अंत तक 0.5 से 0.7 प्रतिशत वैश्विक भूमि पर समुद्री बाढ़ का खतरा मंडराएगा.

इस स्थिति में 7.7 करोड़ नए लोग बाढ़ के खतरे का सामना करेंगे. 52 प्रतिशत की यह वृद्धि बाढ़ प्रभावितों की संख्या को बढ़ाकर 22.5 करोड़ कर देगी. इतना ही नहीं, बाढ़ से होने वाली कुल आर्थिक क्षति भी 46 प्रतिशत बढ़ जाएगी. यह क्षति 14.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर होगी जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का 20 प्रतिशत है. अध्ययन के अनुसार समुद्री बाढ़ मुख्य रूप से लहरों और तूफानों की वजह से आएगी. बाढ़ में इनका योगदान 68 प्रतिशत होगा. वहीं दूसरी तरफ बाढ़ में समुद्र के बढ़ते स्तर पर योगदान 32 प्रतिशत होगा.

अध्ययन की मुख्य लेखिका इबरू किरेज्सी के मुताबिक, गर्म जलवायु समुद्र का स्तर बढ़ाती है क्योंकि पानी गर्म होने पर फैलता है और ग्लेशियर पिघलते हैं. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन से समुद्र में पानी बढ़ रहा है जिसका नतीजा बाढ़ के खतरे के रूप में देखा जाएगा. उनके अनुसार, “हमारे आंकड़े और मॉडल बताते हैं कि अब के मुकाबले इस सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली बाढ़ में 10 गुणा बढ़ोतरी होगी.

यूईए में टाइंडाल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के निदेशक व अध्ययन के लेखक प्रोफेसर रॉबर्ट निकोल्स कहते हैं कि यह अध्ययन समुद्र के बढ़ते स्तर की समस्या से निपटने की तत्काल जरूरत पर जोर देता है. यह जरूरत जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के साथ तटों को सुरक्षित बनाने की है क्योंकि कुछ हद तक समुद्र का स्तर बढ़ने से नहीं रोका जा सकता.

मेलबॉर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और शोध के सह लेखक इयान यंग बताते हैं कि उत्तर पश्चिमीयूरोप बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हैं. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चीन, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण पूर्व अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका भी हॉटस्पॉट हैं.

किरेज्सी के अनुसार, हमारा अध्ययन बताता है कि समुद्र तटों के निचले हिस्सों में रहने वाले लोगों पर बाढ़ का विनाशकारी असर पड़ेगा, इसलिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है. संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा के इंतजाम किए जाने चाहिए. वह बताती हैं कि हमें अपनी तैयारियों को तेज करना होगा और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए रणनीतियां बनानी होंगी.

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