Newslaundry Hindi
असफल मुल्क के मुहाने पर खड़ा लेबनान
बेरूत बंदरगाह पर हुए भयावह विस्फोट की असली वजह लेबनान की राजनीतिक, प्रशासनिक और न्यायिक तंत्र का भ्रष्ट और लापरवाह होना है. इस दुर्घटना में सौ से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और चार हज़ार के आसपास घायल हैं. यह संख्या बढ़ भी सकती है क्योंकि मलबों में लोगों के दबे होने की आशंका है तथा अस्पतालों में भी कई लोग बुरी तरह से घायल हैं. बेरूत प्रशासन का कहना है कि तीन लाख लोग बेघर हो गए हैं तथा घरों के नुकसान का अंदाज़ा तीन से पांच अरब डॉलर के बीच लगाया जा रहा है.
विभिन्न दस्तावेज़ों और पड़ताल के आधार पर छपी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, बंदरगाह के एक गोदाम में रखा 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट मोल्दोवा का झंडा लगे जहाज़ से सितंबर, 2013 में बेरूत पहुंचा था. उस जहाज़ की मिल्कियत रूसी बतायी जा रही है. यह जहाज़ जॉर्जिया से मोज़ाम्बिक जा रहा था. कुछ तकनीकी ख़राबी की वजह से इसे बेरूत में रूकना पड़ा था और बंदरगाह के अधिकारियों की पाबंदी के कारण आगे की यात्रा नहीं कर सका था.
कस्टम के अधिकारियों ने 2014 में दो दफ़ा, एक बार 2015 और 2017 में तथा दो बार 2016 में न्यायालय को मसले को सुलझाने के लिए लिखा था, जिसमें इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटकों के रखने के ख़तरे को साफ़-साफ़ ज़ाहिर किया गया था. इन पत्रों में इसके निपटारे का विकल्प भी सुझाए गए थे कि या तो इसे बाहर बेच दिया जाए या लेबनानी सेना को दे दिया जाए या देश की एक निजी कंपनी के सुपुर्द कर दिया जाए. लेकिन, जजों की ओर से न तो जवाब आया और न ही कोई कार्रवाई हुई.
यह तो अच्छा हुआ कि विस्फोट के तुरंत बाद ही लेबनानी सरकार की तरफ से बेरूत बंदरगाह पर अमोनियम नाइट्रेट होने और उसी से यह घटना होने के बारे बयान जारी कर दिया, अन्यथा इस बाबत कई तरह के क़यास लगाए जाने लगे थे. लेबनान और मध्य-पूर्व एशिया की स्थिति को देखते हुए यह स्वाभाविक ही था. कुछ दिनों पहले ही लेबनान में सक्रिय हिज़्बुल्लाह और इज़रायल के बीच सीरिया में और अन्यत्र हमलों की वारदातें हो चुकी हैं.
इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतनयाहू और ‘वैकल्पिक प्रधानमंत्री’ गांज़ कड़ी कारवाई करने, लेबनान के इंफ़्रास्ट्रक्चर को तबाह करने आदि बयान कुछ दिन से आ रहे थे. नेतन्याहू और गांज़ में सत्ता को लेकर भी आपस में ठनी हुई है, सो अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उनके पैंतरा चलने की आशंका भी थी क्योंकि इतिहास में अक्सर ऐसा होता रहा है.
लेबनान की अंदरूनी राजनीति की उठापटक को देखते हुए और विभिन्न तबक़ों की रस्साकशी के माहौल में इस्लामिक स्टेट या उससे संबद्ध गिरोहों की ओर भी शक़ की सुई जा रही थी. इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने बेरूत विस्फ़ोट पर बयान देते हुए कह दिया है कि उनके जनरल इसे 'हमला' बता रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या ट्रंप अपने अधिकारियों से मिली ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर ऐसा कह रहे हैं. लेकिन तुरंत बाद एक बयान में अमेरिकी रक्षा विभाग ने इसके उलट कहा कि अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है कि इसे हमला माना जाए.
कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि अमोनियम नाइट्रेट को सक्रिय करने के लिए अलग से डेटोनेटर की ज़रूरत होती है. पर यह भी है कि अगर इसे ठोस रूप में सीमित जगह में गर्म किया जाए, तो यह विस्फोटक हो जाता है. तो हर ऐसी घटना की तरह इस मामले में भी पूरी तस्वीर जांच के बाद ही सामने आएगी. या, शायद नहीं भी आए. सो, फ़िलवक़्त इसे एक त्रासद दुर्घटना ही माना जाना चाहिए और जानकारियों का इंतज़ार करना चाहिए.
इस साल अप्रैल में आयी एक्यूमेन रिसर्च एंड कंसल्टिंग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 में अमोनियम नाइट्रेट का वैश्विक बाज़ार 4,973 मिलियन डॉलर आंका गया था. इसमें 2019 से 2026 के बीच सालाना तीन फ़ीसदी से अधिक की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है. इस हिसाब से यह बाज़ार 2026 में 6,740 मिलियन डॉलर हो सकता है.
ऐसे में यह एक अहम सवाल है कि बेरूत बंदरगाह पर इसे लगभग सात साल से एक गोदाम में बंद कर क्यों रखा गया था. लेबनान और आस-पड़ोस के देशों में इसका इस्तेमाल खेती के लिए उर्वरक या तमाम तरह के हिंसक संघर्षों में बारूद की तरह हो सकता था. आर्थिक संकट से जूझ रहे लेबनान को कुछ कमाई भी हो जाती. भ्रष्टाचार का आलम यह है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की पिछले साल आयी रिपोर्ट में 180 देशों में लेबनान 137वें पायदान पर था. मंगलवार की घटना से बेरूत बंदरगाह तबाह हो गया है और आसपास का शहरी हिस्सा क्षतिग्रस्त है. जानें जाने और घायलों के इलाज तथा बर्बाद बंदरगाह के पुनर्निर्माण और अन्य मरम्मत पर आनेवाला ख़र्च अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका हो सकता है.
पिछले साल अक्टूबर में लेबनानी मुद्रा पाउंड की क़ीमत में 70 फ़ीसदी की गिरावट आयी थी. इससे मुद्रास्फीति में भयानक वृद्धि हुई थी और बैंकिंग तंत्र के ढह जाने से लोगों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गयी थी. यह संकट ख़ुद केंद्रीय बैंक द्वारा सरकार की सरपरस्ती में व्यावसायिक बैंकों से भारी ब्याज़ पर क़र्ज़ लेने की वजह से पैदा हुआ था. ये क़र्ज़ इसलिए लिए जा रहे थे कि पाउंड की क़ीमत को स्थिर रखा जा सके. उस समय के विरोध प्रदर्शनों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री साद हरीरी को इस्तीफ़ा देना पड़ता था.
लेबनान 1975 से लेकर 1990 तक गृहयुद्ध में तबाही का सिलसिला देखा चुका है और एक बार फिर अस्थिरता के उस दौर की वापसी की आशंका कई महीनों से जतायी जा रही है. आर्थिक संकट से लाचार लोगों को कहना है कि गृहयुद्ध के दौरान भी भूखे मरने की नौबत नहीं आयी थी. बेरोज़गारी चरम पर है. बेरोज़गारी दर जहां 25 फ़ीसदी के आसपास है, वहीं एक-तिहाई आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे बसर कर रही है. सार्वजनिक क़र्ज़ और सकल घरेलू उत्पादन के अनुपात के मामले में लेबनान दुनिया में तीसरे स्थान पर है. पिछले साल बैंकिंग व मुद्रा संकट के समय देश के पश्चिमी हिस्से में पहाड़ी जंगलों में लगी आग ने भी सरकार की पोल खोल दी थी.
कोविड के कहर ने हालात को बदतर कर दिया है. वेतन-भत्ते में कमी और छंटनी ने अनिश्चय का माहौल बना दिया है. ऐसी स्थिति में बंदरगाह का तबाह होना बहुत बड़ी चोट है. देखना यह है कि जनवरी में प्रधानमंत्री बने हसन दियाब इस दुर्घटना की कैसे जांच करते हैं तथा कई फ़िरक़ों में बंटे लेबनान के समाज और उसकी राजनीति में एका बनाने की कोशिश करते हैं. उनके लिए यह आसान भी नहीं होगा. बंदरगाह की घटना से एक दिन पहले ही नासिफ़ हित्ती ने विदेश मंत्री के पद से यह कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि शासन प्रणाली व नीतियों में कोई सुधार नहीं हो रहा है तथा लेबनान एक असफल राज्य होने की कगार पर खड़ा है. यह भी सच्चाई है कि लेबनान के भीतर और बाहर अनेक ताक़तें दियाब की सरकार तथा देश को फिर से अस्थिरता की ओर ले जाने की कोशिश में हैं.
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Let Me Explain: CBFC or censorship bureau? Who’s deciding what India can watch
-
Why are tribal students dropping out after primary school?