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क्यों चौबीसो घंटे पुलिस सर्विलांस पर हैं छत्तीसगढ़ की आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी

दंतेवाड़ा जिले की गीदम तहसील के पुराना नाका पारा (पुरानी फारेस्ट रेंज) इलाके के एक घर के बाहर 3-4 लोग दबे पांव निगेहबानी कर रहे थे. थोड़ी देर बाद उस घर से जैसे ही एक महिला निकलती है ये लोग थोड़ा फासला बनाकर गाड़ी से उस महिला का पीछा करने लगते हैं. वह महिला जहां भी जाती है ये लोग उसके पीछे लगे रहते हैं. चाहे वह महिला किसी दुकान में सामान लेने के लिए रुके या किसी के घर पर जाए या किसी से बात करे.

दिन-रात ये लोग ये लोग उस महिला का पीछा करते रहते हैं. यह सिलसिला पिछले दो महीनों से लगातार चल रहा है. यह महिला कोई और नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी हितों के लिए लड़ने वाली मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी हैं और सादे कपड़ो में उनका पीछा कर रहे लोग कोई चोर-बदमाश नहीं बल्कि पुलिस वाले हैं.

इस जासूसी का कारण है दंतेवाड़ा और समूचे दक्षिण बस्तर में आदिवासियों की आवाज़ उठाने वाली सोनी सोरी उस इलाके के गांवों में ना जा सकें और वहां रह रहे आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ उनकी मदद ना कर सके. यूं तो सोरी की निजी सुरक्षा का हवाला देकर पुलिस उन्हें पहले भी नोटिस जारी कर उनके घूमने-फिरने पर रोक लगाती थी, लेकिन जून के आखिरी हफ्ते के बाद से ना ही सिर्फ इन नोटिसों की संख्या बढ़ी है बल्कि उनकी 24 घंटे जासूसी होने लगी है.

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद इन नोटिसों में अक्सर सोनी सोरी को पुलिस द्वारा दी गयी वाई प्लस सुरक्षा का हवाला देते हुए लिखा जाता है कि नक्सलियों से विशिष्ट व्यक्तियों की जान को खतरा हो सकता है और इसके चलते वह अपने "भ्रमण/ प्रवास" को स्थगित कर दें.

सोनी सोरी के मुताबिक ऐसे नोटिस उन्हें पहले भी आते थे, लेकिन 21 मई को हुई 15 वर्षीय रिशुराम इस्ताम की हत्या का मामला उठाया है तब उन्हें ऐसे नोटिस लगभग हर हफ्ते मिलने लग गए हैं और साथ ही उनकी जासूसी भी शुरू कर दी गयी है.

गौरतलब है कि 15 साल के रिशुराम और 40 साल के माटा अलामी को पुलिस ने एक नक्सली मुठभेड़ में मारने का दावा किया था. पुलिस ने कहा था कि दोनों आठ लाख के इनामी नक्सली थे जिन्हें डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व ग्रुप- आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों और अन्य आदिवासी युवाओं का एक विशेष दस्ता) के जवानों ने एक सर्च ऑपरेशन के दौरान मार गिराया था.

15 साल के रिशुराम और 40 साल के माटा अलामी के मारे जाने के बाद पुलिस द्वारा जारी प्रेस रिलीज.

लेकिन पुलिस के इन दावों को मारे गए दोनों लोगों के परिजनों और ग्रामीणों ने झूठा बताया है. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में ग्रामीणों ने बताया कि 21 मई को नारायणपुर जिले के पिड़ियाकोट गांव के रहने वाला रिशुराम अपने गांव के लोगों के साथ नाव से इंद्रावती नदी पार करके तुमनार गांव में सरकारी राशन की दुकान से राशन लेने आया था. रिशुराम और माटा दोनों नाव की रखवाली करने नदी के किनारे ही रुक गए थे और बाकी गांव वाले राशन की दुकान पर चावल लेने के लिए गए थे. वहां से लौटकर गांव वाले नाव पर सवार हुए ही थे कि डीआरजी के जवान वहां पहुंच गए. उन जवानों ने रिशुराम और माटा अलामी को पकड़ा, उनके हाथ पीछे बांधे और थोड़ी दूरी पर ले जाकर उन्हें गोली मार दी. रिशुराम और माटा रिश्ते में भतीजा-चाचा लगते थे.

इस घटना के बाद मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों ने सोनी सोरी से मदद मांगी. सोरी की पहल पर कुछ वकीलों की मदद से बिलासपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी. 14 जुलाई को इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से इस मामले को लेकर चार हफ्ते के अंदर जवाब पेश करने बोला है.

इस मामले की पैरवी कर रही वकील रजनी कहती हैं, "हमने तथ्यों के आधार पर इस मामले में याचिका दायर की थी. पीड़ित परिवार के लोगों ने सोनी सोरी से मदद की गुहार लगायी थी जिसके बाद उनकी पहल पर मामला उच्च न्यायालय पहुंचा है."

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में सोनी सोरी कहती हैं, "जब इन हत्याओं को पता चला, तब मैं इस मामले में सक्रिय हो गयी. मगर प्रशासन और स्थानीय नेता कह रहे थे कि परिवार वाले खुद कह रहे हैं कि मरने वाले नक्सली थे तो मैंने भी इस मामले में ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. कोरोना के चलते मैं भी उनके गांव जा नहीं सकी थी. लेकिन कुछ दिन बाद रिशुराम का परिवार मेरे पास आया और उन्होंने बताया कि वह और माटा दोनों नक्सली नहीं थे और ना ही उन्होंने कभी पुलिस-प्रशासन से ऐसा कहा था कि वो नक्सली थे.”

सोरी आगे कहती हैं, “वो कह रहे थे कि उन्हें अपने बच्चे की हत्या के खिलाफ लड़ना है. इसके बाद मैंने वकीलों की मदद लेते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट में रिशु और माटा के परिवार वालों की तरफ से याचिका दायर करवाई. इसके बाद पुलिस की मेरे ग्रामीण इलाकों में घूमने पर बंदिशें बढ़ती चली गईं और साथ ही साथ वो मेरी जासूसी भी करने लगे."

सोनी सोरी

सोनी बताती हैं, "मेरे ग्रामीण इलाकों में घूमने को लेकर पहले भी मुझे नोटिस आते थे, लेकिन एक-दो महीने में एक बार नोटिस आता था. उस वाकये के बाद से हफ्ते में दो-तीन बार नोटिस आने लगे हैं. सरकेगुड़ा में जो 17 लोग मार दिए गए थे उनकी याद में एक पार्क बनने वाला था तो उसमें भी नहीं जाने दिया था. बहुत से गांव वाले मदद के लिए बुलाते हैं, लेकिन पुलिस के नोटिसों के चलते मैं जा नहीं पाती हूं. जब कोई बहुत ज़्यादा परेशानी वाली बात होती है और जाना ज़रूरी हो जाता है तभी जाती हूं. मैंने पुलिस प्रशासन से कई बार कहा है कि मैं जहां भी जाऊंगी, छुप कर नहीं जाऊंगी उनको बता कर ही जाऊंगी. यहां तक कि ये भी बोला है कि जो मेरे साथ दो गनमैन जाते है वह जितनी बार चाहें मेरी लोकेशन भेज सकते हैं. लेकिन मुझे गांव में जाने से रोका नहीं जाए. मेरी बस इतनी ही मांग है कि आदिवासियों के लिए लड़ने का मेरा हक़ वो ना छीनें. लेकिन पुलिस ये सुनने को तैयार नहीं है."

सोनी के मुताबिक डीआरजी के जवानों को उनके खिलाफ भी भड़काया जाता है. “उन्हें कहा जाता है कि अगर मैं गांव जाऊंगी तो आदिवासियों पर हो रहे दमन के मामलों को उठाऊंगी जिसके चलते उनकी नौकरी खतरे में आ जायेगी. उनसे कहा जाता है कि वो गांव जाकर वापस तो बस नहीं सकते अगर नौकरी भी चली गयी तो और मुश्किल में आ जाएंगे. वो उनको इस तरह से भड़काकर मेरे पीछे लगा रहे हैं. पिछले दो महीनों में मुझे 25-30 नोटिस आ चुके हैं, अब मैंने नोटिस लेना बंद कर दिया है, तो वो मेरे घर की दीवारों पर नोटिस चिपका के चले जाते हैं.

पीछा करने के सवाल पर सोनी ने हमें बताया, “दिन-रात मेरा पीछा किया जाता है और घर के बाहर सादे कपड़ों में निगेहबानी करते हैं पुलिस वाले. रात को अगर मैं देर से आती हूं तो मेरी सुरक्षा में जो पुलिस सिपाही हैं उनसे मेरी खोज ख़बर ली जाती है. मेरे घर में कौन-कौन रहता है, ये सब पूछा जाता है. उन पर दबाव बनाया जाता है कि वो भी मेरा पीछा किया करें."

आदिवासी समुदाय के मुद्दे मुखर होकर उठाती रही हैं सोरी

एक घटना के बारे में सोनी हमें बताती हैं, "एक दिन मैं मोटरसाइकल से जा रही थी तब पीछा करते-करते मुझे डराने के लिए उन लोगों ने अपनी गाड़ी मेरी मोटरसाइकल से लगभग सटा दी थी. जैसे-तैसे हमने मोटरसाइकल सड़क से उतारी थी. इसके बाद भी वो हमारा लगातार पीछा करते रहे. अंत में परेशान होकर मैं उनकी गाड़ी के सामने खड़ी हो गई. बाद में मैंने कलेक्टर साहब से शिकायत की. मेरी पीछा करने के अलावा मेरे गनमैनों पर दबाव बनाया जाता है कि वो मेरी हर ख़बर पुलिस तक पहुंचाते रहे. अगर मैं किसी गांव के अंदर बिना गनमैनों के चली जाती हूं या अगर वो अंदर तक मेरा पीछा नहीं कर पाते हैं तो मेरे खिलाफ उनसे रिपोर्ट करने कहा जाता है, जिसके चलते वो फिर से मुझे नोटिस भेजते हैं."

सोनी बताती हैं, "नोटिसों के चलते मैं अब गांव नहीं जा पाती हूं, लेकिन मजबूरन कभी कभी किसी की मदद लिए जाना भी पड़ता है और लोगों के काम करने भी पड़ते हैं. भले पुलिस हो या नक्सली जो भी आदिवासियों पर अत्याचार करता है उसके खिलाफ आवाज़ उठाना हमारा काम है. मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं अगर मैं नोटिस मिलने के बावजूद भी गांव में गयी तो हो सकता भविष्य में ये मुझ पर नक्सलियों से मिलने जाने का इलज़ाम लगाकर मेरे खिलाफ कोई कार्रवाई कर दें. मुझे पुलिस से बस थोड़ी सी आज़ादी चाहिए जिससे मैं लोगों के लिए काम कर सकूं."

आरोप यह भी है कि जो ट्रांसपोर्टर अपनी चारपहिया गाड़ियां किराए पर देते थे उन्हें सोनी सोरी को गाड़ी देने से मना कर दिया है.

एक गाड़ी मालिक नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहते हैं, "मैंने कई बार सोनी सोरी को शहरों और गांवों में उनके दौरों के लिए गाड़ी किराए पर दी हैं. लेकिन फ़िलहाल पिछले दो महीनों में दो बार पुलिस ने मुझे थाने में बुलाकर धमकाया और उनको गाड़ी किराए पर देने से मना किया है.”

पुलिस सोरी को ग्रामीणों से मिलने जाने के लिए गाड़ी देने वालों को भी धमका रही है.

उसने आगे कहा, “सबसे पहले टीआई (थाना प्रभारी) साहब ने मुझे जून के आखिरी हफ्ते में बुलाकर धमकाया था. उसके बाद पूछने लगे कि गाड़ी कहां गयी थी. मैंने बताया कि सरकेगुड़ा गयी थी. फिर थोड़ी देर सवाल-जवाब करने के बाद उन्होंने कहा कि मैं आज के बाद कभी सोनी सोरी को अपनी गाड़ी किराए पर ना दूं और अगर मैंने गाड़ी दी तो वो मेरी गाड़ी जब्त कर लेंगे.”

गाड़ी मालिक ने बताया, "इसके बाद अभी पिछले हफ्ते उन्होंने फिर से मुझे बुलाया था. जब मैं वहां गया तो एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि मेरी गाड़ी में एक आठ लाख का इनामी नक्सली बैठा था और वो वायर (तार) के बंडल को गाड़ी में रखकर दस किलोमीटर तक ले गया. जब मैंने उनकी इस बात को गलत बताया तो वो कहने लगे कि ज़्यादा बहस मत करो. फिर वह कहने लगे कि अगर मैंने दोबारा सोनी सोरी को गाड़ी दी तो मेरे साथ कुछ भी हो सकता है और वह मुझे नक्सली बताकर जेल में डाल देंगे. फिर वह कहने लगे कि एनआईए की टीम आयी है, जो डेढ़ लाख का मारने का पट्टा रखती है, मेडिकल कराओगे तो भी पता नहीं चलेगा. पुलिस ने दूसरी बार इसलिए बुलाया था क्योंकि मैंने सोनी सोरी को फिर से गाड़ी दे दी थी. सिर्फ मुझे ही नहीं सभी गाड़ी वालों को पुलिस ने उनको गाड़ी देने से मना किया है."

सोनी सोरी की पुलिस द्वारा की जा रही इस जासूसी के बारे में जब न्यूज़लॉन्ड्री ने बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक पी सुंदरराज से सवाल किये तो उनका जवाब था, "सोनी सोरी को वाई प्लस पुलिस सुरक्षा दी गयी है. पुलिस उनकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती है और उसके तहत जो भी ज़रूरी होता है वो करती है. उसे मैं सुरक्षा कारणो के चलते आपसे साझा नहीं कर सकता. मैं यह साफ़ करना चाहता हूं कि बस्तर या दंतेवाड़ा पुलिस उनकी किसी भी तरह भी कोई जासूसी नहीं कर रही है और ना ही हमें ऐसा करने की ज़रुरत है.”

सुन्दरराज आगे कहते हैं, "सोनी सोरी को सुरक्षा देना इसलिए भी ज़रूरी है कि क्योंकि वह आदिवासियों के बीच बिलकुल भी लोकप्रिय नही हैं. उनके आदिवासी विरोधी रवैये के चलते लोग उन्हें पसंद नहीं करते हैं. उन्होंने पिछले कुछ सालों में ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसके चलते लगे कि उन्होंने आदिवासी हितों के लिए कुछ किया हो. नक्सलियों द्वारा आदिवासियों के ऊपर किये जा रहे ज़ुल्मों के खिलाफ वह कभी आवाज़ नहीं उठाती हैं जिसके चलते आदिवासी समाज में उनका विरोध है.”

अपने दफ्तर में पी. सुंदरराज

पुलिस महानिरीक्षक पी. सुंदरराज के मुताबिक सोनी सोरी का आदिवासी समाज में विरोध हो रहा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है. दन्तेवाड़ा, बीजापुर और दक्षिण बस्तर के अन्य इलाकों में सोनी सोरी के आदिवासियों के बीच लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि कोई भी अड़चन आने पर सबसे पहले वह सोनी सोरी का दरवाज़ा ठकठकाते हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले स्थानीय निवासी संजय पंत कहते हैं, "दक्षिण बस्तर के आदिवासी इलाकों में पुलिसिया दमन के खिलाफ सोनी सोरी एक मुखर आवाज़ हैं जिसके चलते बहुत से आदिवासी मदद के लिए उनसे गुहार लगाते हैं. पुलिस को उनकी यह छवि पसंद नहीं है जिसके चलते वह उनको परेशान करती है. वह ना सिर्फ पुलिसिया दमन के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं बल्कि जब भी नक्सलियों द्वारा ग्रामीण इलाकों में आदिवासियों को मारा जाता है तो वह उसका भी विरोध करती हैं. आदिवासियों के बीच उनकी लोकप्रियता को समझना है तो उन्हें बस्तर के गांवों में जाकर पूछना चाहिए.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने गीदम पुलिस थाने के टीआई (थाना प्रभारी) गोविन्द यादव से सोनी सोरी की जासूसी और गाड़ी मालिकों को धमकाने के संबंध में बात की, उनका जवाब था, "हम क्यों किसी की जासूसी करेंगे और क्यों किसी को धमकाएंगे. कोई गाड़ी किसी गलत हाथों में दे रहा है तो बात अलग है, बाकि हम क्या किसी को धमकी देंगे. मुझे इस बात की जानकारी नहीं है.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस पूरे मामले को लेकर छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू से भी संपर्क किया था. इस मामले को लेकर अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.