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दिल्ली दंगा: दंगा सांप्रदायिक था, लेकिन मुसलमानों ने ही मुसलमान को मार दिया?
‘‘मैं भजनपुरा से दिल्ली गेट तक गाड़ी चलाता हूं. 11 मार्च की शाम चार बजे के करीब बाकी दिनों की तरह भजनपुरा चौराहे पर सवारी का इंतज़ार कर रहा था. तभी एक गाड़ी आकर मेरे गाड़ी के बगल में रुकी. मैंने उन्हें बोला की थोड़ा साइड में लगा लीजिए. मेरी गाड़ी के पीछे अब्दुल हादी अंसारी लिखा हुआ है जो की मेरे बेटे का नाम है. वो देखने के बाद उन्होंने पूछा ये गाड़ी किसकी है? मैंने कहा कि मेरी है. फिर उन्होंने मेरा नाम पूछा. जैसे ही मैंने फिरोज बोला. मुझे उठाकर गाड़ी में बैठा लिया और मारते हुए बोले की वो कट्टा लेकर आ जो तूने दंगे में चलाया था,’’ यह कहना है 28 वर्षीय मोहम्मद फिरोज का.
नाम पूछकर फिरोज को गाड़ी बैठाने वाले दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच के जवान थे. उस रोज फ़िरोज़ को पहले यमुना विहार एसआईटी लाया गया. वहां से दरियागंज क्राइम ब्रांच के ऑफिस ले जाया गया. अगले दिन उसे कोर्ट में पेश कर मंडोली जेल भेज दिया गया.
एक महीने जेल में रहने के बाद 12 अप्रैल को फिरोज को जमानत मिल गई थी. यह जमानत कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के बाद मिली थी. जब हम फिरोज से मिले तो वे जमानत पर थे, लेकिन 19 जुलाई को वे दोबारा जेल चले गए हैं. फिरोज ने हमसे कहा था, ‘‘गिरफ्तारी के समय मुझपर पुलिस कम सज़ा वाली धाराएं लगाई थी, लेकिन अब हत्या का भी मामला दर्ज हो गया है. इस बार अगर जेल गया तो जमानत लेना मुश्किल होगा.’’
मोहम्मद फिरोज को दिल्ली पुलिस ने शाहिद आलम नाम के शख्स की हत्या के मामले में आरोपी बनाया है.
दंगे रुकने के बाद 27 फरवरी को एक आदेश के तहत इससे जुड़े मामलों को स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम (एसआईटी) की तीन टीमों को सौंप दिया गया. ज़्यादातर मामले शुरू में ही क्राइम ब्रांच के पास चले गए, लेकिन शाहिद का मामला क्राइम ब्रांच को आठ मार्च को सौंपा गया.
क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर आशीष कुमार दुबे ने इस मामले की जांच की और 7 जून को कड़कड़डूमा कोर्ट में चार्जशीट जमा की है. पुलिस दिल्ली दंगे को लेकर अब तक करीब 200 चार्जशीट दाखिल कर चुकी है.
शाहिद की हत्या के मामले में पुलिस ने मोहम्मद फिरोज के साथ, चांद मोहम्मद, रईस खान, मोहम्मद जुनैद, इरशाद और अकील अहमद को आरोपी बनाया है. यह सभी मुस्तफाबाद और चांदबाग़ के रहने वाले हैं. फिरोज के साथ चांद भी जमानत पर थे, लेकिन वे भी 19 जुलाई को जेल जा चुके हैं. इन पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा, 144, 145, 147, 148, 149, 153A, 302, 395, 452, 454, 505, 506, 120B लगाई है.
शाहिद की हत्या में गिरफ्तार आरोपी दंगे में शामिल थे इसको लेकर पुलिस ने कोई सीसीटीवी फूटेज नहीं दिया है. ये गिरफ्तारी 24 फरवरी को सप्तऋषि बिल्डिंग पर मौजूद रहे तीन प्रवासी मजदूरों और कुछ पुलिस वालों के बयान के आधार पर की गई है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पुलिस के सबसे ठोस गवाह तीनों मजदूरों से बात की. जिसका ऑडियो और वीडियो हमारे पास मौजूद है. मजदूर पुलिस द्वारा लिखे अपने बयान को झूठा और मनगढ़ंत बताते हैं.
दिल्ली दंगे को लेकर अपनी इस ख़ास सीरीज़ में न्यूज़लॉन्ड्री ने इससे पहले मारुफ़ अली की गोली मारकर हत्या करने और शमशाद को गोली मारने को लेकर रिपोर्ट किया था. जिसमें सामने आया कि पीड़ित और चश्मदीदों के बार-बार कहने के बावजूद पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर रही है. मारुफ़ की हत्या के मामले में गिरफ्तार छह आरोपियों में से चार मुसलमान हैं तो शाहिद के मामले में गिरफ्तार सभी छह आरोपी मुस्लिम ही है.
इस मामले की चार्जशीट और केस डायरी पढ़ने, आरोपियों के परिजनों और तीनों मुख्य गवाहों से बातचीत करने पर जो तस्वीर उभरती है वह पुलिस की जांच में ख़ामियों की तरफ साफ इशारा करती है.
मजदूरों ने केस डायरी में दर्ज बयान को गलत बताया
न्यूज़लॉन्ड्री के पास इस मामले की केस डायरी भी मौजूद है. केस डायरी में दर्ज अपने बयान में मुकेश कुमार ने बताया है, ‘‘24 फरवरी को हमने अपना गोदाम खोला हुआ था. करीब 12 से 12:30 के बीच गोदाम के सामने रोड पर जहां सीएए को लेकर धरना प्रदर्शन चल रहा था. वहां धीरे-धीरे लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी. भीड़ में काफी लोग लाठी, डंडे, कांच की बोतले और पत्थर लिए हुए थे. ये लोग सीएए के खिलाफ नारे लगा रहे थे. भीड़ वजीराबाद का मुख्य मार्ग बंद कर दी और पुलिस पर पत्थरबाजी करने लगे. जिसके बाद हम गोदाम बंद करके ऊपर के अपने कमरे में चले गए.’’
मुकेश आगे कहते हैं, ‘‘करीब 3 से 3:30 के बीच अचानक 20 से 25 की संख्या में प्रदर्शनकारी दुकान का दरवाज़ा तोड़कर छत पर आ गए. जिसमें से कुछ के चेहरे ढंके हुए थे. सबके हाथ में लाठी, बोतल, पत्थरों से भरा बैग और असलहा था. बलवाईयों ने मुझे और मेरे साथी मजदूरों को डराया और मारने की धमकी देने लगे. हमने हाथ जोड़कर बोला कि हम यहां मजदूरी करने आए है. इसके थोड़ी देर बाद हम बिल्डिंग से उतर गए. उतरते हुए हमने देखा कि कुछ और प्रदर्शनकारी पत्थर से भरा बैग लेकर ऊपर जा रहे थे.”
पुलिस के पास दर्ज बयान में मुकेश के हवाले से लिखा है कि उन्होंने छत पर चढ़ी भीड़ में शामिल एक शख्स को पहचान लिया था. बयान कहता है, ‘‘भीड़ में एक शख्स वो भी था जिसका प्रिंटिंग का काम हमारी दुकान के पीछे है. जिसको मैं अच्छी तरह पहचानता हूं.’’
मुकेश: पुलिस ने झूठ लिखा है
मुकेश हाल ही में बाराबंकी जिले के अपने गांव गौसिया मऊ लौटे हैं. न्यूजलॉन्ड्री ने उनके गांव में उनसे मुलाकात की. पुलिस द्वारा चार्जशीट और केस डायरी में दर्ज किए गए बयान से वो साफ़ मुकर गए.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए मुकेश कहते हैं, ‘‘जिस रोज दंगा हो रहा था उस दिन मैं, अरविंद, उनकी पत्नी, नारायण, धर्मराज और देशराज दुकान पर थे. हम अपनी दुकान खोले हुए थे. प्रदर्शन करने वाले सड़क पर चले गए थे तो पुलिस वाले उन्हें हटने के लिए कह रहे थे. फिर पत्थरबाजी शुरू हो गई. तीन-चार बजे के करीब में लड़ाई बढ़ गई तो हम अपनी दुकान बंद करके ऊपर के कमरे में आ गए. थोड़ी देर बाद कुछ लड़के गेट तोड़कर ऊपर आ गए. उन्हें देखकर हम सारे लोग एक ही कमरे में हो गए. जो बंदे आए उसमें से एक ने शायद शराब पी रखी थी. वो गाली दे रहा था.’’
मुकेश आगे कहते हैं, ‘‘छत पर आए लोग दरवाजा पीटने लगे और बाहर निकलने को कहने लगे. हमने उनसे कहा कि हमारी क्या गलती है. हम तो कमाने-खाने आए है. उसमें से एक ने कहा हटाओ ये सब मजदूर है. इनको परेशान क्या करना. ये लोग गरीब आदमी है. वे लोग वापस चले गए. फिर हमारे मालिक ने कहा कि दूसरी बिल्डिंग पर आ जाओ.’’
छत पर जो भीड़ आई थी उसमें से आप किसी को पहचान पाए. इस सवाल के जवाब में मुकेश कहते हैं, नहीं. वे बताते हैं, ‘‘डर के मारे हम लोग अपने कमरे में बैठे हुए थे. हम उनकी शक्ल क्या ही देखते .’’
जब हमने मुकेश से रईस खान का नाम लेकर पूछा कि आप इनको पहचानते हैं. इसके जवाब में मुकेश कहते हैं, ‘‘हमें नहीं पता कि रईस खान कौन है. हम किसी रईस को जानते ही नहीं है.’’
केस डायरी में पुलिस ने हर गिरफ्तारी के बाद मुकेश का बयान दर्ज किया है. जब हमने मुकेश से पूछा कि क्या आपके सामने पुलिस किसी गिरफ्तार व्यक्ति को पहचान के लिए लाई थी या आप उनके ऑफिस जाकर किसी गिरफ्तार व्यक्ति की पहचान किए तो मुकेश ने इनकार में सिर हिला दिया.
हमने पुलिस द्वारा हर गिरफ्तारी के बाद लिखे मुकेश के बयान को पढ़कर सुनाया तो वे इससे साफ़ इनकार करते हुए बोले, ‘‘मेरे सामने कभी किसी गिरफ्तार व्यक्ति को लेकर नहीं आए. जो भी लिखा है वो झूठ है. इससे मेरा कोई मतलब नहीं है. मुझे एक बार दरियागंज के ऑफिस में उन्होंने बुलाया था, लेकिन वहां भी पूछताछ ही किए. मैं किसी को पहचानता नहीं था तो क्या बताता उन्हें.’’
मुकेश आखिर में कहते हैं, ‘‘यह सब पुलिस ने अपने मन से लिखा है. मैं दिल्ली आऊंगा तो पूछुंगा कि मैंने कब आपसे कहा कि मैं इन्हें पहचानता हूं. मैं जब किसी को जानता ही नहीं तो क्यों नाम लूंगा. क्यों किसी की जिंदगी खराब करूंगा.’’
अरविंद: ‘हम किसी को पहचानते ही नहीं’
मुकेश कुमार की तरह अरविंद भी किसी की पहचान करने से इनकार करते हैं.
आठ मार्च को अरविन्द अपने बयान में ठीक वही बातें बताते हैं जो मुकेश ने बताया है. हालांकि अरविंद उस रोज भीड़ में शामिल किसी शख्स की पहचान नहीं बताते हैं. लेकिन 12 मार्च को जो बयान दर्ज है उसमें वे रईस, चांद और फिरोज की पहचान करने की बात करते हैं.
12 मार्च को केस डायरी में अरविन्द का बयान दर्ज किया गया है. अपने बयान में अरविंद कहते हैं कि आपके बुलाने पर मैं आज आपके ऑफिस आया. यहां आपके ऑफिस में आपके सामने बैठा शख्स भी उस दिन भीड़ के साथ हमारे गोदाम की छत पर मौजूद था. जिसका नाम आपके बताने पर रईस पता चला. इसके साथ ही बैठे दो लोगों को मैं पहचान गया. ये लोग पीर बाबा के मजार के पास गाड़ी चलाते हैं. आपके बताने पर इनका नाम मुझे फिरोज और चांद मोहम्मद मालूम चला. यह लोग भी उस दिन हमारी छत पर चढ़ गए थे.
अरविंद से हमने उस दिन का घटनाक्रम समझने की कोशिश की. उन्होंने बताया, “दंगे हो रहे थे तो मैं अपने परिवार और साथ काम करने वालों के साथ छत पर बने कमरे में मौजूद था. तभी कुछ लोग छत पर चले आए. उनके हाथ में डंडे थे. हमें धमकाने लगे. गाली दे रहे थे. किसी ने मुंह बांध रखा था तो किसी ने हेलमेट पहना हुआ था. हम डरकर कमरे में बंद रहे तभी हमारे मालिक का फोन आया कि तुम लोग वहां से निकलकर भजनपुरा के पास वाली बिल्डिंग पर आ जाओ. जब हम निकले तो छत पर कोई नहीं था, लेकिन आगे और पीछे दोनों तरफ का गेट टूटा हुआ था.’’
उस रोज छत पर आई भीड़ में आप किसी को पहचान पाए थे इस सवाल के जवाब में अरविंद ने इनकार कर दिया. रईस, चांद और फिरोज के गिरफ्तारी को लेकर दिए बयान के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस कभी भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके हमें नहीं दिखाई है. वो लोग तस्वीरें दिखाते थे, लेकिन हम उनमें से किसी को भी नहीं जानते थे. हमने किसी की पहचान नहीं की.’’
लॉकडाउन लगने से पहले अरविन्द घर चले गए थे. तीन महीने घर पर रहने के बाद दोबारा दिल्ली कमाने के लिए लौट आए हैं. हमने इनसे फोन पर बातचीत की है.
नारायण: 'किसी को पहचान नहीं पाया'
केस डायरी में आठ मार्च के ही दिन तीसरे मजदूर नारायण का भी बयान दर्ज है. नारायण ने घटना के वक़्त छत पर मौजूद भीड़ में किसी की भी पहचान नहीं की है हालांकि चार्जशीट में पुलिस ने लिखा है कि नारायण ने रईस खान का नाम लिया था.
नारायण इन दिनों अपने घर बाराबंकी में हैं. जब न्यूज़लॉन्ड्री उनके घर पहुंचा तो वे अपने खेत में काम कर रहे थे. खेत से लौटकर उन्होंने हमसे बात की. वे उस रोज के बारे में बताते हैं, ‘‘जब दंगा होने लगा तो हमलोग ऊपर चले गए और कमरा बंद करके अंदर बैठे थे. तभी 30-35 आदमी आ गए. वे गेट तोड़ने लगे और कहने लगे की इनको इसी में जला दो. दो लड़के उसमें से बोले कि ये गरीब आदमी हैं. इनके साथ कुछ करना ठीक नहीं है. ये तो बेचारे कमाने खाने वाले है. उन्होंने हमें नीचे निकलने लिए कहा. हम लोग चार साढ़े चार बजे दूसरे वाले दुकान पर पहुंच गए.’’
आप उस दिन छत पर मौजूद रहे किसी शख्स को पहचान पाए. इसके जवाब में मुकेश और अरविन्द की तरह नारायण भी ना ही कहते हैं. पुलिस को किसी का नाम बताने और रईस की पहचान करने के सवाल पर ये कहते हैं, ‘‘छत पर मौजूद किसी भी शख्स को मैं पहचान नहीं पाया. पुलिस को भी मैंने यही बताया था कि मैं किसी को नहीं पहचानता हूं. हम मजदूर हैं. हम क्या ही किसी को पहचानते. एकाध पुराने ग्राहक हैं जिन्हें हम जानते हैं. बाकी किसी को जानते ही नहीं है. ’’
किसने की शाहिद आलम की हत्या?
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) बनने के साथ ही देश में जगह-जगह प्रदर्शन होने शुरू हो गए थे. दिल्ली में भी शाहीनबाग़ समेत कई जगहों पर लोग इस कानून के प्रति अपनी नाराज़गी दर्ज करा रहे थे, लेकिन केंद्र सरकार ने साफ शब्दों में कह दिया था कि सरकार एक कदम भी पीछे नहीं हटेगी.
22 फरवरी की शाम प्रदर्शनकारी जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर बैठ गए. इसके अगले दिन 23 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी के विवादास्पद नेता कपिल मिश्रा अपने समर्थकों के साथ मौजपुर चौक पहुंचे. यहां पुलिस की उपस्थिति में मिश्रा ने बयान दिया जिसके कुछ देर बाद ही लोग सड़कों पर आ गए.
तीन दिन तक चले इस दंगे में 53 लोगों की मौत हो गई. लोगों को मारकर नाले में फेंक दिया गया. हत्या करने के बाद इसकी सूचना एक व्हाट्सएप ग्रुप में दी गई. घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया. महीनों तक हज़ारों लोगों को राहत शिविर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
कपिल मिश्रा के बयान के बाद 23 फरवरी को कुछ जगहों पर दंगा हुआ, लेकिन 24 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में ये फैल गया. चांदबाग़ के 25 फुटा रोड पर सीएए को लेकर लम्बे समय से प्रदर्शन चल रहा था. प्रदर्शनकारी उस दिन सड़क पर आ गए जिससे सड़क पर यातायात ठप हो गया. पुलिस प्रदर्शनकारियों पर सड़क से हटने का दबाव बनाती रही. इसी दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प शुरू हो गई थी. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच चल रही खींचतान के बीच हिन्दू प्रदर्शनकारी भी सड़क के दूसरी तरफ आ गए जिसके बाद इस पूरे मामले ने सांप्रदायिक दंगे का रूप ले लिया.
यमुना विहार में दवाई की दुकान चलाने वाले 40 वर्षीय ब्रजेश खत्री उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘स्थिति पुलिस के नियंत्रण से बाहर चली गई थी. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वालों को भगा दिया जिसके बाद वे यमुना विहार की तरफ चले आए थे. हिंदुओं की भीड़ कुछ घंटों बाद घटनास्थल पर पहुंची थी.’’
24 फरवरी को मुस्लिम प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने चांदबाग़ की तरफ से हिंदू भीड़ और पुलिस पर पथराव कर रही थी. वहीं पुलिस और हिन्दू भीड़ यमुना विहार की तरफ मोहन नर्सिंग होम के पास से मुस्लिम भीड़ पर पथराव कर रही थी.
बुलंदशहर के रहने वाले शाहिद दिल्ली में अपने तीन भाइयों और पत्नी के साथ न्यू मुस्तफाबाद की गली नम्बर 17 में किराए के मकान में रहते थे. ऑटो चालक शाहिद को गोली लगने के बाद कुछ लड़कों ने पहले स्थानीय मदीना अस्पताल में भर्ती कराया, वहां से उसके परिजन उसे गुरु तेगबहादुर अस्पताल (जीटीबी) लेकर गए जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.
शाहिद के मामले में कोई भी एफ़आईआर दर्ज कराने नहीं आया जिसके बाद एक मार्च को दयालपुर थाने के एएसआई राजेन्द्र कुमार ने एफ़आईआर दर्ज कराया.
आखिर शाहिद के परिजनों ने एफ़आईआर दर्ज क्यों नहीं कराया. इसको लेकर उनके बड़े भाई इमरान कहते हैं, ‘‘हमें पता ही नहीं था कि उसे गोली किसने मारी तो हम किसके खिलाफ एफ़आईआर दर्ज कराते. एफ़आईआर दर्ज कराने पर हासिल भी क्या होता? मेरा भाई तो मर चुका था.’’
पुलिस द्वारा दर्ज कराए गए एफ़आईआर में शाहिद को गोली लगने की जगह पीर बाबा का मज़ार, चांदबाग़ के करीब बताया गया है. यहीं नहीं पुलिस ने 25 फरवरी को शाहिद के भाई इरफ़ान और इमरान का बयान दर्ज किया उन्होंने ने भी घटनास्थल पीर बाबा का मज़ार के करीब ही बताया है.
बाद में जांच सप्तऋषि बिल्डिंग की तरफ घूम गई. पीर बाबा के मजार से सप्तऋषि के बीच की दूरी दो सौ से तीन सौ से मीटर है. चार्जशीट में यह नहीं बताया गया कि पीर बाबा का मज़ार, चांदबाग़ के करीब गोली लगने की घटना सप्तऋषि बिल्डिंग कैसे हो गई. लेकिन ऐसा लगता है कि पांच मार्च को एनडीटीवी के प्राइम टाइम शो के बाद ऐसा हुआ होगा.
दरअसल पांच मार्च को रवीश कुमार ने शाहिद को गोली लगने के बाद का वीडियो प्राइम टाइम में चलाया था. जिसमें कुछ लड़के उसे छत से उतारते नज़र आ रहे है. यह वीडियो सप्तऋषि बिल्डिंग के ऊपर का बताया गया था.
चार्जशीट में भी बताया गया है कि दिल्ली पुलिस ने एनडीटीवी से आठ मार्च को प्राइम टाइम में चलाये गए फूटेज और रिपोर्टर/कैमरामैन की जानकारी देने के लिए पत्र लिखा था. दोबारा 14 मार्च को क्राइम ब्रांच की तरफ से पत्र लिखा गया. इसके बाद एनडीटीवी ने उन्हें फूटेज दिया था. दिल्ली पुलिस ने एनडीटीवी के अलावा और कई चैनलों से फूटेज की मांग की थी.
एनडीटीवी के जिस फूटेज का जिक्र पुलिस ने चार्जशीट में किया है उसमें मोहन नर्सिंग होम के ऊपर जमा भीड़ का भी जिक्र है. फूटेज में नर्सिंग होम के ऊपर से लोग गोली चलाते नज़र आ रहे हैं. मोहन नर्सिंग होम के नीचे दवाई की दुकान चलाने वाले संजय कुमार छत पर मौजूद भीड़ के बारे में कहते हैं, ‘‘वे यमुना विहार के हिंदू थे, जो पीछे के रास्ते से यहां पहुंचे थे.’’
मोहन नर्सिंग होम के एक फार्मासिस्ट कपिल जिंदल ने न्यूज़लांड्री को बताया कि दंगाइयों ने नर्सिंग होम के सभी सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया था और डीवीआर चुरा ले गए थे. दंगे के दौरान नर्सिंग होम को लगभग 8 लाख रुपये का नुकसान हुआ.’’
मोहन नर्सिंग होम के बिलकुल सामने स्थित सप्तऋषि की बिल्डिंग पर शाहिद आलम और बाकी अन्य लोग चढ़ गए थे. पुलिस ने चार्जशीट में लिखा है कि एनडीटीवी द्वारा दिए गए फूटेज में सप्तऋषि बिल्डिंग पर मौजूद लड़कों को पहचानने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली. अगर किसी की पहचान होती है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी. न्यूज़लॉन्ड्री ने भी वीडियो में मौजूद आरोपियों को तलाशने की कोशिश की, लेकिन हम ऐसा करने में सफल नहीं हो पाए.
शाहिद के भाई इरफ़ान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘24 फरवरी की सुबह शाहिद की तबियत खराब थी. मैंने उसे कुछ दवाएं दीं और घर पर रहने के लिए बोलकर काम पर चला गया. शाम को लौटा और खाना खा रहा था तभी कुछ लोगों ने उसकी तस्वीर दिखाई. मैं भागकर मदीना अस्पताल पहुंचा तो वह मरा हुआ था. इसके बाद हम उसे वहां से एम्बुलेंस से जीटीबी अस्पताल ले गए.’’
शाहिद की हत्या को लेकर चार्जशीट में बताया गया है, ‘‘दोपहर 3:30 के करीब शाहिद को गोली लगी थी. गोली उसे पेट की बायीं तरफ से लगी जो दायीं तरफ गई. उसके शरीर से तीन तांबे का बुलेट जैकेट बरामद हुआ. इससे लग रहा है कि उसे गोली पास से ही मारी गई है. हालांकि दूसरी इमारतों, खासकर मोहन नर्सिंग होम से चल रही गोलियों की भी हम जांच कर रहे हैं.’’
चार्जशीट में कहा गया है, ‘‘अभी तक जो गोली का हिस्सा मिला है उससे लगता है कि गोली छोटे बंदूक से चली है. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मोहन नर्सिंग होम से चली गोली से उसकी मौत ना हुई हो.’’ यहां ऐसा लगता है कि पुलिस मोहन नर्सिंग होम के छत पर मौजूद लड़कों को क्लीनचिट दे रही है.
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पुलिस के एक सीनियर अधिकार ने बताया, ‘‘सप्तऋषि भवन की छत पर मौजूद भीड़ द्वारा ही शाहिद को गोली मारी गई थी. जिस एंगल से उसे गोली लगी वह एक्सीडेंटल फायरिंग की तरफ इशारा करता है.’’
चार्जशीट जमा करने तक पुलिस के पास इस मामले की फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं आई थी.
एनडीटीवी के जिस वीडियो के आधार पर पुलिस सप्तऋषि की बिल्डिंग की जांच की उसमें ही मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से लोग गोली चलाते नजर आ रहे है. लेकिन हैरान करने वाली बात है कि इस मामले में पुलिस ने मोहन नर्सिंग होम की छत पर मौजूद भीड़ में से किसी को गिरफ्तार नहीं की है.
26 जून को द क्विंट पर छपी एक रिपोर्ट में 22 वर्षीय अकरम ने मोहन नर्सिंग होम की छत से पेट्रोल बम से हमला करने का आरोप लगाया था. अपनी शिकायत में अकरम ने अस्पताल के मालिक और उसके कर्मचारियों की इसमें भूमिका का जिक्र किया था. पुलिस अभी तक इस मामले में एफ़आईआर दर्ज नहीं की है.
न्यूज़लॉन्ड्री मोहन नर्सिंग होम के मालिकों में से एक डॉ सुनील कुमार को उनका पक्ष जानने के लिए फोन किया तो उन्होंने बात करने से इनकार दिया.
कैसे हुई गिरफ्तारी?
चश्मदीदों से मुलाकात के बाद हमने इस मामले में गिरफ्तार हुए दो आरोपियों (जो अब जेल जा चुके हैं) और तीन के परिजनों से मुलाकात की.
रईस खान और उनके पांच मज़दूरों को पुलिस चांदबाग़ स्थित उनके ऑफिस से कुछ तस्वीरें दिखाने की बात करके पूछताछ के लिए ले गई थी. मज़दूरों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया, लेकिन रईस गिरफ्तार कर लिए गए. उसके बाद से वे मंडावली जेल में बंद है. उनके परिजनों ने एक बार हाईकोर्ट में जमानत की कोशिश की थी, लेकिन वह रद्द हो गया. रईस के परिजन ऑफ़ द रिकॉर्ड तो हर बात कहते हैं, लेकिन ऑन द रिकॉर्ड कुछ भी बताने से इनकार कर रहे हैं.
चांद मोहम्मद की गिरफ्तारी की कहानी हैरान करने वाली है. फिरोज की तरह चांद भी बाकी दिनों की तरह उस रोज भजनपुरा स्टैंड पर सवारी का इंतजार कर रहे थे तभी क्राइम ब्रांच की गाड़ी आकर रुकी और फिरोज को उठा ली.
चांद बताते हैं, ‘‘जब फिरोज को वे लोग गाड़ी में उठाकर बैठा लिए तो मैंने उनसे पूछा कि आप क्यों उठा रहे हैं. वे पुलिस के कपड़े नहीं पहने थे तो मैं पहचान नहीं पाया. फिर उन्होंने बताया कि वे क्राइम ब्रांच से है. इसके बाद मैं बगल में आकर बाकी चालकों को फोन करके बताने लगा कि यहां मत आना क्राइम ब्रांच वाले पकड़ रहे हैं.’’
चांद आगे बताते हैं, ‘‘फिरोज को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसे कुछ और चालकों को फोन करके बुलाने के लिए कहा. फिरोज जिसको फोन करता वे बताते कि चांद तो बता रहा है कि क्राइम ब्रांच वाले पकड़ने आए हैं. कई लोगों ने जब मेरा नाम लिया तो पुलिस वाले मुझे ही पकड़ लिए और कहने लगे कि बड़ा नेता बन रहा है. अब तू ही चल. उड़ता तीर ले लिया तू. मैं अपने दूसरे साथियों को तो बचा लिया लेकिन खुद फंस गया.’’
पुलिस ने चार्जशीट में चांद और फिरोज का कबूलनामा लिखा है. जब हमने उन्हें पढ़कर सुनाया तो वे हैरान रह गए. वे कहते हैं, ‘‘हमने कभी उनसे यह सब नहीं बोला. सब अपने मन से लिखे हैं.’’
इतना ही नहीं चार्जशीट में फिरोज की गिरफ्तारी के बाद उनके कबूलनामे में पुलिस ने लिखा है कि घटना वाले दिन उन्होंने देखा कि वजीराबाद रोड पर हिंसा हो रही है तो अपनी गाड़ी से घर पहुंचा. वहां से उन्होंने डंडा उठाया और दंगे में शामिल हो गया. घर से आते वक़्त वे अपना फोन घर पर ही भूल गया था.
वहीं पुलिस ने गिरफ्तारी का सबूत पेश किया तो उन्होंने बताया कि फिरोज का फोन घटनास्थल के पास सक्रिय था.
वहीं चांद कहते हैं, ‘‘मैं गाड़ी चलाता हूं. हर सुबह निकलते हैं तो देर शाम लौटकर आते है. खाना खाकर सो जाते है. हम प्रोटेस्ट में कभी गए ही नहीं. प्रोटेस्ट या दंगे में गए होते तो हमारी एक तो फोटो कहीं आती.’’
रईस, चांद और फिरोज की गिरफ्तारी में मुकेश, अरविंद और एएसआई रविन्द्र और हेड कॉन्स्टेबल देवेन्द्र चश्मदीद गवाह हैं.
शाहीद के मामले में अगली गिरफ्तारी एक अप्रैल को हुई थी. एक अप्रैल को पुलिस ने न्यू मुस्तफाबाद की गली नम्बर 14 से 23 वर्षीय जुनैद और 22 वर्षीय इरशाद को गिरफ्तार किया. दोनों का घर कुछ ही दूरी पर है.
जुनैद को गिरफ्तारी से एक दिन पहले क्राइम ब्रांच ने नोटिस दिया था. जुनैद की मां रुकसाना बताती हैं, ‘‘एक रोज 12-13 लोग मेरे घर आए. वे पुलिस के कपड़े नहीं पहने हुए थे. उन्होंने पूछा कि दंगे के दौरान जुनैद को चोट लगी थी. हमने कहा कि नहीं उसे तो कोई चोट नहीं लगी. वो तो अपने काम पर आता-जाता है. उन्होंने एक कागज दिया और बोला कि कल अपने बेटे को लेकर दरियागंज क्राइम ब्रांच ऑफिस में आ जाना. कुछ पूछताछ करनी है. हम उनके कहे अनुसार जुनैद को लेकर क्राइम ब्रांच गए. वहां जाने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया.’’
जुनैद की गिरफ्तारी में पुलिस ने मजदूर मुकेश, कॉन्स्टेबल अमित और आजाद को चश्मदीद गवाह बनाया है.
जुनैद की गिरफ्तारी के बाद उसी गली में रहने वाले इरशाद को भी पुलिस ने उसी दिन गिरफ्तार किया. पुलिस ने चार्जशीट में बताया है कि जुनैद ने ही इरशाद के बारे में बताया जिसके बाद उसकी गिरफ्तारी हुई है.
इरशाद की मां रेहाना कहती हैं, ‘‘दोपहर के समय कुछ लोग आए और इरशाद के बारे में पूछने लगे. उस वक़्त इरशाद बगल में ही था तो उसने बताया कि मैं ही इरशाद हूं. इसके बाद पुलिस वाले उसे लेकर चले गए. उन्होंने बोला कि किसी की पहचान करानी है. थोड़ी देर बाद उसे छोड़ देंगे, लेकिन उसके बाद उसे जेल में डाल दिया.’’
रेहाना कहती है कि कुछ महीने पहले उसका एक्सीडेंट हो गया था. वो ठीक से चल नहीं सकता है. जिस दिन पुलिस वाले उसे दंगे में शामिल होने की बात कह रहे हैं. वो तो घर पर ही नहीं था. उस्मानपुर में एक कार वर्कशॉप में काम कर रहा था. उसके मालिक को किसी की कार पेंट करके देनी थी तो वे हमें सुरक्षा का भरोसा देकर उसे अपने साथ ले गए थे.’’
परिजनों का दावा है कि उस रोज इरशाद उस्मानपुर में कार वर्कशॉप में था. यह जानने के लिए हमने वर्कशॉप के मालिक सुनील कुमार से बात की. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सुनील कहते हैं, “24 और 25 फरवरी को इरशाद हमारे यहां काम पर आया था. जब दंगा बढ़ गया तो दो दिन नहीं आया. दंगा खत्म होने के बाद फिर से काम पर रोजाना आने लगा.’’
इरशाद जिस वर्कशॉप में काम करता था वहां काम का समय सुबह 9 बजे से शाम सात बजे तक है. जब हमने सुनील से पूछा कि 24 और 25 फरवरी को इरशाद ने तय समय तक काम किया तो उन्होंने इसका जवाब हां में दिया.
यानी पुलिस जिस वक़्त इरशाद को सप्तऋषि की बिल्डिंग पर होने की बात कर रही हैं सुनील के मुताबिक वह उस समय काम कर रहा था.
इरशाद की पहचान भी मजदूर मुकेश और कॉन्स्टेबल अमित और आजाद ने की है.
शाहिद की हत्या के मामले में छठीं गिरफ्तारी अकील अहमद की हुई. 42 वर्षीय अकील न्यू मुस्तफाबाद के गली नम्बर सत्रह में अपनी बीबी और बच्चे के साथ किराए के मकान में रहते हैं. पुलिस ने 10 अप्रैल को अकील को उनके घर से गिरफ्तार किया.
उनकी पत्नी जेबुनिस्सा कहती हैं, ‘‘वे घर पर खाना खा रहे थे. तभी नीचे कुछ लोग आए और उन्हें आवाज़ लगाने लगे. मैं उस वक़्त नहा रही थी. उन लोगों ने कहा कि गाड़ी के बारे में पूछताछ करनी है. मेरे पति उनके साथ चल दिए. मेरा बेटा जब दौड़कर गया तो देखा कि नाले पर पुलिस की गाड़ी में उन्हें रखकर ले गए है. वहां उन्होंने कहा कि भजनपुरा एसआईटी ऑफिस लेकर जा रहे हैं.’'
अकील की गिरफ्तारी मुकेश, कॉस्टेबल नरेंद्र और संदीप के बयान पर की गई है.
पुलिस के सामने अकील के कबूलनामा को जब हमने उनकी पत्नी को सुनाया तो वो कहती है कि यह सब झूठ है. वो कभी प्रोटेस्ट में जाते ही नहीं थे. हम गरीब है तो अपने बच्चों को बहुत कुछ खाने को नहीं दे सकते है. पास में प्रदर्शन हो रहा था तो बच्चे चले जाते थे क्योंकि वहां कुछ-कुछ खाने को मिलता था. यह बात जब उन्हें पता चलती तो वो मुझपर नाराज़ होते थे.’’
पुलिस के तीन सबसे ठोस गवाह पुलिस पर ही झूठ और मनगढ़ंत बात लिखने का आरोप लगा रहे है. जहां तक इनके फोन के घटनास्थल के आसपास सक्रिय होने की बात है तो ज्यादातर गिरफ्तार आरोपी चांदबाग़ के आसपास के ही रहने वाले हैं. रईस का ऑफिस तो घटना स्थल के बिलकुल पीछे है.
चार्जशीट में पुलिस ने मदीना अस्पताल के डॉक्टर मंसूर खान का बयान दर्ज किया है. जो पीसीआर को किए कॉल के आधार पर है. जिसमें कहा गया है कि डॉक्टर ने फोन करके बताया कि कुछ लड़के शाहिद को मदीना अस्पताल के बाहर ‘फेंक’ गए है. इस बयान के बहाने ऑप इंडिया जैसी वेबसाइट ने पुलिस के उस दावे को सही साबित करने की कोशिश की कि शाहिद को गोली उसके साथ के लोगों ने ही मारी थी.
न्यूज़लॉन्ड्री जब मुस्तफाबाद स्थित मदीना अस्पताल में डॉक्टर मंसूर से मिला तो उन्हें इस तरह की कोई भी बात पुलिस को बताने से इनकार कर दिया. मंसूर खान ने कहा, ‘‘उसे कुछ लोग लेकर आए थे. उस वक़्त मैं किसी दूसरे मरीज को देख रहा था तो वे स्ट्रेचर पर छोड़कर चले गए. कोई फेंक कर नहीं गया था.’’
खान सही कह रहे हैं क्योंकि पुलिस की ही केस डायरी में दर्ज उनके बयान में कहीं ऐसा नहीं लिखा कि लोग शाहिद को फेंक कर चले गए हों.
सप्तऋषि बिल्डिंग, मोहन नर्सिंग होम के बिलकुल सामने है. मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से गोली चलाते दंगाइयों की भीड़ का कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. टीवी चैनलों द्वारा दिखाया गया.
शाहिद की हत्या के मामले में भी कयास ऐसे लग रहे हैं कि मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से चली गोली से उसकी मौत हुई. लेकिन पुलिस ने इस मामले में नर्सिंग होम के छत पर मौजूद लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ करने के बजाय एक कमज़ोर कहानी के जरिए उस छत पर मौजूद लोगों को हिरासत में लेने पर जोर देती नजर आ रही है. वो भी जिनको हिरासत में लिया गया उस वक़्त छत पर मौजूद थे इसका कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई है.
जिस पुलिस को पांच मार्च (एनडीटीवी के प्राइम टाइम) से पहले पता तक नहीं था कि घटना सप्तऋषि पर हुई थी या पीर बाबा के मजार के पास उसने इन्वेस्टीगेशन शुरू करने के 72 घंटे बाद ही तीन आरोपियों को हिरासत में ले लिया. ऐसा लगता है कि पुलिस किसी जल्दबाजी में थी.
मुस्तफाबाद में रहने वाले एक डॉक्टर, शाहिद के मामले में मुसलमान आरोपियों की गिरफ्तारी पर कहते हैं, “मोहन नर्सिंग होम के पास पुलिस वाले दंगाइयों के साथ मिलकर पत्थर चला रहे थे. ऐसे में उसी पुलिस से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो वहां से किसी को गिरफ्तार करेगी. मोहन नर्सिंग होम की तो वे ठीक से जांच भी नहीं किए है.’’
यह बिलकुल सही है कि अगर दिल्ली पुलिस मोहन नर्सिंग होम और उसके आसपास मौजूद दंगाइयों की जांच करती है तो चक्र घूमकर उनपर ही आएगा. क्योंकि उस रोज पुलिस उस भीड़ के ही साथ मौजूद ही नहीं थी बल्कि पत्थरबाजी कर रही थी. एनडीटीवी ने अपने वीडियो में दिखाया की जो शख्स पहले नीचे से पत्थरबाजी कर रहा था वहीं शख्स थोड़ी देर बाद मोहन नर्सिंग होम के ऊपर था.
इस मामले में न्यूज़लॉन्ड्री ने दिल्ली पुलिस को सवालों की एक सूची भेजी है. अगर उनका जवाब आता है तो उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा..
( इनपुट- बाराबंकी से प्रभात तिवारी )
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मारूफ अली की हत्या का यह दूसरा पार्ट है. 2020 दिल्ली दंगे में पुलिस द्वारा की जा रही जांच की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट का यह हिस्सा है.
पहला पार्ट: मारुफ़ की हत्या, पुलिस की चार्जशीट और कुछ राज उगलती दिल्ली पुलिस की इनर डायरी
दूसरा पार्ट : दिल्ली दंगा: सोनू, बॉबी, योगी और राधे जिनका नाम हर चश्मदीद ले रहा है
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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 159 पाठकों ने योगदान दिया. यह रोन वाधवा, चिराग अरोरा, निशांत, राकेश, हेमंत महेश्वरी, अक्षय पाण्डे, शेख हाकु, ज़ैद रज़वी, सुम्रवस कंडुला, जया चेरिन, मनीषा मालपथी,और अन्य एनएल सेना के सदस्यों से संभव बनाया गया था. हमारे अगले एनएल सेना प्रोजेक्ट भारत में कस्टोडियल डेथ के लिए सपोर्ट करे, और गर्व से कहें 'मेरे खर्च पर आजाद है खबरें.
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