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गंगा के उद्धार के लिए अब 3000 करोड़ रुपए का ऋण देगा विश्व बैंक
गंगा को बचाने और उसके पुनरोद्धार के लिए वर्ल्ड बैंक करीब 3000 करोड़ रुपए (40 करोड़ डॉलर) का ऋण देगा. विश्व बैंक द्वारा दिया जा रहा यह ऋण नमामि गंगे परियोजना के लिए दिया जाएगा. विश्व बैंक ने जारी अपने बयान में कहा है कि इस 3,000 करोड़ रुपए में से 2,858 करोड़ रुपए (38.1 करोड़ डॉलर) ऋण के रूप में और 142 करोड़ रुपए (1.9 करोड़ डॉलर) प्रस्तावित गारंटी के रूप में होंगे.
इसके साथ ही विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि इस दूसरी राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना (एसएनजीआरबीपी) से गंगा में प्रदूषण को कम करने और नदी बेसिन प्रबंधन में सुधार लाने में मदद मिलेगी. 2011 से ही विश्व बैंक गंगा पुनरोद्धार के प्रयासों में सरकार का समर्थन कर रहा है. यह ऋण 18.5 वर्षों के लिए दिया गया है जिसमें 5 वर्ष की मोहलत अवधि भी शामिल है.
गंगा न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि इसका पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय महत्व भी बहुत ज्यादा है. इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसके बेसिन में 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को आवास है. भारत का सतह पर मौजूद एक तिहाई जल इसी नदी बेसिन में है. जोकि देश का सबसे बड़ा सिंचित क्षेत्र भी है. इससे देश की एक बड़ी आबादी को खाना और रोजगार मिलता है. यह बेसिन देश का करीब 40 फीसदी जीडीपी उत्पन्न करता है. पर जिस तरह से इस नदी का दोहन हो रहा है, उसका दुष्प्रभाव इसकी गुणवत्ता और जल के बहाव पर पड़ रहा है.
देश में इसी को ध्यान में रखकर नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत हुई थी. जिसका उद्देश्य गंगा को प्रदूषण मुक्त करना और उसके इकोसिस्टम में सुधार लाना था. नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने बताया कि विश्व बैंक की मदद से शुरू की गई पहली परियोजना से प्रदूषण को रोकने में जो मदद मिली थी उसको इस दूसरे राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना से गति मिलेगी. भारत में वर्ल्ड बैंक के कंट्री डायरेक्टर जुनैद अहमद ने बताया कि, "नमामि गंगे परियोजना ने गंगा के पुनरोद्धार के लिए किये जा रहे प्रयासों को पुनर्जीवित किया है."
विश्व बैंक की पहली परियोजना की मदद से नदी के किनारे स्थित 20 सबसे प्रदूषित हॉटस्पॉट में सीवेज के निर्माण में मदद मिली थी. अब इस दूसरी परियोजना के तहत इस काम को गंगा की सहायक नदियों तक बढ़ाने में मदद मिलेगी. मौजूदा राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना के तहत अब तक गंगा के किनारे स्थित 20 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में मदद मिली है. जिसके अंतर्गत 1,275 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट की व्यवस्था की जा चुकी है. साथ ही 3,632 किमी का सीवेज नेटवर्क बनाया गया है.
गौरतलब है कि गंगा प्रदूषण का एक बड़ा कारण इसके किनारे पर मौजूद कस्बों और शहरों से रोजाना निकलने वाला अपशिष्ट जल है. आंकड़ों के अनुसार गंगा में 80 फीसदी प्रदूषण घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के कारण होता है. इनके ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था न होने के कारण इस गंदे पाने को ऐसे ही गंगा और उसकी सहायक नदियों में छोड़ दिया जाता है.
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के अनुसार इसमें से 1,134 करोड़ रुपये (15 करोड़ डॉलर) का उपयोग तीन नई हाइब्रिड एन्यूइटी मोड परियोजनाओं में किया जाएगा. यह राशि आगरा, मेरठ, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में गंगा की सहायक नदियों (यमुना और काली) पर खर्च की जाएगी. साथ ही 1200 करोड़ रुपए (16 करोड़ डॉलर) की राशि बक्सर, मुंगेर, बेगूसराय (बिहार) की मौजूदा डिजाइन, निर्माण, परिचालन और स्थानांतरण (डीबीओटी) परियोजनाओं एवं दीघा, कंकड़बाग-पटना तथा हावड़ा, बैली और बड़ानगर (पश्चिम बंगाल) की हाइब्रिड एन्यूइटी मोड परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी. जबकि बाकि बचे 7.1 करोड़ डॉलर अन्य गतिविधियों पर खर्च किये जाएंगे.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस परियोजना के तहत निर्मित ढांचा प्रभावकारी ढंग से काम करता रहे और उसका प्रबंधन ठीक तरह से होता रहे, यह परियोजना मौजूदा एनजीआरबीपी के तहत शुरू किए गए सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाले नए हाईब्रिड वार्षिकी मॉडल (एचएएम) के आधार पर शुरू की जाएगी. इस मॉडल के तहत सरकार निजी ऑपरेटरों को निर्माण अवधि के दौरान सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र बनाने के लिए लागत का 40 फीसदी भुगतान करेगी और शेष 60 फीसदी का भुगतान इन संयंत्रों के प्रदर्शन के आधार पर 15 वर्ष की अवधि में किया जाएगा. जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि ऑपरेटर संयंत्र का संचालन एवं रखरखाव ठीक तरह से कर रहे हैं.
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