Newslaundry Hindi
दिल्ली पुलिस ने खड़काया पत्रकारों को फोन: ‘दिल्ली में दंगों के दौरान वहां क्या कर रहे थे?’
22 जुलाई को उन कुछ पत्रकारों के पास अचानक से दिल्ली पुलिस की ओर से फोन आने लगे जिन्होंने फरवरी में उत्तर-पूर्व दिल्ली मेें हुए दंगों के इसकी कवरेज की थी. पुलिस ने बताया कि वो दंगे के दौरान उनकी गतिविधियां जानने के लिए फोन कर रही थी.
राधिका रामाशेषन और अर्चिस मोहन, इन दोनों पत्रकारों ने ट्वीट करके जानकारी दी कि उन्हें रोहिणी पुलिस थाने से फोन किया गया था.
अर्चिस मोहन ने दंगों को बिज़नेस स्टैंडर्ड अखबार के लिए कवर किया था और पिछले सप्ताह उन्हें रोहिणी पुलिस स्टेशन से कॉल आया. पुलिस ने उनसे पूछा कि वह 27 फरवरी को पूर्वोत्तर दिल्ली में क्या कर रहे थे?
अर्चिस ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मुझसे मेरे काम के बारे में जानने से पहले उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कहां रहता हूं, कितने दिनों से इस पते पर हूं और यह फोन नंबर मेरे पास कितने समय से है."
अर्चिस यह मानते हैं कि फोन करने वाले पुलिस कर्मचारी को जिसे वह फोन कर रहा है उसके बारे में कुछ भी नहीं पता था. हालांकि पुलिस का यह दावा ज़रूर कर रहे थे कि उन्हें अर्चिस की पूरी कुंडली पता है. अर्चिस मोहन, जो काफी समय क्राइम रिपोर्टिंग करते रहे हैं, कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि यह सोचा समझा फोन कॉल था. ऐसा लगता है कि वह किसी रूप में दिए गए बहुत सारे नंबरों को क्रमवार कॉल कर रहा थे. ठंडे बस्ते में डाल दिया मामलों में कई बार ऐसा होता है."
राधिका रामाशेषन जो बिज़नेस स्टैंडर्ड और मुंबई मिरर के लिए लिखतीं हैं, उन्होंने करावल नगर, शिव विहार और यमुना विहार जैसे कई दंगा पीड़ित क्षेत्रों से दंगों के दौरान रिपोर्टिंग की थी. उनसे भी पुलिस ने कुछ अलग पूछताछ नहीं की पर राधिका की नज़र में यह फोन कॉल चिंताजनक है.
राधिका कहती हैं, "मेरी समझ से इस प्रकार की निगरानी ठीक नहीं है. मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में उत्तर प्रदेश से बहुत सारे दंगों पर रिपोर्ट किया है पर इस प्रकार की परेशानी पहले कभी नहीं आयी."
फोन करने वाले पुलिस कर्मचारी के बाद राधिका को उस पुलिस थाने के निरीक्षक का फोन आया जो राधिका के मत में थोड़ा पछतावे की भाषा में बात कर रहा था. राधिका के बताया, "वह कह रहे थे कि उन्हें नहीं मालूम था कि मैं पत्रकार हूं."
विचित्र बात है कि दोनों ही पत्रकारों के अनुसार, उन्हें ऐसा लगा जैसे पुलिस उनसे तहकीकात में मदद करने के लिए प्रेरित करना चाह रही है. दोनों ने ही इस संभावना से स्पष्ट इंकार कर दिया.
राधिका रामाशेषन और अर्चिस मोहन के अलावा दंगों के समय पूर्वोत्तर दिल्ली से रिपोर्ट करने वाले और किसी पत्रकार ने, दिल्ली पुलिस की तरफ से फोन किए जाने का दावा अभी तक नहीं किया है.
न्यूजलॉन्ड्री ने रोहिणी में नियुक्त पुलिस उप-आयुक्त प्रमोद कुमार मिश्रा से इस घटना पर प्रतिक्रिया मांगी. उन्होंने कहा कि उन्हें रोहिणी से पत्रकारों को की जाने वाली कॉलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वे कहते हैं, "रोहिणी जिले में दो पुलिस थाना क्षेत्र हैं, उत्तरी रोहिणी और दक्षिणी रोहिणी. पूर्वोत्तर जिले में फरवरी महीने में हुए दंगों का रोहिणी से कोई लेना देना नहीं है. यहां पर दंगों से जुड़ी कोई भी पूछताछ या छानबीन नहीं हो रही है. ऐसा लगता है कि कोई गुमराह करने की कोशिश कर रहा है."
उन्होंने यह भी कहा कि अगर दोनों पत्रकार जिस नंबर से फोन आया उनके साथ साझा करते हैं तो वह इस मामले में छानबीन कर सकते हैं, अन्यथा वह इस पर और कोई टिप्पणी नहीं देना चाहते.
ट्विटर पर राधिका ने पुलिस से सवाल पूछा के वह दंगों के 5 महीने बाद भी फोन नंबर ही ट्रेस कर रहे हैं और उनका नंबर पुलिस के पास कैसे पहुंचा?
उनके इस ट्वीट के बाद अन्य पत्रकारों ने भी पुलिस के छानबीन के तरीके पर अपना आक्रोश जताया और साथ ही व्यक्तिगत निजता के उल्लंघन और पत्रकारों के कामकाज में बाधा डालने की आशंकाएं जताई.
पुलिस के द्वारा दायर किए गए आरोपपत्र के अनुसार दंगों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (SIT) ने मोबाइल फोन जब्त करके, उनसे मिले कॉल डाटा से संभावित दंगाइयों को चिन्हित किया है.
हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री की अपनी रिपोर्ट कहती हैं, कि पुलिस के द्वारा की गई छानबीन लापरवाहियों और मनगढ़ंत आरोपों का पुलिंदा है. दिल्ली पुलिस के अनुसार दंगों में 52 नागरिकों की जानें गई थी जिनमें से अधिकतर मुस्लिम थे.
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुजरात: विकास से वंचित मुस्लिम मोहल्ले, बंटा हुआ भरोसा और बढ़ती खाई
-
September 15, 2025: After weeks of relief, Delhi’s AQI begins to worsen
-
Did Arnab really spare the BJP on India-Pak match after Op Sindoor?